October 15, 2024
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के मजबूत स्तंभ और प्रख्यात समाज सेवक नानाजी देशमुख जयंती पर विशेष : Nanaji Deshmukh Jayanti 2023

Nana Ji Deshmukh Jayanti || नानाजी देशमुख जयंती || Birth Anniversary of Nanaji Deshmukh || 11 October 2023देश के उत्थान के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित करने वाले “भारत रत्न” नानाजी देशमुख (Nanaji Deshmukh) का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। राजनीति के शिखर पर पहुंचकर अचानक सब कुछ छोड़ देना बहुत कठिन होता है और भारत में इसके गिने- चुने उदाहरण ही मिलते हैं। ऐसे लोगों में से एक थे नाना जी देशमुख, जिन्होंने सभी वर्गों और विचारधारा के लोगों के बीच अजातशत्रु बनकर काम किया।

नानाजी देशमुख जयंती || Birth Anniversary of Nanaji Deshmukh || 11 October 2023

Bharat Ratna Nanaji Deshmukh Jyaanti 2023_भारत रत्न नानाजी देशमुख जयंती 2023

नानाजी देशमुख (Nanaji Deshmukh) ने दिया ग्रामीण विकास का मॉडल

Nanaji Deshmukh Jayanti 2023: देश के उत्थान के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित करने वाले “भारत रत्न” नानाजी देशमुख (Nanaji Deshmukh) का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। राजनीति के शिखर पर पहुंचकर अचानक सब कुछ छोड़ देना बहुत कठिन होता है और भारत में इसके गिने- चुने उदाहरण ही मिलते हैं। ऐसे लोगों में से एक थे नाना जी देशमुख, जिन्होंने सभी वर्गों और विचारधारा के लोगों के बीच अजातशत्रु बनकर काम किया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के मजबूत स्तंभ और प्रख्यात समाज सेवक एवं दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान “पद्म विभूषण” से सम्मानित नानाजी देशमुख(Nanaji Deshmukh) शिक्षा स्वास्थ्य और ग्रामीण लोगों के बीच स्वावलंबन के लिए किए गए कार्यों के लिए सदैव याद किए जाते रहेंगे। नाना जी भारतीय जनसंघ के स्थापक भी रहे। लेकिन 60 वर्ष की आयु के बाद उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया और अपना शेष जीवन चित्रकूट के गांव का कल्याण करने में व्यतीत किया। उन्होंने ग्रामीण लोगों के विकास की नई गाथा लिखी। मरणोपरांत नानाजी को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान “भारत रत्न” (Bharat Ratna Nanaji Deshmukh Jayanti) से सम्मानित किया गया।

आइए जानते हैं नानाजी देशमुख ((Nanaji Deshmukh) ) के जीवन के बारे में-

नानाजी देशमुख का जीवन परिचय ( Biography of Nanaji Deshmukh)

नानाजी देशमुख (Nanaji Deshmukh Jayanti) का जन्म 11 अक्टूबर 1916 ई को महाराष्ट्र राज्य के परभनी जिले में एक छोटे से गांव कडोली में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री अमृतराव देशमुख और माता का नाम राजाबाई अमृतराव देशमुख था। नाना जी का अधिकतर समय संघर्षों में व्यतीत हुआ अल्पायु में ही उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया। उनके मामा जी ने इनका पालन- पोषण किया।

नानाजी देशमुख की शिक्षा (Nanaji Deshmukh's education)

नानाजी देशमुख (Nana Deshmukh )का जीवन अभावों में व्यतीत हुआ था। यहां तक की स्कूल की शिक्षा के दौरान उनके पास किताबें खरीदने तक के लिए पैसे नहीं होते थे। वह बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की दैनिक शाखा में जाया करते थे। सेवा संस्कार का अंकुर नानाजी में यहीं से फूटा। जब वे नौवीं कक्षा में थे उसी समय उनकी मुलाकात संघ के संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार से हुई। डॉक्टर हेडगेवार ने मैट्रिक के बाद नाना जी को आगे की पढ़ाई के लिए ‘ बिरला इंस्टिट्यूट पिलानी’ जाने का परामर्श दिया। 

