Unsung Warrior Of Ayodhya Ram Mandir Movement: एक ऐसा व्यक्ति जिसने मुस्लिम होकर भी राम मंदिर के अस्तित्व को किया उजागर- के. के. मोहम्मद (K. K. Muhammed)
Unsung Warrior Of Ayodhya Ram Mandir Movement: एक ऐसा व्यक्ति जिसने मुस्लिम होकर भी राम मंदिर के अस्तित्व को किया उजागर- के. के. मोहम्मद (K. K. Muhammed): राम जन्मभूमि पर राम मंदिर का निर्माण हो रहा है लेकिन आज भव्य मंदिर का निर्माण जिस भूमि पर हो रहा है वह दशकों से विवादास्पद रही। इस भूमि पर बाबरी मस्जिद होने के कारण मुस्लिम अपना अधिकार समझते थे जबकि शास्त्रों में अयोध्या को प्रभु श्री राम के जन्मस्थली होने के कारण इसे राम जन्मभूमि के रूप में जाना जाता है।
इतिहास के अनुसार बाबर ने राम मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया था, जिसे 6 दिसंबर 1992 को कार्य सेवकों ने ध्वस्त कर दिया था। बाबरी मस्जिद तो निर्मित थी इसका साक्षात प्रमाण था लेकिन मस्जिद से पहले वहां राम मंदिर था इसका प्रमाण मिलना बेहद कठिन था। क्या आप जानते हैं कि मस्जिद की जगह पर मंदिर होने का प्रमाण किसने खोज निकाला या यूं कहें कि राम मंदिर होने के अस्तित्व को किसने उजागर किया? आईए जानते हैं-
Unsung Warrior Of Ayodhya Ram Mandir Movement: राम जन्मभूमि पर राम मंदिर का निर्माण हो रहा है लेकिन आज भव्य मंदिर का निर्माण जिस भूमि पर हो रहा है वह दशकों से विवादास्पद रही। इस भूमि पर बाबरी मस्जिद होने के कारण मुस्लिम अपना अधिकार समझते थे जबकि शास्त्रों में अयोध्या को प्रभु श्री राम के जन्मस्थली होने के कारण इसे राम जन्मभूमि के रूप में जाना जाता है।
इतिहास के अनुसार बाबर ने राम मंदिर (Ram Mandir) को तोड़कर बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया था, जिसे 6 दिसंबर 1992 को कार्य सेवकों ने ध्वस्त कर दिया था। बाबरी मस्जिद तो निर्मित थी इसका साक्षात प्रमाण था लेकिन मस्जिद से पहले वहां राम मंदिर था इसका प्रमाण मिलना बेहद कठिन था। क्या आप जानते हैं कि मस्जिद की जगह पर मंदिर होने का प्रमाण किसने खोज निकाला या यूं कहें कि राम मंदिर होने के अस्तित्व को किसने उजागर किया? आईए जानते हैं-
ह घटना आपातकाल के दौरान की है जब 1976- 77 के दौरान दिल्ली विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग के छात्रों का एक दल सामान्य एजुकेशनल टूर के लिए अयोध्या आया था, जिसका उद्देश्य था अयोध्या में ऐतिहासिक खोज। छात्रों के इसी दल में एक 24 वर्षीय मुस्लिम छात्र था करिंगमन्नु कुझियिल मोहम्मद (K. K. Muhammad)। जिसके बिना राम मंदिर का निर्माण संभव ही नहीं था। यही वह व्यक्ति थे जो बीबी लाल के साथ अयोध्या में खुदाई में शामिल थे। वे आज भी कहते हैं कि वहां राम मंदिर था। लेकिन कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने इसे हिंदू मुस्लिम संघर्ष बना दिया था।
कौन थे के. के. मोहम्मद (K. K. Muhammad)?
