December 1, 2024
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Indira Gandhi Jayanti 2023: भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जयंती पर विशेष

Indira Gandhi jayanti 2023: भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) एक ऐसी शख्सियत थी जिन्होंने भारत ही नहीं विश्व की राजनीति पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। इंदिरा गांधी को राजनीति विरासत में मिली थी। उनके पिता पंडित जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे। ऐसे में सियासी उतार-चढ़ाव को वह बखूबी समझती थी। यही वजह रही कि उनके सामने न सिर्फ देश बल्कि विदेश के नेता भी उन्नीस नजर आने लगते थे। एक समय ‘गूंगी गुड़िया’ कही जाने वाली इंदिरा गांधी के तत्कालीन फैसलों ने उन्हें “आयरन लेडी” के नाम से प्रसिद्धि दिलाई। इंदिरा गांधी की जयंती 19 नवंबर को मनाई जाती है।

आईए जानते हैं भारत की ‘लौह महिला’ (Iron Lady) के जीवन के बारे में-

Indira Gandhi Jayanti 2023: भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जयंती पर विशेष
भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) एक ऐसी शख्सियत थी जिन्होंने भारत ही नहीं विश्व की राजनीति पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। इंदिरा गांधी को राजनीति विरासत में मिली थी। उनके पिता पंडित जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे। ऐसे में सियासी उतार-चढ़ाव को वह बखूबी समझती थी। यही वजह रही कि उनके सामने न सिर्फ देश बल्कि विदेश के नेता भी उन्नीस नजर आने लगते थे। एक समय 'गूंगी गुड़िया' कही जाने वाली इंदिरा गांधी के तत्कालीन फैसलों ने उन्हें “आयरन लेडी” के नाम से प्रसिद्धि दिलाई। इंदिरा गांधी की जयंती 19 नवंबर को मनाई जाती है।

 आईए जानते हैं भारत की 'लौह महिला' (Iron Lady) के जीवन के बारे में-

जीवन परिचय

 इंदिरा गांधी(Indira Gandhi)का जन्म उत्तर प्रदेश के प्रयागराज(तत्कालीन इलाहाबाद) में आनंद भवन में 19 नवंबर 1917 को एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम जवाहरलाल नेहरू(P. Jawaharlal Nehru)और माता का नाम कमला नेहरू(Kamla Nehru)था। इनके दादा का नाम मोतीलाल नेहरू(Motilal Nehru)था।इंदिरा का पूरा नाम 'इंदिरा प्रियदर्शिनी'था। इंदिरा जी एक ऐसे परिवार से संबंध रखती थी जो आर्थिक एवं भौतिक दोनों दृष्टि से काफी संपन्न था। उनके पिता और दादाजी दोनों वकालत के पेशे से जुड़े थे तथा देश की स्वाधीनता में इनका अहम योगदान था। एक समृद्ध परिवार में जन्म लेने के कारण इन्हें महलनुमा आवास प्राप्त हुआ। अत्यंत प्रिय दिखने के कारण नेहरू जी ने अपनी पुत्री को 'प्रियदर्शनी' नाम से संबोधित किया। इंदिरा जी का नाम उनके दादा पंडित मोतीलाल नेहरू ने रखा था,जो एक संस्कृतनिष्ठ शब्द था, जिसका आशय है कांति, लक्ष्मी एवं शोभा।

इंदिरा जी का विद्यार्थी जीवन (Student Life of Indira Gandhi)

 इंदिरा जी को जन्म के कुछ वर्षों बाद भी शिक्षा का अनुकूल माहौल नहीं उपलब्ध हो पाया। उन्होंने 5 वर्ष की अवस्था हो जाने पर भी विद्यालय का मुंह नहीं देखा। उस समय उनकी माता कमला नेहरू बीमार रहती थी और पिता पंडित जवाहरलाल नेहरू देश की आजादी के आंदोलन में व्यस्त थे।जवाहरलाल नेहरू शिक्षा का महत्व काफी अच्छी तरह से समझते थे। यही कारण है कि उन्होंने इंदिरा की प्राथमिक शिक्षा का प्रबंध घर पर ही कर दिया था लेकिन इंदिरा  अंग्रेजी के अतिरिक्त अन्य विषयों में विशेष दक्षता नहीं प्राप्त कर सकी।अतः 14 वर्ष की उम्र में 1931 में नेहरू ने उन्हें बोर्डिंग स्कूल में दाखिला दिलाया। इंदिरा गांधी ने इकोले नोवेल, बेक्स (स्विट्जरलैंड), इकोले इंटरनेशनल, जिनेवा, पीपल्स ऑन स्कूल, पुणे और बॉम्बे, बैडमिंटन स्कूल, ब्रिस्टल, विश्व भारती, शांतिनिकेतन और सोमरविले कॉलेज ऑक्सफोर्ड जैसे प्रमुख संस्थानों में अध्ययन किया।

