July 27, 2024

Maharana Pratap Jayanti 2023 : अदम्य साहस एवं वीरता की प्रतिमूर्ति महाराणा प्रताप जयंती पर विशेष

Maharana Pratap Jayanti 2023 : भारतीय इतिहास में दृढ़ प्रतिज्ञा और वीरता के लिए अमर महाराणा प्रताप का जन्म कुंभलगढ़ राजस्थान में 9 मई 1540 ई. को हुआ था। महाराणा प्रताप की जयंती प्रत्येक वर्ष विक्रमी संवत कैलेंडर के अनुसार जेष्ठ, शुक्ल पक्ष, तृतीया को मनाई जाती है। वर्ष 2023 में जेष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 22 मई को पड़ रही है। अतः विक्रमी संवत कैलेंडर के अनुसार महाराणा प्रताप की जयंती 22 मई को मनाई जाएगी। वह तिथि बहुत ही महान थी जब ‘मेवाड़ मुकुट मणि’, राणा प्रताप का जन्म हुआ। महाराणा प्रताप इकलौते ऐसे वीर थे जिन्होंने मुगल सम्राट अकबर की अधीनता को कभी स्वीकार नहीं किया। महाराणा प्रताप एक ऐसी योद्धा थे जिन्होंने मुगलो से अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक युद्ध किया। उनके नाम से भारतीय इतिहास गुंजायमान मान है। महाराणा प्रताप की वीरता की गाथा से भारत की भूमि गौरवान्वित है। हिंदुत्व के गौरव को सुरक्षित रखने के लिए वे सदैव तत्पर रहे।
आइए जानते हैं भारतवर्ष के महान वीर महाराणा प्रताप के जीवन के विषय में-

अदम्य साहस एवं वीरता की प्रतिमूर्ति तथा राजपूतों की आन एवं शौर्य का पुण्य प्रतीक, महाराणा प्रताप की जयंती पर विशेष

Maharana Pratap Jayanti 2023_Janpanchayat hindi blogs

कब मनायी जाती है महाराणा प्रताप जयंती ?(When,Maharana Pratap Birth Anniversary is Celebrated)

भारतीय इतिहास में दृढ़ प्रतिज्ञा और वीरता के लिए अमर महाराणा प्रताप का जन्म कुंभलगढ़ राजस्थान में 9 मई 1540 ई. को हुआ था। महाराणा प्रताप की जयंती प्रत्येक वर्ष विक्रमी संवत कैलेंडर के अनुसार जेष्ठ, शुक्ल पक्ष, तृतीया को मनाई जाती है। वर्ष 2023 में जेष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 22 मई को पड़ रही है। अतः विक्रमी संवत कैलेंडर के अनुसार महाराणा प्रताप की जयंती 22 मई को मनाई जाएगी। वह तिथि बहुत ही महान थी जब ‘मेवाड़ मुकुट मणि’, राणा प्रताप का जन्म हुआ। महाराणा प्रताप इकलौते ऐसे वीर थे जिन्होंने मुगल सम्राट अकबर की अधीनता को कभी स्वीकार नहीं किया। महाराणा प्रताप एक ऐसी योद्धा थे जिन्होंने मुगलो से अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक युद्ध किया। उनके नाम से भारतीय इतिहास गुंजायमान मान है। महाराणा प्रताप की वीरता की गाथा से भारत की भूमि गौरवान्वित है। हिंदुत्व के गौरव को सुरक्षित रखने के लिए वे सदैव तत्पर रहे।
आइए जानते हैं भारतवर्ष के महान वीर महाराणा प्रताप के जीवन के विषय में-

