November 22, 2024
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Quit India Movement Day 2023 : आइए जानते हैं भारत छोड़ो आंदोलन किन परिस्थितियों में हुआ तथा इसका उद्देश्य क्या था ?

“भारत की स्वतंत्रता के लिए किया गया अंतिम महान प्रयास”

प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को भारत छोड़ो आंदोलन(Quit India Movement) के वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है। इसे “अगस्त क्रांति” भी कहते हैं । वर्ष 2023 में भारत छोड़ो आंदोलन की 81वी वर्षगांठ मनाई जा रही है। भारत छोड़ो आंदोलन की वर्षगांठ पर उन स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है जिन्होंने आजादी के लिए हंसते-हंसते अपनी जान दे दी थी। यह आंदोलन भारत को आजादी दिलाने के लिए महात्मा गांधी द्वारा अंग्रेजी शासन के विरुद्ध एक बड़ा ‘नागरिक अवज्ञा आंदोलन’ था।

QUIT INDIA MOVEMENT DAY 2023_jANPANCHAYAT HINDI BLOGS

"भारत की स्वतंत्रता के लिए किया गया अंतिम महान प्रयास"

प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को भारत छोड़ो आंदोलन(Quit India Movement) के वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है। इसे “अगस्त क्रांति” भी कहते हैं । वर्ष 2023 में भारत छोड़ो आंदोलन की 81वी वर्षगांठ मनाई जा रही है। भारत छोड़ो आंदोलन की वर्षगांठ पर उन स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है जिन्होंने आजादी के लिए हंसते-हंसते अपनी जान दे दी थी। यह आंदोलन भारत को आजादी दिलाने के लिए महात्मा गांधी द्वारा अंग्रेजी शासन के विरुद्ध एक बड़ा ‘नागरिक अवज्ञा आंदोलन’ था।
आइए जानते हैं भारत छोड़ो आंदोलन किन परिस्थितियों में हुआ तथा इसका उद्देश्य क्या था – 

भारत के स्वतंत्रता संबंधित इतिहास में दो पड़ाव सबसे महत्वपूर्ण नजर आते हैं। प्रथम 1857 का स्वतंत्रता संग्राम और द्वितीय 1942 ईस्वी का भारत छोड़ो आंदोलन। भारत छोड़ो आंदोलन(Quit India Movement)9 अगस्त 1942 को संपूर्ण भारत में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आह्वान पर प्रारंभ हुआ था।
भारत छोड़ो आंदोलन या अगस्त क्रांति भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की आखिरी महान लड़ाई थी जिसने प्रशासन की नींव हिला कर रख दी थी।

भारत छोड़ो आंदोलन के पीछे क्या था कारण

भारत छोड़ो आंदोलन के पीछे कई कारण थे लेकिन सबसे प्रमुख कारण था “क्रिप्स मिशन की विफलता” द्वितीय विश्व युद्ध में दक्षिण पूर्वी एशिया में जब ब्रिटिश फौजों की हार होने लगी उस समय यह निश्चित माना जा रहा था कि जापान भारत पर हमला करेगा। तब मित्र देश अमेरिका रूस और चीन इस संकट के समय भारतीयों का समर्थन प्राप्त करने की पहल करने के लिए ब्रिटेन पर लगातार दबाव बना रहे थे। द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीयों का समर्थन प्राप्त करने के उद्देश्य से ब्रिटेन के सत्तारूढ़ ‘ लेबर पार्टी’ के प्रधानमंत्री ‘ विंस्टन चर्चिल’ द्वारा मार्च 1942 में ‘ स्टैनफोर्ड क्रिप्स’ को भारत भेजा गया “क्रिप्स मिशन” के तहत ब्रिटेन सरकार भारत को पूर्ण स्वतंत्रता ना देकर भारत की सुरक्षा अपने हाथ में रखना चाहती थी। यहां तक कि गवर्नर जनरल के वीटो अधिकारों को भी पहले जैसा रखने के पक्ष में थी। लेकिन “क्रिप्स मिशन” के सारे प्रस्ताव को भारतीय प्रतिनिधियों ने एक सिरे से खारिज कर दिया
“क्रिप्स मिशन” की असफलता के पश्चात 8 अगस्त 1942 को मुंबई की ग्वालियर टैंक में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कमेटी की बैठक हुई। इस बैठक में यह निर्णय लिया गया कि भारत साम्राज्यवाद और फासीवाद के विरुद्ध रहेगा और अपनी सुरक्षा स्वयं करेगा। अंग्रेजों को अब भारत छोड़ना ही होगा और यदि अंग्रेज भारत छोड़ देते हैं तो स्थाई सरकार बनेगी।