  इंदिरा जी का बचपन बेहद एकाकी था। अत्यंत संपन्न और शिक्षित परिवार में जन्म लेने के बावजूद इंदिरा को माता-पिता का वह संरक्षण नहीं प्राप्त हो सका जो साधारण परिवार के बच्चों को सामान्यतः प्राप्त होता है। विश्व स्तर पर उन्हें कई विद्यालयों द्वारा मानद डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया। प्रभावशाली शैक्षणिक पृष्ठभूमि के कारण उन्हें कोलंबिया विश्वविद्यालय से प्रशस्ति पत्र भी मिला।

इंदिरा गांधी का दांपत्य जीवन(Married Life of Indira Gandhi)

इंदिरा गांधी का विवाह 1942 में फिरोज गांधी के साथ संपन्न हुआ। इंदिरा गांधी के हृदय में भी प्रेम की भावना का उदय हुआ था। पारसी युवक फिरोज गांधी से इंदिरा का परिचय उस समय हुआ जब फिरोज गांधी आनंद भवन में एक स्वतंत्रता सेनानी की तरह आते थे। दोनों की मित्रता इस हद तक परवान चढ़ी की विवाह करने का निश्चय कर लिया, लेकिन पंडित नेहरू के सामने यह बात रखने की हिम्मत फिरोज गांधी नहीं जुटा पाए।उन्होंने इंदिरा को यह दायित्व सौंपा।इंदिरा ने पिता के सामने फिरोज से विवाह की बात कही लेकिन यह सुनकर नेहरू अवाक रह गए क्योंकि उदार हृदय होने के बावजूद नेहरू सजातीय परिवार में विवाह के पक्षधर थे। स्वयं उन्होंने अपने पिता के आदेश का पालन करते हुए सजातीय विवाह किया था। उन्होंने इंदिरा गांधी को बहुत समझाया लेकिन वह फिरोज के साथ विवाह के फैसले पर अड़ी रहीं।तब निरुपाय नेहरू ने कहा कि यदि महात्मा गांधी इस विवाह से सहमत हो तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी। इंदिरा ने सोचा महात्मा गांधी तो आराम से मान जाएंगे। लेकिन महात्मा गांधी ने भी साफ इनकार कर दिया। उन्होंने अंतरजातीय विवाह की असमानताओं के बारे में इंदिरा को बहुत समझाया। लेकिन इंदिरा की जिद के आगे सभी हार गए और महात्मा गांधी ने विवाह के लिए स्वीकृति प्रदान कर दी। इस प्रकार बिना किसी आडंबर के अत्यंत सादगी के साथ इंदिरा और फिरोज गांधी का विवाह संपन्न हुआ। उस समय इंदिरा जी की उम्र 24 वर्ष 4 माह 7 दिन थी।

इंदिरा गांधी का राजनीति में योगदान (Political Contribution of Indira Gandhi)

श्रीमती इंदिरा गांधी स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से शामिल रहीं।बचपन में उन्होंने असहयोग आंदोलन के दौरान कांग्रेस पार्टी की मदद के लिए ‘बाल चरखा संघ’ और 1930 में बच्चों की ‘वानर सेना’ की स्थापना की जो पुलिस तथा अन्य सरकारी गतिविधियों की सूचना कांग्रेस को देती रही। सन् 1942 की अगस्त की महाक्रांति के आंदोलन में इंदिरा ने जेल यात्रा भी की। भारत की आजादी के समय भी हिंदू- मुस्लिम दंगों में गांधी जी के निर्देशानुसार इन्होंने सेवा और शांति स्थापना का काम किया।

