November 21, 2024
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विश्व में सबसे सस्ता और टिकाऊ भारतीय कृत्रिम दिल तैयार ( Cheapest and durable Indian artificial heart ready in the world)

Janpanchayat Hindi NEWS : आईआईटी, कानपुर और भारत के कुछ कार्डियोलॉजिस्ट की टीम ने विश्व का सबसे किफायती, ज्यादा चलने वाला और आधुनिक कृत्रिम दिल तैयार किया है। कार्डियोलॉजिस्ट की टीम ने विश्व का सबसे सस्ता और कृत्रिम हृदय बनाने में सफलता प्राप्त कर ली है। इस कृत्रिम हृदय का जानवरों पर परीक्षण मई 2023 में होगा। जानवरों पर परीक्षण के 1 वर्ष पश्चात इस कृत्रिम हृदय का मानव पर मेडिकल परीक्षण होगा। यदि यह परीक्षण सफल हो जाते हैं तो 2025 में यह कृत्रिम हृदय प्रत्यारोपण के लिए उपलब्ध होगा। इस कृत्रिम हृदय को हृदयंत्र नाम दिया गया है।

Cheapest and durable Indian artificial heart ready in the world : janpanchayat Hindi NEWS

आईआईटी, कानपुर और भारत के कुछ कार्डियोलॉजिस्ट की टीम ने विश्व का सबसे किफायती, ज्यादा चलने वाला और आधुनिक कृत्रिम दिल (modern artificial heart ) तैयार किया है। कार्डियोलॉजिस्ट की टीम ने विश्व का सबसे सस्ता और कृत्रिम हृदय बनाने में सफलता प्राप्त कर ली है। इस कृत्रिम हृदय का जानवरों पर परीक्षण मई 2023 में होगा। जानवरों पर परीक्षण के 1 वर्ष पश्चात इस कृत्रिम हृदय (Artificial Heart) का मानव पर मेडिकल परीक्षण होगा। यदि यह परीक्षण सफल हो जाते हैं तो 2025 में यह कृत्रिम हृदय प्रत्यारोपण के लिए उपलब्ध होगा। इस कृत्रिम हृदय (Artificial Heart) को हृदयंत्र नाम दिया गया है।

अभी तक पूरे विश्व में सिर्फ दो अमेरिकी कंपनियां हैं जो कृत्रिम हृदय बना रही हैं लेकिन इन कंपनियों द्वारा बनाए गए कृत्रिम ह्रदय की कीमत लगभग 1.50 करोड़ रुपए हैं जबकि भारत में तैयार कृत्रिम हृदय ((Artificial Heart)) का मूल्य सिर्फ 10 लाख रुपए है।

आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक और रिसर्च टीम के सदस्य मनदीप का कहना है कि कृत्रिम हृदय (Artificial Heart) का सबसे महंगा हिस्सा मैगलेव ड्राइव बनाना सबसे बड़ी चुनौती था। एक स्विस कंपनी है जो अमेरिका के लिए यह 80 लाख रुपए में बनाती है लेकिन आईआईटी कानपुर और शोध में जुटे अन्य कार्डियोलॉजिस्ट की टीम ने बहुत कम कीमत में यह ड्राइव तैयार कर ली है, जिससे इस डिवाइस की लागत कम हो गई है। इसका परीक्षण गाय, भैंस या विदेशी सूअर पर होगा। इसके पश्चात मानव परीक्षण होगा। आईआईटी का यह हृदयंत्र 2025 में लोगों की जान बचाने के लिए तैयार होगा।

कब हुई हृदयंत्र बनाने की शुरुआत? (When did the formation of the heart begin?)

कृत्रिम हृदय बनाने की शुरुआत 2021 में आईआईटी के निदेशक प्रोफेसर अभय करंदीकर (IIT Director Professor Abhay Karandikar) के निर्देशन में बायो साइंस एंड बायोइंजीनियरिंग विभाग के हेड प्रोफेसर अमिताभ बंदोपाध्याय की देखरेख में हुई। हृदयंत्र बनाने की टीम में वैज्ञानिक, पूर्व छात्र व चिकित्सक शामिल हैं। केजीएमयू के कार्डियोलॉजिस्ट और बेंगलुरु के नारायणा के साथ मिलकर शोध प्रारंभ हुआ और 19 महीने के पश्चात कृत्रिम हृदय की तकनीक विकसित हुई। इस शोध के दो चरण हैं जिनमें से पहला चरण पूरा हो चुका है।

कब बना था पहला कृत्रिम हृदय? (When was the first artificial heart made?)

विश्व का पहला कृत्रिम ह्रदय  (Artificial Heart) अमेरिका में 2017 में तैयार किया गया था जो कि 2 महीने से 6 महीने तक के लिए ही कारगर था। बाद में 2019 में इसे और अधिक बेहतर बनाकर लांच किया गया। अब यह कृत्रिम हृदय 2 वर्ष तक कारगर है।

सबसे बेहतर होगा स्वदेशी हृदयंत्र ( indigenous heart will be the best)

  1. हृदयंत्र के साथ वास्तविक हृदय भी काम करता रहेगा।
  2. वर्तमान में विश्व में बन रहे कृत्रिम हृदय (Artificial Heart) में हिमोलिसिस (आरबीसी डैमेज) की समस्या है जो हृदयंत्र में नहीं होगी।
  3. अभी तक उपलब्ध कृत्रिम हृदय (artificial heart) सिर्फ 2 वर्ष काम करते हैं लेकिन भारत में बना हृदयंत्र कम से कम 7 वर्ष तक काम करेगा।

वैज्ञानिकों का अगला लक्ष्य– वायरलेस कृत्रिम हृदय (Scientists' next target – wireless artificial heart)

वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी तक जो कृत्रिम हृदय (artificial heart) तैयार हुआ है उसमें कुछ वायरों का प्रयोग हुआ है। हमारा अगला लक्ष्य वायर विहीन हृदयंत्र बनाना है। अभी तक विकसित किया गया कृत्रिम हृदय 16 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए बनाया गया है। अगले चरण में 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए कृत्रिम हृदय पर शोध शुरू होगा।
6 वर्ष पहले की योजना अब मूर्त रूप ले रही है। इस शोध में 31 वैज्ञानिकों की टीम शामिल है। कृत्रिम हृदय पर 10 से अधिक लैब में शोध चल रहा है। इस शोध पर 18 से 20 घंटे प्रयोगशालाओं में काम हो रहा है।

रिसर्च में शामिल विशेषज्ञ

  • प्रोफेसर शांतनु मिश्रा, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, आईआईटी कानपुर
  • प्रोफेसर कांतेश बलानी, मैटीरियल साइंस एंड इंजीनियरिंग, आईआईटी कानपुर
  • प्रोफेसर नीरज सिन्हा, मैकेनिकल इंजीनियरिंग, आईआईटी कानपुर
  • डॉ देवी प्रसाद शेट्टी, बेंगलुरु
  • डॉक्टर सौरभ के भुनिया, रिसर्चर कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम, अमेरिका
  • यशदीप कुमार, डायरेक्टर, स्ट्राइपर टेक्नोलॉजी सेंटर, अमेरिका
  • प्रोफेसर अमिताभ, विभागाध्यक्ष, बायोसाइंस एंड बायोइंजीनियरिंग