November 20, 2024
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Mahavir Jayanti 2023 : आइए जानते हैं महावीर स्वामी कौन थे और कैसा था उनका जीवन ?

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भगवान महावीर का जन्म ईसा से 599 वर्ष पूर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को बिहार में ‘ लिच्छिवी वंश’ के महाराज ‘ श्री सिद्धार्थ’ और माता ‘ त्रिशिला’ देवी के यहां हुआ था। जैन श्रद्धालु इस पावन दिवस को महावीर जयंती के रूप में मनाते हैं। बचपन में महावीर का नाम वर्धमान था।

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महावीर जयंती (4अप्रैल) जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी का जन्म दिवस

कब मनाई जाएगी महावीर जयंती ? (When will Mahavir Jayanti be celebrated?)

 चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को महावीर जयंती (Mahavir Jayanti) का पर्व मनाया जाता है। महावीर स्वामी (Swami Mahavir) का जीवन ही उनका संदेश है। उनके द्वारा दिए गए सत्य अहिंसा अस्तेय ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के उपदेश एक खुली किताब की भांति हैं। जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान ऋषभनाथ की परंपरा में 24 में जैन तीर्थंकर थे महावीर स्वामी (Mahavir Swami)। वे अहिंसा के प्रतीक थे। उनका जीवन त्याग, तपस्या की प्रतिमूर्ति था। हिंसा, पशुबली, जात-पात के भेदभाव जब बढ़ गए तब महावीर और बुद्ध पैदा हुए। महावीर स्वामी की जयंती हिंदी महीने की तिथि के अनुसार मनाई जाती है। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को महावीर स्वामी की जयंती मनाई जाती है वर्ष 2023 में त्रयोदशी तिथि 4 अप्रैल मंगलवार के दिन है। अतः महावीर जयंती 4 अप्रैल को मनाई जाएगी।

महावीर स्वामी कौन थे ? और कैसा था उनका जीवन ? आइए जानते हैं

महावीर स्वामी का जीवन परिचय

 भगवान महावीर (Lord Mahavir ) का जन्म ईसा से 599 वर्ष पूर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को बिहार में ‘ लिच्छिवी वंश’ के महाराज ‘ श्री सिद्धार्थ’ और माता ‘ त्रिशिला’ देवी के यहां हुआ था। जैन श्रद्धालु इस पावन दिवस को महावीर जयंती के रूप में मनाते हैं। बचपन में महावीर का नाम वर्धमान था। जैन धर्म के अनुसार वर्धमान ने कठोर तपस्या द्वारा अपनी समस्त इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर लिया था जिस कारण वे जिन अर्थात विजेता कहलाए। उनके इस कठिन तप को पराक्रम के समान माना गया जिस कारण वे महावीर कहलाए और उनके अनुयायी जैन कहलाए। महावीर स्वामी के बचपन में कई नामों से जाना जाता था।

महावीर स्वामी का नाम ' वर्धमान' क्यों रखा गया ?

 महावीर स्वामी के जन्मोत्सव पर ज्योतिषियों द्वारा चक्रवर्ती राजा बनने की घोषणा की गई। महावीर के जन्म के पूर्व ही कुंडलपुर की वैभव, संपन्नता दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ने लगी थी। अतः महाराज सिद्धार्थ ने उनका बचपन का नाम वर्धमान रखा। वर्धमान ने लोगों में संदेश प्रसारित किया कि उनके द्वार सभी के लिए सदैव खुले रहेंगे। दर्शनार्थियों की भीड़ 24 घंटे होने लगी, जिसने राजपाट की सारी मर्यादाए तोड़ दी।