 अपने पिताजी पंडित जवाहरलाल नेहरू से इन्होंने राजनीति का ककहरा सीखा।जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्रित्व काल में इंदिरा गांधी ने यूरोप, एशिया, अफ्रीका और अमेरिका के विभिन्न देशों की अनेक यात्राएं की। इन यात्राओं के दौरान उन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति के बारे में गंभीरता से जाना और समझा।

 सन 1956 में इंदिरा गांधी जी के सामने कांग्रेस के अध्यक्ष पद का प्रस्ताव आया। इससे पूर्व वह कांग्रेस के कार्यकारिणी की सदस्य रह चुकी थी। इंदिरा गांधी ने स्वयं की शक्ति को तौल और परख कर अध्यक्षता स्वीकार कर ली और प्रगतिशील कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में इंदिरा जी अत्यंत सफल सिद्ध हुई। उनकी कार्यशक्ति,सामर्थ्य, ओज और निष्ठा देखकर उनके पिता को कहना पड़ा,

 “ इंदिरा पहले मेरी मित्र और सलाहकार थी, बाद में मेरी साथी बनी और अब तो वह मेरी नेता भी है।”

 कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर रहते हुए इंदिरा गांधी की कई बार अपने पिता प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से टक्कर भी हुई। केरल की बिगड़ी हुई राजनीतिक स्थिति पर इंदिरा गांधी जी की राय थी कि वहां राष्ट्रपति शासन लागू कर देना चाहिए लेकिन सरकार द्वारा ऐसा कदम पहले कभी नहीं उठाया गया था। इसलिए नेहरूजी दुविधा में थे। अंतत: स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए नेहरू जी ने इंदिरा की बात मान ली और केरल में देश का सबसे पहला राष्ट्रपति शासन लागू हुआ।

इंदिरा जी का राजनीतिक सफर (Political Journey of Indira Gandhi)

 26 मार्च 1942 में इंदिरा जी का विवाह फिरोज गांधी से हुआ। 1955 में इंदिरा कांग्रेस कार्य समिति और पार्टी के केंद्रीय चुनाव की सदस्य बनी। 1958 में उन्हें कांग्रेस के केंद्रीय संसदीय बोर्ड के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया। 1959 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं और 1960 तक बनी रही। 1964 से 1966 तक वह सूचना एवं प्रसारण मंत्री रही। जनवरी 1966 से मार्च 1977 तक भारत के प्रधानमंत्री के सर्वोच्च पद पर रहीं साथ ही 1967 सितंबर से मार्च 1977 तक परमाणु ऊर्जा मंत्री भी रहीं।उन्होंने 5 सितंबर 1967 से 14 फरवरी 1969 तक विदेश मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी संभाला।इंदिरा जी ने जून 1970 से नवंबर 1973 तक गृह मंत्रालय का नेतृत्व किया और जून 1972 से मार्च 1977 तक अंतरिक्ष मंत्री रहीं।जनवरी 1980 से वह योजना आयोग की अध्यक्ष रहीं और 14 जनवरी 1980 से वह फिर से प्रधानमंत्री कार्यालय की अध्यक्ष बनीं।

देश के विभाजन के समय दंगाग्रस्त क्षेत्र का दौरा किया

आजादी के समय जब पूरा देश हिंदू- मुस्लिम के सांप्रदायिक दंगों की आग में झुलस रहा था तब महात्मा गांधी किसी प्रकार दंगों की आग को शांत करना चाहते थे। ऐसे समय में जब इंसानियत शर्मसार हो रही थी, गांधी जी ने यह मुहिम इंदिरा गांधी को सौंपी। उन्होंने इंदिरा गांधी को निर्देश दिया कि वे दंगाग्रस्त क्षेत्र में जाकर लोगों को समझाएं। इंदिरा गांधी ने महात्मा गांधी के आदेश को शिरोधार्य कर दंगाग्रस्त क्षेत्र में दोनों समुदायों को समझाने के प्रयास के लिए निकल पड़ीं।हालांकि यह कार्य अत्यंत जोखिमपूर्ण था। क्योंकि इंदिरा गांधी नेहरू की बेटी थी जिसके कारण उन्हें नुकसान पहुंच सकता था, लेकिन इंदिरा गांधी निर्भीक थीं उन्होंने दंगों की आग को शांत करने के लिए पुरजोर प्रयास किया।

