December 27, 2024
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क्या है Lateral Entry, जिसको लेकर छिड़ी राजनीतिक बहस का Ashwini Vaishnaw ने दिया करारा जवाब

क्या है Lateral Entry, जिसको लेकर छिड़ी राजनीतिक बहस का Ashwini Vaishnaw ने दिया करारा जवाब
क्या है Lateral Entry, जिसको लेकर छिड़ी राजनीतिक बहस का Ashwini Vaishnaw ने दिया करारा जवाब

Lateral Entry In UPSC: हमारे देश में ब्यूरोक्रेसी में लैटरल एंट्री के बारे में काफी चर्चा चल रही है। यूपीएससी ने 17 अगस्त को एक विज्ञापन जारी किया है जिसमें लैटरल एंट्री के तहत 45 जॉइंट सेक्रेटरी, डिप्टी सेक्रेटरी और डायरेक्टर के पदों पर भर्तियां निकाली गई हैं। लैटरल एंट्री में उम्मीदवार बिना यूपीएससी परीक्षा पास किये भर्ती किए जाते हैं, जिसमें आरक्षण का भी फायदा नहीं मिलता है। अब इसको लेकर के विपक्ष सरकार पर हमलावर है।

विपक्ष का कहना है कि सरकार लैटरल एंट्री के जरिए आरक्षण समाप्त करना चाहती है लेकिन इसको लेकर अश्विन वैष्णव ने मोर्चा संभाल लिया है। इन सभी चर्चाओं के बीच क्या आप जानते हैं लैटरल एंट्री क्या है। इसकी शुरुआत कब और क्यों हुई? और अब तक कितने पद लेटर एंट्री के माध्यम से भरे जा चुके हैं?आईए जानते हैं-

क्या है नौकरशाही में लैटरल एंट्री (What is Lateral Entry in Bureaucracy) ?

Lateral Entry ब्यूरोक्रेसी में एक ऐसी प्रथा है जिसमें मध्यम और वरिष्ठ पदों पर भर्ती के लिए पारंपरिक सरकारी सेवा संवर्ग से बाहर के व्यक्तियों की भर्ती की जाती है। सामान्यत: अभी तक ब्यूरोक्रेसी में टॉप लेवल के आईएएस अफसर होते थे इसके लिए यूपीएससी की परीक्षा देकर इस के लिए चयनित होते हैं और पहला पद एसडीएम का मिलता है, जिसके कई साल के अनुभव के बाद जिला कलेक्टर का पद दिया जाता है।

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इसके बाद राज्य स्तर पर सचिव बनते हैं और इसके बाद केंद्र सरकार में जाते हैं, जहां जॉइंट सेक्रेटरी डिप्टी सेक्रेटरी और डायरेक्टर के पदों को संभालते हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से कुछ एंट्री को लैटरल एंट्री बोला जा रहा है। इसका अर्थ है कि बिना यूपीएससी का एग्जाम दिए प्राइवेट सेक्टर से एंट्री होती है, जिसे लैटरल एंट्री कहा जाता है।

कब शुरू हुई थी लैटरल एंट्री ?(When the Lateral Entry was Started) ?

Lateral Entry की सिफारिश सर्वप्रथम 2005 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) की सरकार के दौरान की गई थी। वीरप्पा मोईली की अध्यक्षता वाली ARC ने पारंपरिक सिविल सेवाओं में उपलब्ध नहीं होने वाले विशेष ज्ञान की आवश्यकता वाली भूमिका को भरने के लिए लैटरल एंट्री की वकालत की थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान औपचारिक रूप में नौकरशाही में लैटरल एंट्री शुरू की गई थी, जिसमें पहली बार 2018 में रिक्तियां निकाली गई। लैटरल एंट्री के तहत उम्मीदवारों को आमतौर पर 3 से 5 साल की अवधि के अनुबंध पर रखा जाता है। जिसमें प्रदर्शन अच्छा होने पर सेवा विस्तार दिया जाता है। लैटरल एंट्री का उद्देश्य बाहरी विशेषज्ञ का उपयोग करके जटिल शासन और नीति कार्यान्वयन में चुनौतियों का समाधान करना है।

लैटरल एंट्री की आवश्यकता क्यों पड़ी ( Why was there a need for Lateral Entry) ?

2019 में डीओपीटी के मंत्री जितेंद्र सिंह ने राज्यसभा में कहा कि इसका मुख्य उद्देश्य है विशेषज्ञों को तरजीह देना, क्योंकि यूपीएससी के माध्यम से आईएएस अफसर बनने वालों को सभी विषयों के बारे में तो जानकारी होती है लेकिन वह किसी एक विषय के विशेषज्ञ नहीं होते हैं। जैसे सरकार यदि डिजिटल इंडिया कार्यक्रम को पुश करना चाहती है तो ऐसे विशिष्ट व्यक्तियों को लाया जाएगा जिन्होंने डिजिटल फील्ड में बहुत काम किया हो और उन्हें डिजिटल फील्ड की बहुत अधिक जानकारी हो। सामान्यतः आईएएस अफसर के पास बहुत सारे काम होते हैं लेकिन लैटरल एंट्री के माध्यम से जिन लोगों को लाया जाएगा उनका एक विशेष कार्य होगा।

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इन पदों पर क्यों नहीं है आरक्षण?

