भारत का ‘जेम्स बॉन्ड कहे जाने वाले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार – अजीत डोभाल (Ajit Doval, National Security Advisor (NSA) of India )
About Ajit Doval “James Bond of India”
अजीत डोभाल (Ajit Doval) एक ऐसी शख्सियत है जिन्हें भारत का ‘जेम्स बॉन्ड’ कहा जाता है। अजीत डोभाल भारत के वर्तमान सुरक्षा सलाहकार हैं। भारत के शीर्ष खुफिया निदेशक एक असाधारण, सक्षम और शक्तिशाली पुलिस ऑफिसर तथा 21वीं सदी के चाणक्य कहे जाने वाले अजीत डोभाल की कहानी जेम्स बॉन्ड की रोमांचक फिल्म से कम नहीं है। पाकिस्तान आज भी उनके नाम से थर- थर कांपता है। अजीत डोभाल को वर्तमान में भारत का सबसे शक्तिशाली अधिकारी कहा जाता है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के तौर पर अजीत डोभाल को कैबिनेट रैंक में मिनिस्टर का दर्जा प्राप्त है।
कभी रिक्शा वाला, कभी मोची, कभी धर्म बदलकर दूसरे देश का नागरिक बनना, तो कभी दुश्मनों के साथ मिलकर उनसे उनकी सारी जानकारी निकालना यह अजीत डोभाल के हैरतअंगेज करनामे हैं।अपने 30 साल के गुप्त एजेंट की यात्रा में उन्होंने ऐसे- ऐसे खतरनाक करनामे किये जो जासूसी की दुनिया में शायद ही पहले किसी ने किया हो। अपनी इसी क्षमता और बुद्धिमत्ता के बल पर अजीत डोभाल देश के बड़े से बड़े दुश्मनों को घुटनों पर ले आए। आज अजीत डोभाल 78 वर्ष के हो चुके हैं लेकिन आज भी किसी भी इवेंट में वे फिट दिखाई देते हैं।आज भी भारतीय विदेश नीति और सुरक्षा से जुड़े हर छोटे- बड़े कदम उन्हीं की निगरानी में उठाए जाते हैं। आखिर अजीत डोभाल में ऐसा क्या है? उनके अंदर ऐसी कौन सी क्षमता है जो वह नामुमकिन को भी मुमकिन बना देते हैं? आईए जानते हैं अजीत डोभाल के जीवन और उनके जीवन से जुड़े रोचक तथ्यों के बारे में-
अजीत डोभाल का जन्म और शिक्षा
अजीत डोभाल(Ajit Doval)का जन्म 20 जनवरी 1945 को उत्तराखंड की पौड़ी गढ़वाल में एक फौजी परिवार में हुआ था। उनके पिता मेजर जी.एल.डोभाल इंडियन आर्मी में ऑफिसर थे। अजीत डोभाल की शुरुआती शिक्षा भी आर्मी स्कूल में हुई। अजीत डोभाल पढ़ने में शुरू से ही कुशाग्र बुद्धि थे। अजीत डोभाल ने कॉलेज की पढ़ाई अजमेर मिलिट्री स्कूल से की। उन्होंने यूनिवर्सिटी आफ आगरा से 22 वर्ष की उम्र में अर्थशास्त्र से एम.ए. किया। मास्टर्स खत्म करने के बाद उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा दी और पहले ही प्रयास में सफलता प्राप्त कर इंडियन पुलिस सर्विस को ज्वाइन किया।
भारतीय पुलिस सेवा में अजीत डोभाल की नियुक्ति
अजीत डोभाल (Ajit Doval) की पहली पोस्टिंग 1968 में केरला कैडर में आईपीएस के रूप में हुई। यह संयोग ही था कि उनकी पोस्टिंग के कुछ ही समय बाद केरला में एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई। 28 दिसंबर 1971 को केरला के थालासेरी गांव में हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच कुछ अफवाहों को लेकर सांप्रदायिक तनाव बढ़ने लगे। 1972 के पहले सप्ताह तक इस सांप्रदायिक तनाव ने हिंदू- मुस्लिम दंगे का रूप ले लिया पूरे इलाके में तनावपूर्ण स्थिति पैदा हो गई।
