November 20, 2024
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सावित्रीबाई फुले जयंती : सावित्रीबाई फुले का जीवन परिचय ( Savitribai Phule Jayanti January 3 )

Savitribai Phule Jayanti : सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगांव नामक छोटे से गांव में हुआ था। सावित्रीबाई की माता का नाम लक्ष्मी तथा पिता का नाम खंदोजी नेवसे था। सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule )भारत की प्रथम बालिका विद्यालय की प्रथम प्रधानाचार्य थीं सावित्रीबाई फुले प्रथम किसान स्कूल की भी संस्थापिका थीं
सावित्री बाई (Savitribai Phule ) का विवाह 9 वर्ष की आयु में 13 वर्षीय ज्योतिबा फुले के साथ हुआ था। अपने विवाह के समय सावित्रीबाई फुले अनपढ़ थीं। उनके पति ज्योतिबा फुले तृतीय कक्षा में पढ़ते थे। सावित्रीबाई जिस समय पढ़ने का सपना देख रही थीं उस समय दलितों के साथ भेदभाव हो रहा था।

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Savitribai Phule Jayanti : सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगांव नामक छोटे से गांव में हुआ था। सावित्रीबाई की माता का नाम लक्ष्मी तथा पिता का नाम खंदोजी नेवसे था। सावित्रीबाई फुले भारत की प्रथम बालिका विद्यालय की प्रथम प्रधानाचार्य थीं सावित्रीबाई फुले प्रथम किसान स्कूल की भी संस्थापिका थीं
सावित्री बाई का विवाह 9 वर्ष की आयु में 13 वर्षीय ज्योतिबा फुले के साथ हुआ था। अपने विवाह के समय सावित्रीबाई फुले अनपढ़ थीं। उनके पति ज्योतिबा फुले तृतीय कक्षा में पढ़ते थे। सावित्रीबाई जिस समय पढ़ने का सपना देख रही थीं उस समय दलितों के साथ भेदभाव हो रहा था। सावित्रीबाई फुले को किताब पढ़ते हुए देखकर उनके पिता ने कहा कि हमारे समाज में शिक्षा का अधिकार केवल उच्च जाति और पुरुषों को प्राप्त है। महिलाओं और दलितों को शिक्षा ग्रहण करना पाप माना जाता है और उनके पिता ने उनकी किताब छीनकर फेंक दिया। इसके पश्चात सावित्रीबाई ने यह प्रण किया कि वह शिक्षा अवश्य ग्रहण करेंगी।

उनके इस दृढ़ संकल्प में बहुत–सी बाधाएं आयीं। जब वे विद्यालय जाती थीं तो लोग पत्थर मारते थे। उन पर गंदगी फेंक देते थे। आज से 16 वर्ष पहले बालिकाओं के लिए सामाजिक बाधाओं के बीच बड़ी कठिनाई से विद्यालय खोला गया।

इतिहास की महानायिका

सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule )ने हर बिरादरी और धर्म के लिए काम किया। जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़ यहां तक की विष्ठा तक फेंका करते थे। सावित्रीबाई अपने थैले में एक साड़ी हमेशा साथ रखती थी और स्कूल पहुंचकर गंदी साड़ी बदल देती थीं। सावित्रीबाई फुले के साथ घटित यह घटनाएं हमें अपने पद पर दृढ़ता से चलते रहने की प्रेरणा देते हैं।
सावित्रीबाई फुले ने 19वीं सदी में अपने पति के साथ मिलकर सती प्रथा, बाल विवाह, छुआछूत और विधवा विवाह जैसी कुरीतियों के विरुद्ध कार्य किया। जब एक विधवा ब्राह्मण महिला काशीबाई गर्भवती होने के कारण आत्महत्या करने जा रही थी तो सावित्रीबाई ने अपने घर में उसका प्रसव कराया और उसके पुत्र यशवंत को अपने दत्तक पुत्र के रूप में गोद लिया और उसे पढ़ा लिखा कर डॉक्टर बनाया।

विद्यालय की स्थापना

सावित्रीबाई फुले ने 1848 में पुणे में अपने पति के साथ मिलकर एक विद्यालय की स्थापना की जिसमें विभिन्न जातियों की केवल 9 छात्राएं थीं। सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले ने 1 वर्ष में 5 विद्यालय प्रारंभ किया। इनके इस कार्य के लिए तत्कालीन सरकार ने सम्मानित भी किया। सन् 1848 में एक महिला प्रधानाध्यापिका के लिए बालिका विद्यालय चलाना कितना मुश्किल था इसकी शायद कल्पना भी नहीं की जा सकती क्योंकि उस समय लड़कियों की शिक्षा पर सख्त सामाजिक पर प्रतिबंध था। लेकिन सख्त सामाजिक पाबंदियों के बीच उस दौर में सावित्रीबाई फुले ने न सिर्फ खुद शिक्षा प्राप्त की अपितु समाज की अन्य लड़कियों को भी पुणे जैसे शहर में शिक्षित करने का बीड़ा उठाया।

आधुनिक मराठी काव्य की आदिकवियत्री

सावित्रीबाई फुले एक कवियत्री भी थीं। उन्हें मराठी की आदिकवियत्री के रूप में भी जाना जाता है। सावित्रीबाई देश की प्रथम महिला शिक्षिका तो थीं ही साथ ही साथ उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज के वंचित, दलितों और स्त्री अधिकारों के लिए संघर्ष करने में व्यतीत किया जिसके लिए उन्हें सदैव याद किया जाएगा। वे अपनी कविताओं और रचनाओं में सदैव सामाजिक चेतना की बात किया करती थीं।

‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना

सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले ने 24 सितंबर 1873 को सत्यशोधक समाज की स्थापना की। इसका मुख्य उद्देश्य ब्राह्मणवाद और उसकी कुरीतियों के विरुद्ध आवाज उठाना था। इन्होंने मूर्ति पूजा, कर्मकांडों, पुजारियों के वर्चस्व, कर्म, पुनर्जन्म और स्वर्ग के सिद्धांतों का विरोध किया। इन्होंने विधवा विवाह की परंपरा शुरू की। इस संस्था द्वारा 25 दिसंबर 1873 को प्रथम विधवा पुनर्विवाह कराया गया। 28 नवंबर 1890 को ज्योतिबा फुले की मृत्यु के पश्चात सत्यशोधक समाज की जिम्मेदारी सावित्रीबाई फुले ने बखूबी निभाई।

निधन

सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule ) की मृत्यु 10 मार्च 1897 में प्लेग की वजह से हो गई। सावित्रीबाई प्लेग महामारी में प्लेग मरीजों की सेवा किया करती थीं। एक प्लेग ग्रस्त बच्चे की सेवा के दौरान इनको भी प्लेग हो गया और इस बीमारी ने एक महान शिक्षिका और समाज सुधारक को हमेशा के लिए छीन लिया।