October 15, 2024
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क्या है नालंदा विश्वविद्यालय का स्वर्णिम इतिहास? जिसके नए परिसर का पीएम मोदी ने 19 जून को किया उद्घाटन

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Nalanda University: 1600 वर्ष पुराने जिस नालंदा विश्वविद्यालय को वर्ष 1193 में मुस्लिम आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने नष्ट कर दिया था, उस नालंदा विश्वविद्यालय को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतरराष्ट्रीय पटल पर लाकर फिर से इसकी प्रसिद्धि को जीवंत कर दिया। भारत की प्राचीन संस्कृति और विरासत का सबसे बड़ा ब्रांड एंबेसडर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यूं ही नहीं कहा जाता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 जून को नालंदा विश्वविद्यालय के नए परिसर का उद्घाटन किया, जिसमें दो नए एकेडमिक ब्लॉक होंगे, 40 कक्षाएं, 300 सीटों का ऑडिटोरियम और 5500 छात्रों के लिए एक अस्पताल तैयार किया गया है।

नालंदा विश्वविद्यालय का उद्घाटन कोई सामान्य उद्घाटन नहीं था। इस उद्घाटन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और 17 देश के राजदूत और प्रतिनिधि तथा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार स्वयं उपस्थित थे। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि नालंदा विश्वविद्यालय के नए परिसर का महत्व न सिर्फ भारत के लिए अपितु पूरी दुनिया की कितना बड़ा है।

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आज से 900 वर्ष पहले तक नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया में शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र था और यह दुनिया का सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय था। जिसे मुस्लिम आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने नष्ट करने के लिए उसमें आग लगवा दी और बाद में कई सदियों तक इस विश्वविद्यालय के जले हुए अवशेष खंडहर जैसी स्थिति में पड़े रहे। वर्ष 2010 में आए एक अधिनियम के तहत ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, भूटान, कंबोडिया, इंडोनेशिया, चीन, म्यांमार, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, श्रीलंका और थाईलैंड जैसे देशों के सहयोग से इस विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने का प्रयास शुरू हुआ और जिस विश्वविद्यालय को जलाकर राख कर दिया गया था उसी के नए परिसर का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों 19 जून को हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नालंदा विश्वविद्यालय के उद्घाटन के अवसर पर कहा कि,

“नालंदा को जलाया जा सकता है लेकिन उसके ज्ञान को मिटाया नहीं जा सकता।”

आज विश्व भर मैं जितने सम्मान के साथ ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज यूनिवर्सिटी का नाम लिया जाता है इससे कहीं ज्यादा सम्मान और महत्व भारत के नालंदा विश्वविद्यालय का था। नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से भी 500 वर्ष पहले पांचवीं शताब्दी में हुई थी और दुनिया को शून्य देने वाले आर्यभट्ट इस नालंदा विश्वविद्यालय के प्रमुख हुआ करते थे।

आईए जानते हैं नालंदा विश्वविद्यालय के स्वर्णिम इतिहास के बारे में?

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्तकालीन सम्राट कुमार गुप्त प्रथम ने 415- 454 ईसा पूर्व में की थी। ‘नालंदा’ संस्कृत शब्द नालम् + दा’ से से बना है। संस्कृत में नालम का अर्थ कमल होता है। कमल ज्ञान का प्रतीक है नालम् + दा’ अर्थात ज्ञान देने वाली। नालंदा दुनिया का पहला ऐसा विश्वविद्यालय था जहां कोरिया, जापान, चीन, इंडोनेशिया, श्रीलंका, जावा, पर्शिया, तुर्की, तिब्बत, कोरिया आदि के छात्र अध्ययन के लिए आते थे।

