November 21, 2024
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Shree Krishna Janmashtami 2023 : श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर जानिए भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़े कुछ प्रमुख स्थानों के बारे में

भगवान विष्णु ने प्रत्येक युग में धर्म की स्थापना और अधर्म के नाश के लिए अवतार लिया है। इन्हीं अवतारों में से एक है कृष्ण अवतार जो भगवान श्री विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। द्वापर युग में धर्म की स्थापना के लिए भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण का अवतार लिया और प्राचीन काल से चले आ रहे हिंदू सनातन धर्म को एक नवीनतम रूप देकर भगवत धर्म की स्थापना की थी।

Krishna Janmashtami 2023_Janpanchayt Spiritual Blogs

Shree Krishna Janmashtami 2023 : भगवान विष्णु ने प्रत्येक युग में धर्म की स्थापना और अधर्म के नाश के लिए अवतार लिया है। इन्हीं अवतारों में से एक है कृष्ण अवतार जो भगवान श्री विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। द्वापर युग में धर्म की स्थापना के लिए भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण का अवतार लिया और प्राचीन काल से चले आ रहे हिंदू सनातन धर्म को एक नवीनतम रूप देकर भगवत धर्म की स्थापना की थी।

क्यों मनाई जाती है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी ?

श्री कृष्ण जन्माष्टमी (Shree Krishna Janmashtami) के पावन पर्व पर योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है। जन्माष्टमी का पर्व भारत में ही नहीं अपितु विदेशों में बसे भारतीय भी पूरी आस्था और उल्लास से मनाते है। भगवान श्री कृष्ण ने भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मध्य रात्रि में अवतार लिया था। भगवान श्री कृष्ण ने मथुरा नगरी में जन्म लिया था। अतः श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से सराबोर होती है।

भगवान श्री कृष्ण विष्णु जी के आठवें अवतार माने जाते हैं। कृष्ण अवतार श्री विष्णु का 16 कलाओं से पूर्ण भव्यतम अवतार है। श्री कृष्ण का प्राकट्य अताताई कंस के कारागार में हुआ था। श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी की मध्य रात्रि को रोहिणी नक्षत्र में देवकी व वसुदेव के पुत्र के रूप में हुआ था।

क्या है श्रीकृष्ण जन्म के पीछे की कथा ?

मथुरा का राजा कंस देवकी का भाई था जिसने अपनी बहन देवकी का विवाह वसुदेव के साथ प्रसन्नता पूर्वक संपन्न करा कर उन्हें विदा कराकर देवकी के ससुराल पहुंचाने जा रहा था। तभी अचानक रास्ते में भविष्यवाणी हुई कि ‘ जिस बहन को तो खुशी- खुशी विदा कर कर ले जा रहा है उसी की आठवीं संतान के द्वारा तेरी मृत्यु होगी। यह सुनकर कंस ने देवकी और वसुदेव को तत्काल बंदी गृह में डाल दिया और देवकी की प्रत्येक संतान का वध करता रहा। जब देवकी की आठवीं संतान के रूप में श्री कृष्ण ने अवतार लिया, उस समय अर्धरात्रि का समय था। घनघोर वर्षा हो रही थी। श्री कृष्ण के जन्म लेते हैं वसुदेव की बेड़ियां अपने आप खुल गई और बंदीगृह के ताले भी खुल गए।
यह सब योगेश्वर श्री कृष्ण की माया थी। सभी पहरेदार ग्गहन निद्रा में सो गए तत्पश्चात वसुदेव श्री कृष्ण को एक टोकरी में अपने सर पर रखकर अपने मित्र नंद के घर नंदगांव चल दिए। इस बीच यमुना नदी भगवान श्री कृष्ण के चरण स्पर्श को लालायित हो रही थी।भगवान श्री कृष्ण ने अपने चरण टोकरी से बाहर कर दिए और यमुना नदी उनके चरणों का स्पर्श कर लिया। इसके बाद उनका जलस्तर घट गया। तत्पश्चात वासुदेव सुगमतापूर्वक अपने मित्र नंद के घर गोकुल जाकर कृष्ण को वहां छोड़कर और यशोदा की कन्या को उठाकर बंदी गृह ले आए। कंस ने उस कन्या को देवकी की आठवीं संतान समझकर मरने का प्रयास किया लेकिन वह असफल रहा क्योंकि वह योग माया थी। इस प्रकार श्री कृष्ण का लालन पालन नंद और यशोदा के घर हुआ।

 

मथुरा में कृष्ण जन्माष्टमी अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में मनाई जाती है जबकि वृंदावन में जन्माष्टमी मथुरा की कृष्णजनमाष्टमी के दूसरे दिन मनाई जाती है।

2023 में कब मनायी जाएगी श्री कृष्ण जन्माष्टमी ?