के.के. मोहम्मद का पूरा नाम करिंगमन्नू कुझियिल मोहम्मद (K. K. Muhammad) था। इनका जन्म केरल के कोझिकोड में हुआ था। यह उस केरल राज्य से आते हैं जहां भारतीय जनता पार्टी का आज भी कोई राजनीतिक प्रभाव बहुत महत्वपूर्ण नहीं हो पाया है, यह उस केरल राज्य से आते हैं जहां कहा जाता है कि इंडियन मुस्लिम लीग, कम्युनिस्ट और कांग्रेस की राजनीतिक कार्यशैली के हिसाब से कार्य करना पड़ता है, यह उस केरल राज्य से हैं जहां के लिए प्रचलित है कि यहां राम की राजनीति नहीं काम करती लेकिन इसी केरल राज्य का होकर के. के. मोहम्मद ने राम मंदिर के सच को उजागर किया।
के.के. मोहम्मद का जन्म 1 जुलाई 1952 को हुआ था उनकी प्रारंभिक शिक्षा गवर्नमेंट हायर सेकेंडरी कुडूवली में हुई। इसके बाद उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की और फिर पोस्ट ग्रैजुएट डिप्लोमा इन आर्कियोलॉजी इन्होंने आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया न्यू दिल्ली से किया।
K. K. Muhammad का संघर्ष
के.के. मोहम्मद ने हिंदुओं की आस्था के प्रतीक भगवान राम के ऐतिहासिक जन्म स्थल श्री राम मंदिर के सत्य को प्रकाशित किया। राम जन्मभूमि के पुरातात्विक तथ्यों को उजागर करना एक टेढ़ी खीर था, जिसके लिए के.के. मोहम्मद को संघर्षों के दौर से गुजरना पड़ा। मंदिर के तथ्यों का जिस समय के. के. मोहम्मद शोध कर रहे थे, उस समय एक तो वह सरकार के मुलाजिम थे, दूसरे केंद्र में भाजपा की सरकार भी नहीं थी।
ऐसे में के.के. मोहम्मद की स्थिति पानी में मगरमच्छ से बैर करने जैसी थी। यही नहीं क्योंकि मोहम्मद मुस्लिम समुदाय से आते थे इसलिए उन्हें अपने ही समुदाय के कट्टरपंथी लोगों के ताने भी सुनने पड़े, लेकिन वह अपने कार्य से पीछे नहीं हटे राम मंदिर का सत्य उजागर करना उनका उद्देश्य बन गया था।
अपनी किताब में किया राम जन्मभूमि खोज यात्रा का वर्णन
K. K. Muhammad ने अपनी मलयाली किताब के हिंदी अनुवाद “मैं भारतीय हूं” में राममंदिर (Ram Mandir Ayodhya) की खोज यात्रा को विस्तार से लिखा है। उन्होंने लिखा है कि “1990 में पहली बार राम जन्मभूमि के मालिकाना हक को लेकर पूरे देश में बहस जोरों पर थी। उस समय मुझे अपने कॉलेज के टूर के दौरान हुई बातें याद आई। अयोध्या में प्रोफेसर बीबी लाल की अगुवाई में खुदाई हुई थी।
अयोध्या में खुदाई करने वाली दिल्ली स्कूल आफ आर्कियोलॉजी के आर्कियोलॉजिस्ट की टीम के 12 छात्रों में से एक मैं भी था। उस समय खुदाई में मंदिर के स्तंभों के नीचे के भाग में ईंटों से बनाया हुआ आधार देखने को मिला।
मुझे हैरानी हो रही थी कि अब तक सरकार ने इसे कभी पूरी तरह खोदकर देखने की जरूरत क्यों नहीं समझी।” के.के. मोहम्मद आगे लिखते हैं कि “जब मैं वहां खुदाई के लिए पहुंचा तब बाबरी मस्जिद की दीवारों से मंदिर के खंभे साफ-साफ दिखाई देते थे। स्तंभ के निचले भाग में 11वीं और 12वीं सदी के मंदिरों में दिखने वाले पूर्ण कलश साफ दिखाई दे रहे थे।
K. K. Muhammad अपने बयान पर रहे कायम
पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के प्रोफेसर बीबी लाल ने जब 1976 में राम जन्मभूमि संबंधी पुरातात्विक पड़ताल कर यह बयान दिया कि अयोध्या में राम का अस्तित्व है,तो उनके इस बयान पर उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही भी हुई। लेकिन के.के. मोहम्मद अपने बयान पर अटल रहे। उन्होंने कहा कि “झूठ बोलने से अच्छा है मैं मर जाऊं”
