December 21, 2024
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Lala Lajpat Rai Birth Anniversary (लाला लाजपत राय जयंती): लाला लाजपत राय का सम्पूर्ण जीवन परिचय

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भारत के महान क्रांतिकारियों में लाला लाजपत राय का नाम विख्यात है। लाला लाजपत राय ने आजीवन ब्रिटिश राजशक्ति का सामना किया। अपने प्राणों की परवाह न करने वाले लाला लाजपत राय को ‘पंजाब केसरी’ भी कहा जाता है। वह पूरे पंजाब के प्रतिनिधि थे। लाला लाजपत राय गरम दल के नेता थे।

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कौन थे लाला लाजपत राय ? (Who was Lala Lajpat Rai?)

Lala Lajpat Rai Birth Anniversary :भारत के महान क्रांतिकारियों में लाला लाजपत राय का नाम विख्यात है। लाला लाजपत राय ने आजीवन ब्रिटिश राजशक्ति का सामना किया। अपने प्राणों की परवाह न करने वाले लाला लाजपत राय को ‘पंजाब केसरी’ (Punjab Kesari) भी कहा जाता है। वह पूरे पंजाब के प्रतिनिधि थे। लाला लाजपत राय गरम दल के नेता थे।

लाला लाजपत राय का जन्म (Birth of Lala Lajpat Rai)

 लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) का जन्म उनके ननिहाल के ग्राम ढूंढीके, जिला फरीदकोट, पंजाब में 28 जनवरी, 1835 ईस्वी को हुआ था। उनके पिता का नाम लाला राधाकृष्ण अग्रवाल था। लाला राधाकृष्ण अध्यापक थे। लाला लाजपत राय के पिता वैश्य थे किंतु उनकी माता सिख परिवार से थी। दोनों के धार्मिक विचार भिन्न-भिन्न थे फिर भी उनकी माता पूरे मन से पति की सेवा करती थी।

लाला लाजपत राय की शिक्षा (Education of Lala Lajpat Rai)

 लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) की शिक्षा पांचवें वर्ष में आरंभ हुई। उन्होंने कोलकाता तथा पंजाब विश्वविद्यालय से 1880 में एंट्रेंस की परीक्षा एक वर्ष में उत्तीर्ण की। आगे की पढ़ाई उन्होंने लाहौर के सरकारी कॉलेज से की। यहां उन्होंने 1882 में एफ. ए. तथा मुख्तरी की परीक्षा एक साथ उत्तीर्ण की। इसी समय लाहौर में लाला जी आर्य समाज के संपर्क में आए और उसके सदस्य बने।
लालाजी ने अपने निवास स्थल जगराव से वकालत आरंभ की, किंतु यह एक छोटा कस्बा था और यहां उनके कार्य के बढ़ने की अधिक संभावना नहीं थी। अतः वे रोहतक चले गए। उन दिनों वर्तमान हरियाणा, हिमाचल तथा पाकिस्तानी पंजाब भी पंजाब प्रदेश के अंतर्गत आता था। 1885 ईसवी में लालाजी ने रोहतक से वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1886 ईस्वी में वे हिसार आये और 1892 तक सफल वकील के रूप में हिसार में रहे। 1892 में ही वे लाहौर आए।

दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज (डी.ए.वी. कॉलेज) की स्थापना

