December 22, 2024
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Indian Independence Day 2023 : स्वतंत्रता दिवस पर जानिए इस दिन का महत्व, इतिहास

स्वतंत्रता दिवस भारत के गौरव का प्रतीक है। यही वह दिन है जब हम गुलामी की बेड़ियों से आजाद हुए थे। स्वतंत्रता दिवस के दिन हम अपने महान राष्ट्रभक्तों, नेताओं और स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि देते हैं। जिन्होंने भारत माता को ब्रिटिश हुकूमत से आजाद कराने के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। 15 अगस्त 1947 को लाखों कुर्बानियां देकर हमने यह स्वतंत्रता प्राप्त की थी। यह राष्ट्रीय पर्व भारत का सबसे बड़ा राष्ट्रीय पर्व है।

Indian Independence Day_स्वतंत्रता दिवस_Janpanchayat hindi news

स्वतंत्रता दिवस || Independence Day || 15 अगस्त 2023 ||

स्वतंत्रता दिवस भारत के गौरव का प्रतीक है। यही वह दिन है जब हम गुलामी की बेड़ियों से आजाद हुए थे। स्वतंत्रता दिवस के दिन हम अपने महान राष्ट्रभक्तों, नेताओं और स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि देते हैं। जिन्होंने भारत माता को ब्रिटिश हुकूमत से आजाद कराने के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। 15 अगस्त 1947 को लाखों कुर्बानियां देकर हमने यह स्वतंत्रता प्राप्त की थी। यह राष्ट्रीय पर्व भारत का सबसे बड़ा राष्ट्रीय पर्व है।
प्रत्येक वर्ष 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है 15 अगस्त को प्रधानमंत्री प्रातः 7:00 बजे लाल किले पर तिरंगा फहराते हैं और देशवासियों को संबोधित करते हैं। प्रधानमंत्री का भाषण सुनने के लिए हजारों की संख्या में लोग लाल किला पर जाते हैं। भारत के सभी स्कूलों सरकारी संस्थानों में स्वतंत्रता दिवस बड़े उत्साह के साथ धूमधाम से मनाया जाता है। स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या अर्थात 14 अगस्त की रात्रि 8:00 बजे राष्ट्रपति राष्ट्र के नाम संदेश देते हैं।
स्वतंत्रता दिवस पर होने वाले आयोजन
स्वतंत्रता दिवस पर सभी प्रमुख सरकारी भवनों को रोशनी से सजाया जाता है तथा तिरंगा झंडा घरों, स्कूलों और सरकारी भवनों पर फहराया जाता है। 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस को राष्ट्रीय अवकाश होता है। स्वतंत्रता दिवस के एक सप्ताह पहले से ही देशभक्त की भावना को प्रोत्साहित करने वाले कार्यक्रमों और प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। स्कूल और संस्थाओं द्वारा प्रभात फेरी निकाली जाती है। जिसमें बच्चे युवक और बूढ़े देशभक्ति के गीत गाते हैं।
स्वतंत्रता दिवस पर राज्य स्तर पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। जिसमें ध्वजारोहण, मार्च पास्ट तथा सांस्कृतिक आयोजन शामिल है।
हमारा देश भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है भारत के नागरिक देश को और अधिक ऊंचाइयों तक ले जाने का वचन लेते हैं। जैसे ही आसमान में तिरंगा लहराता है प्रत्येक नागरिक भारत को एक ऐसा राष्ट्र बनाने का लक्ष्य पूरा करने की प्रतिज्ञा लेता है जो मानवीय मूल्यों के लिए सदैव अटल है।

वर्ष 2023 में 77वें स्वतंत्रता दिवस पर क्या है खास ?

