September 7, 2024
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Chaturmas: जानिए चातुर्मास क्या है एवं हिंदू धर्म में इसका महत्व क्या है ?

Chaturmas: चातुर्मास के चार महीने में सभी मांगलिक कार्य जैसे विवाह, मुंडन जनेऊ,गृह प्रवेश आदि कार्य वर्जित होते हैं। हालांकि इस अवधि के दौरान कई महत्वपूर्ण व्रत एवं त्योहार पड़ते हैं।इन चार महीनों में धर्म- कर्म और दान – पुण्य का भी विशेष महत्व होता है। चातुर्मास के चार महीना की अवधि के दौरान ही वर्ष के सबसे अधिक व्रत और त्योहार पड़ते हैं, जैसे- सावन का सोमवार, हरियाली तीज, नाग पंचमी,रक्षाबंधन, गणेश चतुर्थी, ललही छठ, श्री कृष्ण जन्माष्टमी, हरतालिका तीज, अनंत चतुर्दशी, नवरात्रि, दशहरा तथा दीपावली। क्योंकि चातुर्मास की अवधि के दौरान सृष्टि का संचालन भोलेनाथ करते हैं अतः इन चार महीनों में किए गए दान पुण्य पूजा पाठ से भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं।

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Chaturmas: चातुर्मास क्या है,हिंदू धर्म में क्या है इसका महत्व ?

Chaturmas (चातुर्मास ): हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। एकादशी तिथि सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित है। प्रत्येक महीने में दो एकादशी तिथि पड़ती है। लेकिन 12 महीने की 24 एकादशी तिथियों में कुछ एकादशी तिथि विशेष मानी गई है। जैसे देवशयनी एकादशी और देवोत्थान एकादशी। देवशयनी एकादशी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है, क्योंकि देवशयनी एकादशी के दिन सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं।

देवोत्थान एकादशी के दिन चार महीने की योग निद्रा के पश्चात भगवान विष्णु जागते हैं। देवशयनी से देवोत्थान एकादशी तक के इस चार महीने के समय को ही चातुर्मास कहा गया है। चातुर्मास के दौरान कोई भी शुभ एवं मांगलिक कार्य जैसे विवाह, जनेऊ, मुंडन, गृह प्रवेश आदि वर्जित होते हैं। हालांकि धर्म- कर्म और दान- पुण्य के लिए चातुर्मास अनुकूल माना जाता है।

कब से कब तक होता है चातुर्मास ?

आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से चातुर्मास का प्रारंभ होता है। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी कहा जाता है और कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थान एकादशी कहा जाता है। देवशयनी और एकादशी और देवोत्थान एकादशी के बीच के चार महीने के समय को चातुर्मास कहा जाता है।

क्या है चातुर्मास?

देवशयनी एकादशी के दिन सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु चार महीने के लिए जब योग में निद्रा में चले जाते हैं तब सृष्टि का संपूर्ण संचालन भगवान शिव के हाथों में आ जाता है। ऐसी मान्यता है कि चार महीने भगवान विष्णु क्षीर सागर में शयन करते हैं। इस दौरान सृष्टि के सभी शुभ कार्य वर्जित होते हैं। हालांकि इस अवधि में कई महत्वपूर्ण त्योहार और व्रत भी आते हैं इन चार महीनों में भगवान शिव को समर्पित श्रावण मास भी आता है। भगवान विष्णु के शयन की इस 4 महीने की अवधि को ही चातुर्मास कहा जाता है।

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क्या है चातुर्मास का महत्व ?

चातुर्मास के चार महीने में सभी मांगलिक कार्य जैसे विवाह, मुंडन जनेऊ,गृह प्रवेश आदि कार्य वर्जित होते हैं। हालांकि इस अवधि के दौरान कई महत्वपूर्ण व्रत एवं त्योहार पड़ते हैं।इन चार महीनों में धर्म- कर्म और दान – पुण्य का भी विशेष महत्व होता है। चातुर्मास के चार महीना की अवधि के दौरान ही वर्ष के सबसे अधिक व्रत और त्योहार पड़ते हैं, जैसे- सावन का सोमवार, हरियाली तीज, नाग पंचमी,रक्षाबंधन, गणेश चतुर्थी, ललही छठ, श्री कृष्ण जन्माष्टमी, हरतालिका तीज, अनंत चतुर्दशी, नवरात्रि, दशहरा तथा दीपावली। क्योंकि चातुर्मास की अवधि के दौरान सृष्टि का संचालन भोलेनाथ करते हैं अतः इन चार महीनों में किए गए दान पुण्य पूजा पाठ से भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं।

वर्ष 2024 में कब से कब तक है चातुर्मास ?

वर्ष 2024 की देवशायनी एकादशी 17 जुलाई दिन बुधवार से शुरू होगी। इस दिन से ही चातुर्मास का प्रारंभ हो जाएगा। हिंदू धर्म के साथ-साथ जैन चातुर्मास, तेरापंथी धर्म का चातुर्मास भी शुरू हो जाएगा। देवशयनी एकादशी को हरिशयनी एकादशी, आषाढी एकादशी और पद्मनाभा एकादशी भी कहते हैं। 2024 की देवोत्थान एकादशी 12 नवंबर को है। इस दिन भगवान विष्णु 4 महीने की योग निद्रा से जागेंगे हैं और चातुर्मास का समापन हो जाएगा। देवोत्थान एकादशी से ही सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाएगी।

चातुर्मास में क्या नहीं करना चाहिए ?

चातुर्मास में मांगलिक एवं शुभ कार्य वर्जित होते हैं इन चार महीनों में साग, हरी सब्जियां, बैंगन, दही, दूध और दाल खाना वर्जित माना गया है। इसके अलावा इस अवधि में सात्विक भोजन करना चाहिए। इस दौरान तामसिक भोजन जैसे मांस, मदिरा, लहसुन, प्याज आदि से बचना चाहिए तथा चातुर्मास में पलंग पर सोना वर्जित माना गया है। इसके साथ ही कांसे के पात्र में भोजन करना भी निषेध माना गया है।

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चातुर्मास के दौरान क्या करना चाहिए ?

चातुर्मास को हिंदू धर्म शास्त्र में विशेष महत्व प्राप्त है इस अवधि में भगवान विष्णु के सहस्त्रनाम का जाप विशेष रूप से फलदायी माना गया है। चातुर्मास के दौरान प्रातः काल जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और साफ वस्त्र धारण कर भगवान विष्णु की आराधना करनी चाहिए। भगवान विष्णु को पीले पुष्प, पीले फल और पीले नैवेद्य चढ़ाना चाहिए। चातुर्मास में किए गए दान- पुण्य का बहुत ही शुभ फल प्राप्त होता है।