December 23, 2024
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Guru Purnima 2023 : गुरु पूर्णिमा कब और क्यों मनाई जाती है?

आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा, व्यास पूर्णिमा, कहा जाता है। इस दिन लाखों श्रद्धालु गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा देते हैं। आषाढ़ पूर्णिमा के दिन बंगाली साधु सिर मुड़वा कर परिक्रमा करते हैं क्योंकि आज के दिन सनातन गोस्वामी का तिरोभाव हुआ था। इस पूर्णिमा को गुरु पूजा की जाती है। संपूर्ण भारत में यह पर्व बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन चारों वेदों के प्रथम व्याख्याता वेद व्यास जी का जन्म हुआ था। वेदव्यास की स्मृति को बनाए रखने के लिए हमें अपने- अपने गुरुओं को व्यास जी का मानकर उनकी पूजा करनी चाहिए। वेदव्यास ने ही हमें वेदों का ज्ञान दिया था। इसीलिए वे हमारे आदि गुरु हुए। इस दिन केवल गुरु ही नहीं अपितु परिवार में अपने से जो भी श्रेष्ठ या बड़ा है, अर्थात माता-पिता, बड़े भाई बहन सभी को गुरु तुल्य समझना चाहिए।

Guru Purnima 2023_Janpanchyat Hindi Blogs

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गुरु पूर्णिमा कब मनाई जाती है (When is Guru Purnima Celebrated)?

आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा, व्यास पूर्णिमा, कहा जाता है। इस दिन लाखों श्रद्धालु गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा देते हैं। आषाढ़ पूर्णिमा के दिन बंगाली साधु सिर मुड़वा कर परिक्रमा करते हैं क्योंकि आज के दिन सनातन गोस्वामी का तिरोभाव हुआ था। इस पूर्णिमा को गुरु पूजा की जाती है। संपूर्ण भारत में यह पर्व बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन चारों वेदों के प्रथम व्याख्याता वेद व्यास जी का जन्म हुआ था। वेदव्यास की स्मृति को बनाए रखने के लिए हमें अपने- अपने गुरुओं को व्यास जी का मानकर उनकी पूजा करनी चाहिए। वेदव्यास ने ही हमें वेदों का ज्ञान दिया था। इसीलिए वे हमारे आदि गुरु हुए। इस दिन केवल गुरु ही नहीं अपितु परिवार में अपने से जो भी श्रेष्ठ या बड़ा है, अर्थात माता-पिता, बड़े भाई बहन सभी को गुरु तुल्य समझना चाहिए।

कब है गुरु पूर्णिमा ?

वर्ष 2023 में गुरु पूर्णिमा 2 जुलाई रात 8:21 पर प्रारंभ होगी और 3 जुलाई शाम 5:08 पर समाप्त होगी।

महर्षि वेदव्यास जयंती

जगतगुरु माने जाने वाले वेदव्यास को गुरु पूर्णिमा का दिन समर्पित है। वेदव्यास का जन्म आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को हुआ था। आज ही के दिन वेदव्यास ने सार ब्रह्म सूत्र की रचना की थी। वेद ऋचाओं का संकलन कर वेदव्यास ने ही वेदों को चार भागों में विभाजित किया था। वेदव्यास ने महाभारत, 18 पुराण, 18 उपपुराणों की रचना की थी, जिनमें भागवत पुराण जैसा अतुलनीय ग्रंथ भी शामिल है। ऐसे महान जगतगुरु के जन्म दिवस पर गुरु पूर्णिमा बनाई जाती है।

कौन थे महर्षि वेदव्यास(Who was Maharishi Vedvyas )

हिंदू धर्म ग्रंथ के अनुसार वेदव्यास भगवान नारायण के अवतार थे। महर्षि वेदव्यास जी के पिता का नाम पराशर ऋषि तथा माता का नाम सत्यवती था। इन्होंने जन्म लेते हैं जंगल में तपस्या करने की इच्छा अपने माता-पिता के समक्ष प्रकट की। उनकी माता सत्यवती ने उन्हें रोकने का बहुत प्रयास किया, लेकिन पुत्र की इच्छा के आगे हार गईं और यह वचन लेकर उन्हें जाने दिया कि माता सत्यवती के स्मरण करते ही वे लौट आएंगे।

