December 21, 2024
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Vasant Panchami 2023 : आइये जानते हैं हिंदुओं के प्रसिद्ध त्योहार बसंत पंचमी के बारे में

About Vasant Panchami (वसंत पंचमी के बारे में) : भारत में हिंदुओं का प्रसिद्ध त्योहार बसंत पंचमी है। वर्ष 2023 में बसंत पंचमी (Vasant Panchami) का त्यौहार 26 जनवरी को मनाया जाएगा। अमित तेजस्विनी व अनंत गुणशालिनी देवी सरस्वती की पूजा (Saraswati puja) आराधना माघ मास की पंचमी तिथि को की जाती है। इस दिन स्त्रियां पीले वस्त्र धारण करती हैं। संपूर्ण भारत में यह पूजा बड़े उल्लास से की जाती है। बसंत पंचमी के पर्व से ही बसंत ऋतु का आगमन होता है। कटु शीत के स्थान पर शांत, ठंडी और मंद वायु मन को आह्लादित करने लगती है। पेड़ों में नई पत्तियां और पुष्प आने लगते हैं। इस दिन के सौंदर्य को स्त्रियों का पीले वस्त्र पहनना और बढ़ा देता है। बसंत पंचमी (Vasant Panchami) विद्यार्थियों के लिए महत्वपूर्ण दिन होता है। विद्या की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती की इस दिन पूजा आराधना की जाती है।

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About Vasant Panchami (वसंत पंचमी के बारे में)  : भारत में हिंदुओं का प्रसिद्ध त्योहार बसंत पंचमी है। वर्ष 2023 में बसंत पंचमी (Vasant Panchami) का त्यौहार 26 जनवरी को मनाया जाएगा। अमित तेजस्विनी व अनंत गुणशालिनी देवी सरस्वती की पूजा (Saraswati puja) आराधना माघ मास की पंचमी तिथि को की जाती है। इस दिन स्त्रियां पीले वस्त्र धारण करती हैं। संपूर्ण भारत में यह पूजा बड़े उल्लास से की जाती है। बसंत पंचमी के पर्व से ही बसंत ऋतु का आगमन होता है। कटु शीत के स्थान पर शांत, ठंडी और मंद वायु मन को आह्लादित करने लगती है। पेड़ों में नई पत्तियां और पुष्प आने लगते हैं। इस दिन के सौंदर्य को स्त्रियों का पीले वस्त्र पहनना और बढ़ा देता है। बसंत पंचमी (Vasant Panchami) विद्यार्थियों के लिए महत्वपूर्ण दिन होता है। विद्या की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती की इस दिन पूजा आराधना की जाती है।

क्या है बसंत पंचमी का अर्थ ? (What is the meaning of Vasant Panchami?)

बसंत पंचमी का अर्थ है– शुक्ल पक्ष का पांचवा दिन। यह पर्व हिंदी तिथि के अनुसार माघ मास में मनाया जाता है तथा अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार जनवरी-फरवरी में मनाया जाता।

क्या है बसंत ऋतु ?

वसंत को ऋतुराज बसंत भी कहा जाता है इसे सब ऋतु में श्रेष्ठ कहा गया है। इस ऋतु में पंच तत्व जल, वायु, धरती, आकाश तथा अग्नि अपना प्रकोप छोड़कर अपने मोहक रूप में दिखते हैं। आकाश स्वच्छ, अग्नि रुचिकर तो वायु सुहानी लगती है। वही जल पीयूष के समान सुख कर और धरती तो मानो साकार सौंदर्य रूप धारण कर लेती है। शीत से ठिठुरे पक्षी उड़ने का बहाना ढूंढते हैं। लहलहाती जौ की बालियों और सरसों के फूल को देखकर किसान प्रफुल्लित हो उठते हैं। बसंत ऋतु के आगमन से जहां धनवान प्रकृति के सौंदर्य को देखना चाहता है, वही निर्धन शिशिर के कष्ट से मुक्त होकर सुख की अनुभूति करने लगता है। प्रकृति का मानो पुनर्जन्म हो जाता है। जब सावन की हरियाली हेमंत और शिशिर ऋतु में वृद्धा के समान हो जाती है, तब वसंत के आगमन से उसका सौंदर्य खिल उठता है।

