July 27, 2024

Pitru Paksha : पितृपक्ष में श्राद्ध करना क्यों है आवश्यक ?

Pitru Paksha : पितृपक्ष में श्राद्ध करना क्यों है आवश्यक ?
पितृपक्ष अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने, उनका स्मरण करने और उनके प्रति श्रद्धा अभिव्यक्त करने का महापर्व है। पितरों को प्रसन्न करने के लिए और दोषों को दूर करने के लिए 16 दिन का श्राद्ध पक्ष होता है। पितृपक्ष में तर्पण करने से पितृ प्रसन्न होते हैं। और परिजनों को धन-धान्य का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। पितृपक्ष में पितृगण अपने परिजनों के पास कई रूपों में आते हैं। और अपने मोक्ष की कामना करते हैं। पूर्वज जब परिजनों से संतुष्ट होते हैं तो परिजनों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं और अनिष्ट घटनाओं से बचाते हैं।

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पितृपक्ष अथवा श्राद्ध पक्ष (Pitru Paksha or Shraddh Paksh) 2023

पितृपक्ष में श्राद्ध करना क्यों है आवश्यक ?

     पितृपक्ष अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने, उनका स्मरण करने और उनके प्रति श्रद्धा अभिव्यक्त करने का महापर्व है। पितरों को प्रसन्न करने के लिए और दोषों को दूर करने के लिए 16 दिन का श्राद्ध पक्ष होता है। पितृपक्ष में तर्पण करने से पितृ प्रसन्न होते हैं। और परिजनों को धन-धान्य का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। पितृपक्ष में पितृगण अपने परिजनों के पास कई रूपों में आते हैं। और अपने मोक्ष की कामना करते हैं। पूर्वज जब परिजनों से संतुष्ट होते हैं तो परिजनों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं और अनिष्ट घटनाओं से बचाते हैं। पितृपक्ष में यदि श्राद्ध नहीं किया जाता है तो पितृ नाराज होकर श्राप देकर लौट जाते हैं। पितरों का यह महापर्व 29 सितंबर से प्रारंभ होकर 14 अक्टूबर को समाप्त होगा। 

पितृपक्ष में श्राद्ध क्या है? इसका क्या महत्व है? और इसे करना क्यों आवश्यक है? आईए जानते हैं-

श्राद्ध क्या है ?

अपने स्वर्गवासी पूर्वजों की  शांति तृप्ति एवं मोक्ष के लिए जो दान दिया जाता है तथा जो कर्म किए जाते हैं उसे श्राद्ध कहा जाता है। अपने से पूर्व तीन पीढियों तक के लिए किया जाने वाला तर्पण, पिंडदान, होम ही श्राद्ध कहलाता है।

श्राद्ध का महत्व

शास्त्र के अनुसार पृथ्वी के ऊपर 7 लोक माने गए हैं। (सत्य, तप, महा,जन, स्वर्ग, भुव:,भूमि) इन सात लोको में से भुुव:लोक को पितरों का निवास स्थान अर्थात पितृ लोक माना गया है। भुव: लोक में जल का अभाव माना गया है। इसीलिए पितृपक्ष में विशेष रूप से जल तर्पण करने का विधान है।पितृपक्ष में सभी पितर अपने लोक से पृथ्वी लोक पर अपने परिवार के पास बिना किसी निमंत्रण अथवा आवाहन के पहुंच जाते हैं और उनके द्वारा किए गए होम, श्राद्ध एवं तर्पण से तृप्त होकर उन्हें सुखी एवं समृद्ध रहने का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। अतः हमारे पितरों को कोई कष्ट ना हो इसी उद्देश्य से श्राद्ध कर्म किए जाते हैं।

ज्योतिष मान्यताओं के आधार पर सूर्य जब कन्या राशि में गोचर करते हैं तब हमारे पितर अपने पुत्र पौत्रों के यहां तर्पण की कामना से विचरण करते हैं। श्राद्ध से प्रसन्न होकर पितृगण श्राद्ध करने वालों को सुख, समृद्धि, सफलता, आरोग्य और संतान रूपी फल प्रदान करते हैं   ब्रह्मावैवर्त पुराण में यह निर्देश है कि इस संसार में जो सद्गृहस्थ अपने पितरों का श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध करते हैं अर्थात पितृ पक्ष में तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मण को दान देते हैं वे सभी सांसारिक सुख को प्राप्त करते हैं।

तीन ऋणों में से एक है पितृ ऋण

भारतीय वैदिक वांगमय के अनुसार इस धरती पर जन्म लेने वाले प्रत्येक मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण होते हैं। देवऋण,ऋषि ऋण, पितृ ऋण। महाभारत में एक ऐसा प्रसंग आता है की मृत्यु के पश्चात कर्ण को जब चित्रगुप्त ने मोक्ष देने से इनकार कर दिया था तब कर्ण ने कहा कि मैंने तो अपनी सारी संपत्ति दान पुण्य में ही समर्पित कर दी, फिर मेरे ऊपर यह कैसा ऋण है।

 तब चित्रगुप्त ने कहा, राजन अपने देवऋण और ऋषि ऋण तो चुका दिया है लेकिन पितृऋण से आप मुक्त नहीं हुए हैं और पितृऋण से मुक्त हुए बिना आपको मोक्ष मिलना कठिन होगा। इसके पश्चात कर्ण को धर्मराज ने 16 दिन के लिए पुनः पृथ्वी पर भेजा और अपने पितरों का श्राद्ध, तर्पण तथा पिंडदान विधिवत करने को कहा। पितृ पक्ष के 16 दिन वर्ष के ऐसे ही दिन है जिनमें व्यक्ति श्राद्ध कर्म करके तीनों ऋणों से मुक्त हो जाता है। 

श्राद्ध के प्रमुख स्थान कौन-कौन से हैं ?

 भारत की पावन भूमि में कई ऐसे स्थान है जहां लोग पितृ दोष की निवृत्ति के लिए अनुष्ठान कर सकते हैं। कुछ प्रमुख स्थान है, जैसे- बिहार में गया। गया को पितरों के श्राद्ध के लिए सर्वोत्तम माना गया है।इसे ‘तीर्थों का प्राण’ तथा ‘ पांचवा धाम’  भी कहा जाता है। गया के अतिरिक्त गंगासागर, महाराष्ट्र में त्रयंबकेश्वर, हरियाणा में पिहोवा, उत्तर प्रदेश में गडगंगा, उत्तराखंड में हरिद्वार। ये स्थान पितृ निवारण के लिए श्राद्ध कर्म हेतु उपयुक्त स्थान है।

श्राद्ध की तिथियां कौन-कौन सी हैं ?

पितृ पक्ष की सभी 15 तिथियां श्राद्ध को समर्पित हैं। श्राद्धकर्म दिवंगत परिजनों की मृत्यु की तिथि में किया जाता है। अर्थात यदि किसी की मृत्यु प्रतिपदा तिथि को  हुई है तो उसका श्राद्ध प्रतिपदा तिथि को ही होगा। इस प्रकार 15 तिथियों पर श्राद्ध किया जाता है। लेकिन एक मान्यता यह भी है कि

  • पिता का श्राद्ध अष्टमी के दिन और माता का श्राद्ध नवमी के दिन किया जाता है।
  • अकाल मृत्यु वाले पितरों का श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है।
  • साधु संन्यासियों का श्राद्ध द्वादशी तिथि के दिन किया जाता है।
  • जिन पितरों के मरने की तिथि याद ना हो उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है।

श्राद्ध करने का सही समय क्या है?

पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने वालों के घर पितर दोपहर के बाद पक्षी, कौवा या चिड़िया के रूप में आते हैं। अतः श्राद्ध कर्म कभी भी सुबह नहीं करना चाहिए, क्योंकि दिवंगत पितर सुबह के समय अनुपस्थित रहते हैं। पितृपक्ष में ‘ कुतप बेला’ अर्थात (मध्यान्ह के समय दोपहर 12:30 से 1:00 तक) श्राद्ध करना चाहिए।

कैसे करें श्राद्ध ?

 जीवन में यदि भूले भटके माता-पिता के प्रति कोई दुर्व्यवहार, निंदनीय कर्म या अशुद्ध कर्म हो जाए तो पितृपक्ष में ब्राह्मणों को बुलाकर दुर्वा, तिल, कुशा, तुलसीदल,फल, मेवा, दाल- चावल पूरी पकवान आदि से अपने दिवंगत माता-पिता, दादा, ताऊ,चाचा, परदादा, नाना, नानी आदि पितरों का श्राद्ध करना चाहिए। मान्यता है कि ब्राह्मण के रूप में पितृपक्ष में दिए हुए दान का पुण्यफल मृत आत्मा की तुष्टि हेतु जाता है अर्थात ब्राह्मण यदि प्रसन्न रहता है तो पितृ भी प्रसन्न रहते हैं।

पितृपक्ष में पितरों के लिए क्या है भोज्य पदार्थ ?

