September 8, 2024
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Buddha Purnima/Vaishakh Purnima : बुद्ध पूर्णिमा या वैशाख पूर्णिमा का क्या है महत्त्व?

बुद्ध पूर्णिमा || महात्मा बुद्ध जयंती || Buddha Purnima || Vaishakh Purnima

बुद्ध पूर्णिमा या वैशाख पूर्णिमा का क्या है महत्त्व?

वैशाख पूर्णिमा का पावन दिन भगवान गौतम बुद्ध के जयंती के रूप में मनाया जाता है। भगवान गौतम बुद्ध ही बौद्ध धर्म के संस्थापक हैं। गौतम बुद्ध का जन्म और मृत्यु दोनों ही वैशाख पूर्णिमा के दिन ही हुआ था। अतः बौद्ध और हिंदू धर्म में वैशाख पूर्णिमा का बहुत महत्व है। और इसीलिए वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा भी कहा जाता है। वर्ष 2023 में बुद्ध पूर्णिमा 5 मई को मनाई जाएगी।
बुद्ध पूर्णिमा का संबंध गौतम बुद्ध के जन्म से ही नहीं अपितु वैशाख पूर्णिमा के दिन ही उन्हें ज्ञान की प्राप्ति भी हुई थी और वह वैशाख पूर्णिमा ही थी जब उन्हें महापरिनिर्वाण की प्राप्ति हुई थी।

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बुद्ध पूर्णिमा || महात्मा बुद्ध जयंती || Buddha Purnima || Vaishakh Purnima

बुद्ध पूर्णिमा या वैशाख पूर्णिमा का क्या है महत्त्व?

वैशाख पूर्णिमा (Vaishakh Purnima/Buddha Purnima) का पावन दिन भगवान गौतम बुद्ध के जयंती के रूप में मनाया जाता है। भगवान गौतम बुद्ध ही बौद्ध धर्म के संस्थापक हैं। गौतम बुद्ध का जन्म और मृत्यु दोनों ही वैशाख पूर्णिमा के दिन ही हुआ था। अतः बौद्ध और हिंदू धर्म में वैशाख पूर्णिमा का बहुत महत्व है। और इसीलिए वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा भी कहा जाता है। वर्ष 2023 में बुद्ध पूर्णिमा 5 मई को मनाई जाएगी।
बुद्ध पूर्णिमा  का संबंध गौतम बुद्ध के जन्म से ही नहीं अपितु वैशाख पूर्णिमा के दिन ही उन्हें ज्ञान की प्राप्ति भी हुई थी और वह वैशाख पूर्णिमा ही थी जब उन्हें महापरिनिर्वाण की प्राप्ति हुई थी।

वैशाख पूर्णिमा का हिंदू धर्म में महत्व (Significance of Vaishakh Purnima in Hinduism)

वैशाख माह का हिंदू और सनातन और धर्म में महत्वपूर्ण स्थान है। भगवान विष्णु की भक्ति के लिए वैशाख माह उत्तम मास माना जाता है। वैशाख माह की पूर्णिमा को पीपल पूर्णिमा भी कहा जाता है। प्रत्येक महीने की पूर्णिमा भगवान विष्णु को समर्पित होती है। इसी दिन भगवान बुद्ध की जयंती और निर्वाण दिवस भी मनाया जाता है। वैशाख पूर्णिमा (Vaishakh Purnima) के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व है। इसी कारण श्रद्धालु पवित्र तीर्थ स्थलों में आज के दिन स्नान और दान करके पुण्य अर्जित करते हैं। 

वैशाख शुक्ल पक्ष से लेकर पूर्णिमा तक की तिथिया ‘ पुष्करणी’ कही गई है। इन तिथियों में स्नान, दान, पुण्य करने से पूरे महीने के स्नान का फल प्राप्त हो जाता है। वैशाख मास की त्रयोदशी को श्रीहरि ने देवताओं को अमृत मान कराया था। चतुर्दशी को देव विरोधी दैत्यों का संहार किया और पूर्णिमा के दिन देवताओं को उनका साम्राज्य मिल गया था। सभी देवताओं ने प्रसन्न होकर इन तिथियां को वरदान दिया था।

वैशाख पूर्णिमा भगवान बुद्ध को भी समर्पित है

भगवान बुद्ध, जिन्हे श्रीविष्णु का नवा अवतार कहा जाता है, का जन्म, बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति और निर्वाण दिवस, तीनों के लिए वैशाख पूर्णिमा विशेष तिथि है। पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा भी कहा जाता है।

कौन थे भगवान बुद्ध ?

