October 15, 2024
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National Farmers Day 2022 : राष्ट्रीय किसान दिवस कब और क्यों मनाया जाता है ? ( When and why is National Farmers Day celebrated?)

National Farmers Day 2022 (राष्ट्रीय किसान दिवस) : किसान दिवस भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह के जन्म दिवस (Chaudhary Charan Singh Anniversary) के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। चौधरी चरण सिंह का जन्म दिवस 23 दिसंबर को मनाया जाता है। चौधरी चरण सिंह किसानों के सर्वमान्य नेता थे। चौधरी चरण सिंह (Chaudhary Charan Singh Birth Anniversary)का जन्म 23 दिसंबर 1902 को उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नूरपुर ग्राम में एक मध्यमवर्गीय कृषक परिवार में हुआ था। इनका परिवार जाट पृष्ठभूमि वाला था। इनके पुरखे महाराजा नाहर सिंह ने 1887 की प्रथम क्रांति में विशेष योगदान दिया था। भारत में हर साल राष्ट्रीय किसान दिवस 23 दिसंबर को मनाया जाता है।
National Farmers Day is celebrated every year on 23 December in India.

National Farmers Day 2022 (23 December) : Chaudhary Charan Singh Birth Anniversary

National Farmers Day 2022 (राष्ट्रीय किसान दिवस) : किसान दिवस भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। चौधरी चरण सिंह का जन्म दिवस 23 दिसंबर को मनाया जाता है। चौधरी चरण सिंह किसानों के सर्वमान्य नेता थे। उनका मानना था कि किसान खेती के केंद्र में हैं, इसलिए उनके श्रम का प्रतिफल अवश्य मिलना चाहिए और किसान के साथ के कृतज्ञता से पेश आना चाहिए। चौधरी चरण सिंह ने भूमि सुधारों पर काफी काम किया। उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री और केंद्र में वित्त मंत्री रहने के दौरान उन्होंने किसानों और गांव की प्राथमिकता को ध्यान में रखकर बजट बनाया।

National Farmers Day 2022 : when and Why national farmers Day Celebrated
राष्ट्रीय किसान दिवस 2022 (23 दिसंबर): चौधरी चरण सिंह जयंती

देश के विकास में किसान का योगदान (Contribution of farmer in the development of the country)

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने किसानों को देश का सरताज में माना था। किसान हर देश की प्रगति में सहायक होते हैं। एक किसान के बल पर ही देश अपने खाद्यान्नों की खुशहाली को समृद्ध कर सकता है। लेकिन भारत देश के आजाद होने के पश्चात बहुत गिने-चुने नेता ही ऐसे हुए जिन्होंने किसानों के विकास के लिए निष्पक्ष रूप में काम किया। हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ऐसे नेताओं में सबसे अग्रणी नेता थे। किसानों, गरीबों को ऊपर उठाना उनकी नीति थी। उन्होंने सदैव यह बताने का प्रयास किया कि किसानों को खुशहाल किए बिना देश व प्रदेश का विकास नहीं हो सकता। किसानों को उपज का उचित दाम मिल सके इसके लिए भी उन्होंने गंभीरता से विचार किया। उन्होंने किसानों की खुशहाली के लिए खेती पर बल दिया। चौधरी चरण सिंह के अनुसार भारत का संपूर्ण विकास तभी होगा जब किसान, गरीब एवं मजदूर सभी खुशहाल होंगे। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को किसानों के अभूतपूर्व विकास के लिए याद किया जाता है।

कौन थे चौधरी चरण सिंह ? (Who was Chaudhary Charan Singh ?)

चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1902 को उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नूरपुर ग्राम में एक मध्यमवर्गीय कृषक परिवार में हुआ था। इनका परिवार जाट पृष्ठभूमि वाला था। इनके पुरखे महाराजा नाहर सिंह ने 1887 की प्रथम क्रांति में विशेष योगदान दिया था।

चौधरी चरण सिंह का विद्यार्थी जीवन ( Student life of Chaudhary Charan Singh)

चौधरी चरण सिंह के परिवार में शिक्षा का बहुत महत्व था। स्वयं इनका भी शिक्षा के प्रति अत्यधिक लगाव था। इनके पिता चौधरी मीर सिंह चाहते थे कि चौधरी चरण सिंह शिक्षित होकर देश की सेवा में योगदान दें। इनकी प्राथमिक शिक्षा नूरपुर ग्राम में पूर्ण हुई और मैट्रिकुलेशन के लिए इन्हें मेरठ के सरकारी उच्च विद्यालय में भेजा गया। 1923 में चरण सिंह ने विज्ञान विषय स्नातक तथा 1925 में कला स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की। विधि की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने गाजियाबाद में वकालत प्रारंभ की।

चौधरी चरण सिंह का राजनीतिक जीवन ( Political life of Chaudhary Charan Singh)

1929 में मेरठ आने के पश्चात इनका विवाह गायत्री देवी के साथ संपन्न हुआ। उस समय देश में स्वतंत्रता संग्राम तीव्र गति पकड़ चुका था। चरण सिंह देश की पुकार से स्वयं को अलग नहीं रख पाए और वकालत त्याग कर आंदोलन में सम्मिलित हो गए। उस समय की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के सदस्य बन गए। 1937 के विधानसभा चुनाव में इन्हें सफलता प्राप्त हुई और यह छत्रवाली विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए। इस सीट से उन्होंने 9 वर्ष तक क्षेत्रीय जनता का प्रतिनिधित्व किया। आजादी के बाद 1952, 1962 और 1967 में हुए चुनाव में चौधरी चरण सिंह पुनः विधानसभा के लिए चुने गए। इनकी योग्यता से पार्टी का शीर्ष नेतृत्व भी प्रभावित रहा जिसके फलस्वरूप पंडित गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में इन्हीं पार्लियामेंट्री सेक्रेटरीशिप भी प्राप्त हुई

चौधरी चरण सिंह (Chaudhary Charan Singh) का राजनीतिक भविष्य 1951 में बनना आरंभ हो गया था, जब इन्हें उत्तर प्रदेश में कैबिनेट मंत्री का पद प्राप्त हुआ। 1952 में डॉ संपूर्णानंद के मुख्यमंत्रित्व काल में उन्हें राजस्व तथा कृषि विभाग का दायित्व प्राप्त हुआ। जमीन से जुड़े नेता होने के कारण उन्हें कृषि विभाग विशेष रूप से पसंद था। स्वभाव से कृषक चरण सिंह कृषक हितों के लिए अनवरत प्रयासरत रहे। 1960 में चंद्र भानु गुप्ता की सरकार में उन्हें गृह तथा कृषि मंत्रालय दिया गया। उत्तर प्रदेश के किसान, चरण सिंह को अपना मसीहा मानने लगे। कृषकों में लोकप्रिय होने के कारण इन्हें किसी भी चुनाव में हार का मुंह नहीं देखना पड़ा।

1969 में कांग्रेस का विभाजन हो गया और इसका असर उत्तर प्रदेश राज्य की कांग्रेस पर भी पड़ा। क्योंकि चौधरी चरण सिंह इंदिरा गांधी के विरोधी थे इस कारण वह कांग्रेस(ओ) के कृपा पात्र बन गए। इंदिरा गांधी का गृह प्रदेश था उत्तर प्रदेश और वह देश की प्रधानमंत्री पद पर थी, इस कारण उन्हें यह स्वीकार नहीं था कि कांग्रेस(ओ) का कोई व्यक्ति उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री रहे। अतः 2 अक्टूबर 1970 को उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया और चौधरी चरण सिंह (Chaudhary Charan Singh) का मुख्यमंत्रित्व जाता रहा। इस घटना के पश्चात चौधरी चरण सिंह की इंदिरा गांधी के प्रति रोष और दुर्भावना दोगुनी हो गई। लेकिन उत्तर प्रदेश की जमीनी राजनीति से चरण सिंह को बेदखल करना संभव नहीं था। वह उत्तर प्रदेश में भूमि सुधार के लिए अग्रणी माने जाते थे। 1939 में कृषकों के कर्ज मुक्ति विधेयक को पारित कराने में चौधरी चरण सिंह ने निर्णायक भूमिका निभाई। 1960 में हदबंदी कानून लागू कराने में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा।

