Kalpwas in Mahakumbh 2025: महाकुंभ मेले में कल्पवास का महत्व और कल्पवास के कठोर नियम
Kalpwas in Mahakumbh 2025: महाकुंभ 2025 की शुरुआत 13 जनवरी से हो रही है। महाकुंभ में स्नान दान का महत्व तो है ही इसके साथ ही कल्पवास की भी परंपरा है। प्रयागराज में महाकुंभ में कल्पवास का प्रारंभ पौष पूर्णिया से हो जाएगा जो माघ पूर्णिमा तक चलेगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कल्पवास का क्या अर्थ है। यह कब से किया जा रहा है ? माघ मास में क्यों है विशेष महत्व? तथा कल्पवास के क्या हैं नियम? आईए जानते हैं –
Kalpwas in Mahakumbh 2025: महाकुंभ 2025 की शुरुआत 13 जनवरी से हो रही है। महाकुंभ में स्नान दान का महत्व तो है ही इसके साथ ही कल्पवास की भी परंपरा है। प्रयागराज में महाकुंभ में कल्पवास का प्रारंभ पौष पूर्णिया से हो जाएगा जो माघ पूर्णिमा तक चलेगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कल्पवास का क्या अर्थ है। यह कब से किया जा रहा है ? माघ मास में क्यों है विशेष महत्व? तथा कल्पवास के क्या हैं नियम? आईए जानते हैं –
क्या है कल्पवास ? (what is kalpwas?)
कल्पवास का अर्थ है संगम के तट पर निवास कर वेदाध्ययन और ध्यान करना। प्रयागराज के महाकुंभ मेले में कल्पवास का अत्यधिक महत्व है। कल्पवास माघ के महीने में होता है तो यह और अधिक महत्व रखता है। कल्पवास को धैर्य, हिंसा और भक्ति के लिए जाना जाता है। कल्पना में दिन में एक बार ही भोजन किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि कल्पवास का संकल्प लेने वाला व्यक्ति अगले जन्म में राजा के रूप में जन्म लेता है।
MahaKumbh 2025: स्वास्थ्य और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम महाकुंभ प्रयागराज
कल्पवास की परंपरा
प्रयाग में कल्पवास की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। कुंभ और अर्ध कुंभ के अतिरिक्त प्रत्येक वर्ष माघ माह में प्रयाग के संगम तट पर लाखों श्रद्धालु कल्पवास करते हैं। पौराणिक मान्यता है कि एक कल्प, कलियुग- सतयुग, द्वापर- त्रेता चारों युगों की अवधि होता है और जो नियम पूर्वक एक कल्पवास संपन्न करता है उसे चारों युगों में किए गए तप, ध्यान, दान से अर्जित पुण्य के बराबर फल की प्राप्ति होती है। कुछ विद्वानों के अनुसार कल्पवास को कयाशोधन या कायाकल्प भी कहा जा सकता है क्योंकि संगम तट पर महीने पर स्ना,न ध्यान और दान करने के उपरांत साधक का कायाशोधन या कायाकल्प हो जाता है, जो कल्पवास कहलाता है।
Mahakumbh 2025: महाकुंभ के इतिहास में पहली बार हो रहा डोम सिटी का निर्माण जानिए डोम सिटी की खूबियां
कैसे शुरू हुआ कल्पवास का विधान ?
कल्पवास का विधान हजारों वर्षों से चला आ रहा है। यह वेद कालीन अरण्य संस्कृति के देन है। तीर्थराज प्रयाग पहले ऋषियों की तपस्थली था। यहां कब गंगा जमुना के आसपास घने जंगल थे, जहां ऋषि- मुनि ध्यान और तप करते थे। ऋषियों ने ही गृहस्थों के लिए कल्पवास का विधान रखा था, जिसके अनुसार गृहस्थ को अल्पकाल के लिए शिक्षा और दीक्षा दी जाती थी। इस दौरान गृहस्थ कल्पवास का संकल्प लेकर आते हैं और पर्ण कुटी में रहते हैं। इस दौरान एक प्रहर भोजन का विधान है। पर्ण कुटी में रहने वालों की दिनचर्या सुबह गंगा स्नान के बाद संध्या वंदन से प्रारंभ होती है और रात के प्रवचन और भजन – कीर्तन जैसे आध्यात्मिक कार्यों के साथ समाप्त होती है।
Mahakumbh 2025: महाकुंभ क्या है? यह कब और कहां लगता है? इसके पीछे क्या है पौराणिक मान्यता?
कब से कब तक है कल्पवास का विधान?
यद्यपि कल्पवास शब्द का प्रयोग पौराणिक ग्रंथों में भी किया गया है। लेकिन माघ माह में संगम तट पर वास कल्पवास के नाम से अभिहित है। वैसे तो कल्पवास का विधान पौष एकादशी से माघ द्वादशी तक एक महीने का है। लेकिन कुछ लोग पौष पूर्णिमा से कल्पवास प्रारंभ करते हैं, जिसका समापन माघ पूर्णिमा को होता है।
Maha Kumbha 2025: महाकुंभ 2025 में अखाड़ों का होगा ‘राजसी स्नान’, ‘शाही’ शब्द का इस्तेमाल खत्म
कल्पवास के क्या है नियम ? (Rules Of Kalpwas)
कल्पावास एक प्रकार की साधना है। यह स्वेच्छा से लिया गया एक कठोर संकल्प है। इसके प्रमुख नियम हैं-
- दिन में तीन बार गंगा, जमुना अथवा त्रिवेणी संगम में स्नान करना ।
- त्रिकाल संध्या वंदन।
- भूमि शयन और इंद्रिय शमन ।
- ब्रह्मचर्य पालन ।
- प्रमुख पर्वों पर उपवास रखना।
- दिन में एक बार स्वयं पकाया हुआ स्वल्पाहार अथवा बिना पकाया हुआ फल आदि का सेवन करना।
- कल्पवास के दौरान हवन के समय को छोड़कर अग्नि का सेवन पूर्णत: वर्जित है।
- जप, हवन, देवार्चन, अतिथि देव सत्कार, सन्यासी सेवा, सत्संग, मुंडन एवं पितरों का तर्पण करना।
Read: Mahakumbh 2025 Prayagraj Daily News & Updates
Amazon Republic Day Sale Is Live: https://amzn.to/4jgHkJo