हिंसा लूटपाट और चोरी की घटनाएं बढ़ती जा रही थी। हालत काबू से बाहर होने लगे। तब देश के तत्कालीन गृह मंत्री के. करुणाकरण एक ऐसे पुलिस व्यक्तित्व की तलाश करने लगे जो इन दंगों को नियंत्रित कर सके। कुछ ही समय में एएसपी के पद पर तैनात एक नौजवान पुलिस ऑफिसर अजीत डोभाल करुणाकरण की नजरों में आ गए। अजीत डोभाल को सर्विस ज्वाइन किये अभी 3 वर्ष भी पूरे नहीं हुए थे। लेकिन इतने कम समय में ही अपने काम के कारण वे चर्चित हो गए थे। उनके वरिष्ठ अधिकारी भी यह जान चुके थे कि उनमें कुछ तो बहुत खास है।
तत्कालीन गृह मंत्री करुणाकरण ने उन दंगों को नियंत्रित करने के लिए अजीत डोभाल को चुना। अजीत डोभाल ने कुछ ही दिनों में दोनों समुदायों को समझा कर न सिर्फ इन दंगों को शांत किया बल्कि उन लोगों पर अपना ऐसा जादू चलाया कि वे लोग एक दूसरे के लुटे हुए सामान वापस करने के लिए भी तैयार हो गए। जो काम पूरे राज्य की पुलिस नहीं कर पा रही थी, उसे अजीत डोभाल ने अकेले ही कुछ ही क्षणों में कर दिखाया। उनके इस पराक्रम की चर्च केरला से लेकर दिल्ली तक होने लगी।
अजीत डोभाल की IB में नियुक्ति
अपने हुनर की वजह से अजीत डोभाल दिल्ली के इंटेलिजेंस अधिकारियों की नजर में आ गए। इस समय उन्हें सेंट्रल सर्विस के लिए केरला से दिल्ली बुला लिया गया। दिल्ली में उन्हें सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी(Central Intelligence Agency) इंटेलिजेंस ब्यूरो( IB) में नियुक्त किया गया। इसी के साथ अजीत डोभाल ने कम उम्र में ही जासूसी की दुनिया में कदम रखा और यही से एक नौजवान आईपीएस अधिकारी का भारत का खुफिया निदेशक बनने का सफर शुरू हुआ।
मिजोरम में अलगाववादी आंदोलन को खत्म करने में हुए सफल
अजीत डोभाल 7 साल की पुलिस सर्विस के बाद IB में नियुक्त हुए। शुरुआत में उन्हें डेस्क वर्क सौपा गया।1970 में भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्र में विद्रोह पनप रहा था। वहां के राज्य एक स्वतंत्र राष्ट्र की मांग कर रहे थे। मिजोरम राज्य में अलगाववादी लाल डेंगा के नेतृत्व में अस्थिरता अपने चरण पर थी। अलगाववादी मिजोरम में अपनी अलग सरकार चला रहे थे। ‘मिजो नेशनल फ्रंट'(Mizo National Front) भारत से मिजोरम को अलग करने की मांग कर रहा था।
दिल्ली के केंद्र सरकार के लिए यह एक नाजुक और चुनौती पूर्ण स्थिति थी। ऐसे में आईबी ने यह तय किया कि उनका कोई अधिकारी मिजोरम जाकर स्थिति को संभालेगा लेकिन इस काम के लिए किसको चुना जाए यह बड़ा सवाल था। इस सवाल का एक ही जवाब था और वह था, अजीत डोभाल। उस समय अजीत डोभाल अपनी शादी के कुछ ही महीनो बाद काम पर लौटे थे लेकिन जब उन्हें मिजोरम की स्थिति पता चली तो उन्होंने खुद वहां जाने का फैसला किया और मिजोरम में अजीत डोभाल ने ऐसी रणनीति बनाई की एक-एक करके सभी दुश्मन ढेर हो गए। लाल डेंगा की ताकत उसके सात कमांडरों में थी।
इन्हीं सात कमांडरों के बल पर लाल डेंगा आतंक फैलाता था लेकिन यह सात कमांडर लाल डेंगा की ताकत के साथ ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी थे।अजीत डोभाल ने लाल डेंगा की इसी कमजोरी पर वार किया। उन्होंने 6 कमांडरों को लालच देकर अपनी ओर मिला लिया। लाल डेंगा को जब अपनी असली ताकत सात कमांडरों के हाथ से निकलने की बात पता चली तो वह भारत सरकार के आगे घुटने टेकने को विवश हो गया। कुछ समय बाद ही भारत सरकार और लाल डेंगा के बीच शांति वार्ता हुई। इसी के साथ मिजोरम का अलगाववादी आंदोलन समाप्त हुआ और वहां चुनाव हुए। अजीत डोभाल का यह मिशन भी सफल रहा।
कम उम्र में ‘राष्ट्रपति पुलिस पदक’ से सम्मानित होने वाले पहले अधिकारी
मिजोरम का भारत के साथ सफलतापूर्वक विलय में अजीत डोभाल के महत्वपूर्ण योगदान के कारण उनको ‘राष्ट्रपति पुलिस पदक’ (President Police Medal) से नवाजा गया। अजीत डोभाल ऐसे पहले अधिकारी थे जिनको इतनी कम उम्र की सर्विस में ही इस पदक से सम्मानित किया गया।
सिक्किम के भारत में विलय में भी निभाई अहम भूमिका
मिजोरम जैसी स्थिति ही सिक्किम में भी बनी।उस समय सिक्किम भारतीय संघ का हिस्सा नहीं बना था। सिक्किम के राजा भारत के साथ विलय नहीं करना चाहते थे, लेकिन अजीत डोभाल ने अपनी चाणक्य नीति से एक बार फिर से सिक्किम को भी भारतीय संघ(Indian Union)में सफलता पूर्वक विलय कर दिखाया।
ऑपरेशन ब्लू स्टार में अजीत डोभाल की भूमिका
1970 के अंत तक उत्तर पूर्व की स्थिति स्थिर हो चुकी थी लेकिन अगले दशक में एक और समस्या खड़ी हुई। पंजाब में नया तनाव पैदा होने लगा। पंजाब में खालिस्तान उग्रवादी अलग देश खालीस्तान की मांग करने लगे। उग्रवादी संगठन अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को अपना सुरक्षित ठिकाना बनाकर पूरे शहर में आतंक फैलाने लगे। स्थिति काबू से बाहर होने लगी।तब इस समस्या से निजात पाने के लिए 1984 के आते-आते ऑपरेशन ब्लू स्टार (Operation Blue Star)चलाया गया। भारतीय सेना के जवानों ने स्वर्ण मंदिर को उग्रवादियों से मुक्त कराने के लिए ऑपरेशन को लांच किया और आतंकवादियों को वहां से खदेड़ दिया।
ऑपरेशन ब्लैक थंडर (Operation Black Thunder) में अजीत डोभाल बने रिक्शा चालक
ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद भी स्वर्ण मंदिर उग्रवादियों से पूर्णतया मुक्त नहीं हुआ था। इस समस्या को पूरी तरह सुलझाने के लिए 1988 में ऑपरेशन ब्लैक थंडर (Operation Black Thunder) लॉन्च किया गया। ऑपरेशन ब्लैक थंडर में अजीत डोभाल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस ऑपरेशन को सफल बनाने के लिए उग्रवादियों की जानकारी निकालने के लिए अजीत डोभाल ने रिक्शा चालक का वेश बनाया।
रिक्शा चालक के रूप में अजीत डोभाल ने उग्रवादियों पर अपना ऐसा जादू चलाया कि उग्रवादियों को पूरी तरह विश्वास हो गया कि यह रिक्शा चालक एक पाकिस्तानी इंटेलिजेंस ऑफीसर है, जो उनकी मदद के लिए यहां आया है। उग्रवादियों को अपने विश्वास में लेकर अजीत डोभाल ने स्वर्ण मंदिर में उग्रवादियों के साथ रहकर आतंकी गतिविधियों के बारे में जानकारी इकट्ठा की और इस जानकारी को भारतीय सेना को सौंप दिया। इस जानकारी के आधार पर ‘ऑपरेशन ब्लैक थंडर’ लॉन्च हुआ और अजीत डोभाल ने इस ऑपरेशन को सफल बनाया।
पाकिस्तान के न्यूक्लियर प्रोग्राम का पता लगाने के लिए भिखारी का वेश बनाया
1972 में भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था। यह परीक्षण सफल होते ही पाकिस्तान तिलमिला गया। इसके तुरंत बाद पाकिस्तान के परमाणु वैज्ञानिक डॉक्टर ए. क्यू. खान ने पाकिस्तान परमाणु प्रोग्राम को विकसित करने के लिए चीन और फ्रांस से मदद मांगी लेकिन फ्रांस को जैसे ही पाकिस्तान के भारत विरोधी महत्वाकांक्षा की भनक लगी, फ्रांस तुरंत इस कार्यक्रम से पीछे हट गया लेकिन चीन ने पाकिस्तान का साथ नहीं छोड़ा।
नॉर्थ कोरिया भी पाकिस्तान के न्यूक्लियर प्रोग्राम में उसकी मदद कर रहा था। जैसे ही पाकिस्तान की इन गतिविधियों की सूचना भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को लगी, उन्होंने पाकिस्तान की इन सभी गतिविधियों को ट्रेस करने के लिए अपना खुफिया नेटवर्क पाकिस्तान और चीन में बिछा दिया। अजीत डोभाल को पाकिस्तान भेजा गया।
अजीत डोभाल एक भिखारी का वेश बनाकर पाकिस्तान के कबूतर शहर पहुंचे। अजीत डोभाल को शक था कि यहां खान रिसर्च सेंटर नाम के इंस्टिट्यूट के अंदर पाकिस्तान का न्यूक्लियर प्रोग्राम चल रहा है। अजीत डोभाल खान रिसर्च सेंटर के बाहर भिखारी के वेश में बैठकर वहां आने जाने वाले वैज्ञानिकों को ट्रैक करने लगे। लेकिन इससे उनको वहां चल रहे न्यूक्लियर प्रोग्राम का कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिला।
इसके बाद अजीत डोभाल उस नाई की दुकान पर गए जहां वे वैज्ञानिक बाल कटवाते थे। उस नाई की दुकान से अजीत डोभाल ने उन वैज्ञानिकों के बालों के सैंपल को इकट्ठा करके भारत में परीक्षण के लिए भेजा और परीक्षण में पता चला कि यह हेयर सैंपल न्यूक्लियर रेडिएशन में एक्सपोज्ड हैं।
उन्हें यकीन हो गया कि पाकिस्तान का न्यूक्लियर प्रोग्राम खान रिसर्च सेंटर के अंदर ही चल रहा है। अजीत डोभाल ने बड़ी चालाकी से पाकिस्तान के न्यूक्लियर प्रोग्राम की सभी विस्तृत जानकारी निकाली और भारत भेजा। उस समय भारत में इंदिरा गांधी की जगह पर मोरारजी देसाई भारत के प्रधानमंत्री बन चुके थे।
अजीत डोभाल ने मोरारजी देसाई को यह रिपोर्ट देकर पाकिस्तान के न्यूक्लियर प्रोग्राम को नष्ट करने के अलग-अलग सुझाव रखें लेकिन कुछ राजनीतिक कारणों की वजह से उनको हर बार अस्वीकार कर दिया गया। भारत ने पाकिस्तान के न्यूक्लियर प्रोग्राम पर प्रहार तो नहीं किया लेकिन इतने गोपनीय कार्यक्रम की छोटी से छोटी जानकारी भारत तक पहुंचाने में अजीत डोभाल की भूमिका महत्वपूर्ण रही, और इसके बाद पाकिस्तान भी भारत की खुफिया तंत्र का लोहा मान गया।
“कीर्ति चक्र’ से सम्मानित पहले पुलिस अधिकारी
अजीत डोभाल को इन कार्यों के परिणाम स्वरुप 1988 में सर्वोच्च शौर्य पुरस्कार(Highest Gallantry Award)’कीर्ति चक्र’ से सम्मानित किया गया। अजीत डोभाल ऐसे पहले पुलिस अफसर थे जिन्हें यह सैन्य सम्मान दिया गया था।
1990 के दौरान कश्मीर आतंकवादियों के आतंक से बेहाल था। कश्मीर में बढ़ रहे आतंकवाद को रोकने के लिए भी अजीत डोभाल ने अपनी वाकपटुता का इस्तेमाल किया। अजीत डोभाल ने यहां आते ही पाकिस्तान द्वारा फंडेड एक कश्मीरी आतंकी कूका पारे के दिमाग को ऐसा प्रभावित किया कि जो कूका पारे पाकिस्तान का एजेंट था वह अजीत डोभाल से मिलने के कुछ ही समय बाद पाकिस्तान के खिलाफ भारत की मदद करने लगा। कूका पारे को भी अजीत डोभाल ने अपनी ओर मिला लिया। 1996 में जम्मू कश्मीर में विधानसभा के चुनाव में कूका पारे विधायक बन गया।
IC- 814 को अपहरण कर्ताओं के चंगुल से छुड़ाने में निभाई महत्त्वपूर्ण भूमिका
जैसा कि हम सब जानते हैं IC- 814 के नेपाल के काठमांडू में अपहरण के पीछे आईएसआई का हाथ था। आईएसआई चाहता था कि भारत अपने नागरिकों की जान बचाने के लिए आईएसआई के 100 खूंखार आतंकवादियों को छोड़ दें और साथ ही 2 बिलियन डॉलर की भी मांग रखी। लेकिन अजीज डोभाल को यह बात नागवार गुजरी।अजीत डोभाल पर दोनों तरफ से दबाव पड़ रहा था।
अजीत डोभाल ने आतंकवादियों के मन में अपनी बातों के चक्रव्यूह से ऐसा डर बिठाया की बातचीत के बाद 100 में से तीन आतंकवादियों को छोड़ा गया और एक यात्री के अलावा उस विमान के सभी यात्री सही सलामत वापस भारत आ सके। अजीत डोभाल ने अपनी हिम्मत और बौद्धिक क्षमता के बल पर अपहरणकर्ताओं के नियमों और शर्तों को बहुत सीमित कर दिया और इसी के साथ उनका यह ऑपरेशन भी सफल रहा।
सूत्रों के अनुसार 1971 से 1999 तक इंडियन एयरलाइंस की 15 हाईजैकिंग में से प्रत्येक हाईजैकिंग के टर्मिनेशन में अजीत डोभाल का एक महत्वपूर्ण योगदान रहा। लेकिन अजीत डोभाल का यह सफर यहीं समाप्त नहीं हुआ। अपने रिटायरमेंट के बाद भी अजीत डोभाल देश की सुरक्षा संबंधित मामलों से जुड़े रहे।
सेवानिवृत्ति के बाद भी राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों से जुड़े रहे
7 साल पुलिस फोर्स और 30 साल इंटेलिजेंस ब्यूरो में काम करने के बाद जनवरी 2005 में अजीत डोभाल आईबी के पद से रिटायर हो गए। लेकिन इसके बाद भी वे देश की राजनीतिक अकादमिक और विशेकर राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में शामिल रहे। इस दौरान उन्होंने कई सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं और सिक्योरिटी थिंक टैंक में भारत के सुरक्षा चुनौतियों और विदेश नीति लक्ष्यों पर लेक्चर दिया। कई न्यूज़पेपर में भारत की सुरक्षा से संबंधित आर्टिकल भी पब्लिश किया। दिसंबर 2009 में अजीत डोभाल ने एक लीडिंग पब्लिक पॉलिसी थिंक टैंक ‘विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन’ की स्थापना की और इस प्रकार अजीत डोभाल ने अपने रिटायरमेंट के बाद भी दुनिया के सामने खुलकर भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा लक्ष्यों को प्रस्तुत किया।
भारत के पांचवें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार
वर्ष 2014 में जब केंद्र में भाजपा की सरकार बनी तब अजीत डोभाल की जिंदगी में एक नया मोड़ आया। 30 मई 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनको देश का पांचवा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार(NSA )नियुक्त किया। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनते ही उनके सामने ईरान से एक बड़ी चुनौती आ खड़ी हुई।
उस समय इराक में आइसिस (ISIS)का आतंक छाया हुआ था। जून 2015 में आइसिस (ISIS)ने भारत की 46 नसों को तिरकित में बंदी बना दिया। एनएसए बनने के 2 महीने बाद अजीत डोभाल खुफिया तरीके से इराक पहुंचे। वहां उनकी सरकार के साथ सहयोग किया और कुछ ही दिनों के अंदर सभी भारतीय नर्सों को आईसिस(ISIS)के चंगुल से छुड़ाकर भारत ले आए।
सर्जिकल स्ट्राइक के मास्टरमाइंड
इसके बाद पाकिस्तान ने भारत पर उड़ी और पुलवामा में दो खूंखार आतंकी हमला किया। इन दोनों आतंकी हमले के जवाब में भारत की ओर से जो सफल सर्जिकल स्ट्राइक हुई उन दोनों के मास्टरमाइंड भी अजीत डोभाल ही थे। पुलवामा की सर्जिकल स्ट्राइक में विंग कमांडर अभिनंदन का प्लेन जब पाकिस्तान में जा गिरा और पाकिस्तान ने उन्हें अपने कब्जे में ले लिया तब पाकिस्तान विंग कमांडर को इतनी आसानी से छोड़ने वाला नहीं था लेकिन अजीत डोभाल के प्रयासों से अमेरिका द्वारा दबाव बनाने पर पाकिस्तान ने विंग कमांडर को बाइज्ज़त भारत को सौंप दिया। हालांकि पाकिस्तान इसे सद्भावना का नाम देता है, लेकिन यह अजीत डोभाल के खौफ का असर था।
अजीत डोभाल की कहानियों का कोई अंत नहीं है। उनकी जिंदगी रहस्य और रोमांच से भरी हुई है तभी तो उन्हें भारत का जेम्स बॉन्ड (James Bond) कहा जाता है।अपने 30 वर्षों के लंबे जासूसी करियर में उन्होंने खूंखार परिस्थितियों का अकेले डटकर सामना किया और भारत की सुरक्षा को सर्वोपरि रखा। उनके इस करियर में कई बार उनकी जान पर भी बन आई लेकिन उन्होंने कभी पीछे कदम नहीं हटाया।बिना डरे वे अपने लक्ष्य पर सदैव अटल रहे।
अजीत डोभाल इतने दूरदर्शी हैं कि अपने दुश्मनों से कई गुना आगे की सोचते हैं। जहां सब की सोच समाप्त होती है, वहां अजीत डोभाल की सोच शुरू होती है। अपनी तीव्र बौद्धिक क्षमता के बल पर अपने शत्रु के दिमाग को पढ़कर उसी के आधार पर उसकी मनोस्थिति से खेलना अजीत डोभाल की सबसे बड़ी खासियत है, जिसके बल पर उन्होंने बड़े से बड़े प्लान को नाकामयाब कर दिया। अपनी मातृभूमि की रक्षा को लेकर उनका जुनून और उनकी हिम्मत उनको सफलता दिलाती गई। आज भी अजीत डोभाल राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में देश को अपनी सेवा दे रहे हैं।