व्यास शब्द का अर्थ

‘ व्यास’ की उपाधि अनेक प्राचीन ग्रंथकारों को दी गई है।’ व्यास’ शब्द का अर्थ है ‘ संपादक’। वेदव्यास की उपाधि वेदों को व्यवस्थित रुप प्रदान करने वाले उन महर्षि को दी गई है जो चिरंजीव होने के कारण आश्वत कहलाते थे। महाभारत के रचनाकार व्यास ऋषि सांवले रंग के थे तथा यमुना के बीच स्थित द्वीप में उत्पन्न हुए थे। अतः सांवले रंग के कारण ‘ कृष्ण’ तथा द्वीप में जन्म लेने के कारण ‘द्वैपायन’ कहलाए। इनकी माता सत्यवती ने बाद में शांतनु से विवाह किया। जिनसे उनके दो पुत्र हुए चित्रांगद तथा विचित्रवीर्य। चित्रांगद युद्ध में मारा गया और विचित्रवीर्य नि:संतान मर गए। व्यास जी को धार्मिक और वैराग्यपूर्ण जीवन पसंद था। किंतु माता सत्यवती के आग्रह पर उन्होंने विचित्रवीर्य की दोनों संतानहीन रानियों द्वारा नियोग के नियम से 2 पुत्र उत्पन्न किए जिनका नाम था धृतराष्ट्र तथा पांडु। इनमे तीसरे विदुर भी थे।

अलौकिक शक्ति संपन्न

भगवान वेदव्यास एक अलौकिक शक्ति संपन्न महापुरुष थे। वेदों का विस्तार करने के कारण वेदव्यास और बदरीवन में निवास करने के कारण बदरायण भी कहे जाते हैं। शास्त्रों की ऐसी मान्यता है कि भगवान ने स्वयं व्यास के रूप में अवतार लेकर वेदों का विस्तार किया था। व्यास जी की गणना भगवान के 24 अवतारों में की जाती है। महर्षि वेदव्यास त्रिकालदर्शी थे।
पांडव जब एकचक्र नगरी में निवास कर रहे थे तब व्यासजी उनसे मिलने आए थे। उन्होंने पांडवों को द्रौपदी के पूर्व जन्म का वृत्तांत सुनाकर कहा कि ‘ यह कन्या विधाता ने तुम ही लोगों के लिए बनाई है इसलिए तुम लोग द्रौपदी स्वयंवर में सम्मिलित होने के लिए पांचाल नगरी जाओ’। महाराज द्रुपद को भी व्यास जी ने द्रोपदी की पूर्व जन्म की बात बता दी और उन्हें द्रोपदी का विवाह पांडवों से करने की प्रेरणा दी।
जब युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया इस अवसर पर व्यास जी इंद्रप्रस्थ पधारे और उन्होंने युधिष्ठिर से कहा कि “आज से 13 वर्ष के पश्चात क्षत्रियों का महासंहार होगा। दुर्योधन का विनाश तुम्हारे द्वारा ही होगा।” भगवान वेदव्यास जी ने संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की जिससे युद्ध दर्शन के साथ-साथ संजय भगवान के विश्वरूप एवं दिव्य चतुर्भुज रूप के दर्शन भी कर सकते थे। संजय ने कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि में भगवान के मुखारविंद से नि:सृत श्रीमद् भागवत गीता का श्रवण किया, जिसे अर्जुन के अतिरिक्त और कोई नहीं सुन पाया था।
एक बार धृतराष्ट्र ने व्यास जी से युद्ध में मारे गए वीरों की गति के बारे में जानना चाहा तथा मरे हुए संबंधियों का दर्शन करने की प्रार्थना की। अपने अलौकिक शक्ति के प्रभाव से व्यास जी ने गंगा में खड़े होकर युद्ध में मृत हुए वीरों का आवाहन किया और युधिष्ठिर कुंती तथा धृतराष्ट्र के सगे संबंधियों का दर्शन कराया। अलौकिक शक्ति से संपन्न तथा महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास के जन्म दिवस पर शत-शत नमन है।
भगवान व्यास आज भी अमर है और समय-समय पर वे अधिकारी पुरुषों को अपने दर्शन से कृतार्थ करते हैं। मनुष्य जाति पर भगवान वेदव्यास के अनंत उपकार हैं। संपूर्ण संसार उनका आभारी है। भगवान आदि शंकराचार्य और मंडन मिश्र को व्यास जी के दर्शन हुए थे।

गुरु पूर्णिमा का महत्व (Significance of Guru Purnima)

