July 27, 2024

History Of Sengol : क्या है 5000 साल पुराना सेंगोल का इतिहास ?

नए संसद भवन का उद्घाटन आज किया गया । उद्घाटन के पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बुधवार को बताया कि इस अवसर पर एक ऐतिहासिक परंपरा पुनर्जीवित होने जा रही है। अमित शाह ने ‘ सेंगोल'(Sengol) को नए संसद भवन में स्थापित करने की घोषणा की। लेकिन क्या आप जानते हैं सेंगोल क्या है? और यदि यह ऐतिहासिक परंपरा रही है तो अब तक आम जनता के सामने इसका जिक्र क्यों नहीं किया गया? तथा राजदंड का प्रतीक सेंगोल (sengol) आजादी के बाद से कहां रखा गया था?

इस लेख में हम आपको पूरी जानकारी देंगे तो आइए जानते हैं सेंगोल के रोचक इतिहास के बारे में

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भारत की सत्ता के प्रतीक राजदंड ' सैंगोल' के अब तक प्रयागराज संग्रहालय में रखे जाने के पीछे क्या थी वजह ?

नए संसद भवन का उद्घाटन 28 मार्च को किया जाएगा। उद्घाटन के पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बुधवार को बताया कि इस अवसर पर एक ऐतिहासिक परंपरा पुनर्जीवित होने जा रही है। अमित शाह ने ‘ सेंगोल'(Sengol) को नए संसद भवन में स्थापित करने की घोषणा की। लेकिन क्या आप जानते हैं सेंगोल क्या है? और यदि यह ऐतिहासिक परंपरा रही है तो अब तक आम जनता के सामने इसका जिक्र क्यों नहीं किया गया? तथा राजदंड का प्रतीक सेंगोल (sengol) आजादी के बाद से कहां रखा गया था? इस लेख में हम आपको पूरी जानकारी देंगे तो आइए जानते हैं सेंगोल के रोचक इतिहास के बारे में

सेंगोल क्या है (What is Sengol) ?

 सेंगोल शब्द का जन्म तमिल भाषा के ‘ सेम्मई ‘ शब्द से हुआ है। इसका अर्थ है, धर्म, सच्चाई, और निष्ठा। सेंगोल को तमिलनाडु के प्रमुख धार्मिक मठ के मुख्य अधीनम यानी पुरोहितों का आशीर्वाद प्राप्त है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के इतिहास में इसका बहुत महत्व है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने जब स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात सत्ता की बागडोर संभाली तब उन्हें सेंगोल सौंपा गया था।

क्या है सैंगोल का इतिहास (What is the History of Sengol)?

सैंगोल(Sengol) शब्द तमिलभाषा के सेम्मई शब्द से निकला हुआ है जिसका अर्थ है धर्म, निष्ठा, और सच्चाई। भारतीय सम्राट की शक्ति और अधिकार का प्रतीक हुआ करता था, संगोल राजदंड।
बुधवार को प्रेस कांफ्रेंस के दौरान सेंगोल के इतिहास की जानकारी देते हुए अमित शाह ने बताया कि 14 अगस्त 1947 को जवाहर लाल नेहरू ने स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में सेंगोल स्वीकार किया था। सेंगोल का भारत के प्रधानमंत्री को सौंपना अंग्रेजों के इस देश के लोगों के लिए सत्ता के हस्तांतरण का संकेत था।
अमित शाह ने सेंगोल के इतिहास के बारे में बताया कि जो सेंगोल को प्राप्त करता है उससे न्याय संगत और निष्पक्ष शासन प्रस्तुत करने की अपेक्षा की जाती है। दुनिया भर के मीडिया ने भारत की स्वतंत्रता के समय इस पवित्र सैंगोल को प्राप्त करने की घटना को व्यापक रूप से कवर किया था।

सेंगोल का क्या है महत्व (What is the Significance of Sengol)

भारत के इतिहास में सेंगोल(Sengol) राजदंड का प्रतीक माना जाता है। माउंटबेटन ने जब भारतीयों को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीकात्मक समारोह की जानकारी ली तब नेहरू ने सी. राजगोपालाचारी (राजाजी) से सलाह मांगी राजगोपालाचारी ने चोल वंश के सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक से प्रेरणा लेने का सुझाव दिया। चोल वंश में शीर्ष पुजारियों द्वारा एक राजा से दूसरे राजा के सत्ता हस्तांतरण के समय आशीर्वाद दिया जाता था और सेंगोल प्रदान किया जाता था। अतः भारतीय इतिहास में सेंगोल का बहुत महत्व है।

