July 27, 2024

Azad Hind Fauj (INA): “आजाद हिंद फौज” सुभाष चन्द्र बोस द्वारा बनाया गया पहला भारतीय सशस्त्र बल

Azad Hind Fauj Day || Azad Hind Fauj Foundation Day|| Indian National Azad Hind Government || Indian National Army Day In Hindi
भारत के सबसे श्रद्धेय स्वतंत्रता सेनानी सुभाषचंद्र बोस देश के महानायकों में से एक है और हमेशा रहेंगे। सुभाष चंद्र बोस ने आजादी की लड़ाई के लिए
अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। देश सेवा के प्रति सुभाष चंद्र बोस के समर्पण के कारण ही महात्मा गांधी ने उन्हें ‘देशभक्तों का देशभक्त’ कहा था। उन्होंने ‘ आजाद हिंद फौज’ (Indian National Army)के नाम से पहला भारतीय सशस्त्र बल बनाया था।

Azad Hind Fauj || आजाद हिंद फौज स्थापना दिवस || Foundation Day of Indian National Army || 21 अक्टूबर, 2023 || Indian National Army || Azad Hind Government
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सुभाष चन्द्र बोस ने "आजाद हिंद फौज" के नाम से बनाई थी भारत की अस्थाई सरकार

भारत के सबसे श्रद्धेय स्वतंत्रता सेनानी सुभाषचंद्र बोस (Subhas Chandra Bose) देश के महानायकों में से एक है और हमेशा रहेंगे। Subhas Chandra Bose ने आजादी की लड़ाई के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। देश सेवा के प्रति सुभाष चंद्र बोस के समर्पण के कारण ही महात्मा गांधी ने उन्हें ‘देशभक्तों का देशभक्त’ कहा था। उन्होंने ‘ आजाद हिंद फौज’ (Indian National Army)के नाम से पहला भारतीय सशस्त्र बल बनाया था।

 ‘आजाद हिंद फौज’ (Indian National Army Day) का स्थापना दिवस 21 अक्टूबर को मनाया जाता है। भारत के महान देशभक्त ‘नेताजी’ के नाम से विख्यात सुभाष चंद्र बोस ने सशक्त क्रांति द्वारा भारत को स्वतंत्र करने के उद्देश्य से 21 अक्टूबर 1943 को “आजाद हिंद सरकार”(Azad Hind Sarkar) की स्थापना की तथा “आजाद हिंद फौज” (Azad Hind Fauj) का गठन किया।

आजाद हिंद फौज का इतिहास (History Of Indian National Army)

सामान्यत: सभी लोग यह जानते हैं कि ‘आजाद हिंद फौज’ (Azad Hind Fauj) और ‘आजाद हिंद सरकार’ (Azad Hind Governement) की स्थापना नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा जापान में की गई थी। लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के बाद ही महान क्रांतिकारी राजा महेंद्र प्रताप ने अफगानिस्तान में आजाद हिंद फौज और सरकार बनाई थी, जिसमें 60,000 सैनिक थे। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद क्रांतिकारी सरदार अजीत सिंह ने इटली में ‘आजाद हिंद लश्कर’ बनाई। 

जापान में रासबिहारी बोस ने भी आजाद हिंद फौज (Azad Hind Fauj) बनाया जिसका जनरल कैप्टन मोहन सिंह को बनाया। इस फौज का उद्देश्य था भारत को अंग्रेजों के चंगुल से सैन्य बल द्वारा मुक्त कराना

5 दिसंबर 1940 को जेल से छूटने पर नेताजी को कोलकाता के उनके अपने घर पर ही नजर बंद कर दिया गया। 1941 को नेताजी चकमा देकर काबूल होते हुए जर्मनी जा पहुंचे। सरदार अजीत सिंह ने नेताजी को ‘आजाद हिंद लश्कर’ के बारे में बताया और इसे व्यापक रूप देने को कहा। जर्मनी में बंदी ब्रिटिश सेना के भारतीय सैनिकों को ‘आजाद हिंद फौज’ में शामिल किया गया।

सुभाष चंद्र बोस का नेतृत्व (Leadership of Subhash Chandra Bose)

1942 में आजाद हिंद संघ (India Independence League) का एक सम्मेलन हुआ, जिसमें रासबिहारी बोस ने जापान शासन की सहमति से नेताजी को आमंत्रित किया। 16 जून को जापानी संसद में नेताजी को सम्मानित किया गया। 4 जुलाई 1943 को नेताजी Azad Hind Fauj    के प्रधान सेनापति बने। 9 जुलाई को एक समारोह में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 60 हजार लोगों को संबोधित करते हुए कहा –

“यह सेना न केवल भारत को स्वतंत्रता प्रदान करेगी अपितु स्वतंत्र भारत की सेना का भी निर्माण करेगी। हमारी विजय तब पूर्ण होगी जब हम ब्रिटिश साम्राज्य को दिल्ली के लाल किले में दफना देंगे। आज से हमारा परस्पर अभिवादन “जय हिंद” और हमारा नारा ‘दिल्ली चलो’ होगा।” 4 जुलाई 1943 को ही नेताजी ने”तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा” का उद्घोष किया।