वर्ष 2023 में 77 वां स्वतंत्रता दिवस मनाया जाएगा। “आजादी का अमृत महोत्सव” समारोह श्रृंखला में स्वतंत्रता दिवस 2023 की थीम होगी
“राष्ट्र पहले, हमेशा पहले”
भारत का 77 वां स्वतंत्रता दिवस “मेरी माटी, मेरा देश” नामक विशेष कार्यक्रम के साथ मनाया जाएगा। “मेरी माटी मेरा देश” कार्यक्रम 9 अगस्त से 30 अगस्त तक चलेगा। इस अभियान के तहत वीर शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाएगी। इस अभियान के तहत एक ‘अमृत कलश यात्रा’ होगी जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों से मिट्टी लाई जाएगी, जिसे दिल्ली में राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के पास ‘ अमृत वाटिका’ बनाने में उपयोग किया जाएगा।

स्वतंत्रता दिवस का इतिहास

भारत जैसे महान देश का नागरिक होकर हम गौरवान्वित महसूस करते हैं। लेकिन आज से 77 वर्ष पहले तक हमारा देश भारत गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। इस देश की जनता आजाद होने के लिए बेचैन थी। ब्रिटिश सरकार के खिलाफ न जाने कितने आंदोलन किए गए, कितनी कुर्बानियां दी गई तब जाकर हमें यह स्वतंत्रता प्राप्त हुई।
आइए जानते हैं भारत के स्वतंत्रता दिवस के इतिहास के बारे में-
भारत के स्वतंत्रता संग्राम का प्रारंभ 1857 में हुआ जब मंगल पांडे ने भारत माता पर अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिए। देखते ही देखते मंगल पांडे की शहादत रूपी चिंगारी ने महासंग्राम का रूप ले लिया। इस महासंग्राम में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, नानासाहेब, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, भगत सिंह, खुदीराम बोस आदि देश के लिए शहीद हो गए।
भारत को स्वतंत्र करने के लिए बाल गंगाधर तिलक ने “स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है” का उद्घोष किया तो सुभाष चंद्र बोस ने “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा” का नारा दिया। गांधी जी ने ‘सत्य’, ‘अहिंसा’ और ‘असहयोग’ को हथियार बनाया और स्वतंत्रता की जंजीरों को तोड़ने के लिए ‘लौह पुरुष’ सरदार पटेल जैसे महापुरुषों ने कमर कस ली। सत्य और अहिंसा के सिद्धांत के आधार पर 90 वर्षों के लंबे संघर्ष के पश्चात 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता का वरदान मिला। भारत का स्वतंत्रता संग्राम संपूर्ण विश्व में स्वतंत्रता के संघर्ष का एक अनूठा और अनोखा अभियान था जिसकी संपूर्ण विश्व में प्रशंसा हुई।

स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास

दिल्ली के कुछ समाचार पत्रों में 1857 में जब यह भविष्यवाणी छपी कि भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा स्थापित अंग्रेजी साम्राज्य 23 जून 1857 ई तक समाप्त हो जाएगा तो लोगों में स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए जोश की लहर दौड़ गई और इसी जोश ने 1856 में ‘सिपाही क्रांति’ को जन्म दिया।