अमर महाराणा प्रताप का जन्म

महाराणा प्रताप का जन्म राजस्थान के कुंभलगढ़ में 9 मई 1540 ई.को हुआ था। उनके पिता महाराणा उदय सिंह और माता जीवंत कंवर थी। महाराणा प्रताप मेवाड़ के राजा उदय सिंह की 33 संतानों में सबसे बड़े थे। वह बड़े ही स्वाभिमानी तथा धार्मिक आचरण वाले थे। प्रताप बचपन से ही बड़े बहादुर थे। शिक्षा ग्रहण करने से लेकर खेलकूद तथा हथियार बनाने में भी उनकी रूचि थी। महाराणा प्रताप ने अपने जीवन में कुल 11 विवाह किए थे।

कब मनायी जाती है महाराणा प्रताप जयंती ?(When,Maharana Pratap Birth Anniversary is Celebrated)

भारतीय इतिहास में दृढ़ प्रतिज्ञा और वीरता के लिए अमर महाराणा प्रताप का जन्म कुंभलगढ़ राजस्थान में 9 मई 1540 ई. को हुआ था। महाराणा प्रताप की जयंती प्रत्येक वर्ष विक्रमी संवत कैलेंडर के अनुसार जेष्ठ, शुक्ल पक्ष, तृतीया को मनाई जाती है। वर्ष 2023 में जेष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 22 मई को पड़ रही है। अतः विक्रमी संवत कैलेंडर के अनुसार महाराणा प्रताप की जयंती 22 मई को मनाई जाएगी। वह तिथि बहुत ही महान थी जब ‘मेवाड़ मुकुट मणि’, राणा प्रताप का जन्म हुआ। महाराणा प्रताप इकलौते ऐसे वीर थे जिन्होंने मुगल सम्राट अकबर की अधीनता को कभी स्वीकार नहीं किया। महाराणा प्रताप एक ऐसी योद्धा थे जिन्होंने मुगलो से अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक युद्ध किया। उनके नाम से भारतीय इतिहास गुंजायमान मान है। महाराणा प्रताप की वीरता की गाथा से भारत की भूमि गौरवान्वित है। हिंदुत्व के गौरव को सुरक्षित रखने के लिए वे सदैव तत्पर रहे।
आइए जानते हैं भारतवर्ष के महान वीर महाराणा प्रताप के जीवन के विषय में-

महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक

महाराणा प्रताप के काल में मुगलों की नीति थी, हिंदू राजाओं की शक्ति का उपयोग कर दूसरे हिंदू राजाओं को अपने नियंत्रण में लेना। मेवाड़ के महाराणा उदय सिंह ने अपनी मृत्यु से पहले अपनी छोटी पत्नी के बेटे जगमल को राजा घोषित किया था। जगमल महाराणा प्रताप से छोटे थे। राणा प्रताप अपने छोटे भाई के लिए अपना अधिकार छोड़ने को तैयार थे। वे मेवाड़ से जाना चाहते थे लेकिन राजा राणा उदय सिंह के निर्णय से सभी सरदार सहमत नहीं हुए और सब ने यह निर्णय लिया कि महाराणा प्रताप को राजा बनाया जाए। महाराणा प्रताप ने अपने और परिवार से ऊपर सदैव प्रजा को मान और सम्मान दिया। अतः उन्होंने सरदार और जनता की इच्छा का सम्मान करते हुए मेवाड़ का राजा बनना स्वीकार कर लिया और इस प्रकार ‘ राणा सांगा के पावन पौत्र’ ‘ राजपूतों की आन एवं शौर्य का पुण्य प्रतीक’ और ‘ बप्पा रावल कुल की अक्षुण्ण कीर्ति की उज्जवल पताका’ महाराणा प्रताप 1 मार्च 1573 ईस्वी को सिंहासनारूढ हुए और गोगुंदा में उनका राज्याभिषेक किया गया।