गांधीजी का वर्धा प्रस्ताव

14 जुलाई 1942 ईस्वी में कांग्रेस कार्यसमिति की वर्धा बैठक में गांधीजी के इस विचार को पूर्ण समर्थन मिला कि भारत में संवैधानिक गतिरोध तभी दूर होगा जब अंग्रेज भारत छोड़ दें। वर्धा में कांग्रेस कार्यसमिति ने “भारत छोड़ो प्रस्ताव” पारित किया कांग्रेस कार्यसमिति ने कुछ संशोधनों के बाद भारत छोड़ो प्रस्ताव को 8 अगस्त 1942 ईस्वी को स्वीकार कर लिया।

गांधी जी द्वारा "करो या मरो" का मूल मंत्र

कांग्रेस के इस ऐतिहासिक सम्मेलन में महात्मा गांधी ने लगभग 70 मिनट तक भाषण दिया। अपने संबोधन में महात्मा गांधी ने भारत की जनता को “करो या मरो” का मूल मंत्र दिया। जिसका अर्थ था येन केन प्रकारेण स्वतंत्रता प्राप्त करना अर्थात भारत की आजादी के लिए प्रत्येक ढंग से प्रयत्न करना। गांधी जी वैसे तो अहिंसावादी थी लेकिन देश को स्वतंत्र कराने के लिए उन्होंने “करो या मरो” का नारा दिया। अंग्रेजी शासकों की दमनकारी आर्थिक लूट खसोट, विस्तारवादी एवं नस्लवादी नीतियों के विरुद्ध उन्होंने लोगों को एक करने के लिए भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) प्रारंभ किया था।
गांधी जी के “करो या मरो” का नारा ने भारत की जनता को नया जोश, नए उत्साह, नए संकल्प, नई आशा, दृढ़ निश्चय और आत्मविश्वास से भर दिया। देश के कोने-कोने में “करो या मरो” की आवाज बन गूंजायमान हो उठी।

आंदोलन के दौरान नेताओं की गिरफ्तारी

‘ ऑपरेशन जीरो आवर’ के तहत 9 अगस्त को भोर में ही कांग्रेस के सभी नेता गिरफ्तार कर लिए गए। कांग्रेस को अवैधानिक संस्था घोषित कर ब्रिटिश सरकार ने इस संस्था की संपत्ति को जब्त कर लिया और जुलूसों को प्रतिबंधित कर दिया। गांधी जी को पुणे के ‘आगा खां’ महल तथा कांग्रेस कार्यकारिणी के अन्य सदस्यों को ‘अहमदनगर के दुर्ग’ में नजरबंद कर दिया गया। सरकार की इस कृत्य ने जनता को इतना आक्रोशित कर दिया कि जनता स्वयं ही नेतृत्व संभाल कर जुलूस और सभाएं करने लगी। नेतृत्वविहीनता के बावजूद स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान यह पहला आंदोलन था जो अपने उत्कर्ष पर पहुंचा। और जब सरकार द्वारा इसे दबाने का प्रयास किया गया तो आंदोलन हिंसात्मक हो गया। स्टेशनों में आग लगा दी गई, पटरियां उखाड़ दी गई। संयुक्त प्रांत बलिया एवं बस्ती, मुंबई में सतारा, बंगाल में मिदनापुर एवं बिहार के कुछ भागों में इस आंदोलन के समय अस्थाई सरकारो की स्थापना की गई।

