October 18, 2024
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

क्यों कहा जाता है इंदिरा गांधी को भारत की “आयरन लेडी”(Why is Indira Gandhi called Iron lady) ?: Death Anniversary of Indira Gandhi

Death Anniversary of Indira Gandhi: इंदिरा गांधी एक ऐसी शख्सियत थी जो न केवल भारतीय राजनीति पर छाई रही बल्कि विश्व राजनीति के क्षितिज पर भी वे एक प्रभाव छोड़ गई। इंदिरा गांधी का जन्म 1917 को उत्तर प्रदेश के आनंद भवन में हुआ था। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू की इंदिरा गांधी इकलौती पुत्री थी। आज इंदिरा गांधी जवाहरलाल नेहरू की बेटी से कहीं अधिक अपनी प्रतिभा और राजनीतिक दृढ़ता के लिए विश्व राजनीति के इतिहास में जानी जाती हैं।

Death Anniversary of Indira Gandhi

31 अक्टूबर को इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) की पुण्यतिथि मनाई जाती है। ऑपरेशन ब्लू स्टार की अनुमति देने के कारण 31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके दो सिख अंगरक्षकों द्वारा हत्या कर दी गई थी।

इंदिरा गांधी एक ऐसी शख्सियत थी जो न केवल भारतीय राजनीति पर छाई रही बल्कि विश्व राजनीति के क्षितिज पर भी वे एक प्रभाव छोड़ गई। इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) का जन्म 1917 को उत्तर प्रदेश के आनंद भवन में हुआ था। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू की इंदिरा गांधी इकलौती पुत्री थी। आज इंदिरा गांधी जवाहरलाल नेहरू की बेटी से कहीं अधिक अपनी प्रतिभा और राजनीतिक दृढ़ता के लिए विश्व राजनीति के इतिहास में जानी जाती हैं।

भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री

भारत में महिलाओं ने अपने अभूतपूर्व योगदान एवं अपने कार्यों के माध्यम से प्रत्येक क्षेत्र में अपना नाम इतिहास के पन्नों पर दर्ज कराया है। देश में पहली महिला इंजीनियर, डॉक्टर, पायलट, अधिकारी पदों को महिलाओं ने सुशोभित किया है, लेकिन आज तक भारत के प्रधानमंत्री पद पर कोई भी भारतीय महिला अपनी जगह नहीं बना पाई। इंदिरा गांधी नारी शक्ति का अद्भुत उदाहरण है। इंदिरा गांधी को उनके कार्यों के कारण “आयरन लेडी” के नाम से भी जाना जाता है। प्रधानमंत्री के रूप में जब उन्हें राजनीतिक विरासत सौपी गई तो सभी को लगा कि वह एक ‘गूंगी गुड़िया’ बनाकर रहेंगी, लेकिन इंदिरा गांधी ने बतौर प्रधानमंत्री अपने फैसलों से पूरे देश में क्रांति ला दी थी।

31 अक्टूबर को इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि पर आइए जानते हैं देश की ‘आयरन लेडी’ के जीवन से जुड़े रोचक तथ्यों के बारे में-

  • 1938 में इंदिरा गांधी औपचारिक तौर पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुई और जवाहरलाल नेहरू के साथ काम करने लगी।
  • इंदिरा गांधी जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद देश के नेता के तौर पर उभरी।
  • लाल बहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में इंदिरा गांधी ने सूचना एवं प्रसारण मंत्री का पद ग्रहण किया।
  • लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के पश्चात इंदिरा गांधी देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री बनी। उस समय यह माना गया कि इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ‘गूंगी गुड़िया’ बनकर रहेंगी लेकिन इस गूंगी गुड़िया ने अपने फैसले से भारत ही नहीं विश्व राजनीति में अपनी छाप छोड़ी। उनके फैसले की गूंज विश्व भर में पहुंची।