महाराणा प्रताप का युद्धमय जीवन

महाराणा प्रताप एक ऐसे महान राजा थे जो अपनी प्रजा के हृदय पर शासन करते थे। अपना संपूर्ण जीवन राणा प्रताप ने युद्ध करते हुए और भयानक कठिनाइयों का सामना करके व्यतीत किया था। महाराणा ने मुगल बादशाह अकबर की अधीनता स्वीकार करने की जो प्रतिज्ञा ली थी उसे उन्होंने अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक निभाया। राणा प्रताप ने पिछोला तालाब के पास कुछ झोपड़ियां बनवाई थी। राज महलों को छोड़कर महाराणा प्रताप ने इन्हीं झोपड़ियों में सपरिवार अपना जीवन व्यतीत किया था। चित्तौड़ को मुगलों से आजाद कराने की प्रतिज्ञा को वे पूरी तो नहीं कर सके किंतु अपनी छोटी सी सेना की सहायता से मुगलों की विशाल सेना को इतना अधिक परेशान किया कि अकबर को युद्ध बंद कर देना पड़ा। अकबर के शासन काल में राष्ट्रीयता का स्वप्न देखने वाले इतिहासकार बदायूनी आसफ खान के शब्दों में-
“किसी की ओर से सैनिक क्यों न मरे, थे वे हिंदू ही और प्रत्येक स्थिति में विजय इस्लाम की ही थी।”
यह अकबर की कूटनीति थी और इसके समक्ष महाराणा प्रताप अपने राष्ट्र गौरव के लिए अडिग भाव से डटे थे। 

महाराणा प्रताप की प्रतिज्ञा (Pledge to Maharana Pratap)

महाराणा प्रताप ने प्रतिज्ञा की थी कि
“वह माता के पवित्र दूध को कभी कलंकित नहीं करेंगे”
और इसका पालन आजीवन किया। मुगलों को अपनी बहन बेटी समर्पण कर अनुग्रह प्राप्त करना महाराणा प्रताप को स्वीकार्य न था। महाराणा प्रताप ने प्रतिज्ञा ली थी कि
“चित्तौड़ के उद्धार से पूर्व पात्र में भोजन, शैया पर शयन दोनों मेरे लिए वर्जित रहेंगे”।
उन्होंने सोने चांदी के पात्र त्याग कर वृक्ष के पत्तों का उपयोग किया कोमल शैय्या को त्याग कर तृण शय्या का उपयोग किया। उन्होंने अकेले इस कठिन मार्ग को नहीं अपनाया अपितु अपने वंश वालों के लिए भी इस कठोर नियम का पालन करने के लिए आज्ञा दी थी कि
“जब तक चित्तौड़ का उद्धार ना हो तब तक सिसोदिया राजपूतों को सभी सुख त्याग देने चाहिए।

महाराणा प्रताप का चेतक (Chetak of Maharana Pratap)

भारतीय इतिहास में महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की बहादुरी की चर्चा भी उतनी ही होती है जितनी महाराणा प्रताप की। महाराणा प्रताप के पिता जी ने प्रताप को किशोरावस्था में 2 घोड़ों में से एक का चयन करने को कहा। एक घोड़ा सफेद और दूसरा लीला था। राणा प्रताप कुछ कहते उससे पहले ही उनके भाई शक्ति सिंह ने भी अपने पिता से घोड़ा मांगलिया। प्रताप को नीला अफगानी घोड़ा पसंद था लेकिन वह सफेद घोड़े की ओर बढ़ते हैं और उसकी तारीफ करते हैं। जिसे देखकर शक्तिसिंह सफेद घोड़े पर बैठ जाते हैं और नील अफ़गानी घोड़ा महाराणा प्रताप को मिल जाता है। जिसका नाम चेतक था और चेतक महाराणा प्रताप का प्रिय था।
कहा जाता है कि चेतक महाराणा प्रताप की तरह ही बहादुर था। वह अरबी नस्ल का घोड़ा था और लंबी छलांग मारने में माहिर था। हल्दीघाटी के युद्ध में चेतक अकबर के सेनापति मानसिंह के हाथी के मस्तक की ऊंचाई तक बाज की तरह उछल गया था और तब महाराणा प्रताप ने मानसिंह पर वार किया था। महाराणा प्रताप के पीछे जब मुग़ल सेना लगी थी, तब चेतक उन्हें पीठ पर लादकर 26 फीट लंबे नाले को लांघ गया,जिसे मुगल फौज का कोई भी घुड़सवार पार नहीं कर सका। हिंदी कवि श्याम नारायण पांडे ने ‘ वीर रस’ की कविता ‘ चेतक की वीरता’ में चेतक की तारीफ सुंदर शब्दों में की है।


