July 27, 2024

Dr. Syama Prasad Mukherjee Jayanti 2023: अखंड भारत के पुरोधा डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती पर विशेष

श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक प्रखर राष्ट्रवादी, कट्टर देशभक्त, एक महान शिक्षाविद और चिंतक होने के साथ-साथ भारतीय जनसंघ के संस्थापक भी थे। डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी सच्चे अर्थों में मानवता के उपासक थे। वे सिद्धांतों के पक्के इंसान थे। उन्होंने संसद में सदैव राष्ट्रीय एकता की स्थापना को ही अपना प्रथम लक्ष्य रखा था। उन्होंने संसद में अपने भाषण में पुरजोर शब्दों में कहा था-

” राष्ट्रीय एकता के धरातल पर ही सुनहरे भविष्य की नींव रखी जा सकती है।”

Dr. Shyama Prasad Mukherjee Jayanti 2023_Janpanchayat Hindi blogs

डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म दिवस

अखंड भारत के पुरोधा डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती पर विशेष
श्यामा प्रसाद मुखर्जी (Dr. Syama Prasad Mukherjee) एक प्रखर राष्ट्रवादी, कट्टर देशभक्त, एक महान शिक्षाविद और चिंतक होने के साथ-साथ भारतीय जनसंघ के संस्थापक भी थे। डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी सच्चे अर्थों में मानवता के उपासक थे। वे सिद्धांतों के पक्के इंसान थे। उन्होंने संसद में सदैव राष्ट्रीय एकता की स्थापना को ही अपना प्रथम लक्ष्य रखा था। उन्होंने संसद में अपने भाषण में पुरजोर शब्दों में कहा था-

” राष्ट्रीय एकता के धरातल पर ही सुनहरे भविष्य की नींव रखी जा सकती है।”
डॉ. मुखर्जी अपनी मृत्यु के इतने वर्षों के पश्चात भी भारतवासियों के आदर्श और पथ प्रदर्शक हैं। भारतीय इतिहास में डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की छवि एक कर्मठ और जुझारू व्यक्तित्व वाले इंसान की रही है
आइए जानते हैं इस कट्टर देशभक्त और भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के जीवन के विषय में

जन्म तथा शिक्षा (Birth and Education)

डॉक्टर मुखर्जी का जन्म एक प्रसिद्ध बंगाली परिवार में 6 जुलाई 1901 को हुआ था। उनके पिता का नाम आशुतोष मुखर्जी था, जो बंगाल के एक जाने-माने व्यक्ति और कुशल वकील थे। उनकी माता का नाम जोगमाया देवी मुखर्जी था।
डॉक्टर मुखर्जी ने 1914 में मैट्रिक की परीक्षा भवानीपुर के मित्रा संस्थान से उत्तीर्ण की। 1916 में उन्होंने इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की। डॉक्टर मुखर्जी ने 1921 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्रथम श्रेणी में प्राप्त की। इसके पश्चात 1923 में वे सीनेट के सदस्य बन गए थे। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात डॉक्टर मुखर्जी ने कोलकाता उच्च न्यायालय में एडवोकेट के रूप में अपना नाम दर्ज कराया। सन 1926 में वे ‘ लिंकन्स इन’ मेंअध्ययन करने के लिए इंग्लैंड चले गए।

विश्व के सबसे कम उम्र के कुलपति(The Youngest Chancellor of the World)

डॉ. मुखर्जी 1934 में विश्व के सबसे कम उम्र के कुलपति के रूप में प्रसिद्ध हुए जब इन्हें कोलकाता विश्वविद्यालय का कुलपति बनाया गया। उनके पिताजी भी कुलपति रह चुके थे। डॉक्टर मुखर्जी ने अपने कार्यकाल के दौरान अनेक रचनात्मक सुधार कार्य किए तथा कोलकाता एशियाटिक सोसाइटी में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया। डॉक्टर मुखर्जी ने 1938 तक कुलपति के पद को गौरवान्वित किया। वे इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस, बैंगलोर की परिषद एवं कोर्ट के सदस्य और इंटर यूनिवर्सिटी ऑफ बोर्ड के चेयरमैन भी रहे।

डॉक्टर मुखर्जी का राजनीतिक जीवन(Political Life of Dr. Mukherjee )

डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी कोलकाता विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व करते हुए कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में बंगाल विधान परिषद के सदस्य चुने गए, लेकिन जब कांग्रेस ने अगले वर्ष विधानमंडल का बहिष्कार कर दिया तो डॉक्टर मुखर्जी ने त्यागपत्र दे दिया। 1937 में ‘ कृषक प्रजा पार्टी’ और ‘ मुस्लिम लीग’ का गठबंधन सत्ता में आया। इसके पूर्व डॉ. मुखर्जी स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़कर निर्वाचित हो चुके थे।’ मुस्लिम लीग’ और ‘ कृषक प्रजा पार्टी’ के सत्ता में आने पर डॉ.मुखर्जी विरोधी पक्ष के नेता बन गए। वे प्रगतिशील गठबंधन मंत्रालय में, जिसका नेतृत्व फजलुल हक कर रहे थे, वित्त मंत्री के रूप में शामिल हुए लेकिन 1 वर्ष के भीतर ही इस पद से भी त्यागपत्र दे दिया। सन 1944 में हिंदू महासभा में शामिल हुए और इसके अध्यक्ष नियुक्त किए गए।

हिंदू महासभा का नेतृत्व (Leadership of Hindu Mahasabha)

वह डॉ.मुखर्जी की राष्ट्रीय एकात्मता एवं अखंडता के प्रति अगाध श्रद्धा थी, जिसने उन्हें राजनीतिक समर में झोंक दिया। मुस्लिम लीग की स्थापना अंग्रेजों की “फूट डालो राज करो” की नीति का परिणाम थी। हिंदू महासभा में मदन मोहन मालवीय जी के बाद किसी योग्य व्यक्ति के मार्गदर्शन की आवश्यकता थी। डॉक्टर मुखर्जी ने हिंदू महासभा का नेतृत्व ग्रहण कर अंग्रेजों की “फूट डालो राज करो” की नीति को ललकारा। महात्मा गांधी ने उनके हिंदू महासभा में शामिल होने का स्वागत किया। यदि कांग्रेस ने डॉक्टर मुखर्जी की सलाह को माना होता तो मुस्लिम लीग की भारत विभाजन की मनोकामना कभी पूर्ण नहीं होती और हिंदू महासभा कांग्रेस की ताकत बनती।

भारतीय जनसंघ के संस्थापक (Founder of Bharatiya Jan Sangh)

डॉक्टर मुखर्जी महात्मा गांधी की हत्या के बाद 23 नवंबर 1948 को हिंदू महासभा से अलग हो गए, क्योंकि वे चाहते थे कि हिंदू महासभा जनता की सेवा के लिए एक गैर- राजनीतिक निकाय के रूप में ही कार्य करें अथवा इसको हिंदुओं तक ही सीमित ना रखा जाए। आजादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें उद्योग एवं आपूर्ति मंत्री के रूप में अंतरिम सरकार में शामिल किया, लेकिन लियाकत अली खान के साथ दिल्ली समझौते के मुद्दे पर डॉक्टर मुखर्जी ने 6 अप्रैल 1950 को मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संचालक गुरु गोलवलकरजी से डॉ. मुखर्जी ने परामर्श किया और 21 अक्टूबर 1951 में दिल्ली में भारतीय जनसंघ की स्थापना की इसके प्रथम अध्यक्ष बने। 1952 में जब चुनाव हुए तो भारतीय जनसंघ ने संसद में 3 सीटें जीती। इन तीन सीटों में से 1 सीट पर डॉ. मुखर्जी ने विजय प्राप्त की। डॉक्टर मुखर्जी ने संसद के भीतर ‘ राष्ट्रीय जनतांत्रिक पार्टी’ बनाई लेकिन अध्यक्ष ने इसे एक विपक्षी पार्टी के रूप में मान्यता नहीं प्रदान की।

भारत विभाजन के घोर विरोधी (Strict Opponent of Partition of India)

जिस समय मुस्लिम लीग देश के विभाजन की अपनी जिद पर अड़ी हुई थी और अंग्रेज अधिकारियों और कांग्रेस के बीच देश की स्वतंत्रता के लिए बातचीत चल रही थी। ऐसे समय में डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारत विभाजन का पुरजोर विरोध किया। ऐसा माना जाता है कि आज यदि आधा पंजाब और आधा बंगाल भारत में बना हुआ है तो इसके पीछे डॉक्टर मुखर्जी का सबसे बड़ा योगदान है।
आजादी के बाद भी जम्मू कश्मीर का झंडा, संविधान और प्रधान अलग थे। वहां के मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री कहा जाता था। डॉक्टर मुखर्जी जम्मू- कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने एक जोरदार नारा दिया-
“एक देश में दो निशान, एक देश में दो प्रधान, एक देश में दो विधान, नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगे।”
1952 में अगस्त में उन्होंने जम्मू की विशाल रैली को संबोधित करते हुए अपना संकल्प व्यक्त किया कि
” या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊंगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपना जीवन बलिदान कर दूंगा।”