 लाला लाजपतराय (Lala Lajpat Rai)आर्य समाज के सदस्य थे।वे आर्य समाज के प्रति इतनी समर्पित थे कि होनहार नवयुवकों को इस संस्था में प्रवेश करने के लिए सदा तत्पर रहते थे। स्वामी श्रद्धानंद को आर्य समाज में लाने का श्रेय भी लाला जी को ही जाता है। स्वामी दयानंद का देहांत अजमेर में 30 अक्टूबर1885 में हो गया। उस समय 9 नवंबर 1883 को लाहौर में आयोजित शोक सभा के अंत में यह निश्चित हुआ कि स्वामी जी की स्मृति में एक महाविद्यालय की स्थापना की जाए, जिसमें वैदिक साहित्य संस्कृति तथा हिंदी की उच्च शिक्षा छात्रों को दी जाए तथा अंग्रेजी और पाश्चात्य ज्ञान- विज्ञान में भी छात्रों को दक्षता प्राप्त कराई जाए। 1886 में इसशिक्षण संस्थान की स्थापना के समय लाला लाजपत राय का इसके संचालन में महत्वपूर्ण योगदान रहा और लाहौर डीएवी कॉलेज के कालांतर में वे महान स्तंभ बने। लाला लाजपत राय ने डी.ए.वी. कॉलेज की स्थापना के लिए अथक प्रयास किया। दयानंद कॉलेज के लिए उन्होंने कोष भी इकठ्ठा किया। आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती के प्रति उनकी अनन्य निष्ठा थी। स्वामी जी की मृत्यु के पश्चात लालाजी ने स्वयं को आर्य समाज के कार्यों के प्रति समर्पित कर दिया।

लाला लाजपत राय के आदर्श ( Ideals of Lala Lajpat Rai)

 लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) अपना आदर्श इटली के क्रांतिकारि ज्यूसेपे मेत्सिनी को मानते थे। वे मेत्सिनी एक भाषण से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने मेत्सिनी की जीवनी पढ़ने का निश्चय किया जो भारत में उपलब्ध नहीं थी। उन्होंने मेत्सिनी की जीवनी इंग्लैंड से मंगवाई मेत्सिनी द्वारा लिखित अभूतपूर्व पुस्तक “ड्यूटीज आफ मैन” का लालाजी जी ने उर्दू में अनुवाद किया।

लाला जी कांग्रेस के कार्यकर्ता थे

मात्र 30 वर्ष की आयु में 1888 के कांग्रेस के ‘ प्रयाग सम्मेलन’ में शामिल हुए। हिसार में वकालत करते समय लाला लाजपत राय ने कांग्रेस की बैठक में भी भाग लेना शुरू कर दिया। कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन को लालाजी ने ही सफल बनाया।

लाला लाजपत राय की समाज सेवा

 लाला लाजपत राय ने समाज सेवा का कार्य हिसार में ही प्रारंभ कर दिया था। हिसार में उन्होंने लाला चूड़ामणि, पंडित लखपत राय, जैसे आर्य समाजी कार्यकर्ताओं के साथ कई योजनाओं के कार्यान्वयन में योगदान दिया, जो समाज हित में था। लाहौर में वे आर्य समाज के अतिरिक्त राजनैतिक आंदोलन से भी जुड़ गए 1897 और 1899 में जब देशव्यापी अकाल पड़ा तब पीड़ितों की सेवा में लाला लाजपत राय जी जान से जुट गए। अकाल के समय राहत कार्यों में लाला जी सबसे पहले खड़े थे। देश में आए भूकंप और अकाल के समय अंग्रेजों ने कुछ नहीं किया, लेकिन लालाजी ने अनेक स्थानों पर अकाल शिविर लगाकर लोगों की सेवा की। तत्कालीन मशहूर अंग्रेज लेखक विंसन ने उनके व्यक्तित्व के बारे में लिखा था-
“लाजपत राय की सादगी और उदारता भरे जीवन की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। उन्होंने अशिक्षित गरीबों और असहायों की बड़ी सेवा की थी। इस क्षेत्र में अंग्रेजी सरकार बिल्कुल ध्यान नहीं देती थी।”

