पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश बनाने वाले वीर योद्धा: 1971,भारत पाकिस्तान युद्ध: विजय दिवस(Vijay Diwas)
Brave warriors who converted East Pakistan into Bangladesh
विजय दिवस(Vijay Diwas) प्रत्येक वर्ष 16 दिसंबर को 1971 के युद्ध में भारत की पाकिस्तान पर विजय के उपलक्ष में मनाया जाता है। भारत और पाकिस्तान के बीच 3 दिसंबर को शुरू हुआ युद्ध 16 दिसंबर को आधिकारिक रूप से समाप्त हुआ। 3 दिसंबर को पाकिस्तान ने 11 भारतीय हवाई क्षेत्रों पर हमला कर दिया था, जिसके जवाब में भारत ने पाकिस्तान के पूर्वी और पश्चिम क्षेत्र पर हमला कर दिया।
इसके बाद भारत सरकार ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों को बचाने के लिए भारतीय सेना को पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध का आदेश दे दिया। पाकिस्तान के साथ इस युद्ध में भारत के 1400 से अधिक सैनिक शहीद हो गए।
अप्रत्यक्ष रूप से इस युद्ध में अमेरिका और सोवियत संघ दोनों महाशक्तियां शामिल हुई थी। यह सब देखते हुए 4 दिसंबर को भारतीय सेना ने ढाका में पाकिस्तान के गवर्नर के घर पर हमला कर दिया। उस समय पाकिस्तान के सभी बड़े अधिकारी मीटिंग करने के लिए इकट्ठा हुए थे। इस हमले से पाकिस्तान हिल गया और जनरल नियाजी ने युद्ध विराम का प्रस्ताव भेज दिया। परिणाम स्वरुप 16 दिसंबर 1971 को दोपहर के करीब ढाई बजे समर्पण की प्रक्रिया शुरू हुई और लगभग 93,000 पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण किया था
16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश का एक नए राष्ट्र के रूप में उदय हुआ और पूर्वी पाकिस्तान, पाकिस्तान से आजाद हो गया। यह युद्ध भारत के लिए ऐतिहासिक युद्ध माना जाता है। इस युद्ध में 3,900 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे और लगभग 9,851 घायल हुए थे।
1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के कई नायक रहे। जल, थल और वायु सेना के बेहतरीन तालमेल का परिणाम था कि भारत ने अपने सैन्य इतिहास की सबसे बड़ी जीत हासिल की। 3 दिसंबर 1971 को शुरू हुए युद्ध में भारत के जांबाज सिपाहियों ने पाकिस्तान की ऐसी हालत कर दी थी की 16 दिसंबर को पाकिस्तान के पास आत्मसमर्पण के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा था। आईए जानते हैं 52 वर्ष पूर्व भारत को ऐतिहासिक जीत दिलाने वाले महानायकों के बारे में जिनके अविस्मरणीय योगदान के कारण यह ऐतिहासिक जीत मिली।
फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ (Field Marshal Sam Manekshaw)
तत्कालीन भारतीय सेना प्रमुख सैम मानेकशॉ ने भारत को मुक्ति संग्राम में जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इंदिरा गांधी चाहती थी कि अप्रैल 1971 में सेमैं पूर्वी पाकिस्तान में चली जाए लेकिन मानेक शॉ ने कहा कि सेना युद्ध के लिए अभी तैयार नहीं है। इसके लिए कुछ महीनो का समय चाहिए।
मानेक शॉ के इस अनुरोध को इंदिरा गांधी ने स्वीकार कर लिया। इस महीने में सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में रॉ को प्रशिक्षित करने और मुक्ति वाहिनी को सुसज्जित करने में मदद करने जैसा अभियान शुरू कर दिया। बांग्लादेशी सैनिकों की लगभग तीन ब्रिगेड को कई हजार गुरिल्लाओं के साथ प्रशिक्षित किया गया था।
मानेक शॉ के सक्षम और कुशल नेतृत्व के लिए उनको पद्म विभूषण, पद्म भूषण- भारत के दूसरे और तीसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया। मानेक शॉ स्वतंत्र भारत के पहले सेना अधिकारी थे जिन्हें जनवरी 1975 में फील्ड मार्शल के पद से सम्मानित किया गया।
आर एन काओ (R. N. Kao)
रामेश्वर नाथ काओ 1971 में भारत की बाहरी खुफिया एजेंसी “रिसर्च एंड एनालिसिस विंग”(RAW) के प्रमुख थे। 1971 के युद्ध में उनकी भूमिका के लिए ‘ बांग्लादेश के वास्तुकार’ के रूप में जाना जाता है। हालांकि 1971 के युद्ध का श्रेय सेना,वायु सेना और नौसेना को जाता है, लेकिन काओ के नेतृत्व में ही रॉ ने मुक्ति वाहिनी, बांग्लादेश सेना को पश्चिम पाकिस्तान पर जीत हासिल करने में मदद की थी। रॉ ने एक लाख से अधिक पूर्वी पाकिस्तानियों को प्रशिक्षित किया जिन्होंने भारतीय सेना की सहायता से देश को आजादी दिलाई।
फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों (Flying Officer Nirmaljit Singh Sekho)
निर्मलजीत सिंह सेखों का जन्म लुधियाना में हुआ था।। वे कश्मीर घाटी की हवाई सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाले श्रीनगर एयर बेस पर तैनात थे। निर्मलजीत सिंह सेखों और उनके साथी पायलट ने पाकिस्तान एयरक्रॉफ्ट के बेड़े का डटकर सामना किया। पाकिस्तान ने जब 14 दिसंबर 1971 को श्रीनगर एयर फील्ड को निशाना बनाया तो सेखों ने दुश्मन के एक एयरक्राफ्ट को निशाना बनाया और दूसरे को आग के हवाले कर दिया।
चार पाकिस्तानी विमान से सेखों का Ghat विमान गिरा होने के बावजूद इस जवान ऑफिसर ने चारों को उलझाए रखा। इसी समय उनका जेट विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और वह वीरगति को प्राप्त हुए।
निर्मलजीत सिंह सेखों को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। सेखों एयरफोर्स के इकलौते अधिकारी हैं जिन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
लांस नायक अल्बर्ट एक्का (Lance Naik Albert Ekka)
झारखंड के गुमला के एक जनजाति से आने वाले एक्का की तैनाती पूर्वी मोर्चे पर गंगा सागर में थी। एक्का गजब के शिकारी थे। उन्होंने 1971 के युद्ध में दुश्मनों का ऐसा शिकार किया कि रंगरूटों में आज भी उनकी चर्चा होती है। गंगासागर में भारतीय सैनिकों को 3 दिसंबर को भारी शेलिंग का सामना करना पड़ा। एक्का ने अपनी जान की परवाह किए बिना बंकर पर हमला कर दो को ढेर कर दिया और एक लाइट मशीन गन का मुंह बंद कर दिया।
शरीर पर कई जख्म होने के बावजूद एक्का बंकर खाली करने में लग रहे और जब एक इमारत से एक मीडियम मशीन गान ने आग उगलना शुरू किया तो एक्का ने उसे पर ग्रेनेड फेंक दिया। घायल अवस्था में एक्का ने दीवार पर चढ़कर फायरिंग कर रहे पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया और स्वयं वीर गति को प्राप्त हो गए।
अल्बर्ट एक्का को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
मेजर जनरल इयान कार्डोजो (Major General Ian Cardozo)
मेजर जनरल इयान कार्डोजो 1971 के युद्ध के समय 4/5 गोरखा राइफल्स में एक युवा मेजर थे।कार्डोजो को उनके गोरखा लोगों द्वारा कॉर्ट्स (कारतूस) साहब कहा जाता था क्योंकि उनके नाम के उच्चारण करने में कठिनाई होती थी। कार्डोजो ने भारतीय सेना के पहले हेलीबॉर्न ऑपरेशन में भाग लिया।
युद्ध के आखिरी समय में कार्डोजो का एक पैर खदान पर रखने की वजह से घायल हो गया, लेकिन डॉक्टरों की अनुपस्थिति और मॉर्फिन की अनुपलब्धता के कारण उनके पैर की शल्य चिकित्सा नहीं हो सकी। शरीर में गैंग्रीन के खतरे को देखते हुए कार्डोजो ने अपनी ही एक घुमावदार चाकू (कुकरी) के इस्तेमाल से अपना पैर काट लिया। बाद में एक पाकिस्तानी सैनिक डॉक्टर, जो भारतीय सैनिकों द्वारा पकड़ा गया था, ने उनके पैर का ऑपरेशन किया।
मेजर जनरल इयान कार्डोजो भारतीय सेना के पहले युद्ध विकलांग अधिकारी बने, जिन्होंने एक बटालियन और एक ब्रिगेड की कमान संभाली।
लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल (Second Lieutenant Arun Khetarpal )
अरुण खेत्रपाल का जन्म 14 अक्टूबर 1950 को पुणे के महाराष्ट्र में हुआ था। उनके पिता लेफ्टिनेंट कर्नल एम एल खेत्रपाल भारतीय सेना में कोर ऑफ इंजीनियर अधिकारी थे। अरुण खेत्रपाल 1971 के भारत- पाकिस्तान युद्ध के महानायकों में एक थे। भारत- पाकिस्तान युद्ध में अद्भुत पराक्रम दिखाते हुए अरुण खेत्रपाल वीरगति को प्राप्त हुए थे। खेत्रपाल की स्क्वाड्रन17 पुणे हॉर्स 16 दिसंबर को शंकरगढ़ में थी। उसी दिन भीषण युद्ध हुआ। अरुण दुश्मन के टैंक को बर्बाद करते जा रहे थे। उनका टैंक कमांडर शहीद हो गया मगर खेत्रपाल का रौद्र रूप काम नहीं हुआ।
दुश्मन के पीछे हटते टैंकों का खेत्रपाल ने पीछा किया और टैंक बर्बाद कर दिया। दुश्मन ने जब दूसरा हमला किया तो भारत ने तीन टैंकों से उन्हें रोके रखा जिसमें से एक टैंक पर खेत्रपाल सवार थे। इस जंग में बर्बाद हुए 10 टैंको में से चार खेत्रपाल ने बर्बाद किए थे, लेकिन इसी दौरान खेत्रपाल का टैंक निशान बन गया और वह जख्मी हो गए।
घायल अवस्था में भी वे दुश्मन से लड़ते रहे और दुश्मन का एक और टैंक तबाह कर दिया। लेकिन अगले हमले में जब वे वीरगति को प्राप्त हो गए तब तक दुश्मन की कमर टूट चुकी थी और अंततः 16 दिसंबर को भारत को ऐतिहासिक जीत मिली।
सेकंड लेफ्टिनेंट खेत्रपाल के शौर्य और बलिदान को देखते हुए 21 वर्ष की उम्र में उन्हें मरणोपरांत “परमवीर चक्र” से सम्मानित किया गया।
कर्नल होशियार सिंह (Colonel Hoshiar Singh Dahiya)
कर्नल होशियार सिंह का जन्म 5 मई 1936 को हरियाणा के सोनीपत में हुआ था। होशियार सिंह 1957 में जाट रेजीमेंट में शामिल हुए थे। 1971 की भारत पाकिस्तान की जंग में बसंतर की लड़ाई का अपना अलग महत्व है। उस लड़ाई में मेजर होशियार सिंह और उनकी कंपनी को पाकिस्तान स्थित जरपाल पोस्ट पर कब्जा करने का काम दिया गया था। बसंतर की लड़ाई में घायल होने के बाद भी होशियार सिंह ने अपनी टुकड़ी का नेतृत्व किया।
जब भारत- पाकिस्तान युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना ने रणनीतिक तौर पर अत्यंत महत्वपूर्ण शंकरगढ़ सेक्टर पर कब्जा कर लिया, उस समय बसंतर नदी में एक पुल के लिए निर्माण का कार्य ग्रेनेडियर्स की एक बटालियन को दिया गया। नदी के गहरी लैंड माइन से ढके हुए दोनों किनारो पर पाकिस्तानी सेना पोजीशन लेकर बैठी थी।
पाकिस्तानी इलाके में स्थित जरपाल पर कब्जा करने का आदेश मेजर होशियार सिंह को दिया गया। दुश्मन की संख्या ज्यादा थी फिर भी होशियार सिंह ने अपनी कंपनी के साथ हमला कर दिया। परिणामत:कंपनी पर भारी गोलीबारी हुई और मशीनगन से हमला हुआ।
होशियार सिंह ने अपने जवानों का हौसला टूटने नहीं दिया। वह एक खाई से दूसरे खाई में जाकर अपने सैनिकों का हौसला बढ़ाते रहे। उन्होंने मशीन गन फायरिंग के महत्व को देखते हुए खुद मोर्चा संभाला और पाकिस्तान सेना पर भारी गोलीबारी शुरू कर दी। हमले से परेशान पाकिस्तानी सेना अपने पीछे 85 साथियों की लाश छोड़कर भाग खड़ी हुई। मेजर होशियार बुरी तरह घायल थे लेकिन उन्होंने सीज फायर की घोषणा होने तक अपनी पोस्ट से हटने से इनकार कर दिया।
उनकी इस वीरता को देखते हुए सरकार ने उन्हें सर्वोच्च वीरता पुरस्कार “परमवीर चक्र” देने की घोषणा की। इस युद्ध में चार जवाजों को सर्वोच्च वीरता पर पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था, लेकिन सिर्फ मेजर होशियार सिंह ही ऐसे थे जिन्हें यह पुरस्कार जीवित रहते मिला।
ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी (Brigadier Kuldip Singh Chandpuri)
1971 के युद्ध के दौरान भारतीय सेना में मेजर ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह लोंगेवाला की प्रसिद्ध लड़ाई में अपने वीरता पूर्ण कार्यों के लिए भारतीय सेना के इतिहास में अविस्मरणीय रहेंगे। इस लड़ाई में चांदपुरी 100 से अधिक सैनिकों के एक छोटे समूह की कमान संभाले थे।
उन्होंने 2,000 पाकिस्तानी सैनिकों के खिलाफ लड़कर राजस्थान में लोंगेवाला सीमा चौकी की बहादुरी से रक्षा की। 4 दिसंबर की पूरी रात लोंगेवाला पोस्ट को पार करने के पाकिस्तानी प्रयास को चांदपुरी के नेतृत्व में सैनिकों के छोटे समूह ने विफल कर दिया।
चांदपुरी के असाधारण नेतृत्व के लिए भारत के दूसरे सर्वोच्च वीरता पुरस्कार “महावीर चक्र” से सम्मानित किया गया। 1997 में बनी सुपरहिट फिल्म “बॉर्डर” लोंगेवाला की लड़ाई पर आधारित थी। जिसमें चांदपुरी की वीरतापूर्ण प्रयासों को दिखाया गया है। इस फिल्म में चांदपुरी का किरदार ‘सनी देओल’ ने निभाया था।