November 20, 2024
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Rabindranath Tagore Jayanti 2023 : भारतीय राष्ट्रगान के रचयिता एवं महान कवि रवींद्र नाथ टैगोर की जयंती पर विशेष

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एक बांग्ला कवि, गीतकार, कहानीकार, नाटककार, संगीतकार, निबंधकार और चित्रकार रवींद्रनाथ टैगोर की जयंती 9 मई को मनाई जा रही है। रवींद्रनाथ टैगोर की जयंती को पोचीसे बोइशाख के नाम से भी जाना जाता है। बंगाली कैलेंडर के अनुसार वैशाख के 25वे रवींद्रनाथ टैगोर की जयंती दिन मनाई जाती है। 2023 में 9 मई को रवींद्रनाथ टैगोर की 162 जयंती मनाई जा रही है।
रवींद्रनाथ टैगोर ने ही भारतीय संस्कृति के सर्वश्रेष्ठ रूप से पश्चिमी देशों का परिचय और पश्चिमी देशों की संस्कृति से भारत का परिचय कराया। रविंद्र नाथ टैगोर आधुनिक भारत के असाधारण सृजनशील कलाकार माने जाते हैं।

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भारतीय राष्ट्रगान के रचयिता एवं महान कवि रवींद्र नाथ टैगोर की जयंती पर विशेष

एक बांग्ला कवि, गीतकार, कहानीकार, नाटककार, संगीतकार, निबंधकार और चित्रकार रवींद्रनाथ टैगोर की जयंती 9 मई को मनाई जा रही है। रवींद्रनाथ टैगोर की जयंती (Rabindranath Tagore Jayanti) को पोचीसे बोइशाख के नाम से भी जाना जाता है। बंगाली कैलेंडर के अनुसार वैशाख के 25वे रवींद्रनाथ टैगोर की जयंती दिन मनाई जाती है। 2023 में 9 मई को रवींद्रनाथ टैगोर की 162 जयंती मनाई जा रही है।
रवींद्रनाथ टैगोर ने ही भारतीय संस्कृति के सर्वश्रेष्ठ रूप से पश्चिमी देशों का परिचय और पश्चिमी देशों की संस्कृति से भारत का परिचय कराया। रविंद्र नाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) आधुनिक भारत के असाधारण सृजनशील कलाकार माने जाते हैं।

आईए जानते हैं रविंद्र नाथ टैगोर के जीवन के विषय में-

 

जीवन परिचय

रविंद्र नाथ टैगोर का जन्म कोलकाता के एक संपन्न बांग्ला परिवार में 7 मई 1861 को हुआ था।उनके पिता का नाम देवेंद्र नाथ टैगोर और माता का नाम शारदा देवी था। टैगोर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वह सहज ही कला के स्वरूपों से अलंकृत थे। आधुनिक समाज के सांस्कृतिक रुझान से वे भलि – भांति परिचित थे।

रवींद्रनाथ टैगोर की शिक्षा

 रवींद्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) ने प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल से शिक्षा ग्रहण की। उनके पिता देवेंद्र नाथ एक जाने माने समाज सुधारक थे। वे रविंद्र को बैरिस्टर बनाना चाहते थे जिसके लिए उन्होंने रविंद्र नाथ को कानून की शिक्षा ग्रहण करने के लिए 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजटोन पब्लिक स्कूल में नाम दर्ज कराया था। रविंद्र ने लंदन कॉलेज विश्वविद्यालय में कानून का अध्ययन किया लेकिन रविंद्र का मन कविताओं और कहानी लिखने में अधिक लगता था। रविंद्र नाथ अपने मन के भावो को कागज पर उतारते थे। परिणामत: उनके पिता ने पढ़ाई के बीच में ही उन्हें भारत वापस बुला लिया और सन 1880 में रविंद्र बिना डिग्री हासिल किये ही वापस आ गए। उनके पिता ने उनका विवाह मृणालिनी देवी से कर दिया और उन पर घर परिवार की जिम्मेदारियां डाल दी।

टैगोर की रचनाएं

 रवींद्रनाथ प्रकृति प्रेमी थे।उन्हें प्रकृति से बहुत लगाव था। रवींद्र गुरुदेव के नाम से भी लोकप्रिय थे। भारत आकर उन्होंने फिर से लिखना शुरू कर दिया। रविंद्र नाथ एक बंगाली कवि, नाटककार, संगीतकार, गीतकार, कहानीकार, निबंधकार और चित्रकार थे। 1931 में रवींद्रनाथ टैगोर को उनकी रचनाओं के लिए साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया।
रवींद्रनाथ ने बहुत कम आयु में ही लेखन प्रारंभ कर दिया था। 1880 के दशक में रवींद्रनाथ ने भारत में कविताओं की अनेक पुस्तकें प्रकाशित की। ‘ मानसी’ की रचना करके उन्होंने अपनी प्रतिभा और परिपक्वता का परिचय दिया। ‘ मानसी’ में उनकी सर्वश्रेष्ठ कविताएं शामिल है। इसमें समसामयिक बंगालियों पर सामाजिक और राजनीतिक व्यंग्य भी है।

दो-दो राष्ट्रगणों के रचयिता थे टैगोर

रवींद्रनाथ टैगोर एकमात्र ऐसे कवि है जिनकी दो रचनाएं, दो देशों का राष्ट्रगान बनी,
भारत का राष्ट्रगान’ जन गण मन’
और बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान ‘ अमार सोनार बांग्ला’
गुरुदेव की ही रचनाएं हैं। गुरुदेव वैश्विक समानता और एकांतिकता के पक्षधर थे। वह एक ऐसे लोक कवि थे जिनका केंद्रीय तत्व अंतिम आदमी की भावनाओं का परिष्कार करना था। वह एक ऐसे कलाकार थे जिनकी रगों में शाश्वत प्रेम की गहरी अनुभूति थी। वे मनुष्य मात्र के स्पंदन के कवि थे। एक ऐसे नाटककार थे जिनके नाटकों में केवल ‘ ट्रेजेडी’ ही नहीं अपितु मनुष्य की गहरी जिजीविषा भी है। अपनी कथाओं में गुरुदेव अपने आसपास के कथालोक चुनते और बुनते थे। इस कथालोक में वे आदमी के आखिरी गंतव्य की तलाश करते थे।

रविंद्र नाथ टैगोर की सर्वश्रेष्ठ कहानियां

रविंद्र नाथ टैगोर 10 वर्ष तक पूर्वी बंगाल में रहने के दौरान ग्रामीणों की निकट संपर्क में थे। टैगोर की बाद की रचनाओं में रचनाओं का मूल स्वर उन ग्रामीणों की निर्धनता और पिछड़ापन था। उनकी सर्वश्रेष्ठ कहानियां में ‘ दीन- हिनो’ का जीवन और उनके छोटे-मोटे दुख वर्णित है। टैगोर की 1890 के बाद की कहानियों में मार्मिकता और विडंबना का पुट है। 1891 से 1895 के बीच के 5 वर्ष का समय रवींद्र की साधना का महाकाल था।

कहानिया

गल्पगुच्छ – इन तीन जिल्दो में टैगोर की 84 कहानियां संकलित हैं।
पोस्ट मास्टर- टैगोर की यह कहानी इस बात का सजीव उदाहरण है कि एक सच्चा कलाकार साधारण उपकरणों से कैसी अद्भुत सृष्टि कर सकता है।
अतिथि का तारापद – रवींद्रनाथ की एक अविस्मरणीय सृष्टि है इसका नायक बंधकर नहीं रह जाता और आजीवन अतिथि ही रहता है।
‘ क्षुधित पाषाण,’ ‘ आधी रात में (निशीथे)’ तथा ‘ मास्टर साहब’ इन पोलतीन कहानियों में दैवीय तत्व का स्पर्श मिलता है। काबुलीवाला, मास्टर साहब आज भी लोकप्रिय कहानी हैं।
रवींद्रनाथ टैगोर की कहानी सर्वश्रेष्ठ होते हुए भी लोकप्रिय हैं और लोकप्रिय होते भी सर्वश्रेष्ठ हैं। अपने काल्पनिक पात्रों के साथ उनकी अद्भुत सहानुभूति पूर्ण एकात्मकता और उसके चित्रण का अतीव सौंदर्य उनकी कहानियों को सर्वश्रेष्ठ बना देते हैं जो पाठक को द्रवित किए बिना नहीं रहती। टैगोर की कहानी पत्थर को भी मोम बनाने की क्षमता रखती हैं।

संगीत

रवींद्रनाथ को बंगाल के ग्रामीण जल से तो प्रेम था ही साथ ही साथ वहां की पद्मा नदी उन्हें सबसे अधिक प्रिय थी। उनकी कविताओं में पद्मा नदी की छवि बार-बार उभरती है। ‘ सोनार तारी’ तथा चित्रांगदा उनके कविता संग्रह नाटकों में उल्लेखनीय है।

टैगोर की चित्रकला

रवींद्रनाथ टैगोर ने कला की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी। 60 के दशक के उतरार्ध में उनकी चित्रकला यात्रा प्रारंभ हुई
उन्होंने सशक्त एवं सहज दृश्य शब्दकोश का विकास कर लिया था। टैगोर ने कई चित्रों को उकेरा उनके चित्रों में बेहद काल्पनिक एवं विचित्र जानवरों, मुखौटो, रहस्यमई मानवीय चेहरों, गूढ़ भू- परिदृश्य, चिड़िया एवं फूलों के चित्र थे। उनकी कलाकृतियों में लयात्मकता, फेंटेसी एवं जीवंतता का अद्भुत संगम दृष्टिगत होता है। उनकी कला शक्ति ने कला को एक विचित्रता प्रदान की जिसकी व्याख्या शब्दों में संभव नहीं है। टैगोर कैनवास पर भी चित्र बनाते थे।

शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय की स्थापना

रविंद्र नाथ टैगोर ने 1901 में पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्र में शांति निकेतन प्रयोग विद्यालय की स्थापना की। भारत और पश्चिमी परंपराओं के सर्वश्रेष्ठ रूप को मिलाने का प्रयास इस विद्यालय ने किया। 1921 में यह विद्यालय विश्व भारती विश्वविद्यालय बन गया। 1902 और 1907 मेंउनकी पत्नी और दो बच्चों की मृत्यु से उनको गहरा दुख हुआ जो उनके बाद की कविताओं में परिलक्षित होता है

गीतांजलि की रचना

अपनी पत्नी और दो बच्चों की मृत्यु के पश्चात रविंद्र नाथ टैगोर ने गीतांजलि और सॉन्ग ऑफ रिंग्स की रचना (1912) की।

ब्रिटेन में गुरुदेव

1878 से लेकर 1930 के बीच में रवींद्र नाथ टैगोर सात बार इंग्लैंड गए। उनकी पहले दो यात्राओं के संबंध में ब्रिटेन के समाचार पत्रों में कुछ नहीं छपा क्योंकि तब तक वे प्रसिद्ध नहीं हुए थे। लेकिन जब वे तीसरी बार 1912 में लंदन गए तब तक उनकी कविताओं की पहली पुस्तक का अंग्रेजी में अनुवाद प्रकाशित हो चुका था। रविंद्रनाथ की रचना ‘ गीतांजलि’ का अंग्रेज़ी अनुवाद प्रकाशित हो चुका था। इसके प्रकाशित होने के 3 सप्ताह के अंदर लंदन के प्रसिद्ध साप्ताहिक ‘ टाइम्स लिटरेरी सप्लीमेंट’ में गीतांजलि की समीक्षा प्रकाशित हुई। ब्रिटेन के प्रतिष्ठित समाचार पत्र में ‘ चेस्टर गार्डियन’ ने लिखा था कि
“रविंद्र नाथ टैगोर को नोबेल पुरस्कार मिलने की सूचना पर आश्चर्य अवश्य हुआ परंतु असंतोष नहीं।” एक अंग्रेजी समाचार पत्र ने लिखा

“अंग्रेजी भाषा पर जैसा अधिकार इस बंगाली (रविंद्र नाथ ठाकुर) का है वैसा बहुत कम अंग्रेजों का होता है।

टैगोर द्वारा जलियांवाला बाग कांड की निंदा

टैगोर द्वारा जलियांवाला बाग हत्याकांड की घोर निंदा की गई।जलियांवाला बाग कांड की का प्रखर विरोध करते हुए रवींद्रनाथ टैगोर ने विरोध स्वरूप ‘ नाइटहुड ‘ की उपाधि को लौटा दिया

रवींद्रनाथ टैगोर की विदेश यात्रा

रवींद्रनाथ टैगोर की विदेश यात्रा लंबी अवधि तक चलती रही। उन्होंने यूरोप, अमेरिका और पूर्वी एशिया के देशों की यात्रा के दौरान व्याख्यान दिया और काव्य पाठ किया टैगोर भारतीय स्वतंत्रता के मुखर प्रवक्ता थे।

सम्मान

रवींद्रनाथ टैगोर को गीतांजलि (1901) और अन्य बांग्ला कविताओं के लिए 1913 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।

रवींद्रनाथ टैगोर की मृत्यु

भारतीय और बांग्ला राष्ट्रगान के रचयिता रविंद्र नाथ ने 7 अगस्त 1941 को कोलकाता में आखिरी सांस ली। 7 अगस्त 1941 को इस महान कवि, संगीतकार ,नाटककार, गीतकार ,चित्रकार एवं उपन्यासकार की मृत्यु हो गई
टैगोर की साहित्यिक रचनाओं और दर्शन ने भारतीय और बंगाली साहित्य पर गहरा प्रभाव छोड़ा है। भारतीय कला और संस्कृत में रविंद्र नाथ टैगोर का योगदान अद्वितीय है। उनके अद्वितीय योगदान को सम्मानित करने के लिए इस दिन विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों सेमिनारों और व्याख्यानों का आयोजन किया जाता है।

रवींद्रनाथ टैगोर के कुछ अनमोल वचन

“मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है, जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं मे राह बना लेती है”

पप्रत्येकक बालक यह संदेश लेकर आता है कि ईश्वर अभी मनुष्य से निराश नहीं हुआ है।”

“विश्वास वह पक्षी है जो प्रभात के पूर्व अंधकार में ही प्रकाश का अनुभव करता है और गाने लगता है”।