अद्भुत नेतृत्व क्षमता (Amazing Capacity of Leadership)

डॉक्टर मुखर्जी भारत के प्रखर नेताओं में से एक थे। उनकी नेतृत्व क्षमता अद्भुत थी। संसद में भारतीय जनसंघ एक छोटा दल अवश्य था। लेकिन उनके नेतृत्व में संसद में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक दल का गठन हुआ था और इसमें अकाली दल, हिंदू महासभा, गणतंत्र परिषद एवं अनेक निर्दलीय सांसद शामिल थे। जवाहरलाल नेहरू ने जब संसद में भारतीय जनसंघ को कुचलने की बात कही तो डॉक्टर मुखर्जी ने कहा –
“हम देश की राजनीति से इस कुचलने वाली मनोवृति को कुचल देंगे।”

डॉ. मुखर्जी का निधन (Death of Dr. Mukharjee)

डॉ. मुखर्जी की मृत्यु रहस्यमय परिस्थितियों में हुई थी। 11 मई 1953 में जब डॉक्टर मुखर्जी ने जम्मू- कश्मीर में प्रवेश किया तो शेख अब्दुल्ला की सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया, क्योंकि डॉक्टर मुखर्जी बिना परमिट के जम्मू- कश्मीर में चले गए थे और उन दिनों कश्मीर में प्रवेश करने के लिए भारतीयों को एक प्रकार से पासपोर्ट के समान एक परमिट लेना पड़ता था। उन्हें गिरफ्तार कर नजरबंद कर दिया गया और गिरफ्तारी के कुछ ही दिनों बाद 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई। आज तक उनकी मृत्यु के कारणों का पता नहीं चल सका।
आजाद भारत में यह बलिदान भारत की अखंडता के लिए दिया गया प्रथम बलिदान था और इस बलिदान के परिणाम स्वरूप शेख अब्दुल्ला को हटाकर अलग संविधान, अलग प्रधान और अलग झंडे का प्रावधान निरस्त कर दिया गया।
धारा 370 के बावजूद कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बना हुआ था और फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने द्वितीय कार्यकाल में जम्मू कश्मीर से धारा 370 को हटाकर काफी हद तक डॉ.मुखर्जी के अखंड भारत के सपने को साकार कर दिया। 5 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने जम्मू- कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाली धारा 370 को हटा दिया और अब जम्मू कश्मीर एक केंद्र शासित प्रदेश बन गया है। बहुत जल्द ही जम्मू-कश्मीर को एक पूर्ण भारतीय राज्य का दर्जा प्राप्त हो जाएगा।

डॉक्टर मुखर्जी के बलिदान पर शोक व्यक्त करते हुए तत्कालीन लोकसभा के अध्यक्ष श्री जी.वी. मावलंकर ने कहा-

” वह हमारे महान देश भक्तों में से एक थे और राष्ट्र के लिए उनकी सेवाएं भी उतनी ही महान थी। जिस स्थिति में उनका निधन हुआ वह स्थिति बड़ी दुखदाई है। यही ईश्वर की इच्छा थी। इसमें कोई क्या कर सकता था? उनकी योग्यता, उनकी निष्पक्षता, अपने कार्यभार को कौशल्यपूर्ण निभाने की दक्षता, उनकी वाकपटुता और सबसे अधिक उनकी देशभक्ति एवं अपने देशवासियों के प्रति उनके लगाव में उन्हें हमारे सम्मान का पात्र बना दिया।”

डॉक्टर मुखर्जी के निधन पर भारत ने एक ऐसा व्यक्तित्व खो दिया जो राजनीति को एक नई दिशा प्रदान कर सकता था। वे भारत के लिए शहीद हो गए। वे धर्म के आधार पर किसी भी तरह के विभाजन के खिलाफ थे। क्योंकि वे इस धारणा के प्रबल समर्थक थे कि सांस्कृतिक दृष्टि से सब एक हैं।
डॉक्टर मुखर्जी का मानना था कि हमारी भाषा, संस्कृति एक है। हम में कोई अंतर नहीं है। यही हमारी अमूल्य विरासत है। अतः हम सब एक हैं। यह आधारभूत सत्य है। उनके इन विचारों को कई राजनीतिक दलों के नेताओं ने अन्यथा रूप से प्रसारित किया लेकिन इन सबके बावजूद भारत की जनता के दिलों में आज भी उनके प्रति अथाह प्रेम और समर्थन है। डॉ.मुखर्जी नेअपने 52 वर्ष के छोटे से जीवन में कई जीवन काल के अद्वितीय परिश्रम और अथक परिश्रम को समेटा।