December 1, 2024
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पीएम मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की द्विपक्षीय वार्ता से पश्चिमी देश क्यों हैं परेशान ?

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पीएम मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की द्विपक्षीय वार्ता से पश्चिमी देश क्यों हैं परेशान ?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मॉस्को पहुंच चुके हैं। उनके पहुंचने पर रूस के फर्स्ट डेप्युटी पीएम ने उन्हें रिसीव किया। रूस में पीएम मोदी का भव्य स्वागत हुआ। पीएम मोदी का रूस दौरा पश्चिमी देशों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। पीएम मोदी के रूस दौरे से एक दिन पहले व्लादिमीर पुतिन की प्रेस सेक्रेटरी ने भी बयान दिया था कि पीएम मोदी के रूस दौरे को पश्चिम ईर्ष्या के भाव से देख रहा है। आखिर ऐसी क्या वजह है जिसकी वजह से पीएम मोदी और पुतिन की इस बैठक से पश्चिमी देश परेशान हैं? आईए जानते हैं-

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने सम्मिट के लिए 9 जुलाई का दिन चुना है उस पर पूरी दुनिया में बहस हो रही है। आखिर इन दोनों नेताओं ने 9 जुलाई का दिन ही क्यों चुना? इसके पीछे क्या कारण है ? 9 जुलाई को पीएम मोदी और पुतिन की मुलाकात उस समय होगी जब अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डीसी में नाटो(NATO) का समिट चल रहा होगा।

एक तरफ इन दो नेताओं का समिट होगा और दूसरी तरफ पुतिन के दुश्मन देश NATO वाशिंगटन डीसी में मिल रहे होंगे।पश्चिमी देश प्रधानमंत्री मोदी और पुतिन की द्विपक्षीय वार्ता से खुश नहीं है तो इसका कारण है इसकी टाइमिंग।

पिछले कुछ वर्षों में भारत और रूस के बीच जितनी भी द्विपक्षिय बैठकें हुई है। इसका आयोजन सितंबर से लेकर दिसंबर के बीच ही होता रहा है। 19वां वार्षिक शिखर सम्मेलन अक्टूबर 2018 में, 20वां वार्षिक शिखर सम्मेलन सितंबर 2019 में और 21वां दिसंबर 2021 में हुआ था।

लेकिन इस बार यह द्विपक्षीय बैठक समय से पहले जुलाई की ठीक उसी तारीख को हो रही है जब अमेरिका में नाटो (NATO,) देशों का समिट हो रहा है और यही वजह है कि पश्चिमी देश भारत और रूस की इस वार्ता को राष्ट्रपति पुतिन की एक रणनीति मान रहे हैं ।

कौन हैं नाटो (NATO) देश?

नाटो पश्चिमी देशों का वहीं सैन्य संगठन है। जिसके कारण रसिया और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू हुआ था। इस संगठन में अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, कनाडा फ्रांस और पोलैंड समेत 32 देश हैं।नाटो देश यूक्रेन को अपने इसी संlगठन का हिस्सा बनाने पर विचार कर रहे थे। और अगर ऐसा हो जाता तो यूक्रेन पर हुआ कोई भी हमला नाटो देशों पर हुआ हमला माना जाता।जिसकी वजह से राष्ट्रपति पुतिन ने उस समय नाटो देशों का विरोध किया और यूक्रेन पर हमला करके युद्ध शुरू कर दिया।

आज भी नाटो देशों के समिट का सबसे बड़ा एजेंडा रूस- यूक्रेन युद्ध हीं है। क्योंकि इस समिट के दिन है पीएम मोदी और पुतिन की बैठक होने वाली है।एक तरफ जब इन दो नेताओं की बैठक हो रही होगी दूसरी तरफ पुतिन के कट्टर दुश्मन 32 देश आपस में वॉशिंगटन डीसी में पुतिन को कमजोर करने की रणनीति बना रहे होंगे। क्योंकि विश्व की सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत और वहां के सबसे बड़े नेता और प्रधानमंत्री पुतिन के साथ हैं इसलिए पश्चिमी देशों को यह तस्वीरें भी अच्छी नहीं लग रही हैं।

पश्चिमी देशों ने रूस पर लगाया प्रतिबंध

पिछले दो वर्षों में रसिया को दुनिया से अलग-थलग करने के लिए पश्चिमी देशों ने कोशिश की। रूस पर साढ़े सोलह हजार से ज्यादा अलग-अलग प्रतिबंध लगे। लेकिन इन प्रतिबंधों से रसिया का कोई नुकसान नहीं हुआ। 16,000 प्रतिबंधों के बावजूद आज रसिया का जीडीपी ग्रोथ पश्चिमी देशों से कहीं ज्यादा है।

प्रतिबंधों के बावजूद रूस का जीडीपी ग्रोथ बढ़ा

पिछले वर्ष में रसिया की जीडीपी ग्रोथ रेट 3.6 था जबकि रसिया पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने वाले अमेरिका का जीडीपी ग्रोथ रेट 2.5%, जर्मनी का – 0.31%, ब्रिटेन का 0.1%, फ्रांस और इटली का 0.9% और रसिया के साथ व्यापार पर प्रतिबंध लगाने वाले जापान का जीडीपी ग्रोथ 1.9% है।

अब तक पश्चिमी देश दुनिया को अपनी बातें मनवाने के लिए प्रतिबंध की धमकी देते थे लेकिन रूस ने इन देशों की धमकियों को नाकाम कर दिया है। जिस समय रसिया पर 16000 प्रतिबंध लगे उस समय रसिया अपर मिडल इनकम वाले देशों से अमीर देश की सूची में आ गया।

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रसिया में अब प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय भारतीय रूपयों में 11.9 लख रुपए तक पहुंच गई है। जिस रसिया को प्रतिबंध लगाकर पश्चिमी देश आर्थिक रूप से कमजोर करना चाहते थे वही रसिया अब और ज्यादा समृद्ध और संपन्न हो गया। वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट में रसिया को लगातार आय बढ़ाने वाले देशों की सूची में डाला गया है। इससे यह स्पष्ट है कि पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का अब कोई प्रभाव नहीं रह गया है। पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों की रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने हवा निकाल दी है।

राष्ट्रपति पुतिन ने इस धारणा को भी तोड़ दिया है कि जो देश युद्ध लड़ते हैं वह देश गरीब हो जाते हैं। उनकी अर्थव्यवस्था डगमगा जाती है लेकिन रसिया इस समय युद्ध भी लड़ रहा है और दुनिया को सस्ते दरों पर कच्चा तेल भी भेज रहा है लेकिन रसिया की अर्थव्यवस्था युद्ध के बावजूद अच्छा प्रदर्शन कर रही है। इसके पीछे दो कारण है-

  1. आर्थिक प्रतिबंधों के बावजूद राष्ट्रपति पुतिन ने ऐसे देश के साथ रसिया के व्यापार को बढ़ाया जो देश तटस्थ हैं। जो देश किसी एक गुट का हिस्सा नहीं है और इनमें भारत की एक बहुत बड़ा देश है। इस समय भारत सबसे अधिक कच्चा तेल इराक, सऊदी अरब और यूएई से ना खरीद कर रूस से खरीद रहा है।
  2. रसिया ने आपदा को अवसर में बदलकर अपनी वार इंडस्ट्री को पुनर्जीवित किया और अब रसिया के लोगों को सबसे ज्यादा सैलरी सेना में मिल रही है।