October 18, 2024
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Sarojini Naidu Birth Anniversary : नाइटेंगल ऑफ़ इंडिया (भारत कोकिला) एवं नारी मुक्ति आंदोलन की समर्थक सरोजनी नायडू का जन्म दिवस

Sarojini Naidu Birth Anniversary : सरोजिनी नायडू को भारत कोकिला भी कहा जाता है।वह एक सुप्रसिद्ध कवियत्री और भारत के सर्वोत्तम नेताओं में से एक थी। भारत के स्वाधीनता संग्राम में उनका अहम योगदान रहा है। उनके साथ रहने वाले लोग उनसे ऊर्जा, साहस और शक्ति प्राप्त करते थे। युवा शक्ति के लिए वे सदैव प्रेरणा स्रोत रही। सरोजिनी नायडू बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि थी। उन्होंने 12 वर्ष की आयु में 12वीं की परीक्षा पास कर ली थी। सरोजनी नायडू ने 13 वर्ष की अल्पायु में ही ‘ लेडी ऑफ द लेक’ नामक कविता की रचना की। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए 1895 में वह इंग्लैंड गई। इंग्लैंड में पढ़ाई के दौरान वह कविताओं की रचना करती रही। उनका पहला कविता संग्रह था ‘ गोल्डन थ्रेसोल्ड’। ‘ बर्ड आफ टाइम’ तथा ‘ ब्रोकन विंग’ उनका दूसरा और तीसरा कविता संग्रह था।
सरोजिनी नायडू ने अपनी मातृभूमि को संबोधित करते हुए अपनी कविता में लिखा था

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Sarojini Naidu Birth Anniversary 2023 : सरोजिनी नायडू (Sarojini naidu) को भारत कोकिला (‘Nightingale of India’) भी कहा जाता है।वह एक सुप्रसिद्ध कवियत्री और भारत के सर्वोत्तम नेताओं में से एक थी। भारत के स्वाधीनता संग्राम में उनका अहम योगदान रहा है। उनके साथ रहने वाले लोग उनसे ऊर्जा, साहस और शक्ति प्राप्त करते थे। युवा शक्ति के लिए वे सदैव प्रेरणा स्रोत रही। सरोजिनी नायडू बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि थी। उन्होंने 12 वर्ष की आयु में 12वीं की परीक्षा पास कर ली थी। सरोजनी नायडू ने 13 वर्ष की अल्पायु में ही ‘ लेडी ऑफ द लेक’ नामक कविता की रचना की। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए 1895 में वह इंग्लैंड गई। इंग्लैंड में पढ़ाई के दौरान वह कविताओं की रचना करती रही। उनका पहला कविता संग्रह था ‘ गोल्डन थ्रेसोल्ड’। ‘ बर्ड आफ टाइम’ तथा ‘ ब्रोकन विंग’ उनका दूसरा और तीसरा कविता संग्रह था।
सरोजिनी नायडू ने अपनी मातृभूमि को संबोधित करते हुए अपनी कविता में लिखा था

श्रम करते हैं हम
की समुद्र हो तुम्हारी जागृति का क्षण
हो चुका जागरण
अब देखो निकला दिन कितना उज्जवल।

आइए जानते हैं उत्तर प्रदेश की प्रथम राज्यपाल सरोजिनी नायडू की जीवन के बारे में-

सरोजिनी नायडू का जन्म ( Birth of Sarojini Naidu)

सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी सन 1879 को हैदराबाद में हुआ था। उनके पिता का नाम अघोरनाथ चट्टोपाध्याय और माता का नाम वरदा सुंदरी था। सरोजिनी नायडू के पिता वैज्ञानिक और शिक्षाशास्त्री होने के साथ कविता भी लिखते थे। उनकी माता वरदा सुंदरी और भाई हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय भी कविता रचना करते थे। काव्य रचना की प्रतिभा सरोजनी नायडू को विरासत में मिली थी। सरोजिनी नायडू के पिता इन्हें गणित और अंग्रेजी में निपुण बनाना चाहते थे।

सरोजिनी नायडू की शिक्षा ( Education of Sarojini Naidu)

 सरोजिनी नायडू बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि थी उन्होंने मात्र 12 वर्ष की अल्पायु में 12वीं की परीक्षा अच्छे अंको से उत्तीर्ण की। सर्जरी में क्लोरोफॉर्म की प्रभावकरिता साबित करने के लिए हैदराबाद के निजाम द्वारा प्रदान किए गए दान से सरोजनी नायडू को इंग्लैंड भेजा गया था। सरोजनी नायडू ने पहले लंदन के किंग्स कॉलेज में और बाद में कैंब्रिज के गिरटन कॉलेज में अध्ययन किया।

सरोजनी नायडू 2 वर्ष इंग्लैंड ही रही किंतु इन 2 वर्षों की शिक्षा के दौरान इंग्लैंड के प्रतिष्ठित साहित्यकार और मित्र उनके प्रशंसक रहे। उन्होंने किशोर वय सरोजनी को अपनी कविता में गंभीरता लाने की सलाह दी। एडमैंस गॉस और ऑर्थर सिमंस उनके मित्र एवं प्रशंसकों में शामिल थे। सरोजिनी नायडू के 20 वर्षों के कविता और लेखन कार्यों के दौरान उनके तीन कविता संग्रह प्रकाशित हुए “बर्ड ऑफ टाइम” और “ब्रोकन विंग” कविता संग्रह ने उन्हें प्रसिद्ध कवियत्री बना दिया और भारतीय एवं अंग्रेजी साहित्य जगत कि वह एक स्थापित कवित्री के रूप में जानी गई किंतु सरोजनी नायडू खुद को कवि नहीं मानती थी। उनकी कविताओं के शब्द तो अंग्रेजी थे लेकिन आत्मा भारतीय थी।

सरोजिनी नायडू का राजनीतिक जीवन (Political life of Sarojini Naidu)

दक्षिण अफ्रीका में जब महात्मा गांधी वहां की जातीय सरकार के विरुद्ध संघर्ष कर रहे थे उस समय सरोजिनी नायडू ने स्वयंसेवक के रूप में उन्हें सहयोग दिया था। देश की राजनीति में शामिल होने से पूर्व सरोजनी नायडू गांधीजी के साथ काम कर चुकी थी। अतः भारत लौटने के बाद ही वह राष्ट्रीय आंदोलन में सम्मिलित हो गई। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और गांधी जी के प्रति वह सदैव वफादार रही। सरोजनी नायडू कभी भी पूरी तरह से स्वस्थ नहीं रही लेकिन इसके बावजूद उनका मनोबल इतना दृढ़ था कि अनेक शहरों और गांवों में महिलाओं और आम सभाओं को संबोधित किया करती थी। युवावस्था के पश्चात भी उम्र बढ़ने के साथ वह  जिस उत्साह और जोश से काम करती थी उसे देखकर सब आश्चर्यचकित रह जाते थे। उनके साथी और प्रशंसक इस बात से चकित थे कि इतनी अधिक शक्ति और साहस उनके अंदर कहां से आता है।

सरोजिनी नायडू का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

 सरोजनी नायडू 1930 के नमक सत्याग्रह में गांधी जी के साथ चलने वाले स्वयंसेवकों में थी। वह आंदोलन का संचालन तब तक करती रही जब तक धारासना में लवण पटल की पिकेटिंग करते हुए स्वयं गिरफ्तार नहीं हो। गई धारासना में शांतिमय और अहिंसक सत्याग्राहियो के ऊपर पुलिस ने घोर अत्याचार किए थे। उस परिस्थिति में सरोजिनी नायडू ने बड़े साहस से काम लिया और अपने विनोदी स्वभाव से वातावरण को सजीव बनाए रखा।

     गांधी इरविन समझौता के पश्चात 1931 में लंदन में द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में गांधीजी को आमंत्रित किया गया था। जिसमें भारत की स्वशासन की मांग के लिए संवैधानिक सुधारों पर चर्चा होनी थी। दितीय गोलमेज सम्मेलन में गांधी जी के साथ सरोजिनी नायडू भी शामिल हुई थी। लंदन की सभा में अंग्रेजी बोल कर उन्होंने वहां उपस्थित सभी नेताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया था।

     अपनी प्रतिभा और लोकप्रियता के कारण 1925 में कानपुर में हुए कांग्रेसी अधिवेशन कि वह अध्यक्षा बनी। भारत की प्रतिनिधि के रुप में 1932 में वह दक्षिण अफ्रीका गई।

 

निर्भीक व्यक्तित्व

सरोजिनी नायडू ना कभी भयभीत हुई और ना कभी निराश हुई। वह साहस और निर्भीकता की प्रतीक थी। पंजाब में सन् 1919 में जब जलियांवाला बाग कांड हत्याकांड हुआ और जनरल डायर द्वारा आम सभाओं पर लगाए गए  प्रतिबंध के विरोध में जमा हुए सैकड़ों नर- नारियों की निर्दयता से हत्या कर दी गई थी और देश में रौलट एक्ट पारित हो गया था, उस पाशविक अत्याचार के विरोध में सरोजनी नायडू ने अपना कैसर- ए- हिंद का खिताब वापस कर दिया। कैसर- ए- हिंद का खिताब उन्हें सामाजिक कार्यों के लिए दिया गया था। अहमदाबाद में गांधीजी के साबरमती आश्रम में स्वाधीनता की प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर करने वालों में वह शामिल थी। गांधीजी उनकी प्रवृत्तियों को कताई, स्वदेशी, शराब की दुकानों पर धरना आदि तक ही सीमित रखना चाहते थे लेकिन उस समय देश की प्रमुख महिलाओं और सरोजनी नायडू के आग्रह को देखते हुए उन्हें अपनी राय बदलनी पड़ी।