आपातकाल ने लगाया उनके राजनीतिक जीवन पर दाग

 15 जून 1975 को जेपी और समर्थित विपक्ष ने आंदोलन को उग्र रूप दे दिया। साथ ही यह तय किया गया कि पूरे देश में सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया जाए और प्रधानमंत्री आवास को भी घेर लिया जाए। आवास में मौजूद लोगों को नजर बंद करके किसी को भी अंदर प्रवेश करने न दिया जाए। इन्हीं परिस्थितियों के कारण प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से आपातकाल(Emergency)लागू करने की हस्ताक्षरित स्वीकृति प्राप्त कर ली। इस प्रकार 26 जून 1975 की प्रातः देश में आपातकाल की घोषणा कर दी गई। आपातकाल लागू होने के बाद जय प्रकाश नारायण, मोरार जी देसाई और अन्य सैकड़ो छोटे बड़े नेताओं को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया। ऐसा माना जाता है कि आपातकाल के दौरान 1 लाख व्यक्तियों को देश के विभिन्न जेलों में बंद किया गया था। इनमें मात्र राजनीतिक व्यक्ति ही नहीं अपराधिक प्रवृत्ति के लोग भी थे जो ऐसे आंदोलन के समय लूटपाट करते हैं। साथ ही भ्रष्ट्र कलाबाजारियों और हिस्ट्रीशीटर अपराधियों को बंद कर दिया गया। आपात काल लागू करने के कारण इन्दिरा गांधी की देशभर में आलोचना हुई जिसने इनकी राजनितिक छवि को धूमिल किया।

इंदिरा गांधी को मिलने वाली उपाधियां

 इंदिरा गांधी  को कई उपाधियां प्रदान की गई-
  • 1972 में भारत रत्न
  • 1972 में बांग्लादेश की मुक्ति के लिए ‘मैक्सिकन अकादमी पुरस्कार’
  • 1973 में दूसरा वार्षिक पदक ‘एफएओ’
  • 1976 में नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा ‘ साहित्य वाचस्पति’ की उपाधि से नवाजी गई
  • 1953 में इंदिरा को अमेरिका का ‘ मदर्स अवार्ड’

कूटनीति में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए इटली का ‘इस्लबेला डी एस्टे अवार्ड’ और येल विश्वविद्यालय का हावलैंड मेमोरियल पुरस्कार भी मिला। फ्रांस की जनमत संख्या द्वारा लिए गए अभिमत के अनुसार 1967- 68 लगातार 2 वर्षों के लिए फ्रांसीसियों में सबसे विख्यात महिला रहीं।

इंदिरा गांधी की उपलब्धियां (Achievement of Indira Gandhi)

इंदिरा गांधी ने अपने राजनीतिक जीवन में कई उपलब्धियां प्राप्त की। अपने राजनीतिक फैसलों से उन्होंने विश्व की राजनीति पर अपनी छाप छोड़ी। उनके द्वारा लिए गए ऐतिहासिक और दमदार फैसलों ने ही उन्हें भारत की लौह महिला(Iron Lady)के रूप में प्रसिद्धि दिलाई। इंदिरा गांधी की उपलब्धियां इस प्रकार हैं-

  • बैंकों का राष्ट्रीयकरण
  • बांग्लादेश को स्वतंत्र कराना
  • गुटनिरपेक्ष आंदोलन की अध्यक्षता
  • निर्धन लोगों के उत्थान के लिए आयोजित 20 सूत्रीय कार्यक्रम
  • प्रिवी पर्स की समाप्ति

ऑपरेशन ब्लू स्टार (Operation Blue Star)

1984 का ऑपरेशन ब्लू स्टार भारतीय सेना द्वारा चलाया गया अब तक का सबसे बड़ा आंतरिक सुरक्षा मिशन था। ‘ ऑपरेशन ब्लू स्टार’ पंजाब में बिगड़ती कानून व्यवस्था की स्थिति के लिए इंदिरा गांधी का समाधान था। इंदिरा गांधी ने हरमंदिर साहिब परिसर (स्वर्ण मंदिर) में हथियार जमा कर रहे सिख आतंकवादियों को हटाने के लिए सैन्य अभियान का आदेश दिया।

