Ajmer Sharif Dargah Controversy: क्या अजमेर शरीफ़ दरगाह मंदिर पर बनाई गई है? क्या हैं साक्ष्य?
Ajmer Sharif Dargah Controversy: सैकड़ों वर्षों से मुसलमानों के पवित्र धार्मिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध अजमेर शरीफ़ दरगाह के सच को लेकर आज देश के लोगों के मन में भ्रम की स्थिति है। हिंदू पक्ष यह दावा कर रहा है कि अजमेर शरीफ़ दरगाह का निर्माण भगवान शिव के प्राचीन मंदिर को तोड़कर हुआ था और इस दरगाह के नीचे आज भी एक ऐसा तहखाना है, जहां शिवलिंग होने के प्रमाण हैं। लेकिन मुस्लिम पक्ष इन दावों को सिरे से खारिज कर रहा है।
अजमेर शरीफ़ दरगाह का सच: एक ऐतिहासिक विवाद
Ajmer Sharif Dargah Controversy: सैकड़ों वर्षों से मुसलमानों के पवित्र धार्मिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध अजमेर शरीफ़ दरगाह के सच को लेकर आज देश के लोगों के मन में भ्रम की स्थिति है। हिंदू पक्ष यह दावा कर रहा है कि अजमेर शरीफ़ दरगाह का निर्माण भगवान शिव के प्राचीन मंदिर को तोड़कर हुआ था और इस दरगाह के नीचे आज भी एक ऐसा तहखाना है, जहां शिवलिंग होने के प्रमाण हैं। लेकिन मुस्लिम पक्ष इन दावों को सिरे से खारिज कर रहा है।
उनका कहना है कि 800 साल पुराने इस दरगाह में हिंदू मंदिर होने का दावा करना मुसलमानों के खिलाफ एक बहुत बड़ी साजिश है।
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अजमेर शरीफ को भारत ही नहीं, दुनिया के पवित्र मुस्लिम धार्मिक स्थलों में से एक माना जाता है। यहाँ हर दिन करीब डेढ़ लाख लोग इबादत के लिए आते हैं, जिनमें मुसलमान ही नहीं, बड़ी संख्या में हिंदू भी शामिल हैं। इस विवाद में अजमेर की निचली अदालत ने हिंदू पक्ष की याचिका को मंजूर कर लिया है। अदालत ने इस याचिका में प्रस्तुत साक्ष्य के आधार पर इसे सुनवाई के योग्य माना है और तीन पक्षों को नोटिस जारी किया है:
- भारत सरकार का अल्पसंख्यक मंत्रालय
- अजमेर शरीफ की दरगाह कमेटी
- आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया (ASI)
इन तीनों पक्षों को अदालत में आकर बताना होगा कि वे इस विवाद पर क्या सोचते हैं और उनका पक्ष क्या है।
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हिंदू पक्ष का दावा
अदालत में हिंदू पक्ष ने तीन प्रमुख दावे किए हैं:
- बुलंद दरवाजे की शैली: दरगाह में मौजूद बुलंद दरवाजे की शैली और बनावट हू-बहू हिंदू मंदिरों के द्वार और स्तंभ जैसी है।
- ऊपरी ढांचे और गुंबद: दरगाह के ऊपरी ढांचे और गुंबदों में हिंदू शैली के चिन्ह और अवशेष हैं।
- तहखाने में शिवलिंग: दरगाह के नीचे स्थित तहखाने में आज भी प्राचीन शिवलिंग हो सकता है।
इन दावों को प्रमाणित करने के लिए हिंदू पक्ष ने 1911 में लिखी गई किताब “Ajmer Historical and Descriptive” का सहारा लिया है। यह किताब उस समय के हाई कोर्ट के जज और दीवान बहादुर हर विलास शारदा द्वारा लिखी गई थी।
अजमेर शरीफ को मंदिर बताने के साक्ष्य
किताब Ajmer Historical and Descriptive के पेज नंबर 90 पर लिखा है कि दरगाह के भूतल में एक तहखाना है, जहाँ ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती को दफनाया गया था। इस तहखाने की दीवार पर भगवान शिव की प्रतिमा अंकित है, जिस पर प्रतिदिन चंदन लगाकर पूजा की जाती है। यह पूजा एक ब्राह्मण परिवार द्वारा की जाती है, जिसे घरियाली कहा जाता है।
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इसके अलावा, किताब के पेज नंबर 89 पर लिखा है कि दरगाह के अंदर कुछ कक्ष बने हुए हैं, जो संभवतः किसी हिंदू मंदिर का हिस्सा थे, जिन्हें नष्ट नहीं किया गया है। यह भी संभावना जताई गई है कि दरगाह का निर्माण कभी हिंदू मंदिर को तोड़कर किया गया हो, क्योंकि मुस्लिम आक्रमणकारी मंदिरों के ढांचे पर मस्जिद बना देते थे।
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह का इतिहास
भारत में छठी शताब्दी में चौहान साम्राज्य के गठन के साथ अजमेर का इतिहास जुड़ा है। चौहान साम्राज्य के दौरान, 12वीं शताब्दी में मोहम्मद गोरी ने अजमेर पर कब्जा करने का प्रयास किया, और इस दौरान ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भी उनके साथ थे।
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने भारत में इस्लाम धर्म का प्रचार किया और अजमेर में एक सूफी संत के रूप में अपना जीवन बिताया। उनकी दरगाह आज भी अजमेर में स्थित है, जहाँ लोग उनकी पूजा करते हैं।
अजमेर शरीफ दरगाह पर नेताओं और अभिनेताओं का सजदा
अजमेर शरीफ दरगाह पर मुगलों से लेकर ब्रिटिश साम्राज्य और भारत के नेता- अभिनेता मन्नतें मांगने आए हैं। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1948 में यहां मन्नत मांगी थी।
पीएम मोदी का योगदान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अजमेर शरीफ दरगाह पर चादर भेजी थी। उनके 74वें जन्मदिन पर यहां 9000 किलोग्राम शाकाहारी भोजन का लंगर भी आयोजित किया गया था।
अजमेर शरीफ दरगाह की पवित्रता पर कोई संदेह नहीं है, लेकिन क्या भारत के लोगों को यह जानने का अधिकार नहीं है कि इतिहास में उनके धार्मिक स्थलों के साथ क्या हुआ था? क्या दरगाह के नीचे हिंदू मंदिर था या नहीं?