September 8, 2024
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Electoral Bond: क्या है चुनावी बांड जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने SBI को लगाई फटकार ?

Electoral Bond: सुप्रीम कोर्ट ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले 15 फरवरी को इलेक्टोरल बांड (Electoral Bond) को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया है। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह स्कीम सूचना के अधिकार और संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन करती है। सुप्रीम कोर्ट ने 13 मार्च तक दानदाताओं की राशि का खुलासा करने का आदेश भी दिया था। सुप्रीम कोर्ट में भारतीय स्टेट बैंक(SBI )को 12 अप्रैल 2019 से अब तक खरीदे गए चुनावी बैंड का विवरण 6 मार्च तक चुनाव पैनल को सौंपने का निर्देश दिया था। SBI ने विवरण प्रस्तुत करने के लिए 30 जून तक का समय बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है।

Electoral Bond: क्या है चुनावी बांड जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने SBI को लगाई फटकार ?

Electoral Bond: सुप्रीम कोर्ट ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले 15 फरवरी को इलेक्टोरल बांड (Electoral Bond) को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया है। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह स्कीम सूचना के अधिकार और संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन करती है। सुप्रीम कोर्ट ने 13 मार्च तक दानदाताओं की राशि का खुलासा करने का आदेश भी दिया था। सुप्रीम कोर्ट में भारतीय स्टेट बैंक(SBI )को 12 अप्रैल 2019 से अब तक खरीदे गए चुनावी बैंड का विवरण 6 मार्च तक चुनाव पैनल को सौंपने का निर्देश दिया था। SBI ने विवरण प्रस्तुत करने के लिए 30 जून तक का समय बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है।

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने विवरण का खुलासा करने के लिए 30 जून तक का समय बढ़ाने की मांग करने वाली भारतीय स्टेट बैंक (SBI)की याचिका को खारिज कर दिया। साथ ही चुनाव आयोग को बैंक द्वारा साझा की गई जानकारी को अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर 15 मार्च शाम 5 बजे तक प्रकाशित करने का भी निर्देश दिया था।

क्या है चुनावी बांड? कब हुई इसकी शुरुआत ?आईए जानते हैं-

क्या है चुनावी बॉन्ड (What is Electoral Bond) ?

चुनावी बांड(Electoral Bond) की खरीदारी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं पर किसी भी भारतीय नागरिक या कंपनी की ओर से की जाती है। चुनावी बांड एक तरह का वचन पत्र है इस बंद के जरिए अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को दान दिया जा सकता है।

कब हुई चुनावी बांड की शुरुआत(When Electoral Bond Started) ?

चुनावी बांड(Electoral Bond) प्रणाली को वर्ष 2017 में वित्त विधेयक के माध्यम से पेश किया गया था। जिसे 2018 में लागू किया गया यह दानदाता की गुमनामी बनाए रखते हुए पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान देने के लिए व्यक्तियों और संस्थानों हेतु एक साधन के रूप में कार्य करता है। केवल वे राजनीतिक दल जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 29 ए के तहत पंजीकृत है जिन्होंने पिछले आम चुनाव में लोकसभा या विधानसभा के लिए डाले गए वोटो में कम से कम एक प्रतिशत वोट हासिल किए हो वही चुनावी बॉन्ड (Electoral Bond) हासिल करने के पात्र हैं।

क्यों बनाया गया था चुनावी बांड?

चुनावी बांड(Electoral Bond)को केंद्र सरकार ने चुनाव में राजनीतिक दलों के चंदे का ब्योरा रखने के लिए बनाया था। केंद्र की तरफ से कहा गया था कि चुनावी बांड चंदे की पारदर्शिता के लिए बनाया गया है। चुनावी बांड के तहत प्रत्येक राजनीतिक दल को दी जाने वाली पाई- पाई का हिसाब बैंक से होगा।

कहां मिलते हैं चुनावी बांड?

चुनावी बांड(Electoral Bond)योजना को अंग्रेजी में इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम(Electoral Bond Scheme) के नाम से जाना जाता है। यह भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से मिलते हैं। जिन 29 शाखाओं से बांड खरीदे जा सकते हैं वह नई दिल्ली, गांधीनगर, चंडीगढ़, बेंगलुरु, हैदराबाद, भुवनेश्वर, भोपाल, मुंबई, जयपुर, लखनऊ, चेन्नई, कोलकाता और गुवाहाटी समेत कई शहरों में है।

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चुनावी बांड को कौन जारी करता है?