लाला लाजपत राय द्वारा कांग्रेस में उग्र विचारों का प्रवेश

लोकमान्य तिलक और बिपिन चंद्र पाल के साथ मिलकर लाला लाजपत राय ने कांग्रेस में उग्र विचारों का प्रवेश कराया। जब ब्रिटिश युवराज के भारत आगमन पर उनके स्वागत का प्रस्ताव आया तो लालाजी ने उनका डटकर विरोध किया। कांग्रेस के मंच पर यह पहला तेजस्वी भाषण हुआ था, जिसमें देश की अस्मिता प्रकट हुई थी। पंजाब के किसानों ने अपने अधिकारों को लेकर जब 1907 में प्रदर्शन किया तो अंग्रेजी सरकार लाला लाजपत राय और सरदार अजीत सिंह पर क्रोधित हो उठी। इन दोनों देशभक्तों को देश से निर्वासित कर दिया गया, और पड़ोसी देश वर्मा के मंडले नगर में नजर बंद कर दिया गया। किंतु सरकार के इस दमन पूर्ण कार्य का देश वासियों द्वारा प्रबल विरोध किए जाने पर सरकार को अपना आदेश वापस लेना पड़ा।

लाला लाजपत राय ने कई बार विदेश यात्राएं भी की। सन 1906 में लाला लाजपत राय, गोपाल कृष्ण गोखले के साथ कांग्रेस के एक शिष्टमंडल के सदस्य के रूप में इंग्लैंड गए। विदेशों में वह पश्चिमी देशों के समक्ष भारत की राजनीतिक परिस्थितियों की वास्तविकता से वहां के लोगों को परिचित कराते थे।

बंगाल विभाजन का विरोध

लाला लाजपत राय ने ही विपिन चंद्र पाल और सुरेंद्रनाथ बनर्जी जैसे आंदोलनकारियों को साथ लेकर अंग्रेजो के द्वारा 1905 में लिए गए बंगाल विभाजन के फैसले का जमकर विरोध किया। ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें 3 मई 1960 में रावलपिंडी से गिरफ्तार कर लिया।

लाला जी का राजनीतिक आंदोलन (Lala ji's political movement)

लाला लाजपत राय को अंग्रेजों ने 1960 में 6 महीने के लिए निर्वासित कर दिया था। इंग्लैंड में उन्होंने भारत की स्थिति सुधार के लिए अंग्रेजों से विचार-विमर्श किया था। सूरत के प्रसिद्ध कांग्रेसी अधिवेशन, 1960 में उन्होंने राजनीति में गरम दल की विचारधारा का सूत्रपात कर दिया और जनता को यह विश्वास दिलाया कि गिड़गिड़ाने से स्वतंत्रता नहीं मिलने वाली है। देश में जन भावना को देखते हुए अंग्रेजों को उनका निर्वासन रद्द करना पड़ा। निर्वासन के पश्चात प्रथम विश्वयुद्ध (1914 – 1918) के दौरान वे एक प्रतिनिधिमंडल के सदस्य के रूप में पुनः इंग्लैंड गए वहां से वे जापान होते हुए अमेरिका गए और स्वाधीनता प्रेमी अमेरिका वासियों के समक्ष भारत की स्वाधीनता का पक्ष प्रबलता से प्रस्तुत किया। यहां उन्होंने ” इंडियन होमरूल लीग” की स्थापना की।

असहयोग आंदोलन में लाजपत राय की भागीदारी

 लाला लाजपत राय 26 फरवरी 1920 को भारत लौटे तो अमृतसर में ‘ जलियांवाला बाग कांड’ होने के कारण संपूर्ण राष्ट्र असंतोष तथा छोभ की अग्नि में जल रहा था। इसी समय महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन आरंभ किया। लालाजी जी जान से इस संघर्ष में जुट गए। असहयोग आंदोलन ‘ रौलट एक्ट के’ विरोध में चलाया जा रहा था। पंजाब में 1920 में असहयोग आंदोलन का नेतृत्व करने के कारण 1921 में उन्हें फिर से जेल हुई। इसके पश्चात लालाजी ने ‘ लोक सेवक संघ’ की स्थापना की। लाला जी के नेतृत्व में पंजाब में यह आंदोलन जंगल में आग की तरह फैल गया और इसी समय लाला लाजपत राय “पंजाब का शेर” और “पंजाब केसरी” के नाम से जाने गए।
लाला लाजपत राय कांग्रेस के अंतर्गत बनी ‘ स्वराज पार्टी’ में 1924 में शामिल हो गए लेकिन पंडित मोतीलाल नेहरु से कुछ राजनीतिक प्रश्नों पर मतभेद होने के कारण उन्होंने “नेशनलिस्ट पार्टी” का गठन किया। लालाजी कांग्रेसमें दिन प्रतिदिन बढ़ने वाले मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति से अप्रसन्न में रहते थे। इसलिए मदन मोहन मालवीय और स्वामी श्रद्धानंद के सहयोग से ‘ हिंदू महासभा’ के कार्य को आगे बढ़ाया।

