भारतीय उद्योग जगत की दिग्गज हस्ती रतन टाटा का 86 वर्ष की उम्र में 9 अक्टूबर 2024 को निधन हो गया।
रतन टाटा और उनके परिवार का देश के विकास में अहम योगदान रहा है।
रतन टाटा एक ऐसी शख्सियत थे जिन्होंने अपने फैसलों से अपने परिवार की महान विरासत को कायम रखा।
आईए जानते हैं रतन टाटा के औद्योगिक सफर के बारे में
कॉर्नेल विश्वविद्यालय से वास्तुकला में स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद रतन टाटा ने 1962 में अपने परदादा द्वारा स्थापित समूह के लिए कार्य करना प्रारंभ किया।
टाटा समूह की स्थापना रतन टाटा के परदादा जमशेदजी टाटा ने 100 वर्ष पहले की थी।
अपनी सेवा के दौरान रतन टाटा ने टाटा समूह की कई टाटा कंपनियों में काम किया, जिनमें टेल्को और टाटा स्टील लिमिटेड जैसी कंपनियां शामिल है।
उसके बाद रतन टाटा ने टाटा की एक अन्य इकाई नेशनल इंडिया एंड इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी में घाटे को खत्म कर अलग पहचान बनाई।
1991 में रतन टाटा को टाटा संस का अध्यक्ष बनाया गया।
1991 से 2012 तक में टाटा संस के अध्यक्ष रहे।
उन्होंने दूरसंचार कंपनी टाटा टेलीसर्विसेज की स्थापना की।
1996 में उन्होंने आईटी फर्म टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज को अपने अधीन कर लिया।
टाटा समूह ने 2000 में ब्रिटिश चाय कंपनी टेटली को 432 मिलियन डॉलर में खरीदा।
यही नहीं 2007 में एंग्लो डच स्टील निर्माता कोरस को 13 बिलियन डॉलर में खरीदा।
इसके बाद टाटा मोटर्स ने फोर्ड मोटर कंपनी से ब्रिटिश लग्जरी ऑटो ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर का अधिग्रहण किया।
रतन टाटा ने भारत के आम लोगों के लिए एक किफायती कार नैनो का निर्माण किया। हालांकि नैनो लॉन्चिंग के एक दशक बाद ही बंद हो गई।
रतन टाटा ने ही इंडिका का निर्माण किया जो भारत में डिजाइन और निर्मित पहली कार है।
रतन टाटा कभी-कभी कंपनी का विमान भी उड़ाते थे। उनके पास पायलट का लाइसेंस था।