July 27, 2024

Jayaprakash Narayan Jayanti 2023 : इंदिरा गांधी के खिलाफ संपूर्ण क्रांति का नारा देने वाले लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती पर विशेष

जयप्रकाश नारायण जयंती || Birth Anniversary of Jayaprakash Narayan || Jayaprakash Narayan Jayanti 2023 || 11 अक्टूबर,2023 11 अक्टूबर को जयप्रकाश नारायण(Jai Prakash Narayan) की जयंती मनाई जाती है। लोकनायक जयप्रकाश नारायण का जन्मदिन 1975- 76 के दौरान आपातकालीन विरोधी आंदोलन के लिए उनके अमूल्य योगदान के लिए “लोकतंत्र बचाओ दिवस” के रूप में मनाया जाता है।

जयप्रकाश नारायण (Jai Prakash Narayan) देश के सच्चे सपूत,विचार के पक्के और बुद्धि के सुलझे हुए व्यक्ति थे। मातृभूमि के वरद पुत्र जय प्रकाश नारायण राजनितिज्ञ एवं सिद्धांत वादी नेता थे। उन्होंने देश की सराहनीय सेवा की। उन्होंने देश को अंधकार से प्रकाश की ओर लाने का सच्चा प्रयास किया और इसमें वे सफल भी रहे। जयप्रकाश जी का समाजवाद का नारा आज भी गूंज रहा है।

जयप्रकाश नारायण जयंती || Birth Anniversary of Jaiprakash Narayan || Jayaprakash Narayan Jayanti|| 11 अक्टूबर 2023

लोकनायक जयप्रकाश नारायण का जीवन परिच_Loknayank JayaPrakash jayanti 2023

लोकनायक जयप्रकाश (Jayprakash Narayan) जिन्होंने इंदिरा गांधी के शासन के खिलाफ आंदोलन चलाया

11 अक्टूबर को  जयप्रकाश नारायण(Jaiprakash Narayan Jayanti) की जयंती मनाई जाती है। लोकनायक जयप्रकाश नारायण (loknayak Jayaprakasha narayan) का जन्मदिन 1975- 76 के दौरान आपातकालीन विरोधी आंदोलन के लिए उनके अमूल्य योगदान के लिए “लोकतंत्र बचाओ दिवस” के रूप में मनाया जाता है।    

जयप्रकाश नारायण (Jaiprakash Narayan) देश के सच्चे सपूत,विचार के पक्के और बुद्धि के सुलझे हुए व्यक्ति थे। मातृभूमि के वरद पुत्र जय प्रकाश नारायण राजनितिज्ञ एवं सिद्धांत वादी नेता थे। उन्होंने देश की सराहनीय सेवा की। उन्होंने देश को अंधकार से प्रकाश की ओर लाने का सच्चा प्रयास किया और इसमें वे सफल भी रहे। जयप्रकाश जी का समाजवाद का नारा आज भी गूंज रहा है। 

समाजवाद का संबंध न केवल उनके राजनीतिक जीवन से था अपितु यह उनके संपूर्ण जीवन में समाया हुआ था। लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने भारतीय जनमानस पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है। आईए जानते हैं इस लोकनायक के जीवन के विषय में-

जयप्रकाश नारायण का जीवन परिचय

   जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को बिहार के सारण जिले में सिताबदियारा में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री देवकी बाबू और माता का नाम फुलरानी देवी था। जय प्रकाश को 4 वर्ष तक दांत नहीं आए थे। लेकिन जब इन्होंने बोलना प्रारंभ किया तो वाणी में ओज झलकने लगा। जयप्रकाश जी के पिता ने उनके बारे में कहा था कि ‘मेरा बेटा एक दिन महान आदमी बनेगा’ 