पितृपक्ष में सात्विक भोजन घर की रसोई में बनाना चाहिए। पितृपक्ष में लहसुन, प्याज मांस मदिरा वर्जित माना गया है।  पितृपक्ष में श्राद्ध के भोजन में उड़द की दाल, बड़े, चावल, दूध- घी से बने पकवान, खीर, बेल पर लगने वाली मौसमी सब्जियां जैसे- लौकी तोरई, सीताफल, भिंडी, कच्चे केले की सब्जी आदि अधिक मान्य है।

जमीन के अंदर पैदा होने वाली सब्जियां जैसे आलू, मूली, बैगन, अरबी आदि पितरों को नहीं चढ़ती है। श्राद्ध के लिए तैयार भोजन को तीन-तीन आहुतियां और तीन-तीन चावल के पिंड तैयार करने के बाद ‘प्रेतमंजरी’ के मंत्रोच्चार के बाद ज्ञात और अज्ञात पितरों को नाम और राशि से संबोधित करके आमंत्रित किया जाता है। कुशा के आसान में बिठाकर गंगाजल से स्नान कराकर तिल जौ और सफेद रंग के फूल और चंदन आदि समर्पित करके चावल या जौ के आटे का पिंड आदि समर्पित किया जाता है।

क्या स्त्रियां कर सकती हैं पिंडदान

   यह प्रश्न सदैव से उठता रहा है कि क्या स्त्रियां श्राद्ध कर सकती हैं। इस मामले में ‘धर्मसिंधु’ सहित ‘मनुस्मृति’ और ‘गरुड़ पुराण’ आदि  में महिलाओं को पिंडदान करने का अधिकार प्रदान किया गया है। आज के समय में शंकराचर्यो ने भी इस प्रकार की व्यवस्थाओं को तर्कसंगत बताया है जिससे के श्राद्ध करने की परंपरा जीवित रहे और लोग अपने पितरों को भूले नहीं।

 

बाल्मीकि रामायण में सीता जी द्वारा राजा दशरथ का श्राद्ध करने का प्रसंग मिलता है। जिससे राजा दशरथ को मोक्ष प्राप्त हुआ था। वाल्मीकि रामायण में वर्णित है कि जब भगवान राम, लक्ष्मण और सीता श्राद्ध करने के लिए गया पहुंचे तो वहां श्राद्धकर्म की सामग्री के लिए राम और लक्ष्मण नगर की ओर चल दिए और इधर  दोपहर होने पर पिंडदान का समय निकल रहा था। तब सीता जी ने फाल्गु नदी के साथ वटवृक्ष, केतकी के फूल, गाय और ब्राह्मण को साक्षी मानकर, बालू का पिंड बनाकर, राजा दशरथ के निमित्त पिंडदान दे दिया।

भगवान राम और लक्ष्मण जब लौटे तो सीता जी ने कहा कि समय निकल जाने के कारण मैंने पिंडदान कर दिया। इसके लिए राम जी ने सीता जी से प्रमाण मांगा। सीता जी ने फाल्गु नदी, केतकी के फूल, वट वृक्ष, ब्राह्मण और गाय से गवाही देने को कहा, लेकिन वटवृक्ष को छोड़कर बाकी सभी गवाही से मुकर गए। तब सीता जी ने दशरथ का ध्यान करके उनसे गवाही देने की प्रार्थना की। राजा दशरथ ने सीता की प्रार्थना स्वीकार कर घोषणा की कि सीता ने मुझे समय पर पिंडदान दिया है।

भगवान राम तो आश्वस्त हो गए लेकिन सीता जी ने क्रुद्ध होकर चारों गवाहों को श्राप दे दिया कि, फाल्गु नदी सिर्फ नाम की नदी रहेगी, गाय पूज्य होकर भी लोगों का जूठन खायेगी, ब्राह्मण भिक्षा मांग कर अपना पेट भरेगा,और केतकी के फूल को कभी पूजा में नहीं चढ़ाया जाएगा। सीता जी ने वटवृक्ष को आशीर्वाद दिया कि उसे लंबी आयु प्राप्त होगी। वह दूसरों को छाया प्रदान करेगा और पतिव्रता स्त्रियां लंबी आयु के लिए वटवृक्ष का स्मरण करेंगी।

पितृपक्ष से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

  • पितरों के श्राद्ध के लिए गया को सर्वोत्तम माना गया है। इसे ‘तीर्थो का प्राण’ तथा ‘पांचवा धाम’ भी कहा जाता है।
  • श्राद्ध के लिए शालीन, श्रेष्ठ गुणों से युक्त, शास्त्रों के ज्ञाता तथा तीन पीढियों से विख्यात ब्राह्मण का ही चयन करना चाहिए
  • पितृपक्ष में शुद्ध और सात्विक भोजन करना चाहिए।
  • विकलांग अथवा अधिक अंग वाला ब्राह्मण श्राद्ध के लिए वर्जित है
  • योग्य ब्राह्मण के अभाव में भांजे, दामाद, नाना, मामा, साले आदि को आमंत्रित किया जा सकता है।
  • श्राद्धकर्ता को प्रतिदिन पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए स्नान के बाद तर्पण करना चाहिए।
  • श्राद्ध कर्म में श्रद्धा, शुद्धता, स्वच्छता एवं पवित्रता पर विशेष ध्यान देना चाहिए।



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