October 15, 2024
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मिशन चंद्रयान- 3 (Mission Chandrayaan-3) : भारत फिर चांद पर जाने के लिए तैयार

Chandrayaan-3 क्यों है महत्वपूर्ण ?
मिशन चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3 mission) :भारत का यह चंद्र अभियान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि chandrayaan-3 के माध्यम से रोवर को चांद के उस हिस्से में उतारा जाएगा जहां अब तक किसी भी देश का कोई अभियान नहीं पहुंचा है। भारतीय रोवर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में उतारा जाएगा जिसे चंद्रमा का सबसे विषम भौगोलिक क्षेत्र माना जाता है। चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव सबसे गर्म हिस्सा माना जाता है। यहां का तापमान 54 डिग्री तक होने की संभावना है। इसका कारण यह है कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सूर्य की रोशनी सीधी पड़ती है। लेकिन एक आश्चर्य की बात यह भी है कि इस हिस्से में ऊंचे पहाड़ और गहरे गड्ढे हैं। इन गड्ढों पर पहाड़ों की छाया के कारण सूर्य की रोशनी कभी पड़ती ही नहीं। अतः वहां का तापमान माइनस 200 डिग्री तक पहुंच जाने की संभावना रहती है।

Mission Chandrayaan-3 (मिशन चंद्रयान-3)

मिशन चंद्रयान- 3 (14 July 2023 ) [Mission Chandrayaan-3 launch]

चांद पर पहुंचने और उसे जानने की इंसान की ललक पुरानी है। इसलिए 1960 के दशक में अंतरिक्ष कार्यक्रमों की शुरुआत अमेरिका और सोवियत संघ द्वारा चांद पर अभियान भेजकर की गई। सोवियत संघ और अमेरिका ने ही शुरुआत में सबसे अधिक चंद्र अभियान चलाया था। लेकिन विगत 65 वर्षों के दौरान 11 देशों ने जिसमें भारत भी शामिल है, 144 चंद्र अभियान शुरू किया। 144 चंद्र अभियानों में 95 सफल और 49 असफल रहे। हालांकि चंद्रमा के बारे में वैज्ञानिक जानकारी बहुत अधिक नहीं मिल पाई है फिर भी नए अभियान भेजे जाते रहे हैं।
इस सिलसिले में भारत फिर चांद पर जाने को तैयार है। chandrayaan-3 के प्रक्षेपण के साथ भारत 14 जुलाई को इतिहास रचने जा रहा है। इस अभियान के जरिए भारत एक रोबोटिक उपकरण रोवर को चंद्रमा की सतह पर उतारेगा। भारत यह उपकरण चांद के उस हिस्से पर उतारेगा जहां अभी तक कोई देश पहुंच नहीं पाया है। 14 जुलाई को चंद्रयान- 3 का प्रक्षेपण लांच व्हीकल मार्क- 3 के जरिए श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से दोपहर 2.35 पर किया जाएगा। रोवर को 45 से 48 दिनों का सफर पूरा करने के बाद 23 से 24 अगस्त के बीच चंद्रयान 3 से लैंडर के जरिए चांद पर उतरा जाएगा। भारत का यह अभियान यदि सफल हो जाता है तो भारत चांद पर पहुंचने वाला विश्व का चौथा देश बन जाएगा। अमेरिका रूस और चीन विश्व के 3 देश चांद पर पहुंच चुके हैं।

Chandrayaan-3 क्यों है महत्वपूर्ण ?

भारत का यह चंद्र अभियान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि chandrayaan-3 के माध्यम से रोवर को चांद के उस हिस्से में उतारा जाएगा जहां अब तक किसी भी देश का कोई अभियान नहीं पहुंचा है। भारतीय रोवर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में उतारा जाएगा जिसे चंद्रमा का सबसे विषम भौगोलिक क्षेत्र माना जाता है। चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव सबसे गर्म हिस्सा माना जाता है। यहां का तापमान 54 डिग्री तक होने की संभावना है। इसका कारण यह है कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सूर्य की रोशनी सीधी पड़ती है। लेकिन एक आश्चर्य की बात यह भी है कि इस हिस्से में ऊंचे पहाड़ और गहरे गड्ढे हैं। इन गड्ढों पर पहाड़ों की छाया के कारण सूर्य की रोशनी कभी पड़ती ही नहीं। अतः वहां का तापमान माइनस 200 डिग्री तक पहुंच जाने की संभावना रहती है।
चंद्रमा को दूरी के हिसाब से दो हिस्सों में बांटा जा सकता है एक नजदीकी हिस्सा जो पृथ्वी से दिखाई देता है और दूसरा दूर का हिस्सा जो पीछे पड़ता है। चंद्रमा पर अब तक जितने भी अभियान भेजे गए हैं ,चंद्रमा के मध्य एवं उत्तरी हिस्से (नजदीक वाले हिस्सों) में पहुंचे हैं। चीन एकमात्र ऐसा देश है जिसने चेंग- 5 के जरिए 2020 में चंद्रमा के पीछे के हिस्से में सॉफ्ट लैंडिंग की थी।