जय प्रकाश जी की शिक्षा

9 वर्ष की उम्र में उन्होंने पटना के कॉलेजिएट स्कूल में सातवीं कक्षा में दाखिला लिया। वे लगातार गहन अध्ययन करते रहे और 1918 तक में अंतिम कक्षा में पहुंच गए। 1920 में 18 वर्ष की उम्र में जयप्रकाश का विवाह ‘प्रभा’ नाम की लड़की से हुआ। प्रभावती स्वभाव से अत्यंत मृदुल थी। गांधी जी का उनके प्रति अपार स्नेह था। प्रभावती के पिता बृज किशोर  प्रभा को चंपारण में साथ लेकर गए थे जहां गांधी जी ठहरे थे। प्रभा विभिन्न राष्ट्रीय उत्सव और कार्यक्रम में भाग लेती थी।

1922 में उच्च शिक्षा के लिए जयप्रकाश नारायण अमेरिका चले गए। 1922 से 29 के बीच जयप्रकाश ने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र की पढ़ाई की।1922 में बर्कले यूनिवर्सिटी में पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए उन्होंने कई छोटे-मोटे काम किया। खेतों में काम करने से लेकर होटल में झूठे बर्तन तक धोए।

स्वतंत्रता संग्राम में लिया भाग

    1919 में ब्रिटिश सरकार के रॉलेट एक्ट के खिलाफ असहयोग आंदोलन चल रहा था। महान स्वतंत्रता सेनानी मौलाना अबुल कलाम आजाद का उन्हीं दिनों एक भाषण उन्होंने सुना- नौजवानों अंग्रेजी शिक्षा का त्याग करो और मैदान में उतरकर ब्रिटिश हुकूमत की ढहती दीवारों को धराशाई करो। ऐसे हिंदुस्तान का निर्माण करो जो सारे आलम में खुशबू पैदा करें

अब्दुल कलाम आजाद के इस कथन ने उनके अंतर्मन को झकझोर दिया और जयप्रकाश पढ़ाई छोड़कर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। जयप्रकाश जी अपनी पत्नी प्रभा के साथ नेहरू जी के यहां ठहरे। उन्होंने देश को आजाद करने की विविध योजनाएं बनाना प्रारंभ किया। पटना में आचार्य नरेंद्र देव की अध्यक्षता में समाजवादी कार्यकर्ताओं की मीटिंग में यह विचार बताया गया कि समाजवाद की राह का अनुसरण करके ही संघर्ष सफल होगा। मध्यम वर्गीय लोगों की सहायता के बिना कोई भी आंदोलन सफल नहीं होगा।

जयप्रकाश नारायण के आदर्श

जयप्रकाश नारायण विलक्षण प्रतिभा से संयुक्त थे। उनकी बातों का जनमानस पर गहरा प्रभाव था। जयप्रकाश जी आजीवन देश की सेवा करते रहे। उनके नेतृत्व में विभिन्न आंदोलन हुए। जयप्रकाश जी के निम्न आदर्श थे-

  • सत्य
  • निष्ठा 
  • ईमानदारी

स्वतंत्रता संग्राम में जयप्रकाश नारायण का योगदान

देश के लिए जयप्रकाश जी के योगदान के बारे में जितना कहा जाए कम है। वे अत्यंत परिश्रमी व्यक्ति थे। उनकी विलक्षणता की तारीफ स्वयं गांधी जी और नेहरू जैसे लोग किया करते थे। भारत की आजादी के लिए इन्होंने ना जाने कितनी यातनाएं और परेशानियों को झेला लेकिन अंग्रेजों के सामने घुटने नहीं टेके वह एक दृढ़ निश्चयी व्यक्ति थे। संघर्ष के इसी समय में उनकी पत्नी भी स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़ी थी। और जनप्रिय नेता बन चुकी थी, इसी कारण वह गिरफ्तार कर ली गई और उन्हें 2 वर्षों की सजा हुई। 

जयप्रकाश नारायण सच्चे देशभक्त थे और ब्रिटिश प्रशासन को जड़ से समाप्त करने को प्रतिबद्ध थे। उन्होंने अपनी आवाज को विश्व स्तर पर बुलंद करते हुए कहा कि  “विश्व के संकट को  मद्देनजर रखते हुए भारत को आजाद करना अत्यंत आवश्यक है। जब तक हम स्वतंत्र नहीं होंगे हमारा स्वतंत्र अस्तित्व कायम न होगा और हम विकास नहीं कर सकेंगे।