भगवान बुद्ध को गौतम बुद्ध, महात्मा बुद्ध आदि नामों से भी जाना जाता है। बौद्ध धर्म भारत की श्रमण परंपरा से निकला धर्म और दर्शन है। इसके संस्थापक महात्मा बुद्ध माने जाते हैं। बौद्ध धर्म विश्व के चार बड़े धर्म में से एक है।

आईए जानते हैं बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान बुद्ध के जीवन के विषय में- 

जीवन परिचय

गौतम बुद्ध (Gautama Buddha) का जन्म 563 ईसा पूर्व शाक्य वंश के राजा शुद्बोधन की रानी महामाया के गर्भ से, कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी में वैशाख पूर्णिमा के दिन हुआ था। भगवान बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था सिद्धार्थ के पिता शक्यो के राजा शुद्धोधन थे। बुद्ध को शाक्य मुनि भी कहा जाता है। सिद्धार्थ की माता मायादेवी की मृत्यु उनके जन्म के कुछ समय पश्चात हो गई थी।

आठ भविष्यवक्ताओं द्वारा की गई भविष्यवाणी

सिद्धार्थ के जन्म के पूर्व उनकी माता महामाया ने विचित्र सपने देखे थे। राजा शुद्धोधन ने ‘ आठ’ भविष्यवक्ताओं से उन सपनों का अर्थ पूछा तो उन भविष्यवक्ताओं ने कहा कि महामाया को एक ऐसा अद्भुत पुत्र रत्न प्राप्त होगा जो यदि घर में रहा तो चक्रवर्ती सम्राट बनेगा और यदि उसने गृह त्याग किया तो ऐसा महान सन्यासी बनेगा जो अपने ज्ञान के प्रकाश से संपूर्ण विश्व को प्रकाशित करेगा। सिद्धार्थ के पिता उन्हें चक्रवर्ती सम्राट बनना चाहते थे किंतु सिद्धार्थ सदैव किसी गहन विचार में मग्न में रहते थे। उनके पिता ने सांसारिक मोहपाश में बांधे रखने के लिए सिद्धार्थ का विवाह यशोधरा से कर दिया।

एक दिन शहर भ्रमण करते हुए सिद्धार्थ ने मार्ग में एक दुर्बल वृद्ध व्यक्ति, एक रोगी और एक शव को देखा। इन दृश्यों ने उनके जीवन की दिशा ही बदल डाली। वह संसार के प्रति और भी उदासीन और विरक्त हो गए। लेकिन जब उन्होंने एक संन्यासी को देखा, जिसके मुख पर शांति और तेज की अपूर्व आभा विराजमान थी। उस सन्यासी को देख कर सिद्धांत बहुत प्रभावित हुए।

गौतम बुद्ध का गृह त्याग

एक संन्यासी को देखकर सिद्धार्थ के मन में निवृत्ति मार्ग के प्रति नि: सारता और निवृत्ति मर्ण की ओर संतोष भावना उत्पन्न हो गई।जीवन का यह सत्य ही सिद्धार्थ का जीवन दर्शन बन गया। विवाह के 10 वर्ष के पश्चात जब उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई तो उनके मुख से अचानक ही निकल पड़ा- ‘ राहू’ अर्थात बंधन और उन्होंने अपने पुत्र का नाम राहुल रख दिया। इससे पहले कि सांसारिक बंधन उन्हें अपने मोहपाश में बांधते सिद्धार्थ ने सांसारिक बंधनों को छिन्न- भिन्न करना प्रारंभ कर दिया। गृहतयाग का निश्चय करके एक रात्रि को ज्ञान के प्रकाश की तृष्णा को तृप्त करने के लिए घर से निकल पड़े ।उसे समय वह 29 वर्ष के थे।

गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति

सिद्धार्थ ने की त्याग के पश्चात ज्ञान की खोज में भटकते हुए उरूगवेला की रमणीयस्थली में जा पहुंचे। उन्होंने ज्ञान प्राप्ति के लिए कठोर साधना प्रारंभ कर दी किंतु उन्हेंज्ञान प्राप्त नहीं हुआ। इसके पश्चात सिद्धार्थ गया के निकट एक वट वृक्ष के नीचे आसन लगाकर बैठ गए और यह प्रतिज्ञा की कि मैं तब तक समाधी में लीन रहूंगा जब तक ज्ञान प्राप्ति ना कर लूं भले ही मेरे प्राण निकल जाए। सात दिन और सात रात्रि के पश्चात आठवें दिन उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। सिद्धार्थ ने 35वर्ष की अवस्था में ज्ञान प्राप्त किया। जिस वटवृक्ष के नीचे सिद्धार्थ हो ज्ञान प्राप्ति हुई थी। वह आज भी ‘ बोधिवृक्ष के नाम से विख्यात है। सिद्धार्थ ज्ञान प्राप्ति के पश्चात महात्मा बुद्ध कहलाए। जिन्होंने तपस्सु तथा काल्लिक नामक दो शिष्यों को ज्ञान देकर बौद्ध धर्म का प्रथम अनुयाई बनाया।

महात्मा बुद्ध के उपदेश

 महात्मा बुद्ध (Mahatma Buddha) बोधगया से सारनाथ पहुंचे और अपने पांच साथियों को उपदेश देकर अपना शिष्य बना दिया। यह उपदेश बौद्ध परंपरा में ‘ धर्म चक्र प्रवर्तन’ के नाम से विख्यात हैं। महात्मा बुद्ध के अनुसार-
‘ कामसुखो में अधिक लिप्त होना तथा शरीर से कठोर तपस्या करना इन्हें छोड़कर जो मध्यम मार्ग मैंने खोजा है, इसका सेवन करना चाहिए।’
यह उपदेश बुद्ध का ‘ धर्म चक्र प्रवर्तन’ के रूप में पहला उपदेश था। शील, समाधि और प्रज्ञा बुद्ध की शिक्षाओं का सार है। भगवान बुद्ध प्रज्ञा करुणा की मूर्ति थे। बुद्ध के अनुसार सभी स्त्रियों और पुरुषों के धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में समान योग्यता व अधिकार हैं।

भगवान बुद्ध ने एक वृक्ष के नीचे लेट कर अपने शिष्यों से अंतिम बार कहा-

“हे भिक्षुओ आज मैं तुमसे इतना ही कहता हूं कि जितने भी संस्कार हैं सब नाश होने वाले हैं। प्रमाद रहित होकर अपना कल्याण करो।’ ऐसा कहते हुए 483 ईसा पूर्व 80 वर्ष की आयु में पूर्णिमा के दिन ही उन्होंने अपना शरीर छोड़ दिया।
बुद्ध की शिक्षाओं का संग्रह है त्रिपिटक। बुद्ध जैसा आज तक कोई नहीं हुआ जो बुद्ध के बराबर कहा गया हो। 35 वर्ष की उम्र के बाद बुद्ध ने जीवन के प्रत्येक विषय और धर्म के प्रत्येक रहस्य पर जो कुछ भी कहा वह त्रिपिटक में संकलित है। त्रिपिटक अर्थात तीन पिटक- विनय पिटक, सुत्त पिटक और अभिधम्म पिटक।

बुद्ध का परिनिर्वाण (Buddha's Parinirvana)

44 वर्ष तक बिहार तथा काशी के प्रांतों में धर्म प्रचार करने के उपरांत अंत में कुशीनगर के निकट एक वन में साल वृक्ष के नीचे वृद्धावस्था में बुद्ध का शरीरांत हो गया अर्थात उनका परिनिर्वाण हो गया।

बुद्ध के मुख से निकले अंतिम शब्द
भगवान बुद्ध के मुख से निकले अंतिम शब्द थे-
“हे भिक्षुओ आज तुमसे इतना ही कहता हूं कि जितने भी संस्कार हैं सब नाश होने वाले हैं। प्रमाद रहित होकर अपना कल्याण करो।”

बुद्ध जयंती कहां-कहां मनाई जाती है

बुद्ध जयंती (Buddha Jayanti) भारत के साथ-साथ नेपाल, जापान, चीन, सिंगापुर, वियतनाम, थाईलैंड, कंबोडिया, मलेशिया, श्रीलंका, इंडोनेशिया, पाकिस्तान जैसे दुनिया के अनेक देशों में बुद्ध पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। कुशीनगर में बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर एक माह का मेला लगता है। बौद्ध अनुयायी वैशाख पूर्णिमा के दिन अपने घरों में दिए जलते हैं और फूलों से घर सजाते हैं।