देवराज इंद्र ने महावीर को ' वीर' नाम से संबोधित किया

महावीर की उम्र बढ़ने के साथ ही उनके गुणों में भी वृद्धि हो रही थी। ऐसा माना जाता है कि देवराज इंद्र सुमेरु पर्वत पर जब उनका जलाभिषेक कर रहे थे तो इस बात से भयभीत हो गए कि कहीं बालक बह ना जाए। इंद्र के मन में बैठे डर को महावीर स्वामी ने जान लिया और उन्होंने अपने अंगूठे से सुमेरु पर्वत को दबाकर कंपायमान कर दिया तब देवराज इंद्र को उनकी शक्ति का आभास हुआ और उन्हें ‘ वीर’ नाम से संबोधित करना शुरू कर दिया।

मुनियों द्वारा दिया गया ' सन्मति' नाम

 एक बार जब संजय मुनि और विजय मुनि आकाश मार्ग से निकले तभी बाल्यकाल में महावीर महल के आंगन में खेल रहे थे। दोनों मुनि सत्य और असत्य क्या है? इसका तोड़ निकालने में लगे थे इसी दौरान उन्होंने धरती पर महल के प्रांगण में खेल रहे दिव्य शक्ति युक्त अद्भुत बालक को देखा और नीचे आ गए। उस बालक महावीर में सत्य के साक्षात दर्शन करके उनकी मन की शंकाओं का समाधान हो गया। संजय मुनि और आकाश मुनि ने उन्हें ‘ सन्मति’ का नाम दिया और स्वयं भी उन्हें सन्मति नाम से पुकारने लगे।

महावीर के पराक्रम ने उन्हें बनाया ' महावीर'

 वर्धमान युवावस्था में अपने साथियों के साथ लुकाछिपी का खेल खेल रहे थे। उसी दौरान कुछ साथियों ने एक बड़ा फनधारी सांप देखा। उस सांप को देखकर उनके साथी डर से कांपने लगे और कुछ साथी वहां से भाग गए लेकिन वर्धमान वहां से टस से मस नहीं हुए। उनकी निर्भयता और शूरवीरता देखकर जब सांप उनके पास आया तो वर्धमान तुरंत सांप के फन पर जा बैठे। सांप के फन पर बैठने के कारण उनके वजन से घबराकर सांप ने तत्काल सुंदर रूप धारण कर लिया। सांप कोई और नहीं बल्कि संगम देव थे। देव रूप धारण कर संगमदेव महावीर के समक्ष उपस्थित हो गए और कहा कि, आपके पराक्रम की चर्चा स्वर्ग लोक में सुनकर ही मैं आपकी परीक्षा लेने आया था लेकिन आप तो वीरों के भी वीर महावीर हैं। अतः आप मुझे क्षमा करें इस प्रकार वर्धमान से वे ‘ महावीर’ कहलाए।

महावीर का विवाह

महावीर स्वामी (Mahavir Swami) का विवाह कलिंग नरेश की कन्या ‘ यशोदा’ से हुआ था, लेकिन अपने ज्येष्ठ भ्राता की आज्ञा लेकर 30 वर्ष की उम्र में ही महावीर ने घर बार छोड़ दिया और तपस्या करके कैवल्य का ज्ञान प्राप्त किया। पार्श्वनाथ के आरंभ किए तत्वज्ञान को परिमार्जित करके महावीर ने उसे जैन दर्शन का स्थाई आधार प्रदान किया। महावीर ऐसे धार्मिक नेता थे जिन्होंने जैन धर्म की पुनः प्रतिष्ठा बिना किसी राज्य या बाहरी शक्ति का सहारा लिए अपनी श्रद्धा के बल पर किया। आज जैन धर्म जिस व्यापक रूप में दिखाई देता है और जो उसका दर्शन है इसका पूरा श्रेय महावीर स्वामी को दिया जाता है।

महावीर की दीक्षा प्राप्ति

 मार्गशीर्ष दशमी को कुंडलपुर में महावीर ने दीक्षा प्राप्ति की। दीक्षा प्राप्ति के 2 दिनों के पश्चात महावीर ने खीर खाकर पारण किया। महावीर ने दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् 12 वर्ष और साढ़े 6 महीने तक कठोर तपस्या की। साढ़े 12 वर्षों के कठोर तप के उपरांत वैशाख शुक्ल दशमी को रिजुबालुका नदी के किनारे ‘ साल वृक्ष’ के नीचे भगवान महावीर को ‘ कैवल्य’ ज्ञान प्राप्त हुआ।
महावीर के ‘ जिन’ नाम से ही आगे चलकर इस धर्म का नाम जैन पड़ा। जैन धर्म में अहिंसा तथा कर्मों की पवित्रता पर विशेष बल दिया जाता है।

