July 27, 2024

अपना छिना हुआ गढ़ वापस पाने के लिए चुनाव मैदान में उतरे सपा प्रमुख

image 1 50

Kannauj, Lok Sabha Election 2024: इत्र नगरी कन्नौज में समाजवाद की खुशबू वापस लाने को खुद सपा प्रमुख अखिलेश यादव मैदान में उतर गए हैं, जहां उनकी टक्कर भाजपा के सुब्रत पाठक से है। सुब्रत पाठक भी भाजपा में कमल की सुगंध बनाए रखने के लिए जीतोड़ मेहनत कर रहे हैं। सुब्रत ने पिछले चुनाव में अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को हराया था। यह चुनाव सपा के लिए गढ़ छीनने और भाजपा के लिए बचाने की जंग है। बसपा ने इमरान बिन जफर को उतारा है।

परिसीमन के बाद 1967 में बनी कन्नौज लोकसभा सीट समाजवादी विचारधारा का गढ़ रही है। यहां से प्रख्यात समाजवादी नेता डॉ राम मनोहर लोहिया पहले सांसद चुने गए थे। अब तक कुल 16 चुनाव में से 10 समाजवादी नेताओं ने ही जीते हैं। 6 बार इस सीट पर मुलायम परिवार का दबदबा रहा। बसपा यहां कभी खाता भी नहीं खोल सकी जबकि भाजपा और कांग्रेस को यहां दो- दो बार जीत मिली।

कन्नौज लोकसभा सीट क्यों है अखिलेश यादव के लिए महत्वपूर्ण ?

कन्नौज लोकसभा सीट सपा का निर्विवादित गढ़ रहा है। 2019 से पहले के 6 चुनाव में सपा यहां से जीत दर्ज कर चुकी है। 1999 में पहली बार मुलायम सिंह यादव यहां से सांसद चुने गए थे। संभल सीट भी जीतने के बाद मुलायम सिंह यादव ने कन्नौज सीट छोड़ दी।

सन 2000 में उप चुनाव में मुलायम सिंह ने अखिलेश यादव को राजनीति में प्रवेश कराया। अखिलेश ने उपचुनाव में जीत दर्ज की। उसके बाद 2004 और 2009 के चुनाव में भी सपा की यह सीट बरकरार रही। 2012 में अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बन गए और कन्नौज लोकसभा सीट खाली होने पर यहां से उन्होंने अपनी पत्नी डिंपल यादव को प्रत्याशी बनाया। डिंपल यादव भी कन्नौज सीट से निर्विरोध चुनी गई। 2014 में भी डिंपल ने जीत दर्ज की लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के सुब्रत पाठक से डिंपल को हर का सामना करना पड़ा। 2019 की हार ने समाजवाद के बड़े गढ़ को ध्वस्त कर दिया था। इसलिए इस चुनाव में अखिलेश यादव खुद कन्नौज के मैदान में उतरे हैं।

कन्नौज से अखिलेश यादव ने पहले लालू यादव के दामाद और अपने भतीजे तेज प्रताप यादव को टिकट दिया था लेकिन कन्नौज के कार्यकर्ताओं के प्रबल आग्रह पर वे खुद चुनाव मैदान में उतर गए हैं। कन्नौज लोकसभा सीट दोनों दलों के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है। भाजपा की सुब्रत पाठक अक्सर अपने बड़ बोलेपन से चर्चा में रहते हैं लेकिन उनकी इस आदत से कन्नौज सीट भाजपा के हाथ से फिसल न जाए इसके लिए भाजपा ने भी तगड़ी घेरेबंदी की है।

सपा प्रमुख अखिलेश यादव हर हाल में अपना यह गढ़ वापस जीतने के प्रयास में हैं,वही कन्नौज सदर सीट से विधायक और राज्य मंत्री असीम अरुण समेत कई नेताओं को पार्टी ने कन्नौज जीतने की जिम्मेदारी दी है। जातीय समीकरण देखते हुए यहां नेताओं की ड्यूटी लगाई गई है।

कन्नौज विधानसभा की पांच सीटें हैं। कन्नौज सदर छिबरामऊ, तिर्वा, बिधूना, और रसूलाबाद। इन पांच में से चार विधानसभा सीटें भाजपा के पास हैं।

कन्नौज लोकसभा सीट पर 2014 और 2019 के चुनाव में कांटे की टक्कर हुई दोनों में हार जीत का अंतर 20हजार वोटों से कम रहा। 2014 में भाजपा के सुब्रत पाठक को सपा की डिंपल यादव ने हराया तो वहीं 2019 के चुनाव में सुब्रत ने डिंपल को हरा दिया था लेकिन दोनों के बीच मतों का अंतर बहुत कम रहा।

क्या है कन्नौज सीट की विशेषता ?

कन्नौज भारत के प्राचीन नगरों में से एक है। इसे पहले कन्या कुज्जा या महोधी नाम से जाना जाता था। बाद में यह कन्नौज के नाम से प्रसिद्ध हुआ। कन्नौज मूर्ति कला का बड़ा केंद्र रहा है।गंगा काली और ईशान नदियों के पानी से समृद्ध कन्नौज पांचवीं सदी में गुप्त साम्राज्य के प्रमुख नगरों में शामिल था। कन्नौज में छोटी बड़ी 3500 इत्र निर्माण की इकाइयां है। सुगंधित इत्र के लिए कन्नौज विख्यात है।

क्या है कन्नौज के पांच बड़े मुद्दे:

कन्नौज के पांच बड़े प्रमुख मुद्दे हैं-

  1. आलू आधारित उद्योग बढ़ाएं
  2. रेलवे का रैक पॉइंट बने
  3. सिंचाई के संसाधन बढ़ाए जाएं
  4. इत्र उद्योग को सुविधाएं मिले
  5. खेल प्रतिभाओं को बढ़ावा दें।

कौन हैं सुब्रत पाठक ?

भारतीय जनता युवा मोर्चा से राजनीति की शुरुआत करने वाले सुब्रत पाठक उस समय चर्चा में आए जब उन्होंने सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को हराकर जीत दर्ज की। कन्नौज के बड़े कारोबारी में उनकी गिनती होती है। भाजपा संगठन में प्रदेश महामंत्री हैं। इससे पहले वह भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे।