कारगिल विजय दिवस रजत जयंती के अवसर पर जानिए कारगिल के इतिहास के बारे में
कारगिल विजय दिवस भारत में प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है क्योंकि यह पाकिस्तान के खिलाफ कारगिल युद्ध में भारतीय सशस्त्र बलों की जीत का प्रतीक है। इस पवित्र दिन पर 1999 के संघर्ष के दौरान सैनिकों के साहसी प्रयासों और बलिदानों को सम्मानित और याद किया जाता है।
कारगिल के इतिहास के बारे में (About Kargil Vijay Diwas In Hindi):
कारगिल विजय दिवस रजत जयंती, Kargil Vijay Diwas: 26 जुलाई 2024 को भारत कारगिल विजय दिवस की रजत जयंती महोत्सव मना रहा है। भारतीय वायु सेना कारगिल विजय दिवस रजत जयंती के उपलक्ष्य में 12 जुलाई से 26 जुलाई तक वायु सेना स्टेशन सरसावा में कारगिल विजय दिवस रजत जयंती मना रही है।
वहीं आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कारगिल विजय दिवस के अवसर पर कारगिल युद्ध स्मारक पहुंचे, जहां उन्होंने कर्तव्य निभाते हुए सर्वोच्च बलिदान देने वाले बहादुरों को श्रद्धांजलि दी इसके बाद पीएम मोदी ने शिंकुन ला सुरंग परियोजना का पहला विस्फोट किया।
कारगिल विजय दिवस भारत में प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है क्योंकि यह पाकिस्तान के खिलाफ कारगिल युद्ध में भारतीय सशस्त्र बलों की जीत का प्रतीक है। इस पवित्र दिन पर 1999 के संघर्ष के दौरान सैनिकों के साहसी प्रयासों और बलिदानों को सम्मानित और याद किया जाता है।
कारगिल विजय दिवस भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा प्रदर्शित वीरता और पराक्रम की मार्मिक याद दिलाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि वीरों की धरती कारगिल की स्थापना कब हुई और कैसे इसका नाम कारगिल पड़ा आईए जानते हैं कारगिल के इतिहास के बारे में –
वीरों की भूमि कारगिल लद्दाख में स्थित है। 26 जुलाई 1999 को देश के जवानों ने इस इलाके को अपना बलिदान देकर दुश्मनों से मुक्त कराया था। कारगिल न केवल सामरिक बल्कि पर्यटन की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है।
कारगिल शब्द का अर्थ
कारगिल शब्द दो शब्दों खार और आरकिल से मिलकर बना है। खार का अर्थ है किला और आरकिल शब्द का अर्थ है केंद्र। इस प्रकार कारगिल किलों से घिरा हुआ बीच का स्थान है। क्योंकि यह जगह आज के जम्मू कश्मीर राज्य में कई रजवाड़ों या राज्यों के बीच स्थित रही है।
इतिहासकार परवेज दीवान की एक किताब ‘कारगिल ब्लंडर’ में इस बात का जिक्र है की सबसे पहले कारगिल नामक व्यक्ति ने पोयेन और शिलिकचाय के इलाकों में फैले जंगलों को रहने के लिए साफ किया था। समय बीतने के साथ ही इस जगह का नाम कारगिल रख दिया गया।
गशो थाथा खान का आगमन ?
थाथा खान के शाही परिवार के वंशज ने आठवीं शताब्दी के शुरुआत में कारगिल पर अधिकार कर लिया। प्रारंभ में थाथा खान के राजवंश ने कारगिल के सोद क्षेत्र पर शासन किया इसके बाद वे शकर चिकटन में स्थाई रूप से बस गए।
कब हुआ इस्लाम का आगमन ?
कारगिल में इस्लाम का प्रवेश 15वीं सदी में माना जाता है सबसे पहले ख्वाजा नूर बख्श ने कारगिल का दौरा किया और इस्लामी उपदेश दिए। ख्वाजा नूर बख्श के बाद मध्य एशिया के सिया स्कूल के विद्वान मीर शम्स- उद- दीन इराकी ने इस्लाम का प्रचार करने के लिए अपनी मिशनरीज के साथ बाल्टिस्तान और कारगिल का दौरा किया। बाल्टिस्तान के प्रमुख ने सबसे पहले इस्लाम को अपनाया और इसके बाद कारगिल प्रमुखों ने भी इस्लाम को अपना लिया। इस प्रकार कारगिल में बौद्ध धर्म का प्रचार नहीं हो पाया और यह सापी,फोकर, मुलबैक, बाखा बोध- खरबू क्षेत्रों, दारचिक गरकोन और जास्कर जैसे स्थानों तक सीमित रह गया।
कारगिल का प्राचीन नाम
प्राचीन काल में तिब्बती विद्वानों द्वारा कारगिल के अधिकांश भागों को पुरीक नाम दिया गया था क्योंकि यहां रहने वाले लोगों में तिब्बतियों की विशेषताएं थी। यहां इस्लाम धर्म के अलावा बौद्ध धर्म के अनुयाई भी मौजूद हैं। द्रास में दर्द जाती के लोग रहते हैं और जास्कर में लद्दाखी तिब्बती वंश है।
कारगिल बहु जातीय, बहुभाषीय और बहु संस्कृतियों का स्थल है। यहां शिना,बल्टी, पुरीग और लद्दाख की भाषाएं बोली जाती हैं। इस क्षेत्र में उर्दू भाषा आम है।
पूर्ववर्ती लेह जिले से अलग कर कब बना कारगिल जिला ?
1979 में कारगिल लद्दाख क्षेत्र में अलग जिला बनाया गया। जुलाई 2003 में लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद कारगिल को जिले में कमिशन बनाया गया।
कारगिल को क्यों कहा जाता है आगाओ की भूमि ?
कारगिल की आबादी 1.25 लाख है। कारगिल का 14.086 वर्ग क्षेत्रफल है। कारगिल श्रीनगर से लेह की ओर 205 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कारगिल में ज्यादातर शिया मुसलमान रहते हैं और आगा धार्मिक प्रमुख और उपदेशक हैं। इसलिए कारगिल को आगाओं की भूमि भी कहा जाता है।