1 जुलाई 2024 से लागू होंगे 3 नए क्रिमिनल लॉ, जानिए क्या क्या बदल जाएगा
देश के तीन नए आपराधिक कानून 1 जुलाई 2024 से लागू करने की अधिसूचना भारत सरकार ने जारी कर दी है। देश में 30 जून की रात 12 बजे ही आईपीसी (IPC) के तहत अंग्रेजों के द्वारा बनाए गए कानून खत्म हो जाएंगे और 1 जुलाई को तीन नए आपराधिक कानून लागू हो जाएंगे।
आपराधिक न्याय व्यवस्था से संबंधित तीन नए कानून, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023, भारतीय न्याय द्वितीय संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) अधिनियम 2023, 1 जुलाई से लागू होंगे। गृह मंत्रालय ने इससे जुड़ी अधिसूचना 24 फरवरी को जारी कर दी थी।
पुराने कानूनों की जगह लेंगे ये 3 नए कानून
पुरानी भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम की जगह अब भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम लेंगे।
इस विधेयक को वर्ष 2023 में संसद के शीतकालीन सत्र में पारित किया गया था और 25 दिसंबर को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कानून पर अपनी सहमति दी थी। राज्यसभा में कानून के पास होने के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था,” संसद में पारित तीनों विधेयक अंग्रेजों द्वारा लागू किए गए कानून की जगह लेंगे और एक स्वदेशी न्याय प्रणाली का दशकों पुराना सपना सरकार होगा।”
नए कानून के लागू होने के बाद देश में आईपीसी और सीआरपीसी की छुट्टी हो जाएगी। औपनिवेशिक काल से चले आ रहे तीन कानून भारतीय दंड संहिता (IPC) दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह देश में नए आपराधिक कानून लागू होंगे।
आईए जानते हैं लागू होने वाले कानूनों के बारे में:
हिट एंड रन से जुड़े प्रावधान के अमल पर रोक
हिट एंड रन से जुड़े प्रावधान की अमल पर रोक रहेगी। भारतीय न्याय संहिता की धारा 106(2) हिट एंड रन से जुड़ी है। मोटर ट्रांसपोर्ट यूनियनों ने भारतीय न्याय संहिता की धारा 106(2) पर आपत्ति जताते हुए विरोध प्रदर्शन किया था, जिसमें हिट एंड रन मामले में 10 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। इस धारा में अगर आप तेज गति और लापरवाही से गाड़ी चलाकर किसी की मौत की वजह बनते हैं और पुलिस को सूचना दिए बिना भागते हैं तो सजा का प्रावधान है। ट्रक ड्राइवर द्वारा इसका विरोध किए जाने पर सरकार ने कई बैठकों के बाद भरोसा दिया था कि इस धारा को लागू करने का फैसला ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस के साथ चर्चा के बाद होगा।
मॉब लिंचिंग के लिए उम्र कैद या मौत की सजा
भारतीय न्याय संहिता में मॉब लिंचिग और हेट क्राइम मर्डर के लिए आजीवन कारावास या मौत की सजा का भी प्रावधान किया गया है। पहले के बिल में इस अपराध के लिए न्यूनतम सजा 7 वर्ष बताई गई थी। नए प्रावधानों को विधेयक की धारा 103 में शामिल किया गया है, जो मॉब लिंचिंग और अपराधों से संबंधित अपराधों के लिए हत्या की सजा से संबंधित है।
महिलाओं और बच्चों के प्रति अपराधों की जांच को प्राथमिकता
भारतीय न्याय संहिता में यौन अपराधों को संबोधित करने के लिए बच्चों और महिलाओं के खिलाफ अपराध नामक एक चैप्टर जोड़ा गया है। 18 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं के साथ बलात्कार से संबंधित मामलों में आजीवन कारावास या मौत की सजा का प्रावधान किया गया है। बलात्कार के दोषी के लिए कम से कम 10 साल की कठोर सजा का प्रावधान है जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है। इसके अलावा गैंगरेप मामले में 20 साल की सजा या उम्र कैद की सजा का प्रावधान है। इसके अतिरिक्त नौकरी का झांसा देकर या शादी का बहाना कर के और पहचान बदलकर महिलाओं का यौन शोषण अपराध माना जाएगा।
FIR से संबंधित कानून
जीरो FIR शुरू होने से कोई भी व्यक्ति किसी भी पुलिस स्टेशन पर प्राथमिकी की दर्ज करा सकते हैं। चाहे उसका क्षेत्राधिकार कुछ भी हो। इसे कानूनी कार्यवाही शुरू करने में होने वाले विलंब से राहत मिलेगी और अपराध की तुरंत रिपोर्ट सुनिश्चित होगी। भारतीय न्याय संहिता की धारा 173 के अनुसार पीड़ितों को एफआईआर की नि:शुल्क प्रति प्राप्त होगी जिससे कानूनी प्रक्रिया में उनकी भागीदारी सुनिश्चित होगी।
घटनाओं की ऑनलाइन रिपोर्ट करना
नया कानून लागू होने से किसी भी घटना की ऑनलाइन रिपोर्ट दर्ज हो सकेगी। अब कोई व्यक्ति संचार के इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से घटनाओं की रिपोर्ट कर सकता है। इसके लिए पुलिस स्टेशन जाने की आवश्यकता नहीं होगी, जिससे पुलिस द्वारा त्वरित कार्रवाई सुगम होगी।
फॉरेंसिक साक्ष्य संग्रह और वीडियोग्राफी
मामले की जांच को मजबूत करने के लिए गंभीर अपराधों के लिए फोरेंसिक विशेषज्ञों का अपराध स्थल पर दौरा और साक्ष्य एकत्रित करना अनिवार्य हो गया है। साक्ष्य से छेड़छाड़ को रोकने के लिए अपराध स्थल पर साक्ष्य संग्रह की प्रक्रिया की अनिवार्य रूप से वीडियोग्राफी की जाएगी, जिससे जांच की विश्वसनीयता और गुणवत्ता काफी बढ़ जाएगी।
आतंकवाद को पहली बार परिभाषित किया गया
भारतीय न्याय संहिता में आतंकवाद शब्द को पहली बार परिभाषित किया गया है। आतंकवाद से जुड़े अपराधों के लिए मौत की सजा या आजीवन कारावास से दंडनीय बना दिया गया है। इसमें पैरोल की सुविधा नहीं होगी। भारतीय न्याय संहिता में आतंकवाद को धारा 113 (1) के तहत दंडनीय अपराध बनाया गया है।
राजद्रोह को अपराध की श्रेणी से बाहर रखा गया
राजद्रोह को अपराध के रूप में समाप्त कर दिया गया है और ‘राज्य के खिलाफ अपराध’ नामक एक नया खंड जोड़ा गया है भारतीय दंड संहिता और 1860 के राजद्रोह प्रावधानों को निरस्त करता है। भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 से इसे बदल दिया गया है। राष्ट्र की एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों पर ध्यान केंद्रित करने वाली सभी धाराएं इसमें जोड़ी गई हैं।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की जगह भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) अधिनियम, 2023 को लाया गया है। इसके तहत अदालत में प्रस्तुत और स्वीकार्य साक्ष्य में इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड, कंप्यूटर, स्मार्टफोन, लैपटॉप, एसएमएस, वेबसाइट, ईमेल और उपकरणों पर संदेश शामिल होंगे।