वर्ष 2023 में श्री कृष्ण जन्माष्टमी 6 और 7 सितंबर को मनाई जाएगी। इस बार कृष्ण जन्माष्टमी पर 6 सितंबर को बहुत ही शुभ जयंती योग बन रहा है। गृहस्थ लोगों के लिए 6 सितंबर को कृष्ण जन्माष्टमी व्रत रखना बहुत ही शुभ रहने वाला है। इसके अतिरिक्त साधु और ऋषियों के लिए 7 सितंबर के दिन जन्माष्टमी का व्रत रहेगा

श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़े प्रमुख स्थान

भगवान विष्णु ने आठवें मनु वैवस्वत के मन्वंतर के 28 में द्वापर में देवकी के गर्भ से आठवे पुत्र के रूप में आठवें अवतार श्री कृष्ण के रूप में जन्म लिया था। श्री कृष्ण के जीवन में 8 अंक का अजीब सहयोग रहा है। भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की रात के सात मुहूर्त के पश्चात आठवें मुहूर्त में सबसे शुभ लग्न में श्री कृष्णा का जन्म हुआ। श्री कृष्ण के जन्म के लग्न पर केवल शुभ ग्रहों की दृष्टि थी।
जिस प्रकार भगवान श्री कृष्ण देवकी वासुदेव के आठवे पुत्र थे कृष्ण की 8 सखियां 8 मित्र 8 पत्नियां और आठ शत्रु थे। उसी प्रकार 8 नगर ऐसे हैं जहां उनके जीवन का अधिकांश समय व्यतीत हुआ। या यूं कहीं की इन आठ स्थानों पर ही श्री कृष्ण की विभिन्न लीलाएं हुई।
आइए जानते हैं श्री कृष्ण जीवन से जुड़े प्रमुख आठ स्थानों के बारे में-

Mathura_Krishna Janmashtami

मथुरा

मथुरा भगवान श्री कृष्ण की जन्मस्थली है। मथुरा के राजा कंस की बहन देवकी के आठवें पुत्र के रूप में कृष्ण का जन्म मथुरा के कारागार में हुआ था। मथुरा में ही श्री कृष्ण ने बड़े होकर अपने मामा कंस का वध किया था तथा अपनी माता देवकी और पिता वासुदेव को कारागृह से मुक्त कराया था। मथुरा में श्री कृष्ण जन्म स्थल होने के कारण आज भी उनका जन्मोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

Gokul and Nangaon_Shree Krishna Janmashtami

नंदगांव- गोकुल

नंद गांव अथवा गोकुल में भगवान श्री कृष्ण का पालन पोषण नंद बाबा और माता यशोदा के घर हुआ था। यहां श्री कृष्ण ने अपने पलक पिता नंद बाबा और यशोदा माता के साथ 9 वर्ष 50 दिनों तक निवास किया था। गांव के मुखिया नंद बाबा ने भगवान श्री कृष्णा को राजा कंस द्वारा भेजे गए राक्षसों से बचाने के लिए एक बड़ी पहाड़ी के ऊपर घर बनवाया था। नंदगांव (गोकुल) में श्री कृष्ण ने कंस द्वारा भेजे गए कई राक्षस और राक्षसी जैसे बकासुर,पूतना आदि का वध किया था।

Vrindavan_ Krishna Janmashtami

वृंदावन

वृंदावन नगर भगवान श्री कृष्ण की रासलीला से जुड़ा हुआ है। वृंदावन भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा जिले में स्थित एक महत्वपूर्ण धार्मिक नगर है। यह स्थान श्री कृष्ण की अलौकिक लीलाओं का केंद्र माना जाता है। वृंदावन को “ब्रज का हृदय” कहा जाता है। जहां राधा कृष्ण ने रास रचाया था और अपनी दिव्य लीलाएं की थी। इस पावन भूमि को पृथ्वी का अति उत्तम तथा परम गुप्त भाग कहा जाता है। ‘ पद्म पुराण’ में इसे भगवान का साक्षात शरीर, पूर्ण ब्रह्म से संपर्क का स्थान तथा सुख का आश्रय बताया जाता है। इसी कारण वृंदावन अनादि काल से श्री कृष्ण भक्तों की श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। वृंदावन में विशाल संख्या में श्री कृष्ण और राधा रानी के मंदिर है। वृंदावन का बांके बिहारी जी का मंदिर प्रसिद्ध है।

