November 22, 2024
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जीत की डबल हैट्रिक लगाने चुनावी मैदान में उतरे अधीर रंजन चौधरी

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पश्चिम बंगाल की मुर्शिदाबाद जिले के बहरामपुर क्षेत्र के बेताज बादशाह कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी छठी बार बहरामपुर सीट से मैदान में हैं। अधीर रंजन चौधरी बीते 28 वर्षों से बंगाल की सक्रिय राजनीति का हिस्सा हैं। बहरामपुर सीट से 5 बार चुनाव जीत चुके कौन है अधीर रंजन चौधरी ? और 2024 के लोकसभा चुनाव में क्या है उनकी चुनौतियां?

अधीर रंजन चौधरी का सियासी सफर

दादा निकनेम से प्रसिद्ध कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने 15 वर्ष की उम्र में ही स्कूल छोड़ दिया था। 2 अप्रैल 1956 को बंगाली परिवार में जन्मे अधीर रंजन चौधरी का पदार्पण राजनीति में ऐसे समय में हुआ जब बंगाल में बैलेट के साथ बम और हिंसा राजनीति का अहम हिस्सा बन गए थे। उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने मुर्शिदाबाद ज़िला परिषद चुनाव में कई मोर्चों पर सफलता प्राप्त की। 1951 के बाद बहरामपुर लोकसभा सीट पर कभी कांग्रेस जीत नहीं दर्ज कर पाई थी लेकिन 1999 में अधीर रंजन चौधरी ने कांग्रेस का परचम लहराया और पहली बार सांसद बने।

2004 और 2009 के चुनाव में अधीर रंजन चौधरी ने जंगीपुर सीट से प्रणब मुखर्जी के चुनावी अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दोनों ही चुनाव में कांग्रेस को सफलता मिली और अधीर रंजन चौधरी पार्टी आलाकमान की नजरों में आए। 28 अक्टूबर 2012 को मनमोहन सिंह की सरकार में अधीर रंजन को रेल मंत्रालय में राज्य मंत्री का दर्जा मिला। इसके बाद 2014 में इन्हें पश्चिम बंगाल कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। 2019 में अधीर रंजन चौधरी को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया।

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बहरामपुर सीट से लगातार पांच चुनाव जीत चुके और इस बार जीत की है डबल हैट्रिक के लिए मैदान में उतरे अधीर रंजन का मुकाबला टीएमसी के क्रिकेटर यूसुफ पठान से है। टीएमसी ने उनके खिलाफ क्रिकेटर यूसुफ पठान को उतारा है। गरीबों के मसीहा और रॉबिन हुड के नाम से मशहूर चौधरी की बदौलत बंगाल में कभी सीपीएम और और अब तृणमूल कांग्रेस के वर्चस्व में भी कांग्रेस का वजूद कायम है। उन्होंने बीते ढाई दशकों से अपने बलबूते पर मुर्शिदाबाद जिले को कांग्रेस का अजेय किला बनाए रखा है।

अधीर रंजन चौधरी जुझारू छवि और विरोधियों को चुनौती देने की क्षमता रखते हैं। बंगाल में ममता से गठजोड़ नहीं हो पाने की प्रमुख वजह अधीर रंजन चौधरी को ही बताया गया है। मुर्शिदाबाद में चौधरी की ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने विधानसभा से लेकर पंचायत चुनाव तक कई बार आलाकमान की इच्छा के खिलाफ जाकर बागी उम्मीदवारों तक को जिताया है।

अधीर रंजन चौधरी की एक लोकप्रिय नेता के रूप में उनकी छवि के कारण ही उन्हें वर्ष 2019 में लोकसभा में संसदीय दल का नेता बनाया गया। दादा निकनेम से प्रसिद्ध कांग्रेस नेता और बहरामपुर से सांसद अधीर रंजन चौधरी कई बार सदन में बोलते हुए अपना धीरज खोते नजर आए लेकिन पश्चिम बंगाल की बेहद कठिन राजनीतिक लड़ाई में उन्होंने अपना धैर्य कभी नहीं खोया।

अधीर रंजन चौधरी का मुकाबला युसुफ पठान से

बहरामपुर लोकसभा सीट से अधीर रंजन चौधरी के सामने तृणमूल कांग्रेस प्रत्याशी और पूर्व क्रिकेटर यूसुफ पठान हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के करीबी नेता उनका मार्गदर्शन कर रहे हैं। चर्चा है कि पठान ममता सरकार की महिलाओं से जुड़ी योजनाओं का अध्ययन कर रहे हैं और जन समर्थन पाने के लिए जनसभाओं में उनका जिक्र भी कर रहे हैं।

बहरामपुर सीट पर है त्रिकोणीय मुकाबला

कांग्रेस का किला बन चुकी पश्चिम बंगाल की बहरामपुर सीट पर सियासी मुकाबला इस चुनाव में काफी दिलचस्प है। कांग्रेस को अपने नेता अधीर रंजन चौधरी पर भरोसा है। वहीं तृणमूल कांग्रेस ने पूर्व भारतीय क्रिकेटर यूसुफ पठान को मैदान में उतार सियासी चक्रव्यूह रचा है। दूसरी ओर भाजपा ने मरीजों का मुफ्त में ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर निर्मल कुमार साहा पर दाव लगाया है। त्रिकोणीय मुकाबले में तृणमूल व भाजपा के सामने इतिहास बदलने की चुनौती है,वहीं अधीर रंजन चौधरी के सामने गढ़ बचाने की चुनौती है।

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क्यों खास है बहरामपुर लोकसभा सीट ?

बहरामपुर मुर्शिदाबाद जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है जो पश्चिम बंगाल का सातवां सबसे बड़ा शहर है। यह बंगाल के व्यावसायिक, प्रशासनिक, शैक्षिक और राजनीतिक केन्द्रों में से एक है। बहरामपुर में पीतल के बर्तन और लकड़ी की नक्काशी वाले उत्पाद बड़े पैमाने पर बनते हैं। सिल्क और बहुमूल्य धातु से बनने वाले उत्पाद यहां की पहचान है। यहां फार्मा आईटी और टेक कंपनियों की भरमार है।

2024 के लोकसभा चुनाव में जहां अधीर रंजन चौधरी के सामने कांग्रेस का गढ़ बचाने की चुनौती है वहीं तृणमूल और भाजपा के सामने कांग्रेस का किला ढहाने की चुनौती। अब देखना यह है कि अधीर रंजन चौधरी जीत का छक्का लगा पाते हैं