बसंत पंचमी का पौराणिक इतिहास

पुराणों में सरस्वती देवी को चारभुजा युक्त व आभूषणों से सुसज्जित दर्शाया गया है। स्कंद पुराण में सरस्वती जटा- जूट युक्त मस्तक पर अर्ध चंद्र धारण किए नील ग्रीवा वाली एवं तीन नेत्रों वाली कमल आसन पर सुशोभित कहीं गई हैं। बसंत पर्व का आरंभ बसंत पंचमी से माना जाता है। इसी दिन विद्या की देवी मां सरस्वती का जन्म दिवस मनाया जाता है। देवी सरस्वती ने देवों को राक्षस राज कुंभकरण से कैसे बचाया इसकी कथा बाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड में आती है। जब कुंभकरण ने वरदान प्राप्त के लिए 1हजार वर्षों तक घोर तपस्या की और ब्रह्मा जी जब वरदान देने को प्रकट हुए तो देवताओं ने कहा कि पहले से ही राक्षस जाति का होते हुए यदि यह वर प्राप्त कर लेगा तो और भी उन्मत्त हो जाएगा, तब ब्रह्मा जी ने सरस्वती जी का स्मरण किया सरस्वती जी राक्षस की जीभ पर सवार हुई ।उनके प्रभाव से कुंभकर्ण ने ब्रह्माजी से कई वर्षों तक सोते रहने का वर मांग लिया।

बसंत पंचमी सरस्वती पूजन एवं ज्ञान का महापर्व

बसंत पंचमी (Vasant Panchami)को विद्या और ज्ञान की देवी सरस्वती का आविर्भाव दिवस माना जाता है। अतः यह तिथि “वागीश्वरी जयंती” व “श्री पंचमी” नाम से भी प्रसिद्ध है। कहते हैं जिसकी जिह्वा पर सरस्वती देवी का वास होता है वह बहुत विद्वान और बुद्धिमान होते हैं। बसंत पंचमी का दिन सरस्वती जी की साधना को समर्पित है। शास्त्रों में भगवती सरस्वती की आराधना व्यक्तिगत रूप से करने का विधान है किंतु आजकल सार्वजनिक पूजा पंडालों में देवी सरस्वती की मूर्ति स्थापित कर पूजा की जाती है। इस दिन प्रशिक्षण संस्थान व विद्यालयों में अवकाश होता है। पूजा स्थानों को सजाने संवारने का प्रबंध छात्र करते हैं। महोत्सव के कुछ सप्ताह पूर्व विद्यालय विभिन्न प्रकार के वार्षिक समारोह मनाना शुरू कर देते हैं। वाद-विवाद, खेलकूद, संगीत प्रतियोगिताएं एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

बसंत पंचमी पर होती है नए कार्यों की शुरुआत

नए कार्य प्रारंभ करने के लिए बसंत पंचमी अत्यंत शुभ दिन माना गया है। सभी शुभ एवं नए कार्यों के प्रारंभ के लिए यह एक अत्यंत शुभ मुहूर्त माना जाता है। वह चाहे गृह प्रवेश हो, विद्यारंभ हो या नवीन विद्या प्राप्ति करने का कार्य हो। बसंत पंचमी माघ मास में पड़ती है और माघ मास का आध्यात्मिक एवं धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। इसीलिए बसंत पंचमी को अत्यंत शुभ मुहूर्त माना जाता है। इस समय सूर्य देव भी उत्तरायण होते हैं। उत्तरायण को देवताओं का दिन कहा जाता है तथा दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि कहा जाता है। सामान्यतः सूर्य के दक्षिणायन काल में शुभ कार्यों को वर्जित माना गया है। क्योंकि बसंत पंचमी उत्तरायण काल में पड़ती है। अतः इस पर्व का आध्यात्मिक, वैदिक और धार्मिक सभी दृष्टि से अति विशिष्ट महत्व है।

