Shravan & Shivlinga: श्रावण मास में जानिए शिवलिंग का वास्तविक अर्थ एवं 12 ज्योतिर्लिंगों का आकार क्यों हैं अलग ?
Shivlinga: शिवलिंग में शिव का अर्थ होता है परम शुद्ध चेतना, परमेश्वर या परम तत्व और लिंग का अर्थ होता है निशान, चिह्न या प्रतीक।
Shravan Special: know the real meaning of Shivlinga (शिवलिंग का वास्तविक अर्थ एवं 12 ज्योतिर्लिंगों का आकार क्यों हैं अलग ?)
भगवान शिव साक्षात, अनंत, निराकार और निर्गुण आदियोगी हैं। संपूर्ण ब्रह्मांड में भगवान शिव से कोई भी अनभिज्ञ नहीं है लेकिन भगवान शिव के सत्य स्वरूप को सभी नहीं जान पाते।
हम शिवलिंग की पूजा तो करते हैं लेकिन यह नहीं जानते की शिवलिंग का वास्तविक अर्थ क्या है? शिवलिंग क्यों पूजनीय है? शिवलिंग का आकार ऐसा ही क्यों है? शिवलिंग का शाब्दिक अर्थ क्या है? और शिवलिंग से हमें क्या बोध होता है।
बहुत से लोगों ने शिवलिंग का गलत अर्थ बता कर लोगों को भ्रमित कर रखा है लेकिन आश्चर्य की बात तो यह है कि इस षड्यंत्र में विदेशी लोगों के साथ-साथ हमारे देश के लोग भी शामिल हैं। जिन्होंने शिवलिंग का बहुत गलत अर्थ निकाल रखा है। लेकिन सत्य कभी छिपता नहीं है।
शिवलिंग का शाब्दिक अर्थ
शिवलिंग में शिव का अर्थ होता है परम शुद्ध चेतना, परमेश्वर या परम तत्व और लिंग का अर्थ होता है निशान, चिह्न या प्रतीक।
शिवलिंग का अर्थ होता है भगवान शिव परमात्व का चिन्ह या प्रतीक। शिवलिंग एक ऊर्जा का स्वरूप है जिसमें एक या एक से ज्यादा चक्र और मौजूद है होते हैं।
ज्यादातर ज्योतिर्लिंग में एक या दो चक्र प्रतिष्ठित है। ध्यान लिंग में सभी सातों चक्र परम तक प्रतिष्ठित है। लिंग शब्द का अर्थ है आकार। आकार इसलिए कहा जाता है क्योंकि जो अप्रगट है वह खुद को जब प्रकट करता करने लगता है या दूसरे शब्दों में सृष्टि की उत्पत्ति के समय सबसे पहले जो इसका आकार था वह दीर्घ वृताकार था।
एक पूर्ण दीर्घ वृत्त को या एलिप्स को हम एक लिंग कहते हैं। सृष्टि की शुरुआत हमेशा एक दीघा वृत्त या एक लिंग रूप में हुई और उसके बाद यह कई रूपों में प्रकट हुई। जब आप ध्यान की गहरी अवस्था में जाते हैं तो पूर्ण विलीन होने वाले बिंदु आने से पहले ऊर्जा एक बार फिर एक दीर्घ वृत्त या एक लिंग का रूप ले लेती है।
संस्कृत में शिवलिंग का क्या है अर्थ?
संस्कृत भाषा में लिंग का अर्थ प्रतीक होता है और इसलिए शिवलिंग का अर्थ हुआ शिव का प्रतीक। शिवलिंग को भगवान शिव के पवित्र प्रतीक के रूप में पूजा जाता है।
ब्रह्मांड में सिर्फ दो चीज सत्य रूप में मौजूद है एक है ऊर्जा और दूसरा पदार्थ। हमारा शरीर मिट्टी से मिलकर बना है जो एक दिन मिट्टी में मिल जाएगा इसीलिए इसे पदार्थ कहा जाता है लेकिन शरीर की आत्मा अमर होती है वह शक्तिशाली होती है इसलिए इसे ऊर्जा कहा जाता है। इसीलिए शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का रूप धारण करके शिवलिंग का आकार ग्रहण करते हैं।
कब से हो रही है शिवलिंग की पूजा?
शिवलिंग की पूजा 2300 ईसा पूर्व से होती आ रही है। जिसके प्रमाण सिंधु घाटी की सभ्यता में खुदाई के दौरान सामने आए थे। शिवलिंग की पूजा केवल भारत में ही नहीं होती बल्कि प्राचीन रोमन सभ्यता के लोग भी शिवलिंग को पूजते थे। बेबीलोन में खुदाई के दौरान भी शिवलिंग मिले थे जो इस बात की पुष्टि करते हैं।
12 ज्योतिर्लिंगों के आकार क्यों हैं अलग ?
शिवलिंग का अर्थ मुख्यतः ब्रह्मांड से है जिसका ना तो कोई आदि है और ना ही कोई अंत, अर्थात ब्रह्मांड सीमाओं से परे है। इसकी कहीं से भी ना तो शुरुआत होती है और ना ही कहीं से अंत होता है।
अगर हम प्रमुख 12 ज्योतिर्लिंग की बात करें तो उन सभी का आकार एक दूसरे से भिन्न है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अलग-अलग उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए अलग-अलग शिवलिंग बनाए गए हैं।
कुछ शिवलिंगों को स्वास्थ्य के लिए बनाया गया है, कुछ को विवाह के लिए, व कुछ को ध्यान साधना के लिए स्थापित किया गया है। वायु पुराण के अनुसार प्रलय काल में समस्त सृष्टि जिसमें ली हो जाती है और पुनः सृष्टि काल में जिससे प्रकट होती है उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग का प्रतीक है।
पौराणिक दृष्टि से लिंग के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और ऊपर प्रणवाक्य महादेव स्थित हैं। केवल लिंग पूजा करने मात्र से समस्त देवी देवताओं की पूजा हो जाती है। लिंग पूजन परमात्मा के के प्रमाण स्वरूप सूक्ष्म शरीर का पूजन है।
शिव और शक्ति का पूर्ण स्वरूप है शिवलिंग