अमेरिकी एजेंसी नासा की नजर भी भारत के chandrayaan-3 पर टिकी है। क्योंकि chandrayaan-3 मिशन अमेरिका के आर्टेमिश- 3 के लिए मार्गदर्शन का कार्य करेगा। इस मिशन से नासा की चांद के इस हिस्से के बारे में जानकारी जुटाने की राह आसान होगी, तथा आगे की रणनीति तय करने में सुविधा होगी।

चंद्रयान प्रथम कैसे हुआ था सफल ?

चंद्रयान-1 को भारत ने 2008 में लांच किया था। हालांकि चंद्रयान-1 को चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग की योजना तो नहीं थी लेकिन चंद्रयान-1 से एक उपकरण मून इंपैक्ट प्रोब चांद के दक्षिणी हिस्से पर गिराया गया था और इस उपकरण ने गिरते-गिरते कई महत्वपूर्ण आंकड़े एकत्र किए थे। नासा वैज्ञानिकों ने इन्हीं आंकड़ों से शोध पत्र तैयार कर इस बात की पुष्टि की थी कि चंद्रमा पर कभी पानी था।
चंद्रयान- 2 को जब 6 सितंबर 2019 में लैंडर के जरिए रोवर को चांद की सतह पर उतारा जा रहा था तो यह हादसे का शिकार हो गया था। भारत इस अधूरे मिशन को पूरा करने के लिए लगभग 4 वर्ष बाद chandrayaan-3 को प्रक्षेपित करने जा रहा है।

कैसे काम करेगा chandrayaan-3 ?

इसरो के अनुसार रोवर की क्षमता 14 दिन तय की गई है। यह चांद की सतह पर 14 दिन तक काम करेगा। लेकिन वह इससे ज्यादा समय तक भी काम कर सकता है। chandrayaan-2 के लैंडर के हादसे का शिकार होने के कारण चंद्रयान- 3 के लैंडर में कई बदलाव करते हुए इसे अधिक सुरक्षित बनाने के लिए 9 नए सेंसर लगाए गए हैं।

Chandrayan-2 की गलतियों से लिया गया सबक

पिछली गलतियों से सबक लेते हुए इस बार इसरो ने इसमें कई सुरक्षा उपाय किए हैं। इसरो का कहना है कि अगर कोई समस्या आती है तो चंद्रयान का रोवर लैंडिंग का स्थान बदल सकता है।इसरो ने इस बार मिशन में विफलता आधारित डिजाइन का विकल्प चुना है। इसमें इस बात का ध्यान रखा गया है कि अभियान के दौरान क्या-क्या गलत हो सकता है और इन समस्याओं से कैसे चंद्रयान को बचाया जाए।
इसरो अध्यक्ष ने दावा किया कि chandrayaan-3 की लैंडिंग के दौरान अगर कोई समस्या आती है तब भी रोवर सफलतापूर्वक चंद्रमा पर उतरेगा। इस बार लैंडिंग के क्षेत्र को 500 × 500 मीटर से बढ़ाकर 4 किलोमीटर × 2.5 किलोमीटर कर दिया गया है। इस क्षेत्र में यह कहीं भी उतर सकता है। गड़बड़ी सामने आती है तो जगह बदल सकता है। पिछली बार की तरह इस बार क्षेत्र में उतरने की बाध्यता नहीं है।

Mission Chandrayaan-3 के क्या है तत्कालीन और दूरगामी लक्ष्य ?