सरकार की ओर से आरबीआई(RBI) यह बॉन्ड जारी करता है। दान देने वाला बैंक से बॉन्ड खरीद कर किसी भी पार्टी को दे सकता है। फिर राजनीतिक पार्टी अपने खाते में बांड भुना सकती है। बांड से यह पता नहीं चलेगा कि चंदा किसने दिया है। यह बॉन्ड जब बैंक जारी करता है तो इसको लेने की अवधि 15 दिनों की होती है।

कौन खरीद सकता है चुनावी बांड (Who can buy Electoral Bond)?

चुनावी बांड (Electoral Bond) को भारत का कोई भी नागरिक, कंपनी या संस्था खरीद सकती है। यह बॉन्ड 1 हजार, 10 हजार,1 लाख,1करोड रुपए तक के हो सकते हैं। देश का कोई भी नागरिक किसी भी राजनीतिक पार्टी को चंदा देना चाहता है तो उसे एसबीआई से चुनावी बांड खरीदने होंगे। वह बांड खरीद कर किसी भी पार्टी को दे सकेगा।

कैसे जारी होते हैं चुनावी बांड (How is Electoral Bond Issue)?

वर्ष 2018 में शुरू होने के बाद चुनावी बांड प्रत्येक वर्ष में दो बार जारी किए जाते हैं। अक्टूबर महीने के प्रारंभ में 11वीं इलेक्टोरल ब्रांड के जारी किए गए। शुरू में तो इस बांड को लेकर रुख ठंडा दिखा था लेकिन वर्ष 2024 चुनाव से पहले तक चुनावी बांड की अच्छी खरीद हुई।

चुनावी बांड खरीदने वालों को क्या फायदा होता है ?

चुनावी चुनावी बांड खरीद कर किसी पार्टी को देने से बांड खरीदने वालों को कोई फायदा नहीं होगा और न हीं इस पैसे का कोई रिटर्न है। यह अमाउंट राजनीतिक पार्टियों को दिए जाने वाले दान की तरह हैं। इससे 80 जीजी, 80 जीजीबी के तहत इनकम टैक्स में छूट मिलती है।

क्या इस बांड का पैसा बांड खरीदने वाले को वापस मिल सकता है?

चुनावी बांड (Electoral Bond)एक तरह की रसीद होती है इसमें चंदा देने वाले का नाम नहीं होता है। इस बांड को खरीद कर आप जिस पार्टी को चंदा देना चाहते हैं उसका नाम लिखते हैं। इस बांड का पैसा संबंधित राजनीतिक दल को मिलता है। इस बांड पर कोई रिटर्न नहीं मिलता। इस बांड को बैंक को वापस कर सकते हैं। और अपना पैसा तय अवधि के भीतर वापस ले सकते हैं।

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चुनावी बांड के जरिए अब तक कितना धन जुटाना जा सका है ?

इलेक्टोरल बांड के जरिए अब तक 5851 करोड रुपए जुटाये जा चुके हैं।वर्ष 2023 के मई महीने में 822 करोड रुपए के चुनावी ब्रांड खरीदे गए। जनवरी से लेकर मई 2019 तक भारतीय स्टेट बैंक की विभिन्न शाखाओं के जरिए 4494 रुपए के बांड खरीदे गए थे। इससे पहले 2018 में 1000 के चुनावी बांड खरीदे गए थे।

चुनावी बांड का मामला क्यों पहुंचा सुप्रीम कोर्ट ?

पहले चुनावी बांड के जरिए सियासी दलों तक जो धन आता था वह उसे गुप्त रख सकते थे। लेकिन पिछले दिनों इस पर विवाद हुआ और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी राजनीतिक दलों को इलेक्शन कमीशन के समक्ष चुनावी बांड की जानकारी देनी होगी। इसके साथ ही दालों को बैंक डिटेल्स भी देनी होगी। अदालत ने कहा कि राजनीतिक दल आयोग को एक सील बंद लिफाफे में सारी जानकारी देंगे लेकिन यह मामला यहीं नहीं थमा बल्कि इस पूरे चुनावी बांड स्कीम की वैधता को ही चुनौती दी गई और सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी 2024 को इस चुनावी बांड की वैधता समाप्त कर दी है।