इंदिरा गांधी के ऐतिहासिक फैसले जिसने उन्हें आयरन लेडी के नाम से प्रसिद्धि दिलाई

बैंकों का राष्ट्रीयकरण

स्वतंत्रता के पश्चात भारत की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी तथा गरीबों, ग्रामीण, शहरी अंतराल भी अत्यधिक था।सरकार के विभिन्न प्रयासों के बावजूद इस क्षेत्र में आर्थिक सुधार नहीं हो पा रहे थे। 1947 से 1955 के बीच लगभग 300 छोटे- बड़े बैंक बंद हो चुके थे। भारत सरकार के समक्ष पूंजी की भी बड़ी समस्या थी। क्योंकि संसाधन सीमित थे। हर वर्ग की पहुंच बैंक तक नहीं थी। अतः इंदिरा गांधी ने ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए बैंकों का लाभ प्रत्येक वर्ग तक पहुंचाने के लिए बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया। 1966 में भारत में केवल 500 बैंक शाखाएं थीं।आम आदमी बैंकों में पैसा जमा कर सके इसके लिए उनका यह फैसला देश के विकास में अभूतपूर्व रहा।

कांग्रेस का विभाजन

इंदिरा गांधी ने सत्ता में आने के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। ऐसे में लोग समझ गए थे कि इंदिरा गांधी को रोक पाना मुश्किल है। कांग्रेस सिंडिकेट इंदिरा को पद से हटाना चाहता था। मजबूत सिंडिकेट ने 12 नवंबर 1969 के दिन इंदिरा गांधी को पार्टी से निकाल दिया। उनके खिलाफ आरोप था कि उन्होंने पार्टी के अनुशासन को भंग किया है लेकिन इंदिरा गांधी ने ऐसा दाव खेला कि विरोधियों का दाव दांव उल्टा पड़ गया। इंदिरा गांधी ने न सिर्फ नई कांग्रेस बनाई बल्कि आने वाले समय में इसे ही असली कांग्रेसी साबित कर दिया। उनकी इस चतुराई ने न केवल कांग्रेस के सिंडिकेट को ठिकाने लगा दिया बल्कि प्रधानमंत्री के अपने पद को बरकरार रखते हुए अपनी सरकार भी बचाई। हालांकि उनके इस फैसले को राजनीति का सबसे हिटलर शाही फैसला माना गया।

पाकिस्तान को हराकर बांग्लादेश का निर्माण

इंदिरा गांधी ने भारतीय प्रधानमंत्री के तौर पर पाकिस्तान को ऐसा दर्द दिया जिसे वह कभी भूल नहीं सकता। पाकिस्तान को इससे बड़ा झटका आज तक किसी प्रधानमंत्री ने नहीं दिया। वर्ष 1971 में इंदिरा गांधी के आदेश पर भारतीय सेनाओं ने तीन दिसंबर को पूर्वी पाकिस्तान में प्रवेश किया और नया बांग्लादेश बना कर ही लौटी। उस समय भारत पर अमेरिका का बहुत बड़ा दबाव था कि भारत पूर्वी पाकिस्तान में किसी भी हालत में कोई कार्रवाई नहीं करे। अगर भारत ने ऐसा किया तो अमेरिका भारत के खिलाफ कार्रवाई करेगा, लेकिन इंदिरा गांधी अमेरिका की धमकी से नहीं डरी। उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान में कार्रवाई का आदेश तीनों सेनाओं को दे दिया। अमेरिका के राष्ट्रपति ने जब इंदिरा पर संघर्ष विराम का दबाव डाला तो इंदिरा गांधी दो टूक जवाब दिया- नहीं ऐसा नहीं हो सकता। भारत ने संघर्ष विराम तो किया लेकिन 17 दिसंबर के बाद जब बांग्लादेश बन चुका था।

आपातकाल

25 जून 1975 का आपातकाल को इंदिरा गांधी का फैसला सबसे अधिक विवादास्पद रहा या यूं कहें कि उनके राजनीतिक कैरियर जो ऊंचाइयों पर था उस पर एक धब्बा था। 1971 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी पर चुनाव जीतने के लिए अनुचित तरीकों के इस्तेमाल करने का आरोप लगा और इलाहाबाद हाई कोर्ट में इंदिरा के खिलाफ याचिका दर्ज की गई।

