क्या है विशेष राज्य का दर्जा, मोदी सरकार 3.0 में विशेष राज्य के दर्जे की क्यों हो रही है चर्चा?
2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद एक बार फिर से तीसरी बार एनडीए की सरकार बन गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार 9 जून को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। हालांकि भाजपा को स्पष्ट बहुमत न मिलने के कारण मोदी 3.0 की सरकार में दो पार्टियों की भूमिका अहम मानी जा रही है। पहली, तेलुगू देशम और दूसरी जदयू। इनके सहयोग से ही एनडीए बहुमत का आंकड़ा पार कर पाया है। इसमें टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू और जदयू के नीतीश कुमार की सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका मानी जा रही है और इसके साथ नई सरकार के गठन के बाद एक प्रश्न जोर- शोर से उठ रहा है कि क्या चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार आंध्र प्रदेश और बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग कर सकते हैं?
नीतीश कुमार तो 2005 से ही बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग करते आ रहे हैं। चंद्रबाबू नायडू भी आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग पहले कर चुके हैं,लेकिन क्या आप जानते हैं की विशेष राज्य का दर्जा क्या है? यह किन राज्यों को और किस आधार पर दिया जाता है? विशेष राज्य का दर्जा मिलने पर उस राज्य को क्या लाभ मिलता है? और क्या इसके लिए संविधान में कोई प्रावधान है? आईए जानते हैं-
क्या है विशेष राज्य का दर्जा ?
विशेष श्रेणी का दर्जा केंद्र द्वारा निर्धारित राज्यों का एक वर्गीकरण है जो भौगोलिक और सामाजिक- आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं।
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पहली बार कब दिया गया था विशेष राज्य का दर्जा ?
सन 1969 में पांचवें वित्त आयोग के अध्यक्ष महावीर त्यागी ने भारत में विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा गाडगिल फार्मूले के आधार पर तय किया था। इसके तहत असम, नागालैंड के साथ जम्मू और कश्मीर इन तीन राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था। गॉडगिल फार्मूले के अनुसार इसका आकलन करने में सामाजिक, आर्थिक और भौगोलिक परिस्थितियों को मद्देनजर रखा गया था।
अब तक कितने राज्यों को मिला है विशेष राज्य का दर्जा ?
अब तक 11 पहाड़ी राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा मिला है। जिनमें जम्मू कश्मीर, असम और नागालैंड को 1969, में हिमाचल प्रदेश को 1971, में मणिपुर, मेघालय और त्रिपुरा को 1972 में, सिक्किम अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम को 1975 में तथा उत्तराखंड को 2001 में विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा मिला है। हालांकि अनुच्छेद 370 हटने के बाद से जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त हो गया है। अब वह केंद्र शासित प्रदेश है।
अब तक जिन राज्यों को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा मिला है उसके पीछे मुख्य आधार उनकी दुर्गम भौगोलिक स्थिति एवं वहां व्याप्त सामाजिक, आर्थिक विषमताएं हैं।
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विशेष राज्य का दर्जा देने का क्या है मापदंड ?
किसी भी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा कुछ शर्तों के आधार पर दिया जाता है। ये शर्ते हैं –
- आबादी का घनत्व कम होना एवं जनजातीय आबादी का अधिक होना।
- उक्त क्षेत्र का पहाड़ी इलाका और दुर्गम क्षेत्र।
- पड़ोसी देशों से लगे सामरिक क्षेत्र में स्थित होना।
- आर्थिक एवं आधारभूत संरचना में पिछड़ा होना।
- राज्य की आय की प्रकृति का निर्धारित नहीं होना ।
विशेष राज्य का दर्जा मिलने से राज्यों को क्या मिलता है लाभ ?
विशेष राज्य का दर्जा मिलने पर किसी राज्य को बहुत सारे लाभ होते हैं। केंद्र सरकार की ओर से इन राज्यों को विशेष छूट दी जाती है। इसके साथ ही उन राज्यों के मुकाबले में ज्यादा अनुदान दिया जाता है। उद्योगों को टैक्स में रियायत दी जाती है। इसके साथ ही केंद्रीय फंड पर 90% का अनुदान, एक्साइज कस्टम ड्यूटीज में बड़ी राहत, केंद्र से स्पेशल पैकेज तथा केंद्रीय योजनाओं में ज्यादा हिस्सेदारी मिलती है। इसका उद्देश्य विशेष दर्जे वाले राज्यों को भौगोलिक और सामाजिक, आर्थिक नुकसानों के कारण आर्थिक विकास में मदद करना है।
क्या विशेष राज्य का दर्जा के लिए संविधान में है प्रावधान ?
किसी भी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा यानी SCS उसके विकास दर के आधार पर दिया जाता है। हालांकि संविधान में किसी राज्य को उसके समग्र विकास के लिए विशेष दर्जा देने का कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन 1969 में पांचवें वित्त आयोग की सिफारिश पर पिछड़े राज्यों को विशेष श्रेणी का दर्जा देने का प्रावधान किया गया है। भारतीय संविधान की धारा 371 के तहत किसी राज्य के लिए विशेष प्रावधान किए जाते हैं। जिसके तहत उसे विशेष श्रेणी का दर्जा दिया जाता है।