चांद के बाद अब सूरज पर भारत ने रचा इतिहास, पहला सूर्य मिशन अपनी मंजिल लैंग्वेज पॉइंट- 1 पर पहुंचा: Aditya-L1
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चांद के बाद सूरज पर भी भारत ने इतिहास रचते हुए अपना परचम लहरा दिया है। आदित्य L1 हॉलो ऑर्बिट में पहुंच चुका है। और अगले 4 वर्षों तक आदित्य L1 इसी ऑर्बिट में रहेगा और सूर्य के रहस्यों का पता लगाएगा। आदित्य L1 लैंग्रेंज पॉइंट तक पहुंच गया है। यहां पहुंचने में इसे 126 दिन लगे और इसने 15 लाख किलोमीटर का सफर तय कर यह कीर्तिमान हासिल किया है।
आदित्य L1 के लैंग्रेंज पॉइंट पर पहुंचने के साथ ही भारत ने स्पेस की दुनिया में एक नया इतिहास रच दिया है। शनिवार को शाम 4:00 बजे के लगभग स्पेसक्राफ्ट अपनी मंजिल पर पहुंचा। अब आदित्य L1 सूर्य का अध्ययन करेगा और महत्वपूर्ण आंकड़े जुटाएगा। गौरतलब है कि पहला सूर्य अध्ययन अभियान इसरो द्वारा 2 सितंबर 2023 को लांच किया गया था।
इस उपलब्धि पर पीएम मोदी ने दी बधाई
इसरो की इस महत्वपूर्ण उपलब्धि पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बधाई दी उन्होंने सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा है कि
“भारत ने एक और उपलब्धि हासिल की है। भारत की पहली और सौर वेधशाला आदित्य L1 अपने गंतव्य तक पहुंची।” पीएम मोदी ने आगे लिखा है कि “यह सबसे जटिल और पेचीदा अंतरिक्ष अभियानों को साकार करने में हमारे वैज्ञानिकों के अथक समर्पण का प्रमाण है। हम मानवता के लाभ के लिए विज्ञान की नई सीमाओं को आगे बढ़ाना जारी रखेंगे।” उन्होंने आगे कहा कि वह इस असाधारण उपलब्धि की सराहना करने में देश के साथ शामिल है।
क्या है आदित्य L1?
Aditya-L1 सूर्य का अध्ययन करने वाला मिशन है। इसके साथ ही इसरो ने इसे पहला अंतरिक्ष आधारित वेधशाला श्रेणी का भारतीय सौर मिशन कहा है। इसे 2 सितंबर 2023 को श्रीहरिकोटा से लांच किया गया था। इस अंतरिक्ष यान को सूर्य, पृथ्वी प्रणाली के लैंग्रेंजियन बिंदु 1 (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में स्थापित करने की योजना थी, जो पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर है। यह अभियान सूर्य की अदृश्य किरणों और सौर विस्फोट से निकली ऊर्जा के रहस्य सुलझाएगा।
क्या है हॉलो ऑर्बिट ?
हॉलो ऑर्बिट अंतरिक्ष में कक्षा होती है जो L1 बिंदु के चारों ओर घूमती है। इसका आकार एक आयाम में 6 लाख और दूसरे में एक लाख किलोमीटर होता है। यह अंडे की तरह होता है।
इसरो उठाएगा महत्वपूर्ण कदम
हॉलो पॉइंट पर पहुंचने के बाद इसकी स्थिति बरकरार रखने के लिए इसरो कुछ आवश्यक कदम उठाएगा।इसके सात पेलोड सौर घटनाओं का व्यापक अध्ययन करेंगे और विश्व के वैज्ञानिकों को डाटा मुहैया कराएंगे, जिससे सभी सूर्य के विकिरण, कणों और चुंबकीय क्षेत्र का अध्ययन कर पाएंगे। आदित्य L1 फोटोस्फियर, क्रोमोस्फीयर और सूरज के कोरोना की स्टडी करेगी। यह सभी इंस्ट्रूमेंट आदित्य L1 को सौर्य गतिविधियों और अंतरिक्ष के मौसम पर पड़ने वाले इसके असर के बारे में सही सूचनायें मुहैया कराएंगा।
क्या है सात पेलोड?
आदित्य L1 पर सात वैज्ञानिक पेलोड तैनात किए गए हैं इनमें,
विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ (VELC),
सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (SUIT)
सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर(SOLEXS)
हाई एनर्जी L1 आर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (HEL1OES)
शामिल है। यह चारों पेलोड सीधे तौर पर सूर्य को ट्रैक करेंगे। वही तीन उपकरण जिनमें,आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट (ASPEX) प्लाज्मा एनालिसिस पैकेज फॉर आदित्य (PPA), एडवांस्ड थ्री डाइमेंशनल हाई रेजोल्यूशन डिजिटल माइक्रोमीटर शामिल है ये तीनों इन- C2 (मौके पर) मापने वाले उपकरण हैं।
अंतरिक्ष के मौसम का पता चलेगा
आदित्य L1 में लगे सभी उपकरण जब सही तरीके से काम करने लगेंगे तब यह अपने मिशन में जुट जाएगा। इसके माध्यम से वैज्ञानिक अंतरिक्ष के मौसम से जुड़ी बातों को समझ सकेंगे। आदित्य L1 हमें सोलर डायनेमिक्स को समझने में मदद करेगा। बता दें कि सात पेलोड में से चार आदित्य L1 की लंबी यात्रा के दौरान इस्तेमाल हो चुके हैं। अब लैंग्रेज पॉइंट पर बाकी बचे तीन पेलोड्स का इस्तेमाल किया जाएगा।
सूर्य मिशन का क्या है उद्देश्य ?
सूर्य मिशन का मुख्य उद्देश्य सौर वातावरण में गतिशीलता, सूर्य के परिमंडल की गर्मी, सूर्य की सतह पर सौर भूकंप या ‘कोरोना मास इंजेक्शन’ ,सूर्य के धधकने संबंधी गतिविधियों और उनकी विशेषताओं तथा पृथ्वी के करीब अंतरिक्ष में मौसम संबंधी समस्याओं को समझना है।
क्या है L1 पॉइंट?
L1 बिंदु पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर है। यह पृथ्वी और सूर्य के बीच की कुल दूरी का केवल एक फीसदी है। दोनों पिंडों की दूरी लगभग 14.96 करोड़ किलोमीटर है। L1 पॉइंट के आसपास के क्षेत्र को हॉलो ऑर्बिट के रूप में जाना जाता है, जो सूर्य, पृथ्वी प्रणाली के बीच मौजूद पांच स्थानों में से एक है, जहां दोनों पिंडों की गुरुत्व शक्ति एक दूसरे के प्रति संतुलन बनाती है। इन पांच स्थानों पर पृथ्वी और सूर्य के बीच स्थिरता मिलती है, जिससे यहां मौजूद वस्तु सूर्य, पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण में नहीं फंसती है। इसरो के वैज्ञानिक के अनुसार हॉलो ऑर्बिट सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के घूमने के साथ-साथ घूमेगा।
भारत की इस उपलब्धि पर पूरी दुनिया भारत की ओर उत्सुकता से देख रही है।
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