नारी मुक्ति आंदोलन की समर्थक

 सरोजनी नायडू (Sarojini Naidu ) नारी मुक्ति की समर्थक थी। वह भारत की महिलाओं को जगाने की जिम्मेदार थी। वह उन्हें रसोई से बाहर ले आई। उन्होंने एक राज्य से दूसरे राज्य शहर दर शहर यात्रा की और महिलाओं के अधिकारों की मांग की। उन्होंने भारत की महिलाओं के भीतर आत्म सम्मान को फिर से जागृत किया। सरोजिनी नायडू का मानना था 

“भारतीय नारी कभी भी कृपा की पात्र नहीं थी वह सदैव समानता की अधिकारी रही है उन्होंने अपने इन विचारों के साथ महिलाओं में आत्मविश्वास जागृत करने का कार्य किया”।

उत्तर प्रदेश की प्रथम राज्यपाल ( First Governor of Uttar Pradesh)

भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात वे उत्तर प्रदेश की पहली राज्यपाल बनी। श्रीमती एनी बेसेंट की प्रिय मित्र और गांधी जी की प्रिय शिष्य ने अपना सारा जीवन देश के लिए समर्पित कर दिया।

स्वाधीनता की प्राप्ति के पश्चात देश को उस लक्ष्य तक पहुंचाने वाले नेताओं के सामने अब दूसरा कार्य था और वह कार्य था राष्ट्र निर्माण का। कुछ नेताओं को सरकारी तंत्र और प्रशासन में नौकरी दी गई, जिनमें सरोजनी नायडू एक थी। उन्हें उत्तर प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया। उत्तर प्रदेश विस्तार और जनसंख्या की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा प्रांत था। इतने बड़े प्रांत की प्रथम राज्यपाल होने का गौरव सरोजनी नायडू को प्राप्त हुआ। इस पद को स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा

“मैं अपने को कैद कर दिए गए जंगल के पक्षी की तरह अनुभव कर रही हूं”।

    Nप्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के प्रति उनके मन में गहन प्रेम व स्नेह था। इसलिए उनकी इच्छा को वह टाल न सकी और लखनऊ में जाकर बस गई। लखनऊ में राज्यपाल के पद पर रहते हुए उन्होंने गौरव पूर्ण व्यवहार द्वारा अपने राजनीतिक कर्तव्यों को निभाया।

सरोजनी नायडू का निधन

उत्तर प्रदेश की राज्यपाल के पद पर रहते हुए 2 मार्च सन 1949 को उनका निधन हो गया लेकिन उस दिन वह मृत्यु सिर्फ उनके शरीर की थी अपनी एक कविता में उन्होंने मृत्यु को कुछ देर ठहरने को कहा था,

‘ मेरे जीवन की सुधा, नहीं मिटेगी जब तक,

  मत आना ही मृत्यु, कभी तुम मुझ तक।’

     उनके उस जीवन से उन्हें आत्म संतुष्टि प्राप्त हुई कि नहीं यह कोई नहीं जानता लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि उन्होंने अपना जीवन एक उद्देश्य के अनुरूप जिया था। ऐसा जीवन कम ही लोगों को मिलता है। उन्होंने ‘ गीत की विषाद से जीवन का  विषाद’ मिटा देने का प्रयास करती रही। आने वाली पीढ़ियां उन्हें इसी रूप में याद करती रहेंगी सरोजिनी जो प्रेम और गीत के लिए जीती रही उनके लिए गांधी जी ने कहा था

    “सच्चे अर्थों में वह भारत कोकिला थी”।

सरोजिनी नायडू की स्मृति में डाक टिकट

 भारत सरकार ने उनकी जयंती के अवसर पर 13 फरवरी 1964 को उनके सम्मान में 15 नए पैसे का डाक टिकट चलाया। सरोजनी नायडू को विशेषत: ‘ भारत कोकिला’ ‘ राष्ट्रीय नेता’ और ‘ नारी मुक्ति आंदोलन की समर्थक’ के रूप में सदैव याद किया जाता रहेगा।