रण बीच चौकड़ी भर- भर कर, चेतक बन गया निराला था
राणा प्रताप के घोड़े से, पड़ गया हवा का पाला था
जो तनिक हवा से बाग़ हिली, लेकर सवार उड़ जाता था
राणा की पुतली फिरी नहीं तब तक चेतक मुड़ जाता था।

हल्दीघाटी का युद्ध (War of Haldighati)

हल्दीघाटी इतिहास में वह प्रसिद्ध स्थल है जहां महाराणा प्रताप और अकबर की सेनाओं के बीच हुए युद्ध हुआ। महाराणा प्रताप को अकबर की मैत्रीपूर्ण दासता पसंद नहीं थी। इसी बात पर आमेर के मानसिंह से राणा प्रताप की अनबन हो गई और मानसिंह ने अकबर को भड़का दिया, जिसके परिणाम स्वरूप अकबर ने मानसिंह और सलीम (जहांगीर) की अध्यक्षता में मेवाड़ पर आक्रमण के लिए सेना भेजी। अकबर और महाराणा प्रताप के बीच 18 जून 1576 में हल्दीघाटी का युद्ध हुआ, किंतु अकबर की विशाल सेना के आगे प्रताप की छोटी सी सेना सफल ना हो सकी। इस युद्ध के पश्चात राणा प्रताप को बहुत ही कठिनाइयां सहन करनी पड़ीं किंतु उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और मुगलों से अपने राज्य का अधिकांश भाग छीन लिया।
अकबर और महाराणा प्रताप के बीच हल्दीघाटी का युद्ध महाभारत युद्ध की भांति विनाशकारी सिद्ध हुआ। इस युद्ध में ना तो अकबर जीत सका और न ही महाराणा प्रताप। हल्दीघाटी वह पावन बलिदान भूमि है जिसके शौर्य एवं तेज की भव्य गाथा से इतिहास आलोकित है। हल्दीघाटी का युद्ध महाराणा प्रताप के पक्ष में ना हो सका। युद्ध तो समाप्त हो गया था किंतु संघर्ष समाप्त नहीं हुआ था।

महाराणा प्रताप की मृत्यु (Death of Maharana Pratap)

29 जनवरी 1597 में चावंड में महान वीर महाराणा प्रताप की मृत्यु हो गई।
भारत के इतिहास में जब- जब युद्ध एवं वीरता का वर्णन होगा तब-तब महाराणा प्रताप के साहस एवं शौर्य की गाथाओं का गान होगा। महाराणा प्रताप के साथ ही उनके स्वामीभक्त घोड़े चेतक की भी प्रशंसा भारतीय इतिहास में होती रहेगी। जो अपने घायल हो चुके स्वामी को युद्ध स्थल से दूर निकाल ले जाने में सफल रहा और अपने स्वामी की रक्षा शत्रुओं के हाथ में पढ़ने से की। और अंत में वह स्वामी भक्त चेतक भी वीरगति को प्राप्त हो गया।
महाराणा प्रताप एक बहादुर राजपूत थे जिन्होंने प्रत्येक परिस्थितियों में अपनी अंतिम सांस तक अपनी प्रजा की रक्षा की। महाराणा प्रताप वीर होने के साथ ही भावुक एवं धर्म परायण भी थे। मुगलों से अपने राज्य को स्वतंत्र कराने के लिए वे जंगलों में रहे और घास की रोटियां खाई। भारतीय इतिहास में महाराणा प्रताप के समान वीर योद्धा और कोई नहीं।

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