सिपाही क्रांति

लॉर्ड कैनिंग ने भारतीय सैनिकों के लिए सामान्य भारती कानून पास किया। उस कानून के अनुसार भारतीय सैनिकों को लिखित रूप में देना होता था कि सरकार युद्ध के लिए जहां भेजेगी उन्हें वहां जाना पड़ेगा। कंपनी की सेना के तीन लाख सैनिकों में यूरोपियन सैनिकों की तुलना में 6 गुना भारतीय सैनिक थे। लॉर्ड कैनिंग के इस कानून से सैनिकों में असंतोष था।
उसी दौरान भारतीय सैनिकों को चर्बी लगे हुए कारतूसों के साथ एनफील्ड राइफल दी गई जिससे हिंदू मुसलमान दोनों ही धर्म के सिपाहियों को धर्म भ्रष्ट होने का भय हुआ। इस प्रकार चर्बी लगे कारतूस ने सैनिकों के असंतोष रूपी अग्नि में आहुति का कार्य किया और विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी। सिपाही क्रांति का प्रारंभ मेरठ से 10 मई 1857 ई. को हुआ था। लेकिन बहरामपुर और बैरकपुर की छावनियों में असंतोष के लक्षण पहले ही प्रकट हो चुके थे। 28 मार्च 1857 ई. को मंगल पांडेय नामक भारतीय सैनिक ने दिनदहाड़े एक अंग्रेज पदाधिकारी को मार डाला।
10 मई 1857ई. को विद्रोहियों ने मेरठ से चलकर दिल्ली पर अधिकार कर लिया और बहादुर शाह जफर को दिल्ली का सम्राट घोषित कर दिया। अगले दो महीनों में यह विद्रोह अवध और रुहेलखंड में भी फैल गया। उधर बुंदेलखंड में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई इस विद्रोह का नेतृत्व कर रही थी और अपने रास्ते में आने वाले सभी यूरोपियनो को मार डाला और लगातार कई युद्ध में वीरता पूर्वक लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुई। विद्रोह को दबाने के लिए गवर्नर जनरल कैनिंग ने मुंबई, मद्रास, पंजाब और भारतीय रियासतों से सहायता मांगी और हिंदू मुसलमानों में फूट लाने के लिए अफवाह फैलाई। तीन अंग्रेज सेनापतियों हेनरी, वरनाई और निकलसन ने दिल्ली को चारों तरफ से घेर लिया। लेकिन 3 महीने तक दिल्ली पर कब्जा नहीं कर पाए। अंततः जर्नल निकलसन ने एक घमासान युद्ध के पश्चात दिल्ली पर अधिकार कर लिया। मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर को बंदी बनाकर रंगून भेज दिया गया।
यद्यपि भारतीयों को अपने प्रयास में सफलता नहीं प्राप्त हुई। फिर भी 1857 कि यह क्रांति एक व्यापक विद्रोह था जिसका उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्त करना था। यह एक राष्ट्रीय विद्रोह था जिसमें भारत के सभी वर्गों ने हिस्सा लिया।

ईस्ट इंडिया कंपनी की समाप्ति

1857 की क्रांति के पश्चात इंग्लैंड के राजा ने ईस्ट इंडिया कंपनी को समाप्त कर भारतीय राज्य की बागडोर अपने हाथ में ले ली। क्योंकि इस विद्रोह में अंग्रेजों के शासन प्रबंध संबंधी नीतियों का भंडाफोड़ हो गया था। 1857 से 1880 तक कैनिंग, मेओ, लैटिन आदि कई गवर्नर जनरल ने भारत में शासन किया परंतु 1880 में भारत का गवर्नर जनरल नियुक्त किए गए ‘ लॉर्ड रिपन’ को जो सम्मान प्राप्त हुआ वह किसी को नहीं मिला। लॉर्ड रिपन ने भारतीयों के कल्याण एवं उन्नति के लिए जो कार्य किया वह ब्रिटिश शासन में मिसाल बन गया। हालांकि इन कार्यों के लिए रिपन को ब्रिटिश सरकार और ब्रिटिश देश की जनता का विरोध भी सहन करना पड़ा। लेकिन रिपन ने इसकी परवाह न करते हुए भारत में कई सुधार किया। प्रत्येक 10 वर्ष में जनगणना करने का नियम रिपन ने हीं बनाया था जो आज तक प्रत्येक 10 वर्ष पर की जाती है। रिपन ने म्युनिसिपल बोर्ड तथा शिक्षा में सुधार किया। वित्तीय शक्तियों का विकेंद्रीकरण किया। भारतीय भाषाओं में छपने वाले अखबारों को पूरी स्वतंत्रता प्रदान की
लॉर्ड रिपन 1883 में भारतीय काउंसिल में ‘अल्बर्ट बिल’ पेश किया जिसके अनुसार भारतीय जजों तथा सेशन जजों को अंग्रेजों के मुकदमे सुनने तथा उसका निर्णय देने का अधिकार दिया गया। अल्बर्ट बिल ने भारतीयों को संगठित होने की प्रेरणा दी। इसके परिणाम स्वरुप भारत में एक देशव्यापी संस्था बनाने का विचार किया गया। इस दिशा में 1884 में ‘इंडियन नेशनल यूनियन’ की स्थापना हुई और 1885 ईस्वी में मुंबई अधिवेशन में दादा भाई नौरोजी के परामर्श से ही संस्था का नाम ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ रखा गया। दादा भाई नौरोजी, फिरोज शाह मेहता, गोपाल कृष्ण गोखले, पंडित मदन मोहन मालवीय, सुरेंद्रनाथ बनर्जी जैसे उदारवादी नेता इस संस्था के प्रमुख नेता थे।