नेचुरल एंट्री के माध्यम से जॉइंट सेक्रेटरी डायरेक्टर और डिप्टी सेक्रेटरी के पदों पर सरकार ने 45 रिक्तियां निकाली है। यह रिक्तियां यूपीएससी की परीक्षा के बिना ही भरी जाएगी। इन रिक्तियों पर प्राइवेट सेक्टर से आने वाले विशेष शक्तियों को लिया जाएगा। लेकिन इन पदों पर कोई आरक्षण नहीं है। ऐसा क्यों है क्योंकि संविधान के अनुसार सभी सरकारी पदों पर आरक्षण देना अनिवार्य है।

ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारे देश में आरक्षण 13 पॉइंट्स रोस्टर के माध्यम से दिया जाता है। यदि ओबीसी को 27% आरक्षण है तो हर चौथी पोस्ट ओबीसी के लिए आरक्षित होगी। इसी प्रकार SC के लिए 15% आरक्षण है तो प्रत्येक सातवीं पोस्ट SC उम्मीदवार के लिए होती है।

वही ST उम्मीदवार के लिए 7.5% आरक्षण होता है इसलिए हर 14वीं पोस्ट ST उम्मीदवार के लिए होती है लेकिन यदि 13 प्वाइंट रोस्टर में यदि सिर्फ दो पोस्ट ही है तो आरक्षण नहीं मिल सकता जब तक कि चार पोस्ट इस पद के लिए नहीं होगें। इसी प्रकार SC उम्मीदवार को आरक्षण का लाभ लेने के लिए 7 वैकेंसी और एसटी को आरक्षण लाभ लेने के लिए कम से कम 14 वैकेंसी होना अनिवार्य है। लेकिन लैटरल एंट्री के लिए जारी किए गए सभी 45 पद इंडिविजुअल पद है। प्रत्येक डिपार्टमेंट के लिए अलग लेवल की अलग वैकेंसी जारी की गई है। ऐसे में आरक्षण नहीं दिया जा सकता लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सरकार आरक्षण समाप्त कर देगी।

अश्विन वैष्णव ने संभाला मोर्चा

UPSC में Lateral Entry को लेकर राजनीतिक बहस छिड़ गई है। विपक्षी पार्टियां सरकार पर आरक्षण खत्म करने का आरोप लगा लग रही हैं,लेकिन अब केंद्रीय मंत्री अश्विन वैष्णव ने मोर्चा संभालते हुए विपक्ष को करारा जवाब दिया है। अश्विन वैष्णव ने कहा कि 1970 के दशक से कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारों के दौरान से ही कांग्रेस में लैटरल एंट्री होती रही है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और मोंटेक सिंह अहलूवालिया लैटरल एंट्री का प्रमुख उदाहरण हैं।

केंद्रीय रेल मंत्री अश्विन वैष्णव ने कहा कि लैटरल एंट्री पर कांग्रेस देश को गुमराह कर रही है। मंत्री ने तर्क दिया कि नौकरशाही में लैटरल एंट्री के लिए 45 पद प्रस्तावित हैं। यह संख्या 4,500 से ज्यादा अधिकारियों वाली भारतीय प्रशासनिक सेवा के केंद्र शक्ति का 0.5% है। और यह किसी भी सेवा के रोस्टर में कटौती नहीं करेगी।

चुन- चुन कर गिनाए कांग्रेसियों के नाम

अश्विन वैष्णव ने कहा कि मनमोहन सिंह 1971 में तत्कालीन विदेश मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के रूप में एक Lateral Entry के रूप में सरकार में आए और वित्त मंत्री और बाद में प्रधानमंत्री बने। वही विमल जालान ने सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार और बाद में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के रूप में कार्य किया। विरमानी और बसु को क्रमशः 2007 और 2009 में मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया था। रघुराम राजन ने मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में भी कार्य किया और बाद में 2013 से 2016 तक भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के रूप में कार्य किया।

मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने 2004 से 2014 तक योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया। उनको शिक्षा जगत और अंतरराष्ट्रीय संगठनों से सरकारी भूमिकाओं में लाया गया। वहीं इंफोसिस के सह – संस्थापक नंदन नीलेकणी को 2009 में भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण के प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया था।

Ashwini Vaishnaw ने सोशल मीडिया X पर लिखे पोस्ट में कहा कि यह यूपीए की ही सरकार थी जो लैटरल एंट्री का कॉन्सेप्ट लेकर आई। दूसरा प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) 2005 में यूपीए सरकार में ही लाया गया था। इस आयोग की अध्यक्षता वीरप्पा मोइली ने की थी। यूपीए सरकार के कार्यकाल की ARC ने सुझाव दिया था कि जिन पदों पर विशेष ज्ञान की आवश्यकता है वहां विशेषज्ञों की नियुक्ति होनी चाहिए। एआरसी की इस सिफारिश को लागू करने के लिए एनडीए की सरकार ने पारदर्शी तरीका अपनाया है।