November 20, 2024
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Birsa Munda Punyatithi 2023 :बिरसा मुंडा शहादत दिवस पर विशेष

भारत में रांची और सिंहभूमि के आदिवासियों के लिए भगवान बिरसा मुंडा का शहीद दिवस 9 जून को मनाया जाता है। बिरसा मुंडा आदिवासी नेता और लोकनायक थे। यह मुंडा जाति से संबंध रखते थे। रांची और सिंहभूमि के आदिवासी उन्हें बिरसा भगवान कहकर याद करते हैं। बिरसा मुंडा ने ही मुंडा आदिवासियों को अंग्रेजों के दमन के विरुद्ध खड़ा किया था। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में बिरसा ने 19वीं सदी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

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मात्र 25 वर्ष की उम्र में अंग्रेजों को धूल चटाने वाले तथा आदिवासियों के भगवान बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि

 भारत में रांची और सिंहभूमि के आदिवासियों के लिए भगवान बिरसा मुंडा का शहीद दिवस 9 जून को मनाया जाता है। बिरसा मुंडा आदिवासी नेता और लोकनायक थे। यह मुंडा जाति से संबंध रखते थे। रांची और सिंहभूमि के आदिवासी उन्हें बिरसा भगवान कहकर याद करते हैं। बिरसा मुंडा ने ही मुंडा आदिवासियों को अंग्रेजों के दमन के विरुद्ध खड़ा किया था। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में बिरसा ने 19वीं सदी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
बिरसा मुंडा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक ऐसे नायक थे जिन्होंने 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में भारत के झारखंड राज्य में अपने क्रांतिकारी चिंतन और विचारों से आदिवासी समाज की दशा और दिशा दोनों बदल दी। जिससे एक नए सामाजिक और राजनीतिक युग का सूत्रपात हुआ। 25 वर्ष की आयु में ही बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश साम्राज्य के काले कानूनों को चुनौती देकर ब्रिटिश सरकार को मुश्किल में डाल दिया।
आइए जानते हैं आदिवासियों के महानायक बिरसा मुंडा के जीवन के विषय में-

बिरसा मुंडा का जन्म (Birth of Birsa Munda)

बिरसा मुंडा(Birsa Munda )का जन्म 15 नवंबर 1875 ईस्वी में झारखंड के रांची जिले के उलीहतू गांव में हुआ था। बिरसा के पिता का नाम सुगना मुंडा और माता का नाम करमी हटू। था बिरसा का नाम मुंडा रीति रिवाज के अनुसार बृहस्पतिवार के हिसाब से रखा गया था। बिरसा के जन्म के बाद उनका परिवार रोजगार की तलाश में उलीहातू से कुरुमंदा आ गया और खेतों में काम करके अपना गुजारा करने लगा। काम की तलाश में कुरुमंदा से उनका परिवार बंबा चला गया। घुमक्कड़ जीवन व्यतीत करने वाले बिरसा का परिवार एक जगह से दूसरी जगह काम की तलाश में घूमता था। लेकिन बिरसा का बचपन चलकड़ में बीता। बड़े होने पर बिरसा को जंगल में भेड़ चराने जाना पड़ता था। जहां वह बांसुरी बजाया करते थे।

बिरसा मुंडा की शिक्षा

उसी दौरान बिरसा मुंडा वैष्णव भक्त आनंद पांडे के प्रभाव में आए।जिनकी वजह से उन्हें हिंदू धर्म तथा रामायण, महाभारत के पात्रों का परिचय मिला। 1895 में कुछ ऐसी अलौकिक घटनाएं घटी जिसके कारण आदिवासी समुदाय बिरसा को भगवान का अवतार मानने लगा। बिरसा के स्पर्श मात्र से रोग दूर हो जाते हैं ऐसा लोगों का यह दृढ़ विश्वास था।

बिरसा के प्रभाव में वृद्धि

बिरसा मुंडा में जनसामान्य का दृढ़ विश्वास होने के कारण बिरसा मुंडा(Birsa Munda) को अपने प्रभाव में वृद्धि करने में सहायता मिली। बिरसा मुंडा ने पुराने अंध विश्वासों का खंडन करते हुए लोगों को हिंसा और मादक पदार्थों से दूर रहने की सलाह सलाह दी। बिरसा की बातें सुनने के लिए बड़ी संख्या में लोग एकत्रित होने लगे। उनकी बातों का लोगों पर ऐसा गहरा प्रभाव पड़ा कि लोग ईसाई धर्म स्वीकार करने से बचने लगे और ईसाई धर्म स्वीकारने वालों की संख्या तेजी से घटने लगी। जो आदिवासी ईसाई बन गए थे वह पुनः अपने धर्म की ओर आकर्षित होने लगे।
बिरसा मुंडा (Birsa Munda) ने आदिवासियों की जमीन छीनने, लोगों को ईसाई बनाने और महिलाओं, युवतियों को दलालों द्वारा उठा ले जाने वाले कृत्यों को अपनी आंखों से देखा था। जिससे उनके मन में अंग्रेजों के अत्याचार के प्रति क्रोध की ज्वाला भड़क उठी थी।
बिरसा मुंडा अपने विद्रोह में इतने उग्र हो गए कि आदिवासी उन्हें भगवान मानने लगे थे। बिरसा ने धर्म परिवर्तन का विरोध कर आदिवासी जनता को हिंदू धर्म के सिद्धांतों को समझाया। उन्होंने लोगों को गाय की पूजा और गौ हत्या का विरोध करने की सलाह दी। बिरसा मुंडा(Birsa Munda) ने अंग्रेज सरकार के खिलाफ नारा दिया
“रानी का शासन खत्म करो और हमारा साम्राज्य स्थापित करो।”
अंग्रेजों द्वारा आदिवासी कृषि प्रणाली में बदलाव किए जाने पर 1895 में बिरसा मुंडा(Birsa Munda) ने लगान माफी के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया था। अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की घोषणा करते हुए उन्नीस सौ में बिरसा मुंडा ने कहा
” हम ब्रिटिश शासन तंत्र के विरुद्ध विद्रोह की घोषणा करते हैं और कभी अंग्रेजों के नियमों का पालन नहीं करेंगे। ओ गोरी चमड़ी वाले अंग्रेजों तुम्हारा हमारे देश में क्या काम है। छोटानागपुर सदियों से हमारा है और तुम इसे हमसे छीन नहीं सकते। इसलिए बेहतर है कि अपने देश वापस लौट जाओ वरना लाशों के ढेर लगा दिए जाएंगे।”

जब बिरसा मुंडा की इस घोषणा को घोषणा पत्र के रूप में अंग्रेजों ने पढ़ा तो बिरसा को पकड़ने के लिए अपनी सेना भेज दिया। अंग्रेज सरकार द्वारा बिरसा की गिरफ्तारी पर ₹500 का इनाम रखा गया था।

बिरसा मुंडा का जन्म (Birth of Birsa Munda)

बिरसा मुंडा(Birsa Munda )का जन्म 15 नवंबर 1875 ईस्वी में झारखंड के रांची जिले के उलीहतू गांव में हुआ था। बिरसा के पिता का नाम सुगना मुंडा और माता का नाम करमी हटू। था बिरसा का नाम मुंडा रीति रिवाज के अनुसार बृहस्पतिवार के हिसाब से रखा गया था। बिरसा के जन्म के बाद उनका परिवार रोजगार की तलाश में उलीहातू से कुरुमंदा आ गया और खेतों में काम करके अपना गुजारा करने लगा। काम की तलाश में कुरुमंदा से उनका परिवार बंबा चला गया। घुमक्कड़ जीवन व्यतीत करने वाले बिरसा का परिवार एक जगह से दूसरी जगह काम की तलाश में घूमता था। लेकिन बिरसा का बचपन चलकड़ में बीता। बड़े होने पर बिरसा को जंगल में भेड़ चराने जाना पड़ता था। जहां वह बांसुरी बजाया करते थे।

बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी

बिरसा मुंडा (Birsa Munda) ने लोगों को किसानों का शोषण करने वाले जमीदारों के विरुद्ध संघर्ष की प्रेरणा दी। इस पर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें लोगों की भीड़ इकट्ठा करने से रोका तो बिरसा मुंडा ने कहा “मैं तो अपनी जाति को अपना धर्म सिखा रहा हूं।” अंग्रेज सरकार बिरसा के क्रांतिकारी विचारों से घबरा गई और उन्हें गिरफ्तार करने का प्रयास भी किया। लेकिन गांव वालों द्वारा उन्हें छुड़ा लिया गया परंतु शीघ्र ही वे फिर से गिरफ्तार कर लिए गए और उन्हें 2 वर्ष के लिए हजारीबाग जेल में डाल दिया गया। बाद में उन्हें इस शर्त पर आजाद किया गया कि वे प्रचार नहीं करेंगे।

बिरसा का संगठन निर्माण

अंग्रेजो द्वारा प्रतिबंधित करने पर भी बिरसा मुंडा (Birsa Munda)अंग्रेजों का कहना कहां मानने वाले थे। उन्होंने जेल से छूटने के बाद अपने अनुयायियों के दो दल बनाएं। एक दल मुंडा धर्म के प्रचार में जुट गया और दूसरा दल राजनीतिक कार्यों में लग गया। इन दलों में नवयुवकों को शामिल किया गया जिससे बौखला कर ब्रिटिश सरकार ने फिर से उनकी गिरफ्तारी वारंट निकाला। लेकिन बिरसा कहां पकड़ में आने वाले थे इस बार बलपूर्वक सत्ता पर अधिकार के उद्देश्य से आंदोलन को आगे बढ़ाया गया। यूरोपीय अधिकारियों और पदाधिकारियों को हटाकर उनके स्थान पर बिरसा के नेतृत्व में नए राज्य की स्थापना का लक्ष्य रखा गया।

बिरसा मुंडा की शहादत

यह आंदोलन 24 दिसंबर 1899 को प्रारंभ हुआ पुलिस थानों पर तीरो से आक्रमण करके उनमें आग लगा दी गई। बिरसा के संगठन की सीधी मुठभेड़ सेना से भी हुई। लेकिन गोलियों के सामने तीर कमान बहुत देर तक नहीं चल पाए और बड़ी संख्या में बिरसा मुंडा के साथ मारे गए। धन के लालच में आकर मुंडा जाति के ही दो व्यक्तियों ने बिरसा मुंडा(Birsa Munda) को गिरफ्तार करा दिया। 9 जून 1900को जेल में रहस्यमय तरीके से उनकी मृत्यु हो गई ।अंग्रेजी सरकार द्वारा उनकी मौत का कारण हैजा बताया गया। लेकिन बिरसा मुंडा में हैजा के कोई लक्षण नहीं थे शायद उन्हें विष दे दिया गया था।ऐसा कहा जाता है कि बिरसा मुंडा को अंग्रेजो ने स्लो पॉयजन देना शुरू कर दिया था इसलिए बिरसा की मृत्यु हो गई।
बिरसा मुंडा(Birsa Munda) ने मात्र 25 वर्ष की आयु में ही ऐसा काम कर दिया जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में अमर हो गया। आज भी बिहार, झारखंड और उड़ीसा की आदिवासी जनता उन्हें याद करती है और बिरसा मुंडा को भगवान मानती है।बिरसा मुंडा के नाम पर कई शिक्षण संस्थानों के नाम ही रखे गए हैं।
सही अर्थों में बिरसा मुंडा पराक्रम और सामाजिक जागरण के धरातल पर तत्कालीन युग के ‘एकलव्य’ और ‘स्वामी विवेकानंद’ थे। 9 जून 1900 को शहीद हुए बिरसा मुंडा की गणना महान देशभक्तों में की जाती है। आज भी बिरसा मुंडा लोकगीतों और जातीय साहित्य में जीवित हैं।