Shivaji Jayanti 2023 (शिवाजी जयंती 2023) : छत्रपति शिवाजी महाराज कौन थे ?
prashant February 18, 2023Shivaji Jayanti 2023 || Chhatrapati Shivaji Maharaj Jayanti || Shivaji Maharaj Jayanti || छत्रपति शिवाजी महाराज
भारत के महान योद्धा एवं रणनीतिकार शिवाजी थे, जिन्होंने पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी। कई वर्षों तक औरंगजेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष करने के पश्चात 1674 में रायगढ़ में उनका राज्याभिषेक हुआ और वह छत्रपति शिवाजी के नाम से जाने गए।
छत्रपती शिवाजी जयंती (19 February)
Chhatrapati Shivaji Maharaj Jayanbti 2023 || About shivaji Maharaj || About shivaji maharaj in hindi
छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती 2023 (Shivaji Jayanti 2023 ) : भारत के महान योद्धा एवं रणनीतिकार शिवाजी थे, जिन्होंने पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी। कई वर्षों तक औरंगजेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष करने के पश्चात 1674 में रायगढ़ में उनका राज्याभिषेक हुआ और वह छत्रपति शिवाजी के नाम से जाने गए।
आइए जानते हैं मराठा साम्राज्य (Maratha Empire ) के नायक छत्रपति शिवाजी (Chhatrapati Shivaji Maharaj) के जीवन के विषय में-
शिवाजी का जन्म (Birth of Shivaji )
शिवाजी (Shivaji)का जन्म 19 फरवरी 1620 को महाराष्ट्र के शिवनेरी में हुआ था। पश्चिमी भारत के मराठा साम्राज्य के संस्थापक शिवाजी का पूरा नाम शिवाजी राजे भोसले था। उनके पिता का नाम शाहजी भोंसले और माता का नाम जीजाबाई था। शिवाजी के पिता शाहजी भोंसले ने इनके जन्म के उपरांत इनकी मां जीजाबाई का परित्याग कर दिया था। शिवाजी के पिता अपनी दूसरी पत्नी तुकाबाई मोहिते पर आकर्षित थे शिवाजी का बचपन बहुत उपेक्षा भरा व्यतीत हुआ। सौतेली मां के कारण बहुत दिनों तक वह पिता के संरक्षण से वंचित रहे। शिवाजी की माता जीजाबाई प्रतिभाशाली और उच्च कुल में उत्पन्न थी, लेकिन इसके बावजूद वह तिरस्कृत जीवन जीने को विवश थीं। जीजा बाई के पिता यादव वंश के प्रभावशाली और शक्तिशाली सामंत थे। शिवाजी का पालन पोषण उनके स्थानीय संरक्षक दादाजी कोंडदेव, जीजाबाई और समर्थ गुरु रामदास ने अपनी देख- रेख में किया।
जीजाबाई तथा गुरु रामदास ने शिवाजी के पुस्तकीय प्रशिक्षण पर अधिक ध्यान नहीं दिया। उन्होंने शिवाजी को यह शिक्षा दी कि देश, समाज, गौ तथा ब्राह्मणों को मुसलमानों के उत्पीड़न से मुक्त कराना उनका परम कर्तव्य है। शिवाजी सब के साथ रहकर शीघ्र ही स्थानीय लोगों में सर्वप्रिय हो गए। उन्होंने स्थानीय लोगों के साथ आसपास के क्षेत्रों में भ्रमण करके स्थानीय लोगों और दर्रो की जानकारी प्राप्त की और कुछ स्वामी भक्तों का दल बनाकर 19 वर्ष की आयु में पूना के निकट तोरण दुर्ग पर अधिकार करके अपना जीवन- क्रम आरंभ किया। शिवाजी स्वाधीनता के प्रेमी थे। अतःउन्होंने अपने साथियों को संगठित करके विदेशी शासन की बेड़ियां तोड़ने का संकल्प लिया।
शिवाजी का आरंभिक जीवन
शिवाजी बचपन से ही एक महान योद्धा थे उन्हें सिर्फऔपचारिक शिक्षा दी गई थी जिससे वह पढ़ लिख तो नहीं सकते थे लेकिन इनको सुनाई हुई बातें अच्छी तरह याद रहती थी।
हिंदवी स्वराज की अवधारणा
शिवाजी को 12 वर्ष की आयु में उनके ज्येष्ठ भाई संभाजी और सौतेले भाई एको जी के पास बैंगलोर ले जाया गया। 1640 ईस्वी में शिवाजी का विवाह निंबालकर परिवार की सईबाई से कर दिया गया। शिवाजी ने पहली बार 1645 ईसवी में दादाजी नरस प्रभु के समक्ष हिंदवी समाज की अवधारणा प्रकट की। शिवाजी प्रभावशाली कुलीनो के वंशज थे। उस समय उत्तरी भारत में मुगलों तथा दक्षिण में बीजापुर और गोलकुंडा समेत संपूर्ण भारत पर मुस्लिम शासन था। मुस्लिम अपनी शक्ति के जोर पर शासन करते थे और प्रजा के प्रति इनका कोई कर्तव्य नहीं था।
शिवाजी (Shivaji) ने जब मुसलमानों द्वारा किए जा रहे दमन और उत्पीड़न को असहनीय पाया तो 16 वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते उन्होंने यह महसूस किया कि ईश्वर ने हिंदुओं की मुक्ति के लिए उन्हें नियुक्त किया है।
शिवाजी की विधवा माता स्वतंत्र विचारों वाली हिंदू कुलीन महिला थी। उन्होंने शिवाजी को जन्म से ही दबे, कुचले हिंदुओं के अधिकारों के लिए लड़ने और मुस्लिम शासकों को उखाड़ फेंकने की शिक्षा दी थी।
शिवाजी और जय सिंह के बीच ' पुरंदर की संधि'
राजा जयसिंह ने बीजापुर के सुल्तान से संधि कर पुरंदर के किले को अधिकार में करने की योजना बनाई। यह शिवाजी को कुचलने का षड्यंत्र था। अपनी योजना के प्रथम चरण में जय सिंह ने 24 अप्रैल 1665 ईसवी को ब्रजगढ़ के किले पर अधिकार कर लिया। शिवाजी को जब यह महसूस हुआ कि वह पुरंदर के किले की रक्षा कर पाने में असमर्थ हैं, क्योंकि उनका वीर सेनानायक मुरार जी बाजी मारा गया था, तो उन्होंने महाराजा जयसिंह से संधि की पेशकश की। दोनों सहमत हो गए और 22 जून 1665 ईसवी को ‘ पुरंदर की संधि’ संपन्न हुई।
शिवाजी की आगरा यात्रा
पुरंदर की संधि के दौरान शिवाजी अपनी सुरक्षा का पूर्ण आश्वासन प्राप्त कर मुगल बादशाह औरंगजेब से आगरा के दरबार में मिलने को तैयार हो गए। 9 मई 1666 ईस्वी को जब शिवाजी 4000 मराठा सैनिकों और अपने पुत्र संभाजी के साथ मुगल दरबार में उपस्थित उपस्थित हुए तो उन्हें औरंगजेब ने उचित सम्मान नहीं दिया। इससे क्रोधित होकर शिवाजी ने औरंगजेब को ‘ विश्वासघाती’ कहा, जिसके परिणाम स्वरूप औरंगजेब ने शिवाजी और उनके पुत्र को जयपुर भवन में कैद कर दिया। शिवाजी 15 अगस्त 1666 को फलों की टोकरी में छिप कर फरार हो गए और 22 सितंबर को रायगढ़ पहुंचे। कुछ समय पश्चात शिवाजी ने मुगल सम्राट औरंगजेब को पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने कहा “यदि सम्राट उन्हे (शिवाजी)को क्षमा कर दे तो वह अपने पुत्र शंभाजी को मुगल सेना में भेंज सकते हैं।” शिवाजी की शर्तों को औरंगजेब नेस्वीकार कर लिया और उसे राजा की उपाधि प्रदान की।