1977 में चुनाव के पश्चात जनता पार्टी जब सत्ता में आई तो जयप्रकाश नारायण के सहयोग से मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और चरण सिंह को गृह मंत्री बनाया गया। मोरारजी और चरण सिंह में मतभेद होने के पश्चात 28 जुलाई 1979 को चौधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टियों तथा कांग्रेस(यू) के सहयोग से प्रधानमंत्री बनने में सफल हुए। कांग्रेस(इं) और सीपीआई ने इन्हें बाहर से समर्थन दिया। बिना इंदिरा गांधी के समर्थन के चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री नहीं बन सकते थे। राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने 20 अगस्त 1979 तक लोकसभा में चौधरी चरण सिंह को बहुमत सिद्ध करने के लिए कहा। 13 दिनों में विश्वासमत प्राप्त करना था लेकिन इंदिरा गांधी ने 19 अगस्त 1979 को बिना बताए ही समर्थन वापस ले लिया। इंदिरा गांधी ने समर्थन के लिए शर्त लगाई थी कि जनता पार्टी सरकार ने इंदिरा गांधी के खिलाफ जो मुकदमे दर्ज किए हैं उन्हें वापस ले लिया जाए, लेकिन चौधरी चरण सिंह इसके लिए तैयार नहीं हुए और प्रधानमंत्री का पद गंवा दिया। चौधरी चरण सिंह की छवि एक ईमानदार और सिद्धांत वादी नेता की थी जिसे वह खंडित नहीं करना चाहते थे अतः संसद का एक बार भी सामना किए बगैर चौधरी चरण सिंह ने प्रधानमंत्री पद का त्याग कर दिया। चौधरी चरण सिंह एक कुशल लेखक भी थे। उन्होंने “अबॉलिशन ऑफ जमीदारी”, “लीजेंड प्रोपराइटरशिप” और “इण्डियास पॉवर्टी एंड इट्स सॉल्यूशंस” नामक पुस्तकों का लेखन भी किया।

चौधरी चरण सिंह का किसानों के प्रति योगदान ( Contribution of Chaudhary Charan Singh towards farmers)

चौधरी चरण सिंह (Chaudhary Charan Singh) ने गरीबों, किसानों और पिछड़ों की राजनीति की। वह ग्रामीण समस्याओं को गहराई से समझते थे। अपने मंत्रित्व काल में उन्होंने बजट का बड़ा भाग किसानों तथा गांव के पक्ष में रखा था। वह जातिवाद के विरोधी थे। उनका मानना था कि जाति प्रथा के रहते बराबरी, संपन्नता और राष्ट्र की सुरक्षा नहीं हो सकती।
चौधरी चरण सिंह (Chaudhary Charan Singh) आजादी के पश्चात पूर्ण रूप से किसानों के लिए लड़ने लगे। वर्ष 1952 में उनके परिश्रम के फलस्वरूप ही “जमीदारी उन्मूलन विधेयक” पारित हो सका। सदियों से खेतों में खून पसीना बहाने वाले किसानों को इस एक विधेयक ने जीने का अवसर दिया। दृढ़ इच्छाशक्ति वाले चरण सिंह ने प्रदेश के 27000 पटवारियों के त्याग पत्र को स्वीकार कर “लेखपाल” पद का सृजन किया। लेखपाल में नई भर्ती करके उन्होंने किसानों को पटवारी आतंक से तो मुक्ति दिलाई ही साथ ही साथ प्रशासनिक धाक भी जमाई। चौधरी चरण सिंह ने 18% स्थान हरिजनों के लिए लेखपाल भर्ती में आरक्षित किया। उत्तर प्रदेश के किसान चौधरी चरण सिंह को अपना मसीहा मानने लगे थे। समस्त उत्तर प्रदेश में भ्रमण करते हुए उन्होंने किसानों की समस्याओं का समाधान करने का प्रयास किया। किसानों में लोकप्रिय होने के कारण उन्हें किसी भी चुनाव में हार का सामना नहीं करना पड़ा।