गुरु को हिंदू सनातन धर्म में बहुत महत्व दिया गया है। जैसा कि इस श्लोक से स्पष्ट है
गुरुर ब्रह्मा, गुरुर विष्णु, गुरुर देवो महेश्वरा।
गुरु साक्षात परब्रह्मा, तस्मै श्री गुरुवे नमः।।
अर्थात गुरु ही ब्रह्मा है गुरु ही विष्णु है, और गुरु के भगवान शंकर है गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं।
गुरु के लिए गुरु पूर्णिमा से बढ़कर और कोई तिथि नहीं हो सकती। गुरु पूर्णिमा के चंद्रमा की भांति जिसके जीवन में केवल ज्ञान रूपी प्रकाश होता है और अपने इस ज्ञान रूपी प्रकाश से गुरु अपने शिष्यों के अंतः करण के अज्ञान रूपी अंधकार को दूर कर ज्ञानरूपी चंद की किरणें बिखेरता है। गुरु स्वयं में पूर्ण होता है तभी तो वह अपने शिष्यों को पुण्य की प्राप्ति कराता है। गुरुकृपा शिष्य के ह्रदय में अगाध ज्ञान का संचार करते है। यह असंभव को भी संभव बना देते है। इसलिए गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरुजनों के चरणों में श्रद्धा अर्पित कर उनके प्रति कृतज्ञता का भाव प्रकट करना चाहिए।

क्या है गुरु की महिमा

शास्त्रों में ‘ गु’ का अर्थ अंधकार या अज्ञान तथा ‘ रु’ का अर्थ निरोधक बताया गया है अर्थात गुरु वह है जो अज्ञान के तिमिर का ज्ञान के प्रकाश द्वारा निवारण करता है। अर्थात अंधकार से दूर कर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को गुरु कहा जाता है। जैसा ऊपर श्लोक में वर्णित है गुरु को तीनों देव यहां तक कि साक्षात परम ब्रम्ह कहा गया है। अतः जैसी भक्ति भाव और श्रद्धा हम देवताओं के लिए रखते हैं वैसे ही भक्ति भाव तथा श्रद्धा गुरुओं के प्रति भी रखनी चाहिए। सद्गुरु ही ऐसा है जो ईश्वर से हमारा साक्षात्कार करा सकता है। ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग भी वही प्रशस्त करता है।
वेदव्यास नेवेदों का संकलन किया। 18 पुराणों औरउप पुराणों की रचना की। ऋषियों के बिखरे अनुभवों को समाज योग्य बनाकर व्यवस्थित किया। महर्षि वेदव्यास ने आषाढ़ पूर्णिमा के दिन है पंचम वेद महाभारत की रचना पूर्ण की तथा। इसी दिन विश्व के सुप्रसिद्ध ग्रंथ ब्रह्म सूत्र का लेखन आरंभ किया।तब देवताओं ने वेदव्यास की पूजा की और तभी से आषाढ़ पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा एवं गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए कबीर दास जी ने कहा है

“गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताए।।”

गुरु पूर्णिमा के दिन क्या है व्रत और विधान

गुरु पूर्णिमा के दिन प्रातः काल स्नान आदि नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्वच्छ और शुद्ध वस्त्र धारण करें।
सभी देवी देवताओं की पूजा के पश्चात गुरु को सुसज्जित और ऊंचे आसन पर बैठाकर पुष्प माला पहनाये तत्पश्चात गुरु को वस्त्र, फल, फूल, धन तथा माला अर्पण करें।
गुरु की पूजा के पश्चात गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करें क्योंकि उनके आशीर्वाद से ही शिष्य के हृदय से अज्ञानता का अंधकार दूर होता है। गुरु का आशीर्वाद प्राणी मात्र के लिए सदा सर्वदा मंगलकारी कल्याणकारी और ज्ञानवर्धक होता है। गुरु ही संसार की संपूर्ण विद्या प्रदान करता है तथा गुरु के आशीर्वाद से विद्या सिद्ध और सफल होती है।
इस दिन केवल गुरु ही नहीं अपितु माता-पिता, बड़े भाई- बहन आदि की भी पूजा करनी चाहिए।

आषाढ़ पूर्णिमा को ही क्यों मनाई जाती है गुरु पूर्णिमा (Why is Guru Purnima Celebrated Only on Ashadha Purnima)

वैसे तो प्रत्येक माह में पूर्णिमा आती है। शरद पूर्णिमा सबसे सुंदर पूर्णिमा होती है। उसको गुरु पूर्णिमा के लिए क्यों नहीं चुना गयाआषाढ़ मास।की पूर्णिमा को ही गुरु पूर्णिमा के रूप में क्यों चुना गया है। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि गुरु तो पूर्णिमा जैसा है और शिष्य आषाढ़ जैसा अर्थात जिस प्रकार आषाढ़ की पूर्णिमा का चांद बादलों से घिरा रहता है उसी प्रकार गुरु रूपी चंद्रमा बादल रूपी शिष्यो से घिरा रहता है। शिष्य अंधेरे बादल है। आषाढ़ की ऋतु है। इस अंधेरे बादल में गुरु चंद्रमा की तरह चमकता है और शिष्य के अज्ञान रूपी अंधकार से गिरे वातावरण में ज्ञान का प्रकाश फैलाता है। इसलिए आषाढ़ की पूर्णिमा गुरु और शिष्य दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।