शिवाजी का राज्याभिषेक
‘ पुरंदर की संधि’ के अंतर्गत जो प्रदेश मुगलों के अधिकार में हो गए थे, उन सारे प्रदेशों पर शिवाजी ने 1674 तक अधिकार कर लिया था। शिवाजी ने पश्चिमी महाराष्ट्र में स्वतंत्र हिंदू राष्ट्र की स्थापना की। इसके पश्चात जब शिवाजी ने अपना राज्य अभिषेक करना चाहा तो ब्राह्मणों ने उनका घोर विरोध किया। शिवाजी के निजी सचिव बालाजी आव जी ने काशी में गंगाभ नामक ब्राह्मण के पास तीन दूतों को भेजा क्योंकि शिवाजी क्षत्रिय नहीं थे, गंगाभ ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। गंगभ ने अभिषेक के लिए शिवाजी की क्षत्रियता का प्रमाण मांगा। बालाजी आव जी ने शिवाजी का संबंध मेवाड़ के सिसोदिया वंश से होने के प्रमाण भेजें जिससे संतुष्ट होकर गांगभ रायगढ़ आया और उसने राज्याभिषेक किया।
छत्रपति की उपाधि
राज्याभिषेक के बाद भी पुणे के ब्राह्मणों ने शिवाजी को राजा मानने से इंकार कर दिया, जिससे विवश होकर शिवाजी को ‘ अष्टप्रधान मंडल’ की स्थापना करनी पड़ी। इस समारोह में विभिन्न राज्यों के राजदूतों, प्रतिनिधियों के अतिरिक्त विदेशी व्यापारियों को आमंत्रित किया गया। शिवाजी ने छत्रपति की उपाधि धारण की। इस समारोह में शिवाजी ने हिंदू स्वराज की स्थापना का उद्घोष किया।
मराठा साम्राज्य की स्थापना ( Establishment of Maratha Empire)
बीजापुर के सुल्तान, गोवा के पुर्तगालियों और जंजीरा स्थित अबीसिनिया के समुद्री डाकुओं के प्रबल विरोध के बाद भी शिवाजी ने दक्षिण में एक स्वतंत्र हिंदू राज्य की स्थापना कर दी थी। धार्मिक आक्रामकता के युग में वह अकेले ही धार्मिक सहिष्णुता के समर्थक बने रहे।
शिवाजी की मृत्यु
शिवाजी (Shivaji) के जीवन के अंतिम वर्ष उनके जेष्ठ पुत्र की धर्म विमुखता के कारण परेशानियों में बीते। घरेलू झगड़े और अपने मंत्रियों के आपसी वैमनस्य के बीच शत्रुओं से मराठा साम्राज्य की रक्षा की चिंता ने शिवाजी को शीघ्र ही मृत्यु शैया तक पहुंचा दिया।
लार्ड मैकाले द्वारा ‘ शिवाजी महान’ कहे जाने वाले शिवाजी की 3 अप्रैल 1610 ईस्वी में अपनी राजधानी पहाड़ी दुर्ग रायगढ़ में मृत्यु हो गई।
शिवाजी एक समर्पित हिंदू, आदर्श पुत्र, श्रेष्ठ सेनानायक, सहिष्णु व कूटनीतिज्ञ थे, जिस स्वतंत्रता की भावना से शिवाजी स्वयं प्रेरित थे उस भावना को उन्होंने अपने देशवासियों के ह्रदय में इस प्रकार प्रज्वलित कर दिया कि उनके मरणोपरांत भी वे औरंगजेब के अत्याचारों के बावजूद अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने में समर्थ हो सके। इसी से भविष्य में मराठा साम्राज्य की स्थापना हुई वास्तव में शिवाजी एक व्यवहारवादी और आदर्शवादी व्यक्ति थे।