December 12, 2024
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Guru Tegh Bahadur Singh Martyrdom Day 2023: धर्म की रक्षा के लिए अपना जीवन बलिदान करने वाले “हिंद की चादर” गुरू तेग बहादुर सिंह की पुण्य तिथि पर विशेष

Guru Tegh Bahadur Singh Martyrdom Day 2023_गुरु तेग बहादुर सिंह

सिक्खों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर सिंह (Guru Tegh Bahadur Singh) विश्व के इतिहास में धर्म एवं सिद्धांतों की रक्षा के लिए जाने जाते हैं। धर्म के लिए बलिदान देने वालों में गुरु तेग बहादुर सिंह जी का अद्वितीय स्थान है। 24 नवंबर को गुरु तेग बहादुर जी ने धर्म की रक्षा के लिए प्राणों का बलिदान दिया था। गुरु तेग बहादुर का शहादत दिवस(Martyrdom Day of Guru Tegh Bahadur Singh) 24 नवंबर को मनाया जाता है। उनके शहादत दिवस को ‘शहीदी दिवस’ के रूप में भी मनाया जाता है। जब लोगों का बलपूर्वक धर्म परिवर्तन किया जा रहा था उस समय गुरु तेग बहादुर धार्मिक स्वतंत्रता के समर्थक थे।

आईए जानते हैं गुरु तेग बहादुर के जीवन और उनके बलिदान के बारे में-

गुरु तेग बहादुर सिंह का जीवन परिचय

गुरु तेग बहादुर सिंह का जन्म वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को पंजाब के अमृतसर में हुआ था। गुरु तेग बहादुर गुरु हरगोविंद जी के पांचवे पुत्र थे। यह सिक्खों के नौवें गुरु थे। उनके बचपन का नाम त्यागमल था। 14 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने अपने पिता के साथ मुगलों के खिलाफ युद्ध में वीरता का परिचय दिया। उनकी वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता ने इनका नाम तेग बहादुर रख दिया जिसका अर्थ होता है ‘ तलवार का धनी’।

बाल्यावस्था से ही गुरु तेग बहादुर संत स्वरूप, गहन विचारवान, उदात्त चरित्र, बहादुर व निर्भीक स्वभाव के थे। मीरी- पीरी के मालिक गुरु- पिता गुरु हरि गोविंद साहब की छत्रछाया में उनकी शिक्षा- दीक्षा हुई। इसी समय तेग बहादुर जी ने गुरुबाणी धर्मग्रंथ तथा शास्त्रों और घुड़सवारी आदि की शिक्षा प्राप्त की।

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युद्ध स्थल में भीषण रक्तपात से बैरागी मन लगा आध्यात्मिक चिंतन में

युद्ध स्थल में हुए भीषण रक्तपात ने गुरु तेग बहादुर सिंह जी के बैरागी मन पर ऐसा गहरा प्रभाव डाला कि उनका मन आध्यात्मिक चिंतन में रम गया। गुरु तेग बहादुर धैर्य, वैराग्य और त्याग की मूर्ति थे। तेग बहादुर जी ने ‘बाबा बाकला’ नामक स्थान पर एकांत में लगातार 20 वर्षों तक साधना की। गुरू तेग बहादुर जी धर्म का प्रसार करते हुए आनंदपुर साहिब से कीरतपुर, रोपण, सैफाबाद होते हुए खिआला(खदल)पहुंचे। यहां उन्होंने उपदेश दिया इसके बाद दमदमा साहब से होते हुए कुरुक्षेत्र पहुंचे जहां से यमुना के किनारे होते हुए कड़ा मानिकपुर पहुंचे।

यहीं पर उन्होंने साधु भाई मलूक दास का उद्धार किया। गुरु तेग बहादुर सिंह (Guru Tegh Bahadur Singh) ने बनारस, प्रयाग, पटना, आसाम आदि क्षेत्रों में आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक उन्नयन के लिए रचनात्मक कार्य किये तथा आध्यात्मिकता एवं धर्म के ज्ञान का प्रसार किया। परोपकार के लिए गुरुजी ने कुएं खुदवाए व धर्मशालाएं बनवाया।इन यात्राओं के दौरान 1666 में पटना साहब में गुरु जी के यहां पुत्र ने जन्म लिया जो आगे चलकर दसवें गुरु ‘गुरु गोविंद सिंह’ बने।

धर्म की रक्षा को रहे सदैव तत्पर

गुरु तेग बहादुर सिंह (Guru Tegh Bahadur Singh)के काल में औरंगजेब का शासन था।औरंगजेब के दरबार में एक विद्वान पंडित गीता के श्लोक और उसका अर्थ सुनता था लेकिन कुछ श्लोक छोड़ दिया करता था। एक दिन बीमार होने के कारण पंडित ने अपने बेटे को औरंगजेब को गीता सुनने के लिए भेजा किंतु पंडित ने अपने बेटे को यह नहीं बताया कि औरंगजेब के सामने किन- किन श्लोकों का अर्थ नहीं करना था। पंडित के बेटे ने औरंगजेब को संपूर्ण गीता का अर्थ सुनाया। जिससे औरंगजेब को यह ज्ञान हुआ कि प्रत्येक धर्म अपने आप में महान है, किंतु औरंगजेब को अपने धर्म के अतिरिक्त किसी धर्म की प्रशंसा सहन नहीं कर सकता था। अतः उसने सबको इस्लाम धर्म अपनाने का आदेश दे दिया। औरंगजेब ने कहा सभी या तो इस्लाम धर्म अपना ले या मौत के लिए तैयार रहें। औरंगजेब की हठधर्मिता ने अन्य धर्म के लोगों का जीना मुश्किल कर दिया था।

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औरंगजेब के अत्याचार से त्रस्त कश्मीरी पंडित गुरु तेग बहादुर के पास आए और उन्हें बताया कि किस प्रकार औरंगजेब धर्म के नाम पर अत्याचार कर रहा है। उन्होंने गुरु तेग बहादुर जी से धर्म को बचाने का आग्रह किया। कश्मीरी पंडितों की व्यथा को सुनते समय गुरु जी के 9 वर्षीय पुत्र बाला प्रीतम(गुरू गोविंद सिंह) भी वहां आ गए और उन्होंने पूछा कि यह सब इतने उदास क्यों है? गुरु तेग बहादुर सिंह ने कश्मीरी पंडितों की समस्या बाला प्रीतम को बताइ। इस पर बाला प्रीतम ने इस समस्या का हाल अपने पिताजी से पूछा तब गुरुजी साहब ने कहा कि इसके लिए बलिदान देना होगा। तब गुरु तेग बहादुर जी के पुत्र बाला प्रीतम ने कहा कि आप से महान पुरुष कोई नहीं है। आप इन सबके धर्म को बचाइए।

वहां उपस्थित लोगों ने उनकी बातें सुनकर कहा कि यदि आपके पिता बलिदान करेंगे तो आपकी मां विधवा हो जाएंगी और आप यतीम हो जाएंगे। बाला प्रीतम ने कहा कि यदि मेरी माता की विधवा होने से लाखों माताएं विधवा होने से बच सकती हैं और मेरे यतीम होने से यदि लाखों बच्चे यतीम होने से बच सकते हैं तो यह मुझे स्वीकार है।

गुरु तेग बहादुर सिंह का बलिदान

गुरु तेग बहादुर सिंह (Guru Tegh Bahadur Singh)ने धर्म की रक्षा के लिए स्वयं को समर्पित करने का निर्णय लिया। उन्होंने पंडितों से कहा कि औरंगजेब से कह दें कि यदि गुरु तेग बहादुर इस्लाम धर्म ग्रहण कर ले तो हम सभी इस्लाम अपना लेंगे और यदि औरंगज़ेब गुरु तेग बहादुर से इस्लाम धर्म नहीं धारण करवा पाए हैं तो हम भी इस्लाम धर्म धारण नहीं करेंगे। औरंगजेब इससे सहमत हो गया।

औरंगजेब के दरबार में जब गुरु तेग बहादुर पहुंचे तो औरंगजेब ने उन्हें इस्लाम धर्म अपनाने के लिए कई प्रकार का लालच दिया। लेकिन गुरु तेग बहादुर जी नहीं माने। औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर को कैद कर, उनके दो शिष्यों को मार कर उन्हें डराने का भी प्रयास किया लेकिन धर्म के प्रति अटल और निर्भय गुरु तेग बहादुर ने कहा कि “इस्लाम धर्म में यह शिक्षा नहीं देता कि किसी पर अत्याचार करके मुस्लिम बनाया जाए। इसीलिए यदि तुम जबरदस्ती इस्लाम ग्रहण करवाओगे तो तुम सच्चे मुसलमान नहीं हो।”

गुरु तेग बहादुर सिंह जी (Guru Tegh Bahadur Singh)की बात सुनकर औरंगजेब क्रोधित हो गया और दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरुदेव बहादुर जी का शीश काटने का आदेश जारी कर दिया। 24 नवंबर 1675 में दिल्ली के चांदनी चौक मैं जल्लाद जलालुद्दीन ने तलवार से गुरु साहब का शीश धड़ से अलग कर दिया। लाल किले के सामने आज उसी जगह पर गुरुद्वारा ‘शीशगंज साहिब’ स्थित है। इस प्रकार धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने सिर कटा दिया पर झुकाया नहीं।

सिक्खों के नौवें गुरु तेग बहादुर ने अपने युग के शासन वर्ग की नृशंस एवं मानवता विरोधी नीतियों को कुचलने के लिए अपना बलिदान दे दिया।

गुरू तेग बहादुर सिंह जी का लेखन कार्य

गुरु तेग बहादुर की रचनाएं ग्रंथ साहिब के महला 9 में संग्रहीत हैं। इन्होंने शुद्ध हिंदी में सरल और भवयुक्त पदों और सखी की रचनायें की। इनके द्वारा रचित बाणी की 15 रागों में 116 सबद (श्लोक सहित) श्री गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित हैं। शस्त्र, शास्त्र, संघर्ष वैराग्य, रणनीति, राजनीति और त्याग का अनोखा संयोग गुरु तेग बहादुर सिंह जी में मिलता है। ऐसा संयोग मध्ययुगीन साहित्य के इतिहास में बिरला ही देखने को मिलता है।

गुरु तेग बहादुर सिंह (Guru Tegh Bahadur Singh)जी का जीवन प्रेम, त्याग, ईश्वरीय निष्ठा, सहानुभूति, करुणा समता और बलिदान जैसे मानवीय गुण से परिपूर्ण था। उन्होंने धर्म की रक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया। उन्होंने अपने सर का झुकाने से बेहतर समझट सर को कटाना। गुरु तेग बहादुर के बारे में कहा जाता है, “ सर दिया पर सार न दिया।”

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