पिलानी जाने के लिए नाना जी (Nanaji) ने डेढ़ साल मेहनत करके पैसा इकट्ठा किया और 1937 में पिलानी गए। आर्थिक अभाव के कारण मुश्किलें बहुत थी लेकिन नाना जी कठोर परिश्रम करते जिससे उन्हें किसी की मदद ना लेनी पड़े। ‘बिरला इंस्टिट्यूट, पिलानी से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद 30 के दशक में वे आर एस एस (RSS)में शामिल हो गए।

नाना देशमुख जी की राजनीतिक गतिविधियां (Political activities of Nana Deshmukh ji)

नानाजी का जन्म तो महाराष्ट्र में हुआ था। लेकिन उनकी कर्मभूमि राजस्थान और उत्तर प्रदेश ही रही। आर एस एस (RSS)के प्रचारक के रूप में उन्हें गोरखपुर भेजा गया जहां वे उत्तर प्रदेश के प्रचारक नियुक्त कर दिए गए। नाना जी लोकमान्य तिलक के विचारों से प्रभावित थे।1940 में महाराष्ट्र के सैकड़ो युवक प्रचारकों में नानाजी भी थे। 1950 से 1977 तक भारतीय राजनीति पर नाना जी की तीव्र बुद्धि और विलक्षण संगठन कौशल ने अमिट छाप छोड़ी।

गोरखपुर में पहले "सरस्वती शिशु मंदिर" की स्थापना की (Nana Deshmukh ji Established the first "Saraswati Shishu Mandir" in Gorakhpur)

उन दिनों संघ की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। नाना जी को संघ प्रचारक के रूप में उत्तर प्रदेश में पहले आगरा फिर गोरखपुर भेजा गया। नाना जी एक धर्मशाला में रहते थे। वहां पर हर तीसरे दिन कमरा बदलना पड़ता था। अंतत: कांग्रेस के एक नेता ने इस शर्त पर स्थाई कमरा दिलाया कि वे उसका खाना बना दिया करेंगे।

नाना जी के अथक प्रयासों और परिश्रम के परिणाम स्वरुप 3 साल में गोरखपुर के आसपास संघ की 250 शाखाएं खुल गई। विद्यालयों का संस्कारहीन वातावरण देखकर नाना जी ने गोरखपुर में 1950 में पहला “सरस्वती शिशु मंदिर” (Saraswati Shishu Mandir) स्थापित किया। आज देश में 50,000 से अधिक ऐसे विद्यालय हैं।

' राष्ट्रधर्म प्रकाशन' के बने प्रबंधक

1947 में जब लखनऊ में राष्ट्रधर्म प्रकक्षा की स्थापना हुई तो नाना जी देशमुख को इसका प्रबंधक बनाया गया। वहां से मासिक ‘राष्ट्रधर्म’ ‘साप्ताहिक पांचजन्य तथा ‘ दैनिक स्वदेश’ अखबार निकाले गए।

bharat ratna nanaji deshmukh in emergenc_नानाजी देशमुख जयंती 2023

गांधी जी की हत्या के बाद लगा संघ पर प्रतिबंध

1948 में महात्मा गांधी जी की हत्या के बाद संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। जिससे प्रकाशन संकट में पड़ गया। ऐसे में नाना जी ने छद्म नामों से कई पत्र निकाला। 1952 में जनसंघ (Jansangh) की स्थापना हुई और उत्तर प्रदेश में इसका कार्य नाना जी को सौपा गया। 1957 तक प्रदेश के सभी जिलों में जनसंघ का काम पहुंचाने का कार्य नानाजी ने किया।

1967 में चौधरी चरण सिंह की सरकार बनाने में भी नानाजी की महत्वपूर्ण भूमिका थी। 1974 में इंदिरा गांधी के प्रशासनिक नीतियों के विरुद्ध लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में ‘संपूर्ण क्रांति’ में भी नानाजी सक्रिय रहे। उन्होंने विनोबा भावे के भूदान यज्ञ में भी अपना योगदान दिया।