चंद्रयान प्रथम के प्रक्षेपण पर भी सवाल उठाया गया था कि यह अभियान क्यों आवश्यक है। एक वर्ग ने इसे गैर- जरूरी बताया था। लेकिन चंद्रयान-1 के जरिए भारत ने चंद्र अभियान शुरू करने वाले देशों में अपना नाम दर्ज कराया। चंद्र अभियान के तत्कालीन और दूरगामी परिणाम है
Chandrayaan-3 के तात्कालिक लक्ष्य

  • चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित उतर कर अपनी तकनीकी क्षमता का प्रदर्शन करना।
  • चंद्रमा पर रोवर की घूमने की क्षमता का प्रदर्शन।
  • चंद्रमा की सतह से जुड़े अनुसंधान करना।

दूरगामी लक्ष्य

दूरगामी लक्ष्य की दृष्टि से इस अभियान के कई फायदे हो सकते हैं। चंद्रमा पर बड़ी मात्रा में हिलियम गैस की मौजूदगी हो सकती है। चंद्रमा पर कई बेशकीमती खनिज को सकते हैं। धरती पर ये खनिज समाप्त होने पर अभी से उन्हें चांद से लाने की बात की जाती है। यह बातें अटपटी अवश्य लगती है लेकिन वैज्ञानिकों की दृष्टि से यह असंभव नहीं है और यदि अंतरिक्ष पर्यटन बढ़ता है तो भारत भी अग्रणी भूमिका निभा सकता है। यह मिशन पूरी तरह से स्वदेशी है।

कितनी धातुओं को खोजने का लक्ष्य ?

26 किलोग्राम वजन का रोवर जहां उतरेगा वहां की जमीन एवं चट्टान का रासायनिक परीक्षण करने के साथ-साथ उसमें लगे अल्फा पार्टिकल एक्सरे स्पेक्ट्रोमीटर (APXS)की मदद से 7 धातुओं को खोज का प्रयास करेगा। इस उपकरण से निकलने वाली किरणें मैग्नीशियम, सिलिकॉन, पोटेशियम, कैल्शियम, टाइटेनियम, आयरन तथा एल्यूमिनियम को खोजने का प्रयास करेंगी।धातुओं से ही पता चल पाएगा कि मानव जीवन के लिए चांद कितना उपयोगी है।

chandrayaan-3 के प्रक्षेपण के साथ ही 7 उपकरण पहुंचेंगे चांद तक

Chandrayaan-3 मैं 7 वैज्ञानिक पे लोड हैं जिनमें से चार लैंडर, 2 रोवर तथा एक प्रपल्सन मॉड्यूल में लगाए गए हैं। लैंडर 1,752 किलोग्राम का है जिसमें 4 वैज्ञानिक पे लोड शामिल किए गए हैं। एक पे लोड चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र में इसकी सतह के तापीय गुणों को मापेगा जबकि एक अन्य उपकरण चंद्रमा पर भूकंपीय गतिविधियों का आकलन करेगा। चंद्रमा पर प्लाज्मा घनत्व तथा इसकी विविधता का आकलन तीसरे उपकरणों लैगमुइर प्रोब द्वारा किया जाएगा। चौथा उपकरण चंद्र सतह पर परिवेश का पता लगाएगा। रोवर में दो उपकरण लगे हैं जो चांद पर मौजूद सतह की विस्तृत खोज करेंगे

चंद्रयान अभियान की सफलता से भारत को क्या लाभ होगा ?

विश्व के 11 देश अब तक 144 चंद्र अभियान चला चुके हैं। जिनमें से 95 चंद्र अभियान आंशिक या पूर्ण रूप से सफल हुए हैं जबकि 49 चंद्र अभियान अब तक विफल हुए हैं।

भारत द्वारा चंद्र अभियान पर कितना खर्च हुआ ?

भारत के यह अभियान किफायती रहे हैं। चंद्रयान-1 पर 386 करोड़ chandrayaan-2 पर 978 करोड़ तथा chandrayaan-3 पर 615 करोड़ों रुपए खर्च हुए हैं।

कितने मानव पहुंचे चांद पर ?

पिछले 50 वर्षों से चांद पर कोई मानव नहीं गया। अमेरिका एकमात्र ऐसा देश है जो चांद पर इंसान उतारने में सफल रहा है। चांद तक 24 इंसान गए जिनमें से 12 ने चांद पर कदम रखे। 14 दिसंबर 1972 को आखरी बार वहां इंसान उतरा था।

भारत chandrayaan-3 के प्रक्षेपण के साथ 14 जुलाई को नया इतिहास रचने जा रहा है। अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि और साहसिक पहल है। क्योंकि भारत का रोबोटिक उपकरण चांद के उस हिस्से में लैंड करेगा जहां अभी तक विश्व का कोई भी देश पहुंच नहीं पाया है। आज पूरे विश्व की नजर chandrayaan-3 पर टिकी हुई है। ऐसा माना जा रहा है कि भारत के चंद्रयान मिशन और उसके नतीजों ने दुनिया की दिलचस्पी चांद में फिर से बढ़ा दी है। अब रूस और अमेरिका भी चांद पर मानव भेजने की तैयारी में जुटे हैं।