महावीर स्वामी की आचार संहिता

महावीर स्वामी ने निम्न आचार संहिता बनाई है –

  • किसी भी जीवित प्राणी अथवा कीट की हिंसा न करना।
  • किसी भी वस्तु को किसी के दिए बिना स्वीकार न करना।
  • मिथ्या भाषण न करना।
  • आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना।
  • वस्त्रों के अतिरिक्त किसी अन्य वस्तु का संचय न करना।

जैन ग्रंथ एवं जैन दर्शन में प्रतिपादित है कि भगवान महावीर जैन धर्म के प्रवर्तक नहीं है वे प्रवर्तमान काल के 24वें तीर्थंकर हैं। उन्होंने उद्घोष किया कि आंख मूंदकर किसी का अनुसरण या अनुकरण ना करें। महावीर स्वामी ने कहा, धर्म दिखावा नहीं, प्रदर्शन नहीं, रुढ़ी नहीं, किसी के भी प्रति घृणा एवं द्वेषभाव नहीं। महावीर स्वामी ने धर्म को कर्मकांडो- अंधविश्वासों, पुरोहितों के शोषण तथा भाग्यवाद की अकर्मण्यता की जंजीरों से आजाद किया। महावीर स्वामी के अनुसार धर्म एक ऐसा पवित्र अनुष्ठान है जिससे आत्मा का शुद्धिकरण होता है। धर्म उत्कृष्ट मंगल है। धर्म गांव या जंगल में नहीं अपितु अंतरात्मा में होता है।

प्रोफेसर जैन ने कहा है कि, आजकल भगवान महावीर (Lord Mahavir) को अवतारी कहा जा रहा है लेकिन यह मिथ्या ज्ञान का परिणाम है। वास्तव में भगवान महावीर अवतारी पुरुष नहीं है। उनका जन्म नारायण का नर शरीर धारण करना नहीं है। अपितु नर का ही नारायण हो जाना है। परमात्मा शक्ति आकाश से पृथ्वी पर अवतरण नहीं है। जीवात्मा ही ब्रह्म है। भगवान महावीर की क्रांतिकारी अवधारणा थी।

महावीर जयंती कैसे मनाई जाती है ?

 महावीर जयंती (Mahavir Jayanti )के दिन कुंडलपुर में प्रतिवर्ष बिहार सरकार एवं कुंडलपुर दिगंबर जैन समिति के द्वारा ‘ कुंडलपुर महोत्सव’ आयोजित किया जाता है।
महावीर जयंती के अवसर पर जैन धर्म (Jainism) के लोग प्रातः काल प्रभात फेरी निकालते हैं। भव्य जुलूस के साथ पालकी यात्रा निकाली जाती है। तत्पश्चात सोने और चांदी के कलश से महावीर स्वामी का अभिषेक किया जाता है। इस दिन शिखरों पर ध्वजा चढ़ाई जाती है।

महावीर जयंती (Mahavir Jayanti) पर श्रद्धालु जैन मंदिरों में भगवान महावीर की मूर्ति को विशेष स्नान कराते हैं। जिसे अभिषेक कहा जाता है। इसके पश्चात महावीर की मूर्ति को सिंहासन या रथ पर बिठाकर उत्साह और हर्षोल्लास पूर्वक जुलूस निकालते हैं। इस जुलूस में जैन धर्मावलंबी बड़ी संख्या में शामिल होते हैं। इस अवसर पर भगवान महावीर को फल, चावल, जल, सुगंधित द्रव्य आदि वस्तुएं अर्पित की जाती है।

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