July 27, 2024

श्रावण मास का महत्व (Importance of Shravan month) : भगवान शिव को समर्पित श्रावण मास की महिमा

श्रावण या सावन मास ईसवी कैलेंडर के जुलाई या अगस्त माह में पड़ता है। हिंदू पंचांग के अनुसार सावन वर्ष का पांचवा महीना है। सावन माह में वर्षा अधिक होती है। इसलिए इसे वर्षा ऋतु का महीना या ‘ पावस ऋतु’ भी कहा जाता है। श्रावण के महीने में हरियाली तीज, रक्षाबंधन, नाग पंचमी जैसे महत्वपूर्ण त्योहार मनाए जाते हैं। श्रावण पूर्णिमा को गुजरात में पवित्रोपन्ना, मध्य भारत में कजरी पूनम, दक्षिण भारत में नारियल पूर्णिमा व अवनी अवित्तम तथा उत्तर भारत में रक्षाबंधन के रूप में मनाया जाता है। त्योहारों की यह विविधता ही तो भारत की विशिष्टता की पहचान है।

Shravan Month in Hindi ( श्रावण मास का महत्व )

भगवान शिव को समर्पित श्रावण मास की महिमा

Shravan Month: श्रावण या सावन मास ईसवी कैलेंडर के जुलाई या अगस्त माह में पड़ता है। हिंदू पंचांग के अनुसार सावन वर्ष का पांचवा महीना है। सावन माह में वर्षा अधिक होती है। इसलिए इसे वर्षा ऋतु का महीना या ‘ पावस ऋतु’ भी कहा जाता है। श्रावण के महीने में हरियाली तीज, रक्षाबंधन, नाग पंचमी जैसे महत्वपूर्ण त्योहार मनाए जाते हैं। श्रावण पूर्णिमा को गुजरात में पवित्रोपन्ना, मध्य भारत में कजरी पूनम, दक्षिण भारत में नारियल पूर्णिमा व अवनी अवित्तम तथा उत्तर भारत में रक्षाबंधन के रूप में मनाया जाता है। त्योहारों की यह विविधता ही तो भारत की विशिष्टता की पहचान है।

कब से शुरू हो रहा है सावन मास

वर्ष 2023 में श्रावण मास 4 जुलाई से प्रारंभ हो रहा है इसी के साथ शिवजी की आराधना का महापर्व शुरू हो रहा है। वर्ष 2023 में श्रावण मास 4 जुलाई से शुरू होकर 31 अगस्त तक अर्थात 58 दिनों का होगा। इस वर्ष श्रावण मास (Shravan Month) में ही अधिक मास लग रहा है जो कि 18 जुलाई से 16 अगस्त तक चलेगा। अतः वर्ष 2023 में सावन 2 महीने का होगा। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देव शयनी एकादशी से देव प्रबोधिनी एकादशी तक सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं। अतः सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान शिव के हाथों में होता है। अधिक मास होने के कारण इस वर्ष चतुर्मास 5 महीने का होगा। सावन का महीना भगवान भोलेनाथ को अत्यंत प्रिय है।

सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित है क्योंकि सावन माह में देवाधिदेव महादेव की आराधना का विशेष महत्व है। इस माह में पड़ने वाले सोमवार का भी विशेष महत्व होता है, जिसे सावन का सोमवार कहा जाता है। सावन के सोमवार पर स्त्रियां विशेष तौर से कुंवारी कन्या भगवान शिव के लिए व्रत रखती हैं।
आइए जानते हैं क्यों है सावन भगवान शिव को इतना प्रिय?

भगवान शिव को समर्पित श्रावण मास की महिमा

श्रावण या सावन मास ईसवी कैलेंडर के जुलाई या अगस्त माह में पड़ता है। हिंदू पंचांग के अनुसार सावन वर्ष का पांचवा महीना है। सावन माह में वर्षा अधिक होती है। इसलिए इसे वर्षा ऋतु का महीना या ‘ पावस ऋतु’ भी कहा जाता है। श्रावण के महीने में हरियाली तीज, रक्षाबंधन, नाग पंचमी जैसे महत्वपूर्ण त्योहार मनाए जाते हैं। श्रावण पूर्णिमा को गुजरात में पवित्रोपन्ना, मध्य भारत में कजरी पूनम, दक्षिण भारत में नारियल पूर्णिमा व अवनी अवित्तम तथा उत्तर भारत में रक्षाबंधन के रूप में मनाया जाता है। त्योहारों की यह विविधता ही तो भारत की विशिष्टता की पहचान है।

सावन क्यों है शिव का प्रिय महीना ?