के.के.मोहम्मद की किताब के अनुसार खुदाई में कुल 137 मजदूर लगाए गए थे जिनमें से 52 मुसलमान थे। इस पूरी खुदाई की निगरानी इलाहाबाद हाईकोर्ट का एक मजिस्ट्रेट कर रहा था लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट के मंदिर के पक्ष में सुनाए गए फैसले को वामपंथी इतिहासकारों ने मानने से इनकार कर दिया, जिस पर के.के. मोहम्मद को हैरानी हुई।
वामपंथियों द्वारा राम मंदिर के अस्तित्व के पुरातात्विक प्रमाण से इनकार करने पर 4 दिसंबर 1990 को डॉक्टर महादेवन ने चेन्नई में एक व्याख्यान के दौरान वामपंथी इतिहासकारों को बीबी लाल की रिपोर्ट देखने को कहा, जिसमें एक खास अभिलेख के साक्ष्य का खुलासा किया था। डॉक्टर महादेवन के बयान और आर्टिकल को पढ़कर के.के.मोहम्मद स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख सके। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को एक पत्र लिखा कि वास्तव में बाबरी ढांचे के नीचे गैर- इस्लामिक हिंदू संरचना के पुरातात्विक प्रमाण मौजूद हैं।
के.के. मोहम्मद ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह बीबी लाल की टीम का हिस्सा थे। वे विवादित बाबरी ढांचे के नीचे खंभों वाली संरचना की खोज के गवाह भी थे। के.के. मोहम्मद के लेख ने कोहरा मचा दिया।
सत्य के लिए निलंबन से भी नहीं डरे
पत्र के प्रकाशन के बाद मार्क्सवादी इतिहासकार इरफान हबी क्रोध में थे। पत्र के प्रकाशन के तुरंत बाद चेन्नई एएसआई के महानिदेशक एमसी जोशी ने यूनेस्को द्वारा प्रायोजित सेमिनार के दौरान मोहम्मद से पूछताछ की। उन्होंने के.के. मुहम्मद से पूछा कि एक सरकारी कर्मचारी के पद पर रहते हुए वह बिना पूर्व अनुमति के सार्वजनिक बयान कैसे दे सकते हैं। डॉक्टर जोशी ने के.के. मोहम्मद के खिलाफ जांच और निलंबन तक की चेतावनी दे दी।
लेकिन के.के. मोहम्मद ने शांति से उत्तर दिया उन्होंने गीता के श्लोक के रूप में अपना उत्तर दिया “लोकसमग्रमेवपि संपास्यं कर्तुमर्हसि”जिसका अर्थ है मानवता के कल्याण के लिए व्यक्ति को अपना कर्म करना होगा। के.के. मोहम्मद ने आगे हंसते हुए कहा “भयानक फल देने वाले पराये धर्म में जीने से, निज धर्म में रहकर मरना ही बेहतर है।” उनका यह उत्तर सुनकर उन्हें सजा के तौर पर उनका स्थानांतरण गोवा कर दिया गया।
के.के. मोहम्मद अपने मजहब के लोगों से भी लड़ रहे थे। जब उनसे पूछा गया कि वे राम मंदिर के लिए ऐसा क्यों कर रहे हैं तो उन्होंने दृढ़ता से जवाब देते हुए कहा कि वे जो कुछ कर रहे हैं देश हित को ध्यान में रखकर कर रहे हैं। के.के. मोहम्मद की कहानी एक ऐसे देशभक्त की कहानी है, जो कभी भी झूठ के आगे नहीं झुका और राष्ट्रहित के लिए बड़े से बड़ा नुकसान झेलने को तैयार रहा।
पुरातत्वविद के. के. मोहम्मद के इस भगीरथ प्रयास के कारण न्यायपालिका को अयोध्या विवाद पर दूध का दूध और पानी का पानी करने में मदद मिली। कद में छोटे के. के. मोहम्मद ने 80 और 90 के दशक में रामलला से जुड़े वैज्ञानिक तथ्यों और साक्ष्यों का ऐसा पहाड़ खड़ा कर दिया जिसे पार करना किसी झूठ के बस में नहीं रहा।
पद्मश्री से हुए सम्मानित
राम मंदिर की ऐतिहासिक सच्चाई को स्थापित करने वाले के. के. मोहम्मद को रिटायरमेंट के बाद 2012 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया।