December 1, 2024
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Father of DNA fingerprinting Lalji Singh Birthday : डीएनए टेस्ट के जनक लालजी सिंह की जयंती

भारत के प्रसिद्ध जीव विज्ञानी लालजी सिंह का जन्म 5 जुलाई 1947 में हुआ था। ग्रामीण परिवेश से आने वाले इस प्रतिभाशाली व्यक्ति ने न सिर्फ भारत में बल्कि विदेशों में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। लालजी सिंह हैदराबाद स्थित ‘ कोशिकीय एवं आणविक जीव विज्ञान केंद्र के भूत पूर्व निदेशक थे’। लालजी सिंह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे।

आइए जानते हैं भारत देश की माटी के लाल, लाल जी सिंह के जीवन के विषय में-

Father of DNA fingerprinting Dr Lalji Singh

भारत के प्रसिद्ध जीव विज्ञानी लालजी सिंह का जन्म 5 जुलाई 1947 में हुआ था। ग्रामीण परिवेश से आने वाले इस प्रतिभाशाली व्यक्ति ने न सिर्फ भारत में बल्कि विदेशों में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। लालजी सिंह हैदराबाद स्थित ‘ कोशिकीय एवं आणविक जीव विज्ञान केंद्र के भूत पूर्व निदेशक थे’। लालजी सिंह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे।
आइए जानते हैं भारत देश की माटी के लाल, लाल जी सिंह के जीवन के विषय में-

जीवन परिचय

लालजी सिंह का जन्म 5 जुलाई 1947 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में एक छोटे से गांव कलवारी में हुआ था। उनके पिता एक मामूली किसान थे। डॉक्टर लालजी सिंह बचपन से ही प्रखर बुद्धि थे। प्रतापगंज इंटर कॉलेज से प्राथमिक से इंटर तक की पढ़ाई पूरी करने के पश्चात उन्होंने बीएचयू में प्रवेश लिया उन्होंने 1964 में बीएससी और 1966 में एमएससी में गोल्ड मेडल प्राप्त किया। बीएचयू से ही उन्होंने 1971 में सांप के डीएनए पर शोध प्रबंध पूर्ण किया।
लालजी सिंह ने अपने गुरु प्रोफेसर राय चौधरी के सानिध्य में कोलकाता में शोध कार्य किया। यूके के एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी में 12 वर्ष तक पोस्ट डॉक्टोरल रिसर्च फेलो व रिसर्च एसोसिएट पद पर रहते हुए कई शोध किए। ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय कैनबरा में जुलाई 1979 से 3 माह तक विजिटिंग फेलो भी रहे।

लाल जी सिंह का योगदान

विदेशों में लालजी सिंह को आकर्षक वेतन व बड़े पदों पर चयन के लिए कई प्रस्ताव मिले। लेकिन उनके देश प्रेम ने उन्हें स्वदेश लौटने पर विवश कर दिया। जून 1987 में वे स्वदेश लौट आए और हैदराबाद स्थित सीसीएमबी में बतौर वैज्ञानिक जुड़े। लालजी सिंह द्वारा ही भारत में पहली बार क्राइम इन्वेस्टिगेशन को 1988 में नई दिशा देने के लिए डीएनए फिंगरप्रिंट तकनीक खोजा गया था।
लालजी सिंह भारत के नामी जीव विज्ञानी थे। लिंग निर्धारण का आणविक आधार, डीएनए फिंगर प्रिंटिंग, वन्य जीव संरक्षण, रेशम कीट जीनोम विश्लेषण, मानव जीनोम एवं प्राचीन डीएनए अध्ययन आदि विषयों में उनकी प्रमुख रुचि थी। लाल जी ने भारत में कई संस्थानों और लैब की शुरुआत की। वे हैदराबाद के कोशिकीय एवं आणविक जीव विज्ञान केंद्र के संस्थापक भी थे। 1995 में उन्होंने डीएनए फिंगरप्रिंटिंग और डायग्नोस्टिक्स सेंटर शुरू किया। 2004 में जीनोंम फाउंडेशन शुरू किया, जिसका उद्देश्य था भारत के लोगों में जेनेटिक बीमारियों को खोज कर उनका इलाज करना। मुख्य रूप से ग्रामीण इलाकों और पिछड़े इलाकों के लोगों के लिए इस फाउंडेशन की शुरुआत की गई थी।

