October 9, 2024
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Ganesh Chaturthi: भाद्रपद शुक्ल पक्ष की गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन क्यों है वर्जित ?

Ganesh Chaturthi 2024: भाद्रपद शुक्ल पक्ष की गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन क्यों है वर्जित ?
Ganesh Chaturthi 2024: भाद्रपद शुक्ल पक्ष की गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन क्यों है वर्जित ?

Ganesh Chaturthi: आज भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन गणपति बप्पा घर-घर में विराजमान हो जाएंगे। आज पंडालों में भी गणेश प्रतिमा स्थापित हो जाएगी। आज से 10 दिवसीय गणपति महोत्सव का शुभारंभ हो जाएगा। आज (7 सितंबर) लोग अपने- अपने घरों में भी गणपति की स्थापना कर रहे हैं।

Ganesh Chaturthi के दिन वैसे तो चंद्र दर्शन का बहुत महत्व है। बिना चन्द्र दर्शन के Ganesh Chaturthi व्रत पूर्ण नहीं माना जाता है लेकिन भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा का दर्शन वर्जित माना जाता है। भाद्र पद माह के शुक्ल पक्ष की गणेश चतुर्थी को चंद्र दर्शन से कलंक लगता है। ऐसा क्यों है? इसके पीछे क्या कथा है? आईए जानते हैं-

भाद्र शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन गणेश जी की विशेष पूजा होती है। लेकिन इस दिन भूलकर भी चंद्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए। यदि इस दिन चंद्रमा का दर्शन करते हैं तो आपके ऊपर झूठा कलंक लग सकता है और ऐसा हुआ भी है। भगवान श्री कृष्ण ने एक बार चंद्रमा का दर्शन भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को कर लिया था, जिससे उनको भी झूठा कलंक लगा था।

क्या है कथा?

श्रीमद् भागवत पुराण की कथा के अनुसार सत्रजित और प्रसेनजित यादव दो भाई थे। जिनके पास स्यामंतक मणि था। सत्राजित यादव ने सूर्य नारायण की उपासना करके स्यामंतक मणि प्राप्त की थी। यह मणि नित्य आठ भार सोना देती थी। श्री कृष्ण ने उसे मणि को प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की। सत्राजित ने वह मणि श्री कृष्ण को न देकर अपने भाई प्रसेनजीत को दे दी। लेकिन एक बार शिकार करते समय प्रसेनजित को एक शेर ने मार डाला और मणि ले ली।

रीछ के राजा जामवंत ने शेर को मारकर मणि प्राप्त कर गुफा में चला गया। इधर सत्रजित ने सोचा कि श्री कृष्ण ने ही मणि के लिए उसके भाई का वध कर दिया और सत्य जाने बिना ही उसने घोषणा कर दी कि श्री कृष्ण ने प्रसेनजित को मार कर स्यामंतक मणि छीन ली है।

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श्री कृष्ण इस लोक निंदा और अपने ऊपर लगे झूठे कलंक के निवारण के लिए प्रसेनजित को ढूंढने के लिए वन में गए। वहां उन्हें पूरी घटना के प्रमाण मिले। तब वह रीछ के पांव के निशान के द्वारा गुफा तक पहुंच गए और देखा की गुफा के अंदर जामवंत की पुत्री उस मणि से खेल रही है। लेकिन जामवंत श्री कृष्ण के साथ युद्ध करने लगा। 21 दिनों तक लगातार युद्ध चला और जब जामवंत कृष्ण को पराजित ना कर पाया तो उसने सोचा कि मुझे श्री रामचंद्र जी ने जो वरदान दिया था कहीं यह वही अवतार तो नहीं है। जामवंत को जब यह प्रमाण मिल गया कि भगवान राम ही द्वापर युग में श्री कृष्ण अवतार में अवतरित हुए हैं तो उसने अपनी कन्या जामवंती का विवाह कृष्ण से कर दिया।

इधर सत्रजित को अपने किए पर पश्चाताप हुआ और अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए उसने भी अपनी पुत्री का विवाह श्री कृष्ण के साथ कर दिया। कुछ समय पश्चात शतधन्वा ने सत्रजित को मार कर मणि अपने कब्जे में ले ली। इस समय श्री कृष्णा इंद्रप्रस्थ गए थे। यह समाचार पाकर वह तत्काल द्वारिका आ गए और शतधन्वा से मणि प्राप्त करने के लिए शतधन्वा को मारने का निश्चय किया । इस कार्य में बलरामजी ने भी उनकी सहायता की।

लेकिन शतधन्वा ने वह मणि अक्रूर को दे दी। श्री कृष्ण ने शतधन्वा को तो मार डाला लेकिन मणि उन्हें नहीं मिली। बलराम जी भी वहां पहुंच गए लेकिन श्री कृष्ण के यह बताने पर की मणि शतधन्वा के पास नहीं है, बलराम जी भी अप्रसन्न होकर विदर्भ चले गए।

श्री कृष्ण के द्वारिका लौटने पर वहां के लोगों ने श्री कृष्ण का बहुत अपमान किया। उनके ऊपर यह लांछन लगाया कि स्यामंतक मणि के लोभ में श्री कृष्ण ने अपने भाई को त्याग दिया। श्री कृष्णा इस अपमान से शोक व्याकुल थे तभी नारद जी वहां आए और उन्होंने श्री कृष्ण से कहा, आपने भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के चंद्रमा का दर्शन किया था।

इसी कारण आपके ऊपर यह लांछन लगा है। भगवान श्री कृष्ण ने इस कलंक से मुक्ति के लिए इस चतुर्थी को सिद्धिविनायक व्रत किया, जिससे उन्हें इस कलंक से मुक्ति मिली।

इसी कारण भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को चंद्रमा का दर्शन वर्जित माना गया है।