इस याचिका पर हाई कोर्ट ने इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला सुनाते हुए 1975 के लोकसभा चुनाव को रद्द कर दिया और 6 वर्ष तक इंदिरा गांधी के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया। तब इंदिरा गांधी विपक्ष से भी घिर चुकी थी। 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान से जेपी ने इंदिरा को खूब सुनाया था। एक तरह से जेपी जनता से लेकर सेना तक से इंदिरा सरकार का प्रतिकार करने का आह्वान किया। लगातार घिर रही इंदिरा गांधी को आपातकाल के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं दिखा।
हालांकि आपातकाल के दौरान इसका दुरुपयोग भी अधिक किया गया।

राज्य स्तर पर राजनीतिज्ञो ने आपातकाल के नाम पर व्यक्तिगत शत्रुता निकालते हुए विरोधियों को सलाखों के पीछे डाल दिया। लोगों को बेवजह परेशान किया गया। आपातकाल की सबसे ज्यादा अखरने वाली बात थी। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को सेंसरशिप लगाकर कमजोर करना। अखबार, रेडियो, टीवी पर सेंसर लगा दिया गया। सरकार के विरुद्ध कुछ भी प्रसारित नहीं किया जा सकता था। अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक लगाना, आपातकाल के दौरान सबसे बड़ी गलती थी।

इंदिरा गांधी तक सही सूचनायें नहीं पहुंच पा रही थी, और उधर जनता के मन में इंदिरा सरकार के खिलाफ आक्रोश पैदा हो गया। इसके परिणामस्वरूप आपातकाल के बाद 1977 में इंदिरा गांधी की पार्टी चुनाव हार गई और पहली बार भारत में गैर कांग्रेस पार्टी, जनता दल की सरकार बनी।

गुट निरपेक्ष आंदोलन की अध्यक्षा

साल 1983 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने सातवें गुटनिरपेक्ष आंदोलन शिखर सम्मेलन की मेजबानी की थी। सातवां गुटनिरपेक्ष आंदोलन 7 से 12 मार्च तक चला था। सम्मेलन का महासचिव नटवर सिंह को बनाया गया था। इस समिट में 1983 में करीब 400 विदेशी मेहमान भारत आए थे। उस समय इंदिरा गांधी ने ऐसी तैयारी की थी कि विदेशी मेहमान भारत की अच्छी छवि लेकर लौटे। इस समय के उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता क्यूबा के तात्कालिक राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो ने की थी, क्योंकि तब वह गुट निरपेक्ष आंदोलन के अध्यक्ष थे। इसी सम्मेलन में दोपहर के बाद कास्त्रो ने इंदिरा गांधी को अध्यक्षता सौंप दी और अगले 3 वर्षों तक गुटनिरपेक्ष आंदोलन की जिम्मेदारी भारत के कंधों पर थी जिसे इंदिरा गांधी ने अध्यक्षा के रूप में पूरा किया।

प्रिवीपर्स की समाप्ति

प्रिवी पर्सेस राजा महाराजाओं को उनका खर्च चलाने के लिए दिया जाता था, जिसकी तुलना एकमुश्त सैलरी से की जाती थी। इंदिरा गांधी के कार्यकाल में ही 1969 में संसद में प्रिवी पर्स खत्म करने के लिए संवैधानिक संशोधन करने के लिए बिल पेश किया गया। लोकसभा में यह बिल पास हो गया लेकिन राज्यसभा में एक मत से गिर गया। उस समय राष्ट्रपति वी वी गिरी सरकार की सहायता को आगे आए थे और उनके आदेशानुसार सभी राजाओं और महाराजाओं की मान्यता रद्द कर दी गई। और राजा और प्रजा का अंतर कम हो गया।
हालांक सभी राजा इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गए और कोर्ट ने राष्ट्रपति के आदेश को रद्द कर दिया। 1971 में इसी मुद्दे के कारण इंदिरा गांधी भारी बहुमत से चुनाव जीत कर सत्ता में वापस लौटी और दोबारा इस विधेयक को 1971 में लेकर आई। संविधान में 26 वां संशोधन करके प्रिवी पर्स को हमेशा के लिए

Read More Interesting And Historical Facts