1905 से 1919

1905 से लेकर 1919 तक राष्ट्रीय आंदोलन गरम दल के हाथ रहा। गरम दल के प्रमुख नेता बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय और विपिन चंद्र पाल थे। लाला लाजपत राय ने उदारवादीयों की नीतियों पर असंतुष्ट होकर कहा था कि “हमें अंग्रेजों के आगे अब और अधिक समय तक भीख नहीं मांगना और ना ही उनके सामने गिड़गिड़ाएंगे। दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीति के कारण भारतीयों की हालत बहुत सोचनीय थी। उन्हें घृणा की दृष्टि से देखा जाता था। भारतीयों को अस्पतालों तथा होटलों में प्रवेश की अनुमति नहीं थी। भारतीयों के बच्चे उच्च संस्थानों में शिक्षा नहीं प्राप्त कर सकते थे।

लॉर्ड कर्जन की दमन नीति

लॉर्ड कर्जन की दमन नीति ने भारतीयों पर अनेक अत्याचार किया। उसने अपने भाषण में भारतीयों को अपमानजनक शब्द कहे। 1907 में बंगाल भांग संबंधी घोषणा होते हैं गरम दल सक्रिय हो गया।

गदर पार्टी की स्थापना

सन 1913 में गदर पार्टी की स्थापना अमेरिका से भारत आए भारत वासियों ने किया। इस पार्टी के प्रमुख नेता लाला हरदयाल, बाबा बसाखा सिंह, सोहन सिंह भकना, उधम सिंह और पंडित काशीराम थे। इन्होंने सैनिक छावनियों में सैनिकों को विद्रोह करने की प्रेरणा दी। 25 फरवरी 1915 को गदर का दिन रखा गया लेकिन कृपाल सिंह के विश्वासघात ने इस योजना को असफल कर दिया। गदर पार्टी की तरह indo-german मिशन ने भी भारत को स्वतंत्र करने की योजना बनाई और अस्थाई भारत सरकार की स्थापना की लेकिन परिस्थितियां अनुकूल न होने के कारण ही देशभक्त भी असफल हो गए।
गांधी जी के आंदोलन
भारतवासियों को सौभाग्य से दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी के रूप में एक ऐसा नेता मिला जिन्होंने भारतीयों को संगठित कर सत्याग्रह आंदोलन चलाया और भारत में पर लगाए गए कानून रोक दिए।
महात्मा गांधी ने 13 मार्च 1919 को रॉलेट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह चलाया इस एक्ट के तहत सरकार किसी भी व्यक्ति को मुकदमा चलाए बिना बंदी बना सकती थी। परंतु दुर्भाग्य बस अहमदनगर, दिल्ली और पंजाब में उपद्रव के कारण महात्मा गांधी को आंदोलन स्थगित करना पड़ा।

जलियांवाला बाग कांड

13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग नरसंहार में हजारों निहत्थे लोगों को जनरल डायर ने घेर कर गोली चलवा दी जिससे हजारों निहत्थे लोग मारे गए। इस नरसंहार के बाद 26 जनवरी 1930 को पूर्ण स्वराज की घोषणा की गई। पंजाब में भगत सिंह और उनके साथियों ने नौजवान भारत की नींव डाली परंतु यह देशभक्त भी सफल नहीं हो सके और 23 मार्च 1930 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को अंग्रेजों द्वारा फांसी दे दी गई।