 महात्मा गांधी का ‘करो या मरो’ नारा जयप्रकाश के मन में सदैव गूंजता रहता था। गांधी जी के इस महामंत्र का उन्होंने जमकर प्रचार प्रसार किया और देश की आजादी के लिए “करो या मरो” का निर्णय लिया। आजादी की प्रेरणा से जय प्रकाश आगे बढ़ते रहे और स्वतंत्रता का बिगुल बज उठा। जयप्रकाश की गिरफ्तारी के दूसरे दिन गांधी जी की भी गिरफ्तारी हुई।

गिरफ्तारी के बाद जयप्रकाश नारायण जब जेल से भागे

1929 में भारत लौटने पर कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। भारत में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण 1932 में उन्हें गिरफ्तार कर एक वर्ष के लिए जेल भेज दिया गया। द्वितीय विश्व युद्ध में ग्रेट ब्रिटेन के पक्ष में भारत की भागीदारी का विरोध करने के कारण 1939 में जयप्रकाश जी को दोबारा गिरफ्तार कर हजारीबाग जेल में कैद किया गया। बापू जयप्रकाश जी के जेल से भागने की योजना बनाने लगे। इसी बीच जब दीपावली के त्योहार पर हुए नाच गाने के भव्य प्रोग्राम में लोग मस्ती में झूम रहे थे। तभी 9 नवंबर 1942 को जयप्रकाश नारायण अपने 6 सहयोगियों के साथ धोती की रस्सी बनाकर जेल परिसर को लांघ गए जिसकी सूचना लंदन तक पहुंची।

1943 में जयप्रकाश और राम मनोहर लोहिया दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन किसी प्रकार दोनों लोग फरार हो गए। इसके बाद जय प्रकाश नारायण रावलपिंडी पहुंचे और अपना नाम बदल लिया। लेकिन एक दिन ट्रेन में सफर करते समय दो भारतीय सैनिकों की सहायता से अंग्रेज़ पुलिस अफसर ने गिरफ्तार कर उनको लाहौर की काल कोठरी में डाल दिया। जहां कुर्सी पर बांधकर उनकी पिटाई की गई। इसके बाद इन्हें आगरा की सेंट्रल जेल में डाल दिया गया। इसी बीच ब्रिटेन में लिबरल पार्टी सत्ता में आई। सत्ता संभालते ही लिबरल पार्टी ने भारत को आजाद करने का वक्तव्य जारी किया। जयप्रकाश नारायण का संकल्प पूर्ण हुआ और 15 अगस्त 1947 को हमारा देश आजाद हुआ।

कांग्रेस सोशलिस्ट की स्थापना

 

जयप्रकाश नारायण ने आचार्य नरेंद्र देव के साथ मिलकर 1948 में ऑल इंडिया कांग्रेस सोशलिस्ट की स्थापना की। 1953 में कृषक मजदूर प्रजा पार्टियों के विलय में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। स्वतंत्रता के बाद उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी से इस्तीफा दे दिया और चुनावी राजनीति से अलग होकर भूमि सुधार के लिए विनोबा भावे के भूदान आंदोलन से जुड़ गए।

इंदिरा गांधी के शासन के खिलाफ की "संपूर्ण क्रांति" की घोषणा

 

जब तत्कालीन इंदिरा सरकार के खिलाफ युवाओं और छात्रों का गुस्सा सर चढ़कर बोल रहा था, उस समय 1974 में भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में जयप्रकाशजी एक कटु आलोचक के रूप में प्रभावी ढंग से उभरे। जयप्रकाश जी की नजर में इंदिरा गांधी की सरकार अलोकतांत्रिक और भ्रष्ट होती जा रही थी। 1975 में निचली अदालत में गांधी पर चुनाव में भ्रष्टाचार का आरोप साबित हो गया। 

इंदिरा गांधी की नीतियों के खिलाफ जय प्रकाश नारायण ने 5 जून को “संपूर्ण क्रांति” की घोषणा कर दी। संपूर्ण क्रांति को लेकर जो आंदोलन चला उसमें बिहार से बड़ी संख्या में नौजवानों ने हिस्सा लिया। इसके बदले में इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दी और जयप्रकाश और अन्य विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया।