वैसे तो वर्ष के 12 महीने का अपना अलग-अलग महत्व है। लेकिन सावन महीने का विशेष महत्व है क्योंकि यह महीना शिव जी को अत्यधिक प्रिय है। श्रावण मास शिव को अत्यधिक प्रिय क्यों है? इसके बारे में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं:-

प्रथम पौराणिक कथा के अनुसार जब सनत कुमारों ने भगवान शिव जी से पूछा कि आपको सावन महीना इतना अधिक प्रिय क्यों हैं तो भगवान भोलेनाथ ने कहा कि, देवी सती ने प्रत्येक जन्म में महादेव को ही पति रूप में पाने का प्रण लिया था और जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग करने के पश्चात दूसरे जन्म में पार्वती के नाम से राजा हिमाचल और रानी मैना के घर पुत्री रूप में जन्म लिया तो देवी पार्वती ने शिव को प्रसन्न करने के लिए सावन के महीने में निराहार रहकर कठोर तप किया। जिससे शिवजी ने प्रसन्न होकर पार्वती को अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। इसके बाद से ही श्रावण मास शिव को अत्यंत प्रिय हो गया।

भगवान शिव को सावन का महीना (Shravan Month) प्रिय होने का एक कारण यह भी है कि सावन में भगवान शिव पृथ्वी पर अवतरित होकर अपने ससुराल गए थे। जहां अर्ध्य और जलाभिषेक से उनका स्वागत किया गया था। ऐसा माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष श्रावण मास में भगवान शिव पृथ्वी पर अपने ससुराल आते हैं। अतः सावन का महीना शिव की कृपा प्राप्ति का उत्तम समय होता है।

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार मार्कंडेय ऋषि के पुत्र मार्कंडेय को अल्पायु प्राप्त थी। मार्कंडेय ने श्रावण मास में ही अपनी दीर्घायु के लिए घोर तप किया और शिव की कृपा प्राप्त की थी। शिव कृपा से मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी हार गए क्योंकि भोलेनाथ तो कालों के काल महाकाल है। अतः काल उनके भक्त का बाल भी बांका ना कर सका और मार्कंडेय को दीर्घायु प्राप्त हुई।

पुराणों में समुद्र मंथन का समय भी सावन माह में बताया गया है। पुराणों में वर्णित है कि जब समुद्र मंथन के पश्चात विष निकला तो सृष्टि में हाहाकार मच गया। किसी के पास उस विष को धारण करने की क्षमता नहीं थी। उस समय एकमात्र देव भोलेनाथ ही थे, जिन्होंने सृष्टि की रक्षा हेतु मंथन से निकले विष को अपने कंठ में धारण किया। इससे उनका कंठ नीलवर्ण हो गया। इसी कारण महादेव को नीलकंठ भी कहा जाता है। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया इसीलिए भी सावन में शिवलिंग पर जल चढ़ाने का विशेष महत्व है। श्रावण मास में भोलेनाथ को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।

पुराणों में वर्णित है कि सावन महीने में ही सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। आषाढ़ मास की देवशयनी एकादशी से लेकर कार्तिक मास की देव प्रबोधिनी एकादशी तक 4 महीने भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं। अतः सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान शिव के ऊपर आ जाता है। इसलिए सावन मास के प्रमुख देव भगवान शिव बन जाते हैं

सावन में शिव पूजा का क्या है विधान ?

श्रावण मास भोलेनाथ को समर्पित महीना है। अतःभगवान शिव की उनके परिवार सहित पूजा करनी चाहिए। सावन में महादेव के रुद्राभिषेक का विशेष महत्व होता है। सावन का प्रत्येक दिन रुद्राभिषेक के लिए उत्तम होता है। जबकि अन्य महीनों में रुद्राभिषेक के लिए मुहूर्त देखना पड़ता है।

कैसे करें भगवान शिव का रुद्राभिषेक ?

भगवान शिव के रुद्राभिषेक में जल,दूध, दही, शुद्ध घी, शहद, शक्कर या चीनी, गंगाजल तथा गन्ने के रस से स्नान कराया जाता है। अभिषेक करने के पश्चात शिवलिंग पर बेलपत्र, शमी पत्र, दुर्वा,कुशा एवं आक के पुष्प अर्पित कर शिवजी को प्रसन्न किया जाता है। अंत में भांग, धतूरा, श्रीफल, रंभाफल (केला) आदि भगवान शिव को भोग के रूप में चढ़ाया जाता है।

शिव पूजा में बिल्वपत्र का क्यों है इतना महत्व ?