लालजी के तकनीक ने सैकड़ों मामलों में न्याय दिलाया

भारत के प्रसिद्ध जीव विज्ञानी डॉ लालजी सिंह के व्याख्यान द्वारा फिंगर प्रिंटिंग को कानूनी मान्यता दिलवा कर 500 से अधिक मामलों को सुलझाया गया। उन्होंने देश के सबसे चर्चित राजीव गांधी मर्डर केस, नैना साहनी मर्डर, स्वामी श्रद्धानंद सीएम बेअंत सिंह, मधुमिता हत्याकांड, प्रियदर्शिनी मट्टू हत्याकांड, मेरी बनाम लक्ष्मी कांड, मद्रास उच्च न्यायालय का गुमशुदा बच्चों का मामला, केरल का पितृत्व विवाद आदि मामलों को भारतीय फिंगरप्रिंट तकनीक के जरिए सुलझाया ।क्राइम इन्वेस्टीगेशन को नई दिशा देने के लिए 1988 में भारत में पहली बार डीएनए फिंगरप्रिंट खोजा गया था। भारत में लाल जी सिंह को डीएनए टेस्ट का जनक कहा जाता है।अमेरिका की मशहूर पत्रिका नेचर में 2009 में जब उनका शोध पत्र प्रकाशित हुआ तो संपूर्ण विश्व ने उनकी प्रतिभा का लोहा माना। उनके द्वारा विकसित डीएनए फिंगरप्रिंट तकनीक ने तहलका मचा दिया।
उनकी उपलब्धियों में जंगली जीव के संरक्षण के क्षेत्र में तथा इस पर स्पेसीज आईडेंटिफिकेशन फॉर फॉरेंसिक एप्लीकेशंस, डीएनए आधारित मॉलिक्यूलर डायग्नोस्टॉक्स, जेनेटिक एकेनिटीज ऑफ अंडमान आइसलाइंडर्स तथा जीनोम फाउंडेशन प्रमुख है।

उच्च पदों को किया सुशोभित

लालजी सिंह ने जिस विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण की उसी के कुलपति के पद को गौरवान्वित किया। अगस्त 2011 में वे बीएचयू के कुलपति नियुक्त हुए और 2014 तक मात्र 1 रुपए के वेतन पर कार्य किया। अगस्त 2011 से अगस्त 2014 तक आईआईटी बीएचयू बोर्ड के चेयरमैन भी रहे। 1995 से 1999 तक सेंटर फॉर डीएनए फिंगरप्रिंट एंड डायग्नोस्टिक के ओएसडी रहे। मई 1988 से जुलाई 2009 तक वे सीसीएमबी के निदेशक भी रहे।

जीनोम फाउंडेशन प्रयोगशाला की स्थापना

लालजी सिंह ने अपने पैतृक गांव कलवारी में जीनोम फाउंडेशन की स्थापना की और इससे प्रांगण में राहुल पीजी कॉलेज भी स्थापित किया। जहां साइंस व आर्ट ग्रुप की पढ़ाई होती है।

पुरस्कार व सम्मान

लालजी सिंह को 85 अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय पुरस्कार व सम्मान दिए गए। जिसमें 2004 में पद्मश्री, 2009 में सी एस आई आर फैलोशिप, 2010 में बी पी पाल मेमोरियल अवार्ड, 2011 में मेरोटोरियस इन्वेंशन अवार्ड आदि प्रदान किए गए।

लालजी सिंह का निधन

लालजी सिंह जब अपने पैतृक गांव जौनपुर के कलवारी गए थे वहां से दिल्ली जाते समय 10 दिसंबर 2017 को वाराणसी के बाबतपुर हवाई अड्डे पर उन्हें सीने में दर्द हुआ। यह भी एक अजीब संयोग ही रहा कि उस समय भी उन्हें बीएचयू के ही ट्रामा सेंटर लाया गया। लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका। जौनपुर और बीएचयू की ख्याति संपूर्ण विश्व में फैलाने वाले डॉक्टर लाल जी ने बीएचयू में ही अंतिम सांस ली।