लाल- बाल- पाल की तिकड़ी

लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल को लाल- बाल- पाल के नाम से जाना जाता है। इन तीनों नेताओं ने सर्वप्रथम भारत की पूर्ण स्वतंत्रता की मांग उठाई थी।
लाला लाजपत राय एक ओजस्वी लेखक
लाला लाजपत राय उच्च कोटि के राजनीतिक नेता ही नहीं अपितु ओजस्वी लेखक भी थे और प्रभावशाली वक्ता भी थे। बंगाल की खाड़ी में हजारों मील दूर मांडले जेल में अपने समय का उपयोग उन्होंने लेखन कार्य में किया। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण, अशोक, शिवाजी, स्वामी दयानंद सरस्वती, मेत्सिनी और गैरीबाल्डी की संक्षिप्त जीवनयों की रचना की उनकी अन्य महत्वपूर्ण रचनाएं थी, अनहैप्पी इंडिया, नेशनल एजुकेशन, और द स्टोरी ऑफ माई डिपोर्टेशन। उन्होंने पंजाबी वंदे मातरम (उर्दू) और द पीपुल इन तीन समाचार पत्रों की स्थापना करके इनके माध्यम से देश में स्वराज का प्रचार किया। उर्दू दैनिक वंदे मातरम में उन्होंने लिखा था-

“मेरा मजहब हक परस्ती है, मेरी मिल्लत कौम परस्ती है, मेरी इबादत खलक परसती है, मेरी अदालत मेरा जमीर है, मेरी जायदाद मेरी कलम है मेरा मंदिर मेरा दिल है और मेरी उमंगे सदा जवान है।”

लाला लाजपत राय की मृत्यु

 साइमन कमीशन जब 3 फरवरी 1928 को भारत पहुंचा तो उसके विरोध में पूरे देश में आग भड़क उठी। 30 अक्टूबर 1928 को लाला लाजपतराय के नेतृत्व में साइमन कमीशन का विरोध कर रहे युवाओं को बेरहमी से पीटा गया। लाला लाजपत राय की छाती पर पुलिस ने निर्माता से लाठियां बरसाईं और वे बुरी तरह घायल हो गये इसी समय अपने अंतिम भाषण में उन्होंने कहा कि-
“मेरी शरीर पर पड़ी एक-एक चोट ब्रिटिश साम्राज्य के कफन की कील बनेगी।”
इस चोट ने न जाने कितने भगत सिंह और उधम सिंह तैयार कर दिए जिनके प्रयासों से हमें आजादी मिली।
इस घटना के 17 दिन बाद 17 नवंबर 1929 को लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई।

लाला लाजपत राय की मृत्यु का प्रतिशोध

चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों ने लालाजी की मौत का बदला लेने का निर्णय लिया और लालाजी की मौत के 1 महीने के पश्चात 17 दिसंबर 1928 को अपनी प्रतिज्ञा पूरीकी। ब्रिटिश पुलिस के अफ़सर सांडर्स को गोली से उड़ा कर लाला जी की मृत्यु का प्रतिशोध लिया इसके बदले भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गई थी।
लाला लाजपत राय को श्रद्धांजलि देते हुए महात्मा गांधी ने कहा था-
” भारत के आकाश पर जब तक सूर्य का प्रकाश रहेगा तब तक लालाजी जैसे व्यक्तियों की मृत्यु नहीं होगी वे अमर रहेंगे।”