ट्रांसजेंडर समुदाय का संक्षिप्त इतिहास (Brief History of Transgender Community)
Brief History of Transgender Community (ट्रांसजेंडर समुदाय का संक्षिप्त इतिहास): भारत पूरी दुनिया में सबसे धार्मिक और पारंपरिक रूप से विविधता पूर्ण राष्ट्रों में से एक है। भारत का अपना गौरवशाली एवं समृद्ध इतिहास रहा है जो तत्कालीन रीति- रिवाज और प्रथाओं को दर्शाता है। आज के आधुनिक युग में भी प्राचीन रीति- रिवाज एवं परंपराएं प्रचलित हैं।इन्हीं में से एक है भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय। भारत में ट्रांसजेंडर या हिजड़ो की अवधारणा नई नहीं है। इन्हें हमारे प्राचीन इतिहास में मान्यता दी गई है।
About Transgender Community in Hindi:
About Transgender Community: भारत पूरी दुनिया में सबसे धार्मिक और पारंपरिक रूप से विविधता पूर्ण राष्ट्रों में से एक है। भारत का अपना गौरवशाली एवं समृद्ध इतिहास रहा है जो तत्कालीन रीति- रिवाज और प्रथाओं को दर्शाता है। आज के आधुनिक युग में भी प्राचीन रीति- रिवाज एवं परंपराएं प्रचलित हैं।इन्हीं में से एक है भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय। भारत में ट्रांसजेंडर या हिजड़ो की अवधारणा नई नहीं है। इन्हें हमारे प्राचीन इतिहास में मान्यता दी गई है।
ट्रांसजेंडर समुदाय हमारी सभ्यता और संस्कृति की तरह ही प्राचीन है। यह समुदाय सदियों से भारतीय समाज का हिस्सा रहे हैं। ट्रांसजेंडर का उल्लेख ‘तृतीय प्रकृति’ के रूप में वैदिक और पौराणिक साहित्य में भी मिलता है। वैदिक साहित्य में तीन लिंगो का उल्लेख मिलता है, पुल्लिंग, स्त्रीलिंग और नपुंसक लिंग। नपुंसक का अर्थ है जिसमें प्रजनन क्षमता का अभाव हो। ट्रांसजेंडर समुदाय में हिजड़ा, किन्नर, कोठी, अरावनी,जोगप्पा, शिव- शक्ति आदि शामिल हैं।भारतीय भाषा में प्रयुक्त शब्द ‘हिजड़ा’ फारसी शब्द हिज से लिया गया है अर्थात कोई ऐसा व्यक्ति जो स्त्रैण हो, अप्रभावी या अक्षम हो।
क्या है ट्रांसजेंडर का अर्थ (What is the Meaning of Transgender)
ट्रांसजेंडर में ऐसे व्यक्ति शामिल होते हैं जो जन्म से अपने लिंग की पहचान नहीं करते। ट्रांसजेंडर आमतौर पर उन व्यक्तियों के लिए एक व्यापक शब्द के रूप में वर्णित किया जाता है जिनकी लिंग पहचान, लिंग अभिव्यक्ति या व्यवहार उनके जैविक लिंग के अनुरूप नहीं होता। ट्रांसजेंडर में हिजड़ा और किन्नर शामिल है।
शारीरिक संरचना के आधार पर हिजड़े ना तो पुरुष होते हैं और ना ही वह मनोवैज्ञानिक रूप से स्त्री होते हैं। वह उन स्त्रियों की तरह है जिनका मासिक धर्म नहीं होता तथा जिनके पास महिला प्रजनन अंग नहीं है। हिजड़े में पुरुष या स्त्री के रूप में प्रजनन क्षमता नहीं होती इसलिए वे न तो पुरुष की श्रेणी में आते हैं और ना ही स्त्री की। जो स्त्री या पुरुष बनने के लिए सेक्स री – असाइनमेंट सर्जरी(SRS)से गुजारना चाहते हैं या गुजर चुके हैं वे लोग भी ट्रांसजेंडर समुदाय के अंतर्गत आते हैं।
समकालीन उपयोग में ट्रांसजेंडर शब्द एक व्यापक शब्द बन गया है जिसका उपयोग पहचान और अनुभव की एक विस्तृत श्रृंखला का वर्णन करने के लिए किया जाता है। ट्रांसजेंडर में प्री- ऑपरेटिव,पोस्ट ऑपरेटिव और गैर- ऑपरेटिव ट्रांससेक्सुअल लोग भी शामिल हैं। इसके अलावा ऐसे लोग भी हैं जो विपरीत लिंग अर्थात ट्रांसवेस्टाइट्स के कपड़े पहनना पसंद करते हैं।
ट्रांसजेंडर का इतिहास (History of Transgender)
भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय कोई नई अवधारणा नहीं है। हमारे देश में इनका एक लंबा इतिहास रहा है। प्राचीन हिंदू धर्म ग्रंथ कामशास्त्र में ट्रांसजेंडर्स को ‘तृतीय प्रकृति’ या तीसरे लिंग के रूप में वर्णित किया गया है। यह उन पुरुषों को तीसरी प्रकृति के रूप में वर्गीकृत करता है जो अन्य पुरुषों की इच्छा रखते हैं। ट्रांसजेंडर का उल्लेख रामायण और महाभारत जैसे प्राचीन महाकाव्य में भी मिलता है।