गांधी जी ने नमक कानून तोड़ने के लिए दांडी मार्च किया। अंग्रेजो ने गांधी जी को कानून तोड़ने पर गिरफ्तार कर लिया लेकिन आंदोलन ने देश में फैल गया और अंग्रेजों को गांधी जी को रिहा करना पड़ा। लंदन में अंग्रेजों द्वारा तीन बार गोलमेज कांफ्रेंस बुलाई गई लेकिन हर बार गांधी जी को निराशा ही मिली। 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध प्रारंभ हुआ। 8 अगस्त 1942 को मुंबई के कांग्रेस अधिवेशन में ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पास हुआ इस आंदोलन ने ब्रिटिश शासन की नींव को हिला दिया था। ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान सरकार ने दमन नीति का सहारा लिया।

आजाद हिंद फौज की स्थापना

इसी समय नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत से बाहर थे। उन्होंने भारत से बाहर रहकर ही भारत को स्वतंत्र कराने का प्रयास किया। और इसी प्रयास के तहत उन्होंने “आजाद हिंद” फौज की स्थापना की और “दिल्ली चलो” का नारा दिया। नेताजी का विचार था कि द्वितीय विश्व युद्ध का लाभ उठाना चाहिए लेकिन नेताजी एक दुर्घटना में मारे गए और यह आंदोलन भी असफल हो गया। 18 फरवरी 1946 को मुंबई में सैनिक विद्रोह हुए सैनिकों ने अपनी बैरकों से निकल कर अंग्रेजी सैनिकों पर धावा बोल दिया। पांच दिनों तक अंग्रेजी सैनिकों को मौत के घाट उतारते रहे।अंग्रेजों को एहसास हो गया कि वे भारत को अधिक समय तक गुलाम बनाकर नहीं रख सकते।
इंग्लैंड के प्रधानमंत्री किलेमंट एटली में 23 मार्च 1946 को भारत की समस्या सुलझाने के लिए तीन अधिकारियों पैथिक लॉरेंस स्टेफर्ड क्रिप्स और ए. बी.अलेक्जेंडर को भारत भेजा।14 अगस्त 1946 ई को वायसराय ने केंद्र में अंतरिम सरकार बनाने के लिए अनुरोध किया लेकिन मुस्लिम लीग ने भारत विभाजन कर पाकिस्तान की मांग की। 16 अगस्त को कोलकाता में खून- खराबा हुआ। हजारों लोग मारे गए। फरवरी 1947 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने 1948 में भारत को स्वतंत्र करने की घोषणा की। इस घोषणा के साथ ही भारत के वायसराय लॉर्ड बॉवेल की जगह लॉर्ड माउंटबेटन को भारत का वायसराय बनाकर भेजा गया। लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत विभाजन को ही बेहतर समझा। कांग्रेस नेता भी इससे सहमत हो गए।
भारतीय स्वतंत्रता विधायक इंग्लैंड की संसद में 4 जुलाई 1947 को पेश किया गया और 16 जुलाई 1947 को यह विधेयक संसद के दोनों सदनों में पास हो गया। 18 जुलाई 1947 को इंग्लैंड के राजा ने भी अपनी स्वीकृति दे दी।

भारत की स्वतंत्रता की घोषणा

संघटक सभा द्वारा 14 अगस्त 1947 की रात 11:00 बजे भारत की स्वतंत्रता मनाने की बैठक शुरू हुई जिसमें अधिकार प्रदान किया जा रहे थे। रात के 12:00 बजे भरत को आजादी मिल गई और भारत एक स्वतंत्र देश बन गया।
इस प्रकार हजारों बलिदानों के पश्चात हमारा देश भारत आजाद हुआ।