जनता पार्टी का निर्माण

भ्रष्टाचार के खिलाफ जयप्रकाश नारायण तथा भारतीय लोक दल जैसी कई पार्टियों कांग्रेस सरकार को गिराने एवं नागरिक स्वतंत्रताओं की बहाली के लिए एकत्र हो गई। इस प्रकार जयप्रकाश ने गैर साम्यवादी विपक्षी पार्टियों को एकजुट करके जनता पार्टी का निर्माण किया। जनता पार्टी ने 1977 के आम चुनाव में भारी सफलता प्राप्त की और आजादी के बाद पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनाई गई। लेकिन जयप्रकाश नारायण  ने राजनीतिक पद स्वीकार नहीं किया। उन्होंने मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री मनोनीत किया।

कर्मयोगी थे जयप्रकाश नारायण

लोकनायक जयप्रकाश नारायण एक कर्मयोगी थे  उन्होंने निष्ठा की भावना से देश की सेवा की। भारत को आजाद करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। वह अंत प्रेरणा के पुरुष थे। उन्होंने अनेक यूरोपीय यात्राएं करके सर्वोदय के सिद्धांत को संपूर्ण विश्व में प्रसारित किया। उन्होंने संपूर्ण विश्व को संस्कृत के इस श्लोक से प्रेरणा लेने को कहा- 

“सर्वे भवन्तु सुखिन:सर्वेसन्तु निरामया, सर्वे भद्राणी पश्यन्तुमां कश्चिद दुखभागवेत्”

जयप्रकाश नारायण का निधन

 जयप्रकाश उच- नीच के भेदभाव से परे थे। उनका विचार अच्छी बातों से युक्त था। वे सच्चे अर्थों में आदर्श पुरुष थे। उनके व्यक्तित्व में अद्भुत ओज और तेज था। उनकी धर्मपत्नी श्रीमती प्रभा की 13 अगस्त सन 1973 को मृत्यु हो गई थी। इसके पश्चात जयप्रकाश को गहरा आघात लगा था लेकिन वे देश की सेवा में लगे रहे और एक बहादुर सिपाही की तरह कार्य करते रहे। भारत का यह अमर सपूत 8 अक्टूबर सन 1979 ई को पटना, बिहार में चिर निद्रा में सो गया।

लोकनायक जयप्रकाश के विषय में दिनकर जी ने लिखा है-

कहते हैं उसको “जयप्रकाश”, जो नहीं मरण से डरता है,

ज्वाला को बुझते देख, कुण्ड में, स्वयं कूद जो पड़ता है।

है “जयप्रकाश” वह जो न कभी, सीमित रह सकता घेरे में,

अपनी मशाल जो जला, बाँटता फिरता ज्योति अँधेरे में।

है “जयप्रकाश” वह जो कि पंगु का, चरण, मूक की भाषा है,

है “जयप्रकाश” वह टिकी हुई, जिस पर स्वदेश की आशा है।

हाँ, “जयप्रकाश” है नाम समय की, करवट का, अँगड़ाई का;

भूचाल, बवण्डर के ख्वाबों से, भरी हुई तरुणाई का।

है “जयप्रकाश” वह नाम जिसे, इतिहास समादर देता है,

बढ़ कर जिसके पद-चिह्नों को, उर पर अंकित कर लेता है।

ज्ञानी करते जिसको प्रणाम, बलिदानी प्राण चढ़ाते हैं,

वाणी की अंग बढ़ाने को, गायक जिसका गुण गाते हैं।

आते ही जिसका ध्यान, दीप्त हो प्रतिभा पंख लगाती है,

कल्पना ज्वार से उद्वेलित, मानस-तट पर थर्राती है।

वह सुनो, भविष्य पुकार रहा, “वह दलित देश का त्राता है,

स्वप्नों का दृष्टा “जयप्रकाश”, भारत का भाग्य-विधाता है।”

भारत रत्न से सम्मानित

1998 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण को भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान के लिए मरणोपरांत भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च सम्मान “भारत रत्न” से सम्मानित किया।

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