एक बार पटना में पुलिस जयप्रकाश और अन्य लोगों पर लाठियां बरसा रही थी। नानाजी ने उन्हें अपनी बाहों पर ले लिया, जिससे उनके बांह तो टूट गई लेकिन जयप्रकाश जी बच गए।    

महामंत्री के रूप में

आपातकाल के विरुद्ध बनी ‘लोक संघर्ष समिति’ के नाना जी मंत्री थे। 1975 में कुछ नेताओं को जेल हुई लेकिन नाना जी हाथ नहीं आए। उसे समय हुए देशव्यापी सत्याग्रह में एक लाख से अधिक लोग गिरफ्तार किए गए। बाद में नाना जी भी पकड़े गए।

1977 में जब मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी तो नाना जी ने सत्ता के बजाय संगठन को महत्व दिया और खुद मंत्री न बनाकर बृजलाल वर्मा को मंत्री बनवाया और नाना जी को जनता पार्टी (Janta Party) का महामंत्री बनाया गया। नाना जी के पास सत्ता में ऊंचे पद ग्रहण करने का अवसर था लेकिन उन्होंने सक्रिय राजनीति छोड़ दी। और ‘ दीनदयाल शोध संस्थान’ के माध्यम से गोंडा और फिर चित्रकूट में ग्राम विकास कार्य प्रारंभ किया।

राजनीति से संन्यास

नाना जी का मानना था कि 60 वर्ष की आयु के बाद व्यक्ति को राजनीति छोड़ देना चाहिए। नाना जी ने अपने जीवन काल में ‘दीनदयाल शोध संस्थान’ ‘ग्रामोदय विश्वविद्यालय’ और ‘बाल जगत’ जैसे सामाजिक संगठनों के स्थापना की। 1999 में नानाजी को “पद्म विभूषण” के लिए चुना गया और इसी वर्ष राज्यसभा के लिए भी

नानाजी देशमुख (Nanaji Deshmukh) और विवादों का था गहरा रिश्ता

राजनीति से अलग होने के बाद भी नाना जी निर्विवाद नहीं रहे। 1984 में जब उन्होंने कहा “अब समय आ गया है कि संघ राजीव गांधी के साथ खड़ा रहे।” उस समय नानाजी विवादों के घेरे में आ गए थे। नदी जोड़ने के राजग सरकार के महत्वाकांक्षी परियोजना को नानाजी के हस्तक्षेप के कारण ठंडे बस्ते में डालना पड़ा। अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार के समय भी वे कई अवसरों पर केंद्र सरकार के खिलाफ खड़े नजर आए।

नानाजी का निधन एवं देहदान

कर्मयोगी नानाजी देशमुख ने 27 फरवरी 2010 को अपनी कर्मभूमि चित्रकूट में अंतिम सांस ली। नानाजी ने देह दान का संकल्प पत्र भरा था। मृत्यु के पश्चात उनका शरीर “आयुर्विज्ञान संस्थान” को दे दिया गया। नाना जी की इच्छा के अनुसार उनकी देह को “अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान” में शोध कार्य के लिए दिया गया। जहां चिकित्सक उनके शरीर पर शोध कार्य कर सकें।

दिल्ली के “दधीचि देह दान समिति” को अपने देहदान संबंधी शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करते हुए नानाजी ने कहा था-

“मैंने जीवन भर संघ शाखा में प्रार्थना में बोला है, ‘पत्तवेश कायो नमस्ते नमस्ते।’ अतःमृत्यु के बाद भी यह शरीर समाज के लिए उपयोगी हो। और इस प्रकार उन्होंने अपना शरीर मृत्यु के उपरांत चिकित्सा शास्त्र के विद्यार्थियों के अध्ययन के लिए समर्पित कर दिया। नाना जी असंख्य लोगों की प्रेरणा स्त्रोत रहे हैं और भविष्य में भी रहेंगे।

About Nanaji Deshmukh on wikipedia :  https://en.wikipedia.org/wiki/Nanaji_Deshmukh