July 27, 2024

Engineers Day 2023 : जानिए कब और क्यों मनाया जाता है अभियंता दिवस ?

About Engineers Day 2023 :
भारत में प्रत्येक वर्ष 15 सितंबर को अभियंता दिवस(Engineers Day)मनाया जाता है। आधुनिक भारत के विश्वकर्मा और “भारत रत्न” मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया (Mokshagundam Vishweshwaraiah) के जन्म दिवस के अवसर पर मनाया जाता है। मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को आज के दिन बड़े सम्मान के साथ याद किया जाता है, जिन्होंने एक इंजीनियर, वैज्ञानिक और निर्माता के रूप में देश की सेवा में अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। एम विश्वेश्वरैया की गिनती भारत ही नहीं विश्व की महान प्रतिभाओं में होती है।

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अभियंता दिवस (Engineers Day) 15,सितंबर 2023

भारत में प्रत्येक वर्ष 15 सितंबर को अभियंता दिवस(Engineers Day)मनाया जाता है। आधुनिक भारत के विश्वकर्मा और “भारत रत्न” मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया (Mokshagundam Vishweshwaraiah) के जन्म दिवस के अवसर पर मनाया जाता है। मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को आज के दिन बड़े सम्मान के साथ याद किया जाता है, जिन्होंने एक इंजीनियर, वैज्ञानिक और निर्माता के रूप में देश की सेवा में अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। एम विश्वेश्वरैया की गिनती भारत ही नहीं विश्व की महान प्रतिभाओं में होती है।

कब मनाया जाता है अभियंता दिवस (When is Engineers Day Celebrated)

भारत सरकार द्वारा 1968 में डॉक्टर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया (M. Visvesvaraya) की जन्मदिवस को अभियंता दिवस घोषित किया गया था। तब से प्रत्येक वर्ष 15 सितंबर को सभी भारतीय इंजीनियर एकत्रित होकर एवं विश्वेश्वरैया के प्रेरणादायी कार्यों एवं आदर्श के प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित करके अपने कार्यकलापों का आत्म विमोचन करते हैं। एम विश्वेश्वरैया इंजीनियरों के आदर्श के रूप में जाने जाते हैं।

इंजीनियर दिवस (Engineers Day) के अवसर पर आइए जानते हैं मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के जीवन के विषय में-

जन्म (Birth)

मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया (M. Visvesvaraya) का जन्म 15 सितंबर 1861 को मैसूर के मु्द्देनाहल्ली नामक स्थान पर एक गरीब परिवार में हुआ था। विश्वेश्वरैया का बचपन आर्थिक संकट में व्यतीत हुआ। 2 वर्ष की उम्र में ही विश्वेश्वरैया ने रामायण, महाभारत और पंचतंत्र की कहानियों को सुनकर इन कहानियों से दया, ईमानदारी और अनुशासन जैसे मूल्यों को आत्मसात किया। 14 वर्ष की उम्र में ही इनके पिता का निधन हो गया।

शिक्षा (Education)

स्वामी विश्वेश्वरैया बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि थे। उन्होने प्रारंभिक शिक्षा गांव के प्राइमरी स्कूल से प्राप्त की। चिकबल्लापुर से मिडिल व हाई स्कूल की शिक्षा ग्रहण की। आगे की शिक्षा के लिए वह बेंगलुरु चले गए, जहां परिचितों और रिश्तेदारों के पास रहकर, आर्थिक संकटों से जूझते हुए, छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़कर, बड़ी मुश्किल से अपना अध्ययन जारी रखा। बेंगलुरु के कॉलेज से 19 वर्ष की आयु में बी. ए.की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इस कॉलेज के प्रिंसिपल विश्वेश्वरैया की योग्यता और गुणों से बहुत प्रभावित थे। प्रिंसिपल के ही प्रयासों से उन्हें पुणे के इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश मिला। अपनी योग्यता के बल पर विश्वेश्वरैया ने पूरे मुंबई विश्वविद्यालय में सर्वोच्च अंक प्राप्त कर इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की।