आंदोलन की सफलता

भारत छोड़ो आंदोलन इसलिए सफल माना जाता है क्योंकि इस आंदोलन से अनेक नेताओं का उदय हुआ। जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, बीजू पटनायक, सुचेता कृपलानी, अरूणा आसिफ अली खान, उषा मेहता जैसे नेताओं ने भूमिगत होकर इस आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया, जो बाद में प्रमुख नेताओं के रूप में उभरे। आंदोलन में महिलाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। उषा मेहता जैसी महिलाओं ने एक भूमिगत रेडियो स्टेशन स्थापित कर कई महीने तक कांग्रेस रेडियो का प्रसारण किया। राम मनोहर लोहिया नियमित रूप से रेडियो पर बोलते थे। नवंबर 1942 में पुलिस ने इसे जब्त कर लिया।
भारत छोड़ो आंदोलन(Quit India Movement)के कारण देश में एकता और भाईचारे की भावना जागृत हुई। युवाओं ने स्कूल कॉलेज की पढ़ाई और लोगों ने राष्ट्र की खातिर अपनी नौकरी छोड़ दी। भारत छोड़ो आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दी थी और भारत की स्वतंत्रता का मार्ग प्रकाशित किया था। यद्यपि वर्ष 1944 में भारत छोड़ो आंदोलन को कुचल दिया गया था और अंग्रेजों ने यह कहते हुए तत्काल स्वतंत्रता देने से इनकार कर दिया था कि स्वतंत्रता युद्ध समाप्ति के बाद ही दी जाएगी लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध और आंदोलन के बोझ ने ब्रिटिश प्रशासन को भारत को स्वतंत्रता देने के लिए सोचने पर विवश कर दिया।

आंदोलन की असफलता

भारत छोड़ो आंदोलन(Quit India Movement)की असफलता का कारण था क्रूर दमन। इस आंदोलन की शुरुआत तो अहिंसात्मक तरीके से हुई लेकिन इसे दबाने के लिए हिंसा का सहारा लिया गया। आंदोलन के दौरान कुछ स्थानों पर हिंसा हुई लेकिन यह पूर्व नियोजित नहीं थी। अंग्रेजों ने आंदोलन को हिंसक रूप से दबा दिया, जिसके लिए लोगों पर गोलियां चलाई गई, गांवों को जला दिया गया, लाठीचार्ज किया गया और भारी जुर्माना भी लगाया गया। इस आंदोलन में एक लाख से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया।
इस आंदोलन में समर्थन का अभाव रहा। भारतीय नौकरशाही ने इस आंदोलन का समर्थन तो नहीं ही किया, मुस्लिम लीग, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और हिंदू महासभा ने भी इस आंदोलन का समर्थन नहीं किया। मुस्लिम लीग नहीं चाहती थी कि भारत विभाजन से पूर्व अंग्रेज भारत छोड़े । इसलिए उसने इसका समर्थन नहीं किया। कम्युनिस्ट पार्टी भी सोवियत संघ के साथ संबद्ध होने के कारण अंग्रेजों का समर्थन किया। भीमराव अंबेडकर ने इसे “अनुत्तरदायित्व पूर्ण और पागलपन भरा कार्य” बताया। यह आंदोलन संगठन एवं आयोजन में कमी, सरकारी सेवा में कार्यरत उच्चाधिकारियों की वफादारी व आंदोलनकारियों के पास साधन एवं शक्ति के अभाव के कारण पूर्ण रूप से सफल नहीं हो सका।

भारत छोड़ो आंदोलन का प्रभाव

यद्यपि भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement)भारत को स्वतंत्रता नहीं दिलवा पाया लेकिन इसका दूरगामी परिणाम सुखदाई रहा। इसीलिए इसे ‘ भारत की स्वतंत्रता के लिए किया जाने वाला अंतिम महान प्रयास’ कहा गया।1942 के इस आंदोलन की विशालता को देखते हुए ब्रिटिश सरकार को भारत में शासन का अधिकार खोने का भय सताने लगा था। इस आंदोलन से भारतीय जनमानस के साथ विश्व के कई देश खड़े हो गए ।25 जुलाई 1942 को संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति रूजवेल्ट को चीन के तत्कालीन मार्शल च्यांग काई शेक ने पत्र में लिखा है कि “अंग्रेजों के लिए श्रेष्ठ नीति यह है कि वे भारत को पूर्ण स्वतंत्रता दे दे।”