चीनी भिक्षु व्हेनसांग जब भारत आया था, उस समय नालंदा विश्वविद्यालय में 8500 छात्र एवं 1510 अध्यापक थे। विदेशी यात्रियों के वर्णन के अनुसार नालंदा विश्वविद्यालय में छात्रों के रहने की उत्तम व्यवस्था थी। नालंदा विश्वविद्यालय के शिक्षक अपने ज्ञान एवं विद्या के लिए विश्व में प्रसिद्ध थे। इनका चरित्र सर्वथा उज्जवल और दोष रहित था। इस विश्वविद्यालय में छात्रों के लिए कठोर नियम था, जिसका पालन करना आवश्यक था।

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नालंदा विश्वविद्यालय में प्रवेश पाने के लिए थे कठोर नियम

इस विश्वविद्यालय में प्रवेश पाना आसान नहीं था। यहां केवल उच्च कोटि की शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र ही प्रवेश पा सकते थे। प्रवेश के पहले छात्रों को परीक्षा देनी होती थी, जिसमें उत्तीर्ण होने पर ही प्रवेश संभव था।विश्वविद्यालय के 6 द्वारा थे। प्रत्येक द्वार पर एक द्वार पंडित होता था। प्रवेश से पहले वह द्वार पर ही छात्रों की परीक्षा लेता था। इस परीक्षा में 20 से 30 प्रतिशत छात्र ही उत्तीर्ण हो पाए थे। प्रवेश के बाद भी छात्रों को कठिन परिश्रम करना पड़ता था। यहां से स्नातक छात्र को प्रत्येक जगह सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था।

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नालंदा विश्वविद्यालय के छात्रों ने भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का किया प्रचार प्रसार

नालंदा सातवीं सदी में तथा उसके पश्चात कई सौ वर्षों तक एशिया का सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय था। इस विश्वविद्यालय में प्रवेश पाकर छात्र अपने को धन्य मानता था। नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षा, आवास, भोजन आदि का कोई शुल्क छात्रों से नहीं लिया जाता था। सभी सुविधा निशुल्क प्रदान की जाती थी। नालंदा के विद्यार्थियों के द्वारा ही एशिया में भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का विस्तृत प्रचार एवं प्रसार हुआ। यहां के विद्यार्थियों और विद्वानों की मांग एशिया के सभी देशों में थी और उनका सर्वत्र आदर होता था।

नालंदा विश्वविद्यालय में इन विषयों का होता था अध्ययन

नालंदा विश्वविद्यालय में चिकित्सा शास्त्र, गणित, आयुर्वेद, तर्कशास्त्र और बौद्ध सिद्धांतों का अध्ययन किया जाता था। यह विश्वविद्यालय दुनिया में शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र था। भारत की यह समृद्ध विरासत दुनिया के लिए उपहार मानी जाती थी।

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नालंदा विश्वविद्यालय का पुस्तकालय था इसकी सबसे बड़ी विशेषता

नालंदा विश्वविद्यालय की सबसे बड़ी विशेषता उसका पुस्तकालय था। जब पुस्तक छापने की मशीन का दुनिया में निर्माण भी नहीं हुआ था। ऐसे समय में नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में हाथ से लिखे 90 लाख पांडुलिपियां अर्थात 90 लाख हस्तलिखित पुस्तकों का विशाल संग्रह था। लेकिन 12 वीं शताब्दी के अंत में जब मुस्लिम आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी को नालंदा विश्वविद्यालय की प्रसिद्धि और उसके गौरवशाली इतिहास के बारे में पता चला तो उसे लगा कि यह विश्वविद्यालय इस्लाम धर्म के लिए एक चुनौती बन सकता है। इसके बाद बख्तियार खिलजी की सेना ने बौद्ध भिक्षुओं पर हमला कर दिया और नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट करने के लिए उसमें आग लगा दी।

3 महीनों तक जलता रहा नालंदा विश्वविद्यालय

बख्तियार खिलजी के हमले के बाद यह विश्वविद्यालय 3 महीने तक आग में धधकता रहा, क्योंकि उसके पुस्तकालय में 90 लाख पुस्तकें थीं जो 3 महीने तक जलती रहीं और इस प्रकार पूरी दुनिया में ज्ञान का प्रकाश फैलाने वाला भारत का नालंदा विश्वविद्यालय राख में तब्दील हो गया।