सुभाष चन्द्र बोस द्वारा ' आजाद हिंद सरकार' का गठन (Formation of 'Azad Hind Government' by Subhash Chandra Bose)

Azad Hind Fauj_Indian National Army_Azad Hind Fauj Day_Azad Hindi Government_Shubhas Chandar Bose

सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्टूबर 1943 को सिंगापुर में अस्थाई भारत सरकार ‘आजाद हिंद सरकार’ (Azad Hind Government) की स्थापना की। इस सरकार के राष्ट्रपति प्रधानमंत्री तथा सेना अध्यक्ष तीनों सुभाष चंद्र बोस ही थे। एससी चटर्जी को वित्त विभाग, एस ए अय्यर को प्रचार विभाग तथा लक्ष्मी स्वामीनाथन को महिला संगठन सौपा  गया।

आजाद हिंद फौज का प्रतीक चिन्ह (insignia of azad hind fauj)

आजाद हिंद फौज का प्रतीक चिन्ह के रूप में एक झंडे पर दहाड़ते हुए बाग का चित्र बना था।

आजाद हिंद फौज का गीत-

“कदम कदम बढ़ाए जा खुशी के गीत गाए जा।”

यह संगठन का वह गीत था जिसे गुनगुना कर संगठन के सेनानी जोश और उत्साह से भर उठते थे। आजाद हिंद सरकार (Azad Hind Government) को जर्मनी जापान तथा उनके समर्थक देशों ने मान्यता प्रदान की। आजाद हिंद फौज जापानी सैनिकों के साथ रंगून होती हुई थल मार्ग से भारत की ओर बढ़ने लगी और 18 मार्च सन 1944 को कोहिमा और इंफाल के भारतीय मैदानी क्षेत्रों में पहुंच गई।

isnsignia of azad hind Fauj

फौज की ब्रिगेड

पहली बार सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) ने महात्मा गांधी के लिए ‘राष्ट्रपिता’ शब्द का प्रयोग किया था। जुलाई 1944 ई को सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज (Azad Hind Fauj) के गठन के बाद रेडियो पर गांधी जी को संबोधित करते हुए कहा, “भारत की स्वाधीनता का आखिरी युद्ध शुरू हो चुका है। हे राष्ट्रपिता! भारत की मुक्ति के इस पवित्र युद्ध में हम आपका आशीर्वाद और शुभकामनाएं चाहते हैं।” इसके बाद उन्होंने अपनी फौज की ब्रिगेड को नाम भी दिए-

  • महात्मा गांधी ब्रिगेड
  • अब्दुल कलाम आजाद ब्रिगेड
  • जवाहरलाल नेहरू ब्रिगेड
  • सुभाष चंद्र बोस ब्रिगेड

सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु के बाद फौज की पराजय

आजाद हिंद फौज ने कैप्टन शाहनवाज के नेतृत्व में रंगून से दिल्ली प्रस्थान किया और अनेक स्थानों पर विजय प्राप्त की लेकिन उसी समय अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी नगरों पर परमाणु बम गिरा दिया जिस कारण युद्ध का पासा पलट गया और जापान को आत्मसमर्पण करना पड़ा, जिसके कारण “आजाद हिंद फौज” को भी हार का सामना करना पड़ा। 

अंग्रेजों ने 1945 में आजाद हिंद फौज (Azad Hind Fauj) के सैनिकों और अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया। इसी समय 18 अगस्त 1945 को एक हवाई दुर्घटना में सुभाष चं की मृत्यु हो गई। हालांकि Subhash Chandra Bose की मृत्यु आज भी संदेह के घेरे में है।

अंग्रेज सरकार द्वारा नवंबर 1945 में दिल्ली के लाल किले में Azad Hind Fauj के गिरफ्तार सैनिकों और अधिकारियों पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया। राजद्रोह के मुख्य आरोपी कर्नल सहगल, कर्नल ढिल्लो एवं मेजर शहवाज खान के पक्ष में सर तेज बहादुर सप्रू, जवाहरलाल नेहरू, भूला भाई देसाई और के.एन.काटजू ने दलीलें दी। इसके बावजूद तीनों को फांसी की सजा सुनाई गई। जिसके खिलाफ पूरे देश में कड़ी प्रतिक्रिया हुई और नारे लगाए गए। “लाल किले को तोड़ दो, आजाद हिंद फौज को छोड़ दो।”

इस प्रतिक्रिया ने तत्कालीन वायसराय लॉर्ड वेवेल को विवश कर दिया और उन्होंने अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए मृत्युदण्ड की सजा को माफ कर दिया। इतिहासकारों का मानना है की सेना में लगभग 40 हजार सेनानी थे।