Barsana_Krishna Janmashtami

बरसाना

बरसाना मथुरा जिले का एक धार्मिक स्थल है बरसाना में श्री कृष्ण की पत्नी राधा रानी का जन्म स्थान है। बरसाना ब्रज क्षेत्र में स्थित है

Govardhan Parvat_Krishna Janmashtami

गोवर्धन पर्वत

गोवर्धन पर्वत भी भगवान श्री कृष्णा के जीवन से जुड़ा महत्वपूर्ण स्थान है। पौराणिक कथा के अनुसार जब गोकुल और नंद गांव के लोगों ने इंद्र की पूजा नहीं की तो अहंकारवश इंद्रदेव क्रोधित होकर मथुरा में अतिवृष्टि करने लगे। जिससे पूरे गांव में प्रलय की स्थिति आ गई। उस समय भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र के अहंकार को तोड़ने।के लिए एक बालक के रूप में अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर गांव वासियों की रक्षा की थी। तब से यह गोवर्धन पर्वत कृष्ण भक्तों के लिए पूजनीय हो गया है। गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा का बहुत महत्व है।

Ujjain_Shree Krishna Janmashtami

उज्जैन

मध्य प्रदेश के उज्जैन नगर का भगवान श्री कृष्ण के जीवन से गहरा संबंध रहा है। उज्जैन में ही भगवान श्री कृष्णा ने 11 वर्ष की उम्र में शिक्षा ग्रहण की थी। उज्जैन में भगवान श्री कृष्ण ने बलराम और सुदामा के साथ सांदीपनि आश्रम में महर्षि सांदीपनि गुरु से शिक्षा ग्रहण की थी। गुरु सांदीपनि ने श्री कृष्ण को 64 कलाओं की शिक्षा इसी आश्रम में दी थी। उज्जैन में श्री कृष्णा और सुदामा की मित्रता हुई थी। ऐसी मान्यता है कि श्री कृष्णा जब आश्रम में गए थे तो कार्तिक मास की बैकुंठ चतुर्दशी के दिन अवंतिका के राजा महाकाल स्वयं उनसे मिलने के लिए गुरु सांदीपनि की आश्रम में पधारे थे। इसलिए इस आश्रम में नंदी खड़े नजर आते हैं।

Dwarkadhish Temple_Shree Krishna Janmashtami

द्वारका

द्वारका भगवान श्री कृष्ण की जीवन से जुड़ा महत्वपूर्ण स्थल है। श्री कृष्ण मथुरा में कंस का वध करने के पश्चात द्वारिका में आकर बस गए थे। इसीलिए श्री कृष्ण को “द्वारकाधीश” भी कहा जाता है। द्वारिका को ‘ मोक्षपूरी’ ‘द्वारकामति’ और ‘द्वारकावती’ के नाम से भी जाना जाता है। द्वारका में श्री कृष्ण को समर्पित “द्वारकाधीश मंदिर” चार धाम कहे जाने वाले चार पवित्र हिंदू तीर्थ स्थलों में से एक है। द्वारका भारत के सात सबसे प्राचीन धार्मिक नगरी (सप्तपुरी) में से एक है।

Prabhash Teertha_Shree Krishna Krishna Janmashtami

प्रभास क्षेत्र

यह स्थान भगवान श्री कृष्ण के जीवन के अंत से जुड़ा हुआ है। दुर्योधन की माता गांधारी ने महाभारत युद्ध के पश्चात श्री कृष्ण को श्राप दिया था कि 36 वर्षों बाद कृष्ण के कुल का नाश हो जाएगा। और नियत समय पर यह बातें सत्य सिद्ध हुई। श्री कृष्ण के सभी पुत्र और पौत्र मारे गए।अपने भाई बलराम की मृत्यु के बाद श्री कृष्ण जब जंगल में अकेले भटक रहे थे तब उन्हें गांधारी का श्राप याद आया और वे समझ गए कि उनका अंत समय निकट आ गया है
अतः उन्होंने योग से अपनी इंद्रियों को संयमित किया और लेट गए। तभी एक शिकारी ने हिरण समझकर बाण से उनके पैर में छेद कर दिया। लेकिन जब वह निकट आया तो शिकारी ने पीले वस्त्र पहने एक व्यक्ति को योगाभ्यास करते हुए देखा। उसने स्वयं को अपराधी समझ कर क्षमा मांगी तब श्री कृष्णा उठे और उसे क्षमा प्रदान कर स्वयं स्वर्ग चले गए। जिस स्थान पर शिकारी ने कृष्ण के पैर में छेद किया था और कृष्णा ने स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया था वह स्थान प्रभास पाटन में स्थित भालका तीर्थ के नाम से जाना जाता है।