एक देश एक चुनाव इस विचार पर आधारित है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हो।
देश में एक साथ चुनाव 1952,1957,1962,1967 में हो चुके हैं।
1968- 1969 में कुछ राज्य विधानसभाओं के समय भंग होने और 1971 में लोकसभा चुनाव समय से पहले होने के कारण टूटा देश में एक साथ चुनाव का क्रम
एक देश एक चुनाव की दिशा में सरकार ने एक कदम आगे बढ़ते हुए गठित की समिति।
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद है समिति के अध्यक्ष
समिति के सदस्यों में गृह मंत्री अमित शाह, लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एन के सिंह...
, लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी शामिल है।
एक देश एक चुनाव की राह में है कई चुनौतियां जैसे एक साथ चुनाव में भारी खर्च, लंबे समय तक आचार संहिता लागू होने से नीतियों के अमल में देरी और आवश्यक सेवाओं की आपूर्ति पर प्रभाव आदि।
एक देश एक चुनाव के लिए अनुच्छेद 83,85 ,172, 174, और अनुच्छेद 356 में करने होंगे संशोधन।
एक देश एक चुनाव से सार्वजनिक धन की बचत, सुरक्षा और प्रशासनिक ढांचे पर कम बोझ और सरकारी नीतियों का त्वरित कार्यान्वयन, जैसे लाभ होंगे
पिछले 20 वर्षों में बार-बार चुनाव के कारण चुनावी खर्च 1998 से 2019 तक 900 करोड़ से करीब 6 गुना बढ़कर 55 हजार करोड रुपए हो गया है।
देश को चुनाव के चक्रव्यूह से बाहर निकालने के लिए आवश्यक है एक देश एक चुनाव।
जर्मनी, हंगरी, स्पेन, पोलैंड, इंडोनेशिया, बेल्जियम, दक्षिण अफ्रीका, स्नोवालिया और अल्बानिया जैसे देशों में एक देश एक चुनाव की है व्यवस्था।