पंचमी तिथि किसी न किसी देवता को समर्पित है। बसंत पंचमी को मुख्यतः सरस्वती पूजन के निमित्त ही माना गया है। इस ऋतु में प्रकृति का सौंदर्य अपनी चरम सीमा पर होता है ।सरस्वती जी का शुभ श्वेत धवल रूप वेदों में इस प्रकार वर्णित है-

“या कुंदेंदु- तुषार- हार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणा- वर दंड मंडित करा या श्वेत पद्मासना
या ब्रम्हाच्युत शंकर प्रभृतिभिरदेवा : सदा वंदिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाद्द्यापहा।”

अर्थात देवी सरस्वती शीतल चंद्रमा की किरणों से गिरती हुई ओस की बूंदों के श्वेत हार से सुसज्जित, शुभ वस्त्रों से आवृत, हाथों में वीणा धारण किए हुए, वर मुद्रा में ,अति श्वेत कमल रूपी आसन पर विराजमान हैं। शारदा देवी ब्रह्मा शंकर अच्युत आदि देवताओं द्वारा भी सदा ही वंदनीय हैं। ऐसी देवी सरस्वती हमारी बुद्धि की जड़ता को नष्ट करके हमें तीक्ष्ण बुद्धि एवं कुशाग्र मेघा से युक्त करें।

बसंत पंचमी को घरों में होता है बसंत का माहौल

 इस दिन पूजा घर को साफ करके सरस्वती देवी की प्रतिमा को पीले फूलों से सजे लकड़ी के मंडप पर रखा जाता है। उनकी प्रतिमा के पास गणेश जी की प्रतिमा को रखा जाता है। परिवार के सभी सदस्य पीला वस्त्र धारण करते हैं ।प्रसाद की थाली में पीली बर्फी, बेसन के लड्डू, नारियल व पान भी रखा जाता है। बसंत पंचमी के दिन उल्लास व आनंद की अनुभूति फूट पड़ती है। इस दिन उत्सव का माहौल होता है।

बसंत पंचमी पर पीले रंग का महत्व

हिंदुओं का शुभ रंग पीला होता है। अतः इस दिन केवल पीले रंग के वस्त्र पहने जाते हैं। खाद्य पदार्थों में भी पीले चावल, पीले लड्डू व केसर युक्त खीर का उपयोग किया जाता है। इस दिन सब कुछ पीला दिखाई पड़ता है। नव युवक- युवती एक दूसरे को पीले चंदन या हल्दी का तिलक लगाकर समारोह आरंभ करते हैं। हल्दी, चंदन व रोली के मिश्रण को अपने दाएं हाथ की तीसरी उंगली से मां सरस्वती के चरणों एवं मस्तक पर लगाया जाता है।

बसंत पंचमी का उत्सव एवं मनोरंजन

संत पंचमी के दिन पतंगबाजी भी होती है। जब पतंग कटती है तो उसे पकड़ने की होड़ मचती है इस भागमभाग से सारा माहौल उत्सवमय हो जाता है।
बसंत पंचमी के दिन मथुरा में दुर्वासा ऋषि के मंदिर पर मेला लगता है। वृंदावन के श्री बांके बिहारी जी मंदिर में बसंत कक्ष खुलता है। शाह जी के मंदिर का बसंती कमरा प्रसिद्ध है। यहां दर्शकों की भारी भीड़ होती है। मंदिरों में बसंती भोग रखे जाते हैं। बसंत पंचमी से ही होली गीत शुरू हो जाता है ।

बसंत पंचमी का प्रसाद और भोजन

बसंत पंचमी के दिन सरस्वती मां को पीला भोग चढ़ाया जाता है। इस दिन मीठे चावल का विशेष महत्व है। इस दिन बादाम, काजू, किसमिस आदि मेवे डालकर केसर की खीर बनाई जाती है। मेहमानों को पीली बर्फी प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
बसंत को मधुमास भी कहा जाता है। प्रकृति काममय हो जाती है। इस दिन प्रत्येक राशि के छात्र अपनी राशि के शुभ पुष्प से मां महासरस्वती की साधना करते हैं। मां सरस्वती की पूजा अर्चना कर इच्छित सफलता प्राप्त करते हैं।