प्रयागराज संग्रहालय में रखे इस सैंगोल(sengol) को आम नागरिकों से लेकर खुद प्रयागराज संग्रहालय के लोग भी इस देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की व्यक्तिगत संपत्ति के तौर पर ही जानते थे। संग्रहालय को भी यही जानकारी थी यह पंडित नेहरू को उपहार में मिली हुई गोल्डन स्टिक यानी सोने की छड़ी है। इस गोल्डन स्टिक को तमिलनाडु की जिस कंपनी ने देश की स्वतंत्रता के समय बनाया था, 2 साल पूर्व इस कंपनी ने प्रयागराज संग्रहालय को इसके बारे में जानकारी दी थी।
देश में सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में इसे अंग्रेजों के अंतिम गवर्नर लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल लाल नेहरू को दिया था। सेंगोल यानी राजदंड अब नए संसद में भवन में रखा जाएगा। 74 वर्षों से प्रयागराज संग्रहालय में रखे इस सैंगोल की जानकारी अभी तक किसी को नहीं थी।

कहां रखी गई थी सेंगोल?

प्रयागराज संग्रहालय में पहली मंजिल पर बनाई गई नेहरू गैलरी के प्रवेश द्वार पर बने शोकेस में गोल्डन स्टिक रखी गई थी। पंडित नेहरू की बचपन की तस्वीरों से लेकर उपहार में मिली तमाम वस्तुएं इस गैलरी में रखी गई हैं। 6 माह पूर्व 4 नवंबर 2022 को केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के निर्देश पर यह सेंगोल प्रयागराज संग्रहालय से दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय भेज दी गई थी। जिससे इसे संसद के नए भवन में स्थापित किया जा सके। सेंगोल को नए संसद भवन में स्पीकर की कुर्सी के बागल में स्थापित किया जाएगा।

किसने तैयार किया था सेंगोल ?

तमिलनाडु की एक कंपनी ने यह सेंगोल(Sengol) ब्रिटिश हुकूमत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन के कहने पर इसे तैयार किया था।इसे चांदी से बनाकर इस पर सोने का पानी चढ़ाया गया है लॉर्ड माउंटबेटन ने यह राजदंड सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक चिन्ह के तौर पर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को दिया था। जवाहरलाल नेहरू ने इसे नेहरू-गांधी परिवार के पैतृक आवास भवन में रखवा दिया था। 1947 में जब देश की स्वतंत्रता के पश्चात पंडित नेहरू प्रयागराज संग्रहालय के नए भवन के शिलान्यास के लिए आए तब उन्होंने आनंद भवन में रखे सभी सामानों को प्रयागराज संग्रहालय को देने की घोषणा की थी। इन सामानों में सेंगोल को पंडित नेहरू की गोल्डन स्टिक के तौर पर दिखाया गया था।

सेंगोल को लेकर क्यों उठ रहे हैं सवाल

भारतीय इतिहास में सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक राजदंड सैंगोल के बारे में देश को तब पता चला जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसकी जानकारी दी। लेकिन अब सवाल यह उठता है कि अभी तक सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक राजदंड की असलियत की जानकारी देश को क्यों नहीं थी? आखिरकार देश से यह अब तक छुपाया क्यों गया? जो देश की संपत्ति थी, शासन का प्रतीक थी उसे नेहरू की व्यक्तिगत संपत्ति की तरह संग्रहालय में क्यों रखा गया? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? पंडित नेहरू की सरकार या खुद पंडित नेहरू इसके जिम्मेदार है। आखिर ऐसी लापरवाही किसकी थी? और यदि यह किसी की लापरवाही थी तो इसके प्रति कौन जवाबदेह होगा? इन तमाम सवालों के जवाब देश की जनता जानना चाहती है। अब देश में आने वाले दिनों में विवाद गहराने की आशंका है। तथा सैंगोल को लेकर राजनीतिक बहस होना तय है।