महाकाव्य रामायण में वर्णित है कि जब भगवान श्री राम 14 वर्ष के वनवास के लिए वन में जा रहे थे तो सभी अयोध्यावासी उनके पीछे-पीछे चल पड़े। भगवान श्री राम ने उनको आदेश दिया कि सभी पुरुष और स्त्रियां नगर की ओर लौट जाए। भगवान ने स्त्री और पुरुष का ही नाम लिया था। अतः हिजड़े जो ना तो स्त्री होते हैं और ना ही पुरुष उन्होंने अपने आप को भगवान राम के इस आदेश से परे रखा और भगवान राम के साथ रहने का निश्चय किया। उनकी इस निश्चल भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान श्री राम ने उन्हें शिशु के जन्म और विवाह जैसे मंगल अवसरों पर लोगों को आशीर्वाद देने की शक्ति प्रदान की। हिंदू पौराणिक कथाओं में बहुचरा माता को हिजड़ा समुदाय का संरक्षक माना जाता है।
महाभारत महाकाव्य में भी ट्रांसजेंडर्स का उल्लेख मिलता है महाभारत में अर्जुन और नागकन्या के पुत्र ने कुरुक्षेत्र युद्ध में पांडवों की जीत सुनिश्चित करने के लिए स्वयं को देवी काली को बलि देने का सुझाव दिया लेकिन उनकी एक शर्त थी कि वह अपने जीवन की आखिरी रात विवाह में बिताएंगे अर्थात मृत्यु से पूर्व की रात वह विवाह करेंगे, किंतु ऐसा संभव नहीं था क्योंकि कोई भी स्त्री जानबूझकर ऐसे व्यक्ति से विवाह नहीं करती जो मृत्यु के लिए अभिशप्त हो। इस समस्या का समाधान करते हुए भगवान श्री कृष्ण ने मोहिनी नामक एक सुंदर स्त्री का रूप धारण किया और उससे विवाह किया।
इसी प्रकार भगवान शिव का अर्धनारीश्वर स्वरूप नारी- पुरुष स्वरूप का मिश्रण है। भगवान शिव शक्ति के साथ विलीन हो गए थे जिससे दोनों के मिलन का प्रतीक उनके उभयलिंगी अर्धनारीश्वर रूप को आधा पुरुष आधा स्त्री के रूप में ग्रहण किया गया था। अर्धनारीश्वर रूप में भगवान शिव को हिजड़ा समुदाय बहुत सम्मान देते हैं या यू कहे कि हिजड़ो के लिए भगवान शिव का अर्धनारीश्वर स्वरूप पूजनीय है। आज भी भगवान शिव के इस स्वरूप के कारण हिजड़ा समुदाय का शिव मंदिरों में सम्मान किया जाता है।
ट्रांसजेंडर समुदाय ने इस्लामी दुनिया के शाही दरबारों में भी प्रमुख भूमिका निभाई। मुगल शासन काल के दौरान शाही घराने की स्त्रियों के लिए एक हरम होता था, जिसमें शाही घराने की सभी औरतों की खातिरदारी और उनकी सेवा के लिए हिजड़ों को ही रखा जाता था। इस प्रकार ट्रांसजेंडर समुदाय का एक समृद्ध इतिहास रहा है।
क्यों उपेक्षित हुआ ट्रांसजेंडर समुदाय (Why was the Transgender Community Neglected) ?
लगभग 80 प्रतिशत आबादी हिंदू धर्म का पालन करती है और पवित्र हिंदू ग्रंथो में विस्तृत रूप से तीसरे लिंग या ट्रांसजेंडर के बारे में बताया गया है जो वास्तव में बहुत सम्माननीय थे। ट्रांसजेंडर अर्थात तीसरे लिंग की अवधारणा को व्यापक रूप से स्वीकार किया गया था किंतु पश्चिम के लोगों के लिए इसे समझना इतना सरल नहीं था। इसीलिए 19वीं सदी के मध्य में जब अंग्रेज भारत आए तो हिजड़े को देखकर वे उनसे घृणा करने लगे। अंग्रेज हिजड़ों को प्राकृतिक और अवांछनीय मानते थे।
अंग्रेजों के अनुसार ‘तृतीय प्रकृति’ तथा अर्थात तीसरे लिंग का विचार पिछड़ा हुआ था क्योंकि यह विचार स्त्री और पुरुष के पश्चिमी द्वैत के विरुद्ध था जो मानव जाति को बनाए रखने के लिए प्रजनन के महत्व पर बहुत अधिक निर्भर करता था। हिजड़ों को अवांछनीय और अप्राकृतिक मानते हुए अंग्रेजों ने आपराधिक जनजाति अधिनियम 1871 लागू किया। इस अधिनियम में ट्रांसजेंडर को एक आपराधिक जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया और इस प्रकार अंग्रेजों द्वारा बनाए गए इस अधिनियम ने ट्रांसजेंडर समुदाय को सदैव के लिए अनैतिक और भ्रष्ट करार दे दिया।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस तृतीय प्रकृति का उल्लेख वेदों और हिंदू धर्म ग्रंथो में मिलता है। जिस तृतीय प्रकृति के स्वरूप को स्वयं महादेव ने धारण किया और जिन हिजड़ों को भगवान राम ने आशीर्वाद दिया और शक्ति दी आज अंग्रेजों के बनाए गए अधिनियम के कारण यह ट्रांसजेंडर समुदाय आज भी उपेक्षित है लेकिन भारतीय शायद इस बात से अनभिज्ञ है कि उनकी पूर्वाग्रह से ग्रसित ये मान्यताएं ब्रिटिशों द्वारा उन प्रयासों से उपजी है जिससे ब्रिटिशों ने तीसरे लिंग को सम्मान देने की प्राचीन संस्कृति को मिटाने का प्रयास किया और इसीलिए ट्रांसजेंडर दशकों से उपेक्षित जीवन जीने को विवश हो गए।
आज समय के साथ धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है। ट्रांसजेंडरों के लिए नए अधिनियम भी बनाए गए हैं जिसके तहत उनको भी समाज में सम्मान पूर्ण जीवन जीने का अधिकार प्रदान किया गया है।