 भिंडरा वाले दमदमी टकसाल का नेता था और ऑपरेशन ब्लू स्टार के पीछे पीछे मुख्य कारणों में से एक था। एक नेता के रूप में भिंडरा वाले का सिक्ख युवाओं पर प्रभाव था। उन्होंने कई लोगों को सिक्ख नियमों और सिद्धांतों का पालन करने के लिए प्रेरित किया। 

 ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान भिंडरा वाले और खालिस्तान समर्थकों ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में अकाल तख्त परिसर पर कब्जा कर लिया। भिंडरा वाले को खालिस्तान के निर्माण के समर्थक के रूप में देखा जाता था। ऑपरेशन ब्लू स्टार का उद्देश्य विशेष रूप से स्वर्ण मंदिर परिसर से जरनैल सिंह भिंडरावाले को खत्म करना और हर मंदिर साहिब पर नियंत्रण हासिल करना था। इंदिरा गांधी के आदेश पर ऑपरेशन ब्लू स्टार 1 जून से 8 जून 1984 के बीच अमृतसर में चलाया गया। ऑपरेशन के दौरान सिखो का पवित्र तीर्थ स्थल स्वर्ण मंदिर काफी क्षतिग्रस्त हो गया और दोनों पक्षों के हताहत होने की सूचना मिली। इस ऑपरेशन के दूरगामी परिणाम हुए और इसका भारत के राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिदृश्य पर गहरा प्रभाव पड़ा। इस ऑपरेशन ने कई सिखों को कट्टरपंथी बना दिया। जिन्होंने अन्याय और विश्वासघात की गहरी  भावना महसूस की। जिससे बाद की वर्षों में सिक्ख उग्रवाद और हिंसा में वृद्धि हुई।

इंदिरा गांधी की मृत्यु का कारण बना ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’

‘ ऑपरेशन ब्लू स्टार’ (Operation Blue Star) के परिणाम स्वरुप एक दुखद घटना घटी जिसने भारतीय इतिहास की दिशा बदल दी। सैन्य अभियान के प्रतिशोध में दो सिक्ख अंगरक्षकों ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी। 31 अक्टूबर 1984 को इस घटना से सिक्ख विरोध भड़क उठा। दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। जान माल की हानि हुई और सिक्ख संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया। ऑपरेशन ब्लू स्टार और उसके बाद की घटनाओं ने सिक्ख समुदाय में भारत सरकार के प्रति अविश्वास और अलगाव की गहरी भावना पैदा कर दी।भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, जिसे सैन्य अभियान के लिए जिम्मेदार माना जाता था, को सिक्खों से महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा जिसने पंजाब और महत्वपूर्ण सिक्ख आबादी वाले अन्य क्षेत्रों में पार्टी के राजनीतिक भाग्य को प्रभावित किया।

 ऑपरेशन ब्लू स्टार के तहत स्वर्ण मंदिर पर हमले के प्रतिकार में 5 महीने बाद ही 31 अक्टूबर 1984 को श्रीमती इंदिरा गांधी के आवास पर उनकी सुरक्षा में तैनात दो सिक्ख अंगरक्षकों ने गोली मार कर उनकी हत्या कर दी।

 भारत के सभी प्रधानमंत्री की कुछ विशेषताएं रही हैं लेकिन इंदिरा गांधी के रूप में जैसा प्रधानमंत्री भारत भूमि को प्राप्त हुआ वैसा अभी तक नहीं हुआ। एक प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने विभिन्न चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना किया, वह युद्ध हो, विपक्ष की गलतियां हो, कूटनीति का अंतरराष्ट्रीय मैदान हो अथवा देश की समस्या,इंदिरा ने स्वयं को सफल साबित किया। नेहरू द्वारा शुरू की गई औद्योगिक विकास की अर्द्ध समाजवादी नीतियों पर इंदिरा कायम रही। इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व को देखने वालों का मानना था कि इंदिरा गांधी में अपार साहस, निर्णय शक्ति और धैर्य था।

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About Indira Gandhi: https://en.wikipedia.org/wiki/Indira_Gandhi