भगवान भोलेनाथ सिर्फ एक बिल्वपत्र से ही प्रसन्न हो जाते हैं। शिव पुराण में बिल्वपत्र के वृक्ष की जड़ में शिव का वास माना जाता है। बिल्वपत्र में एक साथ तीन पत्तियां जुड़ी रहती हैं जिसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना जाता है। शिव पुराण में बिल्वपत्र की महिमा विस्तृत रूप में बताई गई है। शिवजी को बिल्वपत्र चढ़ाने से तीन लोगों के पाप नष्ट हो जाते हैं। जो व्यक्ति दो अथवा तीन बिल्वपत्र भी श्रद्धा पूर्वक भगवान शिव को अर्पित करता है। वह निःसंदेह भव सागर से पार उतर जाता है अर्थात उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

सावन में सोमवार का क्यों है इतना अधिक महत्व ?

वैसे तो सोमवार का व्रत पूरे वर्ष किया जाता है। लेकिन सावन महीने में पड़ने वाले सोमवार का विशेष महत्व होता है। अधिकांश लोग शिव कृपा प्राप्ति के लिए केवल सावन के सोमवार को ही व्रत रखते हैं। श्रावण मास के सोमवार में शिवजी के व्रत, पूजा और शिवजी की आरती का विशेष महत्व है। शिवजी को प्रसन्न करने के लिए लोग सावन के सोमवार के व्रत का अनुष्ठान लेते हैं।

सोमवार का अंक 2 होता है जो चंद्रमा का प्रतिनिधित्व करता है। चंद्रमा को भगवान शिव अपने मस्तक पर धारण करते हैं। चंद्रमा मन का देवता है। चंद्रमा मनसो जात: है अर्थात चंद्रमा मन का मालिक है। मन के नियंत्रण में चंद्रमा का अहम योगदान होता है। यदि किसी की कुंडली में चंद्रमा की दशा खराब चल रही होती है तो वह व्यक्ति मानसिक रूप से बहुत ही अशांत और व्याकुल रहता है। अतः मन को स्थिर एवं शांत और एकाग्रचित्त बनाए रखने में चंद्रमा का बहुत बड़ा योगदान होता है। भगवान शिव मस्तक पर चंद्रमा को नियंत्रित कर साधक के मन को एकाग्र चित्त कर उसे अविद्या रूपी माया के मोहपाश से मुक्त कर देते हैं। अतः सोमवार के व्रत एवं अनुष्ठान से साधक अथवा भक्त भगवान भोलेनाथ की कृपा से त्रिगुणातीत भाव को प्राप्त करता है।

सावन में कांवर का क्यों है महत्व ?

कांवर संस्कृत भाषा के शब्द कांवारथी से बना है। यह एक प्रकार की बहनगी है जो बांस की फट्टी से बनाई जाती है और जब इस बहंगी को फूल, माला, घंटी और घुंगरू से सजे दोनों किनारों पर वैदिक अनुष्ठान के साथ गंगाजल का भार पिटारियो में रखा जाता है तब यह कांवर बनती है। ऐसी मान्यता है कि भारत की पवित्र नदियों के जल से अभिषेक किए जाने से शिव जी प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं। अतः सावन माह में भारत की पवित्र नदियों से जल लेकर कांवरिया प्रमुख शिवलिंग पर कांवर चढ़ाने जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि पहली बार रावण ने शिवजी को कावड़ चढ़ाई थी। तथा भगवान श्री राम द्वारा भी शिव जी को कांवर चढ़ाई गई थी।

सावन और साधना का घनिष्ठ संबंध

सावन महीना और साधना का घनिष्ठ संबंध है। इस महीने में सृष्टि का कणह कण आराधना में लीन हो जाता है। लेकिन सावन और साधना के बीच चंचल और अति चलायमान मन की एकाग्रता एक महत्वपूर्ण कड़ी है। इसके बिना परम तत्व की प्राप्ति संभव नहीं है। साधक जब साधना शुरू करता है तो मन एक विकराल बाधा के रूप में खड़ा हो जाता है। मन इतना चंचल होता है कि इसे नियंत्रित करना बहुत कठिन होता है। मन को साधने के लिए साधक को धैर्य धारण करना पड़ता है। मन को ही मोक्ष और बंधन का कारण कहा गया है अर्थात मन ही बांधता है और मन से ही मुक्ति है। चंद्रमा मन का द्योतक है, जिसे भगवान शिव ने अपने मस्तक पर धारण किया है। शिव ने अपने मस्तक में चंद्रमा को दृढ़ कर रखा है। इससे साधक की साधना बिना किसी बाधा के पूर्ण होती है। अतः सावन में शिव साधना और उपासना से मन को नियंत्रित किया जा सकता है।