विश्वेश्वरैया का कार्यक्षेत्र

इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात उन्हें मुंबई में असिस्टेंट इंजीनियर के पद पर नियुक्त किया गया। उस समय ब्रिटिश शासन था और उच्च पदों पर अंग्रेजों को ही नियुक्त किया जाता था। ऐसे समय पर उच्च पद पर नियुक्त विश्वेश्वरैया ने अपने योग्यता और सूझबूझ द्वारा बड़े अंग्रेज इंजीनियरों को अपनी प्रतिभा और योग्यता का लोहा मनवाया।
इंजीनियर के पद पर रहते हुए उन्होंने सबसे पहले प्राकृतिक जल स्रोतों से घर-घर में पानी पहुंचाने की व्यवस्था और गंदे पानी की निकासी के लिए नाली- नालों की समुचित व्यवस्था की। पहले ही प्रयास में विश्वेश्वरैया ने पुणे, मैसूर, कराची, हैदराबाद, कोल्हापुर, सूरत, बेंगलुरु, बडौदा, नागपुर, नासिक, ग्वालियर, इंदौर, बीजापुर, धरवाड़ समेत अनेक नगरों को प्रत्येक प्रकार के जल संकट से मुक्त कर दिया।

विश्वेश्वरैया के वैज्ञानिक आविष्कार

सन 1894- 95 में विश्वेश्वरैया को सिंध (जो अब पाकिस्तान में है) के संक्खर क्षेत्र में पीने के पानी की वितरण परियोजना का कार्य पूरा करने का काम सौंपा गया। इस कार्य को करने के लिए जब उन्होंने नगर में पहुंचकर सिंधु नदी का सर्वेक्षण व परीक्षण किया तो पाया कि यह पानी गंदा और मिट्टी से भरा हुआ था, जो मनुष्यों के इस्तेमाल योग्य ही नहीं था। पानी को स्वच्छ करने के लिए उन्होने तकनीकी पत्रों, व्यावसायिक पत्रिकाओं और रसायन की किताबों का गहन अध्ययन किया। इस समस्या का समाधान निकालने के लिए कई रातें जागकर बिताई।विश्वेश्वरैया की मेहनत रंग लाई।इतने अध्ययनों के पश्चात वे प्रकृति की असीमित प्रक्रिया को समझ गए थे।
उन्होंने पानी को साफ करने के लिए रेत के इस्तेमाल का तरीका प्रयोग में लाया। इसके लिए उन्होंने परियोजना की रूपरेखा बनाई, डिज़ाइन को तैयार किया और इस पर होने वाले खर्च का अनुमान लगाया। अपने साथ कार्य करने वालों से विचार विमर्श करने और सब की सहमति प्राप्त की।विश्वेश्वरैया। पानी को शुद्ध करने की यह योजना थी कि नदी के तल में गहरा कुआं बनाया जाए, कुएं तक पहुंचने से पहले पानी रेत की अनगिनत परतों से गुजरेगा। जैसे ही पानी इस प्रक्रिया से गुजरेगा स्वच्छ हो जाएगा। रेत की असंख्य परतों से छनकर निकला हुआ पानी मनुष्य के इस्तेमाल योग्य होगा। इस कार्य के लिए सरकार ने विश्वेश्वरैया को “कैसर- ए- हिंद” की उपाधि से सम्मानित किया।

पानी की व्यवस्था करने में वैज्ञानिक तरीकों का अविष्कार करके विश्वेश्वरैया ने अपनी मौलिकता और प्रमाणिकता का परिचय दिया। जिसमें स्वचालित जलद्वार और सिंचाई की खंड पद्धति भी शामिल है। उन्होंने खडगवासला बांध पर जलद्वारों का प्रयोग बाढ़ के पानी को नियंत्रित करने के लिए किया।

नहरों और बांधों का निर्माण

सिंचाई में सहायता के लिए विश्वेश्वरैया ने नहरों और बांध का निर्माण किया। जिन परियोजनाओं की उन्होंने कल्पना की और निर्माण कराया उनसे गरीब किसानों को राहत मिली।

1909 में विश्वेश्वरैया को हैदराबाद की निजाम और मैसूर के महाराजा से अपने राज्य में विकास गतिविधियों को देखने के लिए प्रस्ताव मिले और 1909 में विश्वेश्वरैया अपने जन्म स्थान मैसूर में चीफ इंजीनियर बन गए। उन्होंने हैदराबाद को बार-बार आने वाली बाढ़ से बचाने के लिए योजनाएं बनाई। मैसूर के चीफ इंजीनियर के पद पर कार्य करते हुए उन्हें उन परियोजनाओं पर कार्य करने की पूर्ण स्वतंत्रता थी जिससे जनता के गरीब वर्ग को लाभ मिलता था। जब लोग विश्वेश्वरैया को धन्यवाद करते तो उन्हें खुशी होती। लोगों के चेहरे पर छाई खुशी ही उनका पुरस्कार था, जिसे उन्होंने सबसे ज्यादा संजो कर रखा।

मैसूर के दीवान

चीफ इंजीनियर बनने के 3 वर्ष बाद नवंबर 1912 में विश्वेश्वरैया को मैसूर के महाराजा ने मैसूर का दीवान बना दिया। दीवान का पद संभालने के बाद उन्होंने अपने रिश्तेदारों और घनिष्ठ मित्रों से स्पष्ट कह दिया कि वह इस पद को तभी स्वीकार करेंगे जब उनकी शर्तों को मान लिया जाएगा। विश्वेश्वरैया ने कहा कि कोई भी उनसे किसी भी प्रकार के पक्षपात की अपेक्षा नहीं करेगा, ना ही कोई सरकारी संरक्षण मांगेगा। दीवान के पद पर रहते हुए एम विश्वेश्वरैया ने प्रजातंत्र को बढ़ावा दिया।

त्यागपत्र

आरक्षण के मुद्दे पर महाराज और विश्वेश्वरैया में मतभेद हो गया। क्योंकि विश्वेश्वरैया आरक्षण के विरुद्ध थे। विश्वेश्वरैया का मानना था कि आरक्षण आलस्य व अकार्य कुशलता को जन्म देता है। जिससे सरकारी पदों की गुणवत्ता कम होगी। लेकिन जब उन्होंने देखा कि महाराज निम्न पिछड़े वर्ग के आरक्षण के लिए दृढ़ संकल्प है, तो सन 1919 में उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। नौकरी छोड़ने के पश्चात उन्होंने घर लौटने के लिए सरकारी कार का प्रयोग नहीं किया। अपने व्यक्तिगत कार्यों के लिए वह सरकारी वाहन का इस्तेमाल कभी नहीं करते थे। यहां तक की व्यक्तिगत पत्र लिखने के लिए भी वे अपने कागज व डाक सामग्री का इस्तेमाल करते थे।

विश्वेश्वरैया के असाधारण कार्य

एम विश्वेश्वरैया ने 1909 में मैसूर शहर में कृष्णराज सागर बांध बनाने की योजना बनाई और 1932 में यह बनकर तैयार हुआ। कृष्णराज सागर बांध भारत में बना सबसे बड़ा जलाशय था। जिसकी ऊंचाई 124 फुट थी। इसमें 48,000 मिलियन घन फुट पानी संचित किया जा सकता था। इस जल का उपयोग 150,000 एकड़ भूमि की सिंचाई और 60,000 किलोवाट्स ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए होना था।

लेखक के रूप में विश्वेश्वरैया की रचनाएं

58 वर्ष की उम्र में नौकरी छोड़ने के पश्चात कोई भी व्यक्ति लंबे व सार्थक कार्यकाल के पश्चात अवकाश का आनंद उठाता है। लेकिन विश्वेश्वरैया ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने “भारत का पुनर्निर्माण” (1920), “भारत के लिए नियोजित अर्थव्यवस्था” (1934) नामक पुस्तक लिखकर भारत के आर्थिक विकास का मार्गदर्शन किया।

भारत रत्न से सम्मानित

1955 में एम विश्वेश्वरैया को “भारत रत्न” प्रदान किया गया। “भारत रत्न” से सम्मानित किए जाने पर उन्होंने पंडित नेहरू को लिखा “अगर आप सोचते हैं कि इस उपाधि से विभूषित करने से मैं आपकी सरकार की प्रशंसा करूंगा तो आपको निराशा होगी। मैं सत्य की तह तक पहुंचने वाला व्यक्ति हूं।”

कर्नाटक के भागीरथ थे विश्वेश्वरैया

विश्वेश्वरैया को कर्नाटक का भागीरथ कहा जाता है।मोक्ष गुंडम विश्वेश्वरैया ने हीं दक्षिण भारत के मैसूर, कर्नाटक को एक विकसित एवं समृद्ध शाली क्षेत्र बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। आजादी से पूर्व कृष्णराज सागर बांध, भद्रावती आयरन एवं स्टील वर्क्स, मैसूर सैंडल तेल एवं शोप फैक्ट्री, मैसूर विश्वविद्यालय, बैंक आफ मैसूर, समेत कई महान उपलब्धियां विश्वेश्वरैया के अथक प्रयास से ही संभव हो पाईं।

निधन

एम विश्वेश्वरैया (M. Visvesvaraya) 102 वर्ष की आयु तक कार्य करते रहे। उनका कहना था “जंग लगने से बेहतर है काम करते रहना” 14 अप्रैल सन 1962 में उनका निधन हो गया। विश्वेश्वरैया ने महान व्यक्ति के रूप में जन्म नहीं लिया था और न हीं महानता उन्हें विरासत में मिली थी। वे महान बने, कठिन परिश्रम, ज्ञान को प्राप्त करके, अथक प्रयास परियोजनाओं व योजनाओं को कार्यान्वित करने के लिए ज्ञान का उपयोग करके। एम विश्वेश्वरैया बहुमूर्तिदर्शी थे। जितनी बार उन्हें देखो महानता का नवीन उदाहरण सामने आता है। उनकी महानता का कोई मुकाबला नहीं। उनकी गहन राष्ट्रीयता की भावना आज भी हमारा ध्यान उनकी ओर आकर्षित करती है।

क्यों मनाया जाता है अभियंता दिवस (Why is Engineers Day Celebrated) ?

भारत की स्वतंत्रता के पश्चात नए भारत के निर्माण और विकास में प्रतिभावान इंजीनियरों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है।इंजीनियरों ने अपनी कुशलता से गांव एवं शहरों के समग्र विकास के लिए सड़कों, पुलों, जलाशयों सहित अद्भुत संरचना निर्माण के कार्यों को गति प्रदान की है। देश के विकास में इंजीनियरों के योगदान के प्रति आभार प्रकट करने एवं धन्यवाद देने के उद्देश्य से अभियंता दिवस मनाया जाता है।

अभियंता दिवस का महत्व (Significance of Engineers Day)

अभियंता दिवस केवल उत्सव का दिन ही नहीं बल्कि इंजीनियरों द्वारा समाज के लिए किए गए उत्कृष्ट योगदान के लिए हमारी कृतज्ञता और सरहाना करने का भी समय है। इस दिन का महत्व इतना अधिक है कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी इस महत्वपूर्ण दिन पर इंजीनियरों को शुभकामनाएं देते हैं। और एम विश्वेश्वरैया को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। क्योंकि एक इंजीनियर आने वाले कल का निर्माता है, वह प्रगति का वास्तुकार है। इंजीनियर समस्याओं के समाधानकर्ता और नव प्रवर्तक हैं। ये असंभव को संभव बनाते हैं। आधुनिक युग के वास्तुकार हैं इंजीनियर। कल्पनाओं को वास्तविकता में बदलता है इंजीनियर।

थॉमस ट्रेडगोल्ड के अनुसार
” इंजीनियरिंग प्रकृति में शक्ति के महान स्रोतों को लोगों के